शरीर का या आत्मा का? / रश्मि

Gadya Kosh से
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लड़की रोते और लड़खड़ाते हुए पुलिस-थाने में पहुंची... उसके तन का एक-एक ज़ख्म रिस-रिस कर अपने साथ हुई दरिंदगी की कहानी कह रहा था। वहां कोई भी ऐसा सभ्य हाथ नहीं मौजूद था जो उस लड़खड़ाती हुई बच्ची को थाम कर कुर्सी तक भी बिठा सकता। वह खुद ही कराहती और घिसटती हुई कुर्सी तक पहुंची और पुलिस वालों से गिड़गिड़ाकर बोली कि उसे न्याय दिया जाए और जिन दरिंदों ने उसका यह हाल बनाया है, उन्हें सजा दी जाए।

कुछ देर उसे रोने के लिए दिए गए... फिर कुछ देर उसे इंतज़ार कराया गया... कोई भी कार्यवाही करने से पहले कानून की दुहाई दी गई... अपने साथ हुए कृत्य की रिपोर्ट लिखवाने को कहा गया। लड़की का हर ज़ख्म चीख-चीखकर दरिंदगी की कहानी कह रहा था... लेकिन हाय रे! मेरा कानून... एक बार फिर उसके शरीर पर लगे ज़ख्मों को कुरेदा गया....एक-एक निशान को जांचा गया....बेचारी लड़की की आत्मा का भी रेप हो गया।