शर्मा जी का पासपोर्ट / अर्चना चतुर्वेदी
शर्मा जी के विभाग में सुगबुगाहट थी कि इस बार विदेश वाले प्रोजेक्ट पर कौन जायेगा।
बॉस ने बुलाकर शर्मा जी से कहा , “शर्मा जी सीनियोरटी के हिसाब से आपका नंबर लगेगा विदेश जाने का” अभी शर्मा जी के मन के लड्डू फूटना शुरू ही हुए थे कि बॉस ने बम फोड़ा, “शर्मा जी आपके पास पासपोर्ट तो है ना और यदि नहीं है तो बनवा लीजिए, अभी वक्त है, नहीं तो ये अवसर किसी और को दे दिया जायेगा।
शर्मा जी बेचारे के मुहँ से बोल ही नहीं फूटे, अपना सर खुजाते हुए बॉस के कमरे से बाहर निकले।
वर्षों का सपना था विदेश जाने का हवाई जहाज में बैठने का, बेचारे अपने देश में भी नहीं घूमे थे और यहाँ फ्री की विदेश यात्रा,मगर ये कमबखत पासपोर्ट क्या बला है, कैसे बनेगा। बेचारे सीधे साधे शर्मा जी परेशान हो गए।
अब उनके खानदान में तो दूर दूर तक कोई विदेश नहीं गया,एक शहर से दूसरे शहर जाने को भी जहाँ लोग परदेश जाना कहते वहां किससे पूछे ? आफिस में पूछा तो मजाक भी बनेगा और अवसर से भी हाथ धो बैठेंगे। यही सोचते सोचते मुँह लटकाये शर्मा जी घर पहुंचे तो श्रीमती जी ने प्रश्न दागा, “ये चार दिन पुराने पिचकू केले जैसा मुहँ क्यों बना रखा है ? क्या मुसीबत आ गयी ?
शर्मा जी ने अपना दुखड़ा अपनी श्रीमती जी को सुनाया जो कि बहुत होशियार किस्म की हैं और हर मुसीबत का हल होता है उनके पास। शर्मा जी बात सुनकर फट से बोली, “बस इतनी सी बात के लिए मुहँ लटक कर घुटने तक आ गया है।” अब शर्मा जी को तो अपनी परेशानी का हल चाहिये था, इसलिए उनकी हर बात चुपचाप सुन रहे थे। श्रीमती जी ने अपनी बुद्धिमानी का परिचय देते हुए बताया, “ अरे,आपको याद नहीं है, २५ नम्बर वाले चतुर्वेदी जी तो हमेशा ही ऑफिस के काम से विदेश जाते रहते हैं, और वो तो आपके इतने अच्छे मित्र भी हैं। उन्ही से पूछ लीजियेगा, कैसे बनेगा ये मुआं पासपोर्ट ?
श्रीमती जी की बात सुनकर शर्मा जी चेहरे पर चमक आ गयी और वह खुशी से फूलते हुए बोले, ‘वाह भाग्यवान कितनी समझदार हो तुम ,तुम हमारी जिंदगी में ना होती तो हमारा क्या होता ,दिल कर रहा है तुम्हें चूम लू। जैसे ही श्रीमती जी कि तरफ कदम बढ़ाया वो तमक कर बोली, “दिमाग खराब है क्या तुम्हारा ? इस वक्त ऐसी उल्टी-सीधी बाते सूझ रही हैं, दोनों बच्चे घर पर ही है। जाओ मुह हाथ धोकर आओ में चाय बनाती हूँ। शर्मा जी भी मुँह की खाकर चुपचाप बाथरूम की तरफ चल दिए। चाय पीकर हमने श्रीमती जी से कहा, “हम चतुर्वेदी जी से मिलकर आते हैं वो भी ऑफिस से आ गए होंगे।
शर्मा जी ने उनके घर की घंटी बजाई तो उन्होंने ही दरवाजा खोला और बोले , “ अरे शर्मा जी........हमारे घर का रास्ता कैसे भूल गए,...... आओ...आओ....अंदर आओ।
शर्मा जी ने अपनी परेशानी उन्हें बताई तो वो बोले, “कब जाना है ? शर्मा जी के मुहँ पर असमंजस की रेखाएं तैर गयी। इसलिए पूछ रहा हूँ कि पासपोर्ट बनबाने में कम से कम एक महीना लगेगा यदि जल्दी है तो तत्काल में बनवाना पड़ेगा। उसकी फीस ज्यादा लगेगी” चतुर्वेदी जी बोले।
नहीं नहीं अभी तो समय है साधारण ही बनवा लेंगे , “शर्मा जी ने कहा।
फिर वो बोले, तुम्हें एक दलाल का नम्बर दे देता हूँ ,कुछ रूपये लेगा ,लेकिन तुम्हारी भागदौड़ बच जायेगी। फिर भी कितना ले लेगा कुछ आइडिया? शर्मा जी ने पूछा। अरे एक दो साल पहले हमने बच्चों का बनवाया था तब तो १००० रुपये लिए थे। अब तुम बात कर लेना। शर्मा जी ने नंबर लिया और घर आ गए। शर्मा जी रात को तो खा पी कर सो गए पर बड़ी बैचेनी थी सुबह होने के इंतजार मैं, दलाल से बात जो करनी थी।
सुबह ऑफिस जाने से पहले दलाल को फोन किया ,हैलो जी हम शर्मा बोल रहे हैं रोहिणी से,चतुर्वेदी जी ने आपका नंबर दिया है। आप हरीश बोल रहे हैं पासपोर्ट वाले। हां जी, मैं ही हरीश बोल रहा हू कहिये ,उधर से आवाज आई। जी वो हमें पासपोर्ट बनवाना था,कितना लगेगा?..... कितने दिन मैं बनेगा ?हमने अटक अटक कर पूछा। वो तो बड़ा ही होशियार था बोला, “अजी भाईसाहब ये सब बाते फोन पर थोड़े ही होती हैं घर का पता बता दीजिए शाम को आ जाता हूँ” वहीं बैठ कर सब समझा दूँगा। शर्मा जी के पास हां करने के सिवा कोई चारा नहीं था। शर्मा जी ने अपना पता बता दिया और ये भी कि घर कितने बजे आते हैं।
शाम को शर्मा जी घर पहुँच कर तरोताजा भी नहीं हो पाए थे कि दरवाजे की घंटी घनघनाई, शर्मा जी ने दरवाजा खोला, तो एक थुल थुल काया को खड़े पाया शर्मा जी ने पूछा कौन हैं भाई ? किससे मिलना है ?तो पान की पीक पिच्चसे जमीन पर मारते हुए वो महाशय निहायत ही शरीफाना अंदाज में बोले, जी ये शर्मा जी का घर हैं ना ? शर्मा जी बोले, “हां जी कहो हम ही शर्मा हैं। “अरे भाईसाहब हरीश हूँ, पासपोर्ट वाला सुबह बात हुई थी न” अब वो एकदम अपनत्व पर उतर आया था और दरवाजा लगभग धकेलते हुए, अंदर आकर बिना किसी के कहे अपनी थुल थुल काया लेकर सोफे पर विराजमान हो गया। शर्मा जी भी उसके पीछे पीछे मेहमानों की तरह आकर दूसरे सोफे पर बैठ गए। अब उन्होंने पूछा, “ हरीश जी पासपोर्ट बनने में कितने दिन लग जायेंगे ? अरे भाईसाहब अभी सब बताता हूँ पहले यह बताइए कि फेमिली का भी बनबाना है न ? “अरे नहीं भाई हमें ऑफिस के काम से बाहर जाना है इसलिए सिर्फ हमारा ही बनना है” शर्मा जी ने कहा। “देखिये भाईसाहब आपका पासपोर्ट एक महीने में बनकर घर पर आ जायेगा” यदि दो दिन में हम फार्म जमा कर दें तो। फार्म हम साथ लाए हैं, आप भर दीजिए और इसके साथ क्या क्या लगेगा वो हम आपको बताएँगे” हरीश ने कहा। खर्चा क्या आएगा ? शर्मा जी ने झिझकते हुए पूछा। अजी साहब ज्यादा खर्चा नहीं है, बस दो हजार लेंगे हम, इसी में आपकी पासपोर्ट फीस है। बाकी आपको कुछ नहीं करना, मस्त रहिये और पासपोर्ट ज्यादा जल्दी चाहिये , तो पांच हजार लगेंगे और पन्द्रह दिन में पास पोर्ट तैयार। शर्मा जी बोले, “नहीं भाई साधारण ही ठीक है, पर ये ज्यादा नहीं हैं ? । वह कुछ और सोच पाते या कह पाते उसने फार्म निकाल लिया और शर्मा जी के सामने रख दिया फिर पैन देते हुए बोला लीजिए भाईसाहब हस्ताक्षर कर दीजिए। शर्मा जी ने चुपचाप बिना ना-नुकुर के हस्ताक्षर कर दिए। तब तक श्रीमती जी चाय लेकर आ गयी। वो तुरंत बोला “वैसे भाईसाहब भाभी जी का और बच्चों का भी पासपोर्ट बनवा लीजिए, क्या पता ? कभी विदेश जाने का मौका मिल जाये परिवार सहित, और आगे तो पासपोर्ट बनवाना और भी महंगा हो जायेगा और मुश्किल भी। अब देखो न पहले तीन सौ फीस थी अब हजार है क्या पता आगे साधारण पासपोर्ट ही पांच हजार का बने”।
अब शर्मा जी को क्या पता था, वो उनकी चाँद यूं कुटेगी। उसकी बात सुनते ही श्रीमती जी के कान खड़े हो गए तुरंत पतिदेव को अंदर बुलाया और बोली, “क्यों जी, वैसे ये भईया बात तो सही कह रहे हैं, लगे हाथ हम भी बनवा ही ले पासपोर्ट, दोनों बच्चों का भी बन जायेगा कल को विदेश पढ़ने भेजा तो काम आएगा।”
“लेकिन भाग्यवान इतना खर्चा भी तो हो जायेगा” शर्मा जी ने मिमियाते हुए कहा। “अरे काहे का खर्चा आप के विदेश वाले प्रोजेक्ट से कमाई भी तो होगी और इतना पैसा तो हमने बचा के रखा है वो किस दिन काम आएगा ? पासपोर्ट बनने से हमारी इज्जत भी बन जायेगी मोहल्ले में,हर ऐरे गैरे के पास थोड़े ही होता है पासपोर्ट” श्रीमती जी एक साँस में बोल गयी। वह बेचारा सा मुँह लेकर बाहर आ गए, उनका मुँह देखकर हरीश के चेहरे पर विजयी मुस्कान तैर गयी थी। वो तुरंत बोला “लीजिए भाभीजी आप भी हस्ताक्षर कर दीजिए”। उसने सब फार्म पर हस्ताक्षर करवाए सबके पहचान के कागज पत्र लिए और फोटो लिए और बोला “आधा खर्चा एडवांस दे दीजिए पूरा पैसा आपका पासपोर्ट आने पर लूँगा”। वह कुछ कह पाते तब तक श्रीमती जी ने चार हजार रुपये पकड़ा दिए। वो हसंता हुआ चला गया और वह ठगे से देख रहे थे। अब शर्मा जी सोच रहे थे, इससे अच्छा तो हम चुपचाप पासपोर्ट आफिस जाकर अपना पासपोर्ट बनवा लेते तो इतने रुपये तो बचते लेकिन अब क्या हो सकता था। दो दिन बाद वो फिर आ धमका, इस बार तो जरुरत से ज्यादा खिल रहा था, आते ही चारों रसीद पकड़ाई और बोला, “भाईसाहब मेरा काम हो गया आपके फार्म जमा हो गए हैं, इसमें नीचे नंबर हैं, ये आपका फाइल नंबर है। अब पुलिस वेरिफिकेशन होगा हम बता देंगे कि कब पुलिस वाला आएगा। आप उस वक्त घर पर ही रहेंगे तो अच्छा होगा नहीं तो भाभीजी तो घर पर ही रहती होंगी ?...... जी पुलिस वेरिफिकेशन ? शर्मा जी ने कहा। “अरे भाईसाहब कुछ नहीं, बस पता करते हैं कि आप क्या करते हैं ? और यहाँ कब से रहते हैं ? वो बोला और भाईसाहब आप उसको चाय पानी के लिए दे देना। बंदा ठीक रिपोर्ट भेज देगा। काम भी जल्दी हो जायेगा। “मतलब... पुलिस वाला भी पैसे खायेगा ? वह बिदके..... “अरे भाई हम सरकारी नौकरी वाले आदमी, सालों से इसी मकान में रह रहे हैं। इस बात को साबित करने के भी पैसे देने पड़ेंगे, आपने पहले क्यों नहीं बताया”।
“अरे भाईसाहब आप तो नाराज हो गए ये तो छोटी सी बात है। मुझे लगा आपको पता होगा पुलिस वेरिफिकेशन के बारे में और इस देश में जो ईमानदार है और सही है उसे ही सबूत देना होता है। सही आदमी सही रास्ते से काम करेगा ना। गलत आदमी के पास तो सारे गलत रास्ते हैं उससे कोई नहीं पूछता जी” वो बड़े ही दार्शनिक लहजे में बोला। ‘लेकिन भाईसाहब आपको पुलिस वाले की जेब गर्म तो करनी पड़ेगी नहीं तो उसने कुछ गडबड कर दी तो पासपोर्ट बनवाना बहुत मुश्किल हो जायेगा’ उसने बताया । शर्मा जी भी चुप हो गए अब तो ऊखल में सिर घुसेड़ ही चुके हैं। एक हफ्ते में पुलिस वेरिफिकेशन भी हुआ पुलिस वाला दो हजार झटक गया, हर पासपोर्ट का पांच सौ। अब वह पासपोर्ट का इंतजार करने लगे जैसे ही एक महीना बीता श्रीमती जी और बच्चों के पास पोर्ट आ गए और पोस्टमैन जी इनाम के नाम पर दो सौ ले गए। वह हडबडाये और हरीश को फोन किया, “अरे भाई मेरा पासपोर्ट सबसे जरुरी था, मेरा नहीं आया सबका आ गया।”
अरे भाई साहब नाराज मत होइए, में कल ही पता करता हूँ, उसने उन्हें समझाया। शाम को हरीश का फोन आया, “ भाईसाहब परेशान मत होइए आपका पासपोर्ट निकल चुका है, एक दो दिन में आ जायेगा। वह बैचैनी से इंतजार कर रहे थे और आखिर वो दिन आ ही गया जब शर्मा जी का पासपोर्ट भी पहुँच गया। उस दिन वह घर पर ही थे, सुबह ही पोस्टमैन आया, पासपोर्ट का पैकेट देखकर वह फूले नहीं समा रहे थे पोस्टमैन ने इनाम माँगा। कहाँ तो उन्होंने श्रीमती जी को झाड लगाई थी इनाम देने पर और आज खुद सौ का नोट पोस्ट मैन को पकड़ा दिया । अब तो उनकी विदेश यात्रा का सपना पूरा होने का सबूत उनके हाथ में था। दरवाजा बंद करके जैसे ही शर्मा जी ने लिफाफा खोलकर पासपोर्ट देखा, तो उन पर मानो वज्रपात हो गया...........
ये क्या ! मेल के स्थान पर फीमेल...... इतनी बड़ी बड़ी मूंछे फिर भी पासपोर्ट के हिसाब से महिला थे। हे भगवान ! लोगों के आँखे हैं या बटन.... इतनी बड़ी गलती.... वह माथा पकड़ कर सोफे पर बैठ गए। उनके मुँह से आवाज नहीं फूट रही थी, मन कर रहा था दौड़ कर पोस्टमैन से अपना सौ का नोट छीन लायें। तब तक श्रीमती जी और बच्चे भी आ गए बोले, “दिखाओ न, आ गया आपका पासपोर्ट। अरे आपको तो खुश होना चाहिये, उदास क्यों हैं ? शर्मा जी ने जब दिखाया तो एक बार तो वो हँस पड़े, फिर श्रीमती जी बोली अरे हरीश को फोन करो न, वो ही बताएँगे अब क्या होगा ? उन्होंने ने तुरंत फोन घुमाया और हरीश को स्थति से अवगत कराया वो बोला, “भाईसाहब इसमें में कुछ नहीं कर सकता, आपको खुद पासपोर्ट ऑफिस में जाना होगा और एक एप्लीकेशन देनी होगी, करेक्शन की आपका काम हो जायेगा। कल सुबह नौ बजे तक आप आ जाइये में आपको वही मिलूँगा।” सुबह वे वहाँ पहुंचे तो ये लंबी लाईन गेट के बाहर तक लगी थी। वह भी चुपचाप लग गए। जब ऑफिस खुला तो भीड़ के रेले के साथ अंदर थे,लेकिन वहाँ ये बताने वाला कोई नहीं था कि काम किस काउंटर पर होगा जैसे तैसे पूछते पाछते वह सही काउंटर पर पहुंचे तो वहां भी ये लंबी लाइन। वह फिर लाइन में लग गए। दो घंटे बाद नंबर आया, उन्होंने पासपोर्ट जमा करके रिसीव दे दी और उन्हें ऊपर पहली मंजिल पर भेजा जहाँ फार्म स्कैन करके रखा गया था। ऊपर भी लाइन थी वह फिर लग गए। वहां बहुत लोग से ऐसे थे जो बार बार आ रहे थे। उन लोगों ने ही बताया यदि उन्होंने फार्म भरने में गलती की होगी तो उन्हें जुर्माना देना होगा, फिर जाकर पासपोर्ट सही होगा। यदि गलती उनसे हुई तो?उन्होंने पूछा अजी भाईसाहब सरकार अपनी गलती मानती हैं क्या ? आप इनसे जुर्माने की उम्मीद करते हैं क्या ? आपका पासपोर्ट सही होकर मिल जाये तो खैर मनाइए। हमें तो धक्के खाते खाते महीना गुजर गया। दो बार फार्म जमा कर चुके हैं फीस भी बेकार। ये सब सुनकर उनका दिल बैठने लगा था। जब तक नंबर आता लंच टाइम हो गया अब दो घंटे का इंतजार। लंच के बाद काम शुरू हुआ लेकिन उनका इंतजार बेकार... नंबर नहीं आया कल फिर आना पड़ेगा । दूसरे दिन वह फिर पहुंचे, फिर वही लाइन, नंबर आया तो उन्होंने कहा, “आपकी फाइल तो है ही नहीं शर्मा जी, आप उस काउंटर पर जाइये, वहां पता लग जायेगा”
शर्मा जी दशा उस दिन सूपर्नखा सी थी, जो कभी राम के पास तो कभी लक्ष्मन के पास जा रही थी। आधा दिन दौड़ धूप करके वह दफ्तर गए, रोज छुट्टी भी तो नहीं कर सकते थे। वहां बॉस की झिडकी खायी जो अलग शर्मा जी ने बहाना बनाया कि श्रीमती जी बीमार हैं और क्या करते जैसे तैसे काम निबटाया और अगले दिन की छुट्टी मांगी। बड़ी मुश्किल से बॉस माने। अगले दिन वही गेट पर हरीश को दबोचा, क्यों भाई दो दिन खराब हो गए। यहाँ तो कुछ नहीं हो रहा, कुछ करवाओ वरना बाकी रुपये भूल जाओ। उसने समझाया कि वहां अफसर से मिलना होगा। मरते क्या नहीं करते वह पहुंचे तो पुलिस वाला अंदर ही ना जाने दे अपोइंटमेंट का चक्कर। अब उन्हें गुस्सा आ गया और वे जोर जोर से चिल्लाने लगे, पीछे भीड़ भी शोर मचाने लगी। वे तो अपनी देशी औकात पर उतर आये थे या तो मिलने दो नहीं तो ले चलो जेल। मामला बिगड़ता देख, एक भला अफसर शर्मा जी को अंदर ले गया और सर से मिलवाया, पानी पिलवाया गया। शान्ति से उनकी बात सुनी गयी फिर सम्बंधित आदमी को बुला कर उनका काम सोंपा गया। खैर काम हो गया, उन्होंने कहा हमारा पासपोर्ट एक हफ्ते में घर पहुँच जायेगा। इस बार पोस्टमैन ने फिर इनाम माँगा। वे उस पर अर्रा के पड़े “क्या बार बार इनाम चाहिये, भाग यहाँ से”। पासपोर्ट सुधर गया था। वह खुश थे कि आखिर विदेश जा सकेंगे और पासपोर्ट बनने में जो दस हजार फुंक गए हैं, वो भी वसूल वाह। हरीश के रूपये भी दे दिए। उस रात नींद छुट्टी पर थी और शर्मा जी हवाई जहाज में उड़ रहे थे। रात भर विदेश के सपने देखे और सुबह सबसे पहले जाग गए। श्रीमती जी ने उठते ही पूछा, “क्या हुआ शर्मा जी आज इतनी सुबह ही जाग गए ?
“अरे डार्लिंग विदेश यात्रा के सपने ने सोने ही कहाँ दिया” उन्होंने इठलाते हुए कहा। “धत् ये क्या सुबह सुबह डार्लिंग फार्लिंग लगा रखी है, आपको तो जरा भी शर्म नहीं” पत्नी का बडबडाना चालू हो गया और शर्मा जी हँसते हुए बाथरूम में प्रवेश कर गए। आज जल्दी जो थी ऑफिस जाने की आज तो मानो उनके कदम जमीं पर नहीं थे। सीधे हवा में उड़ रहे थे।
शर्मा जी अपना पासपोर्ट लेकर खुशी खुशी दफ्तर पहुंचे और झट से बॉस के केबिन में। अरे शर्मा जी सुबह सुबह, क्या कोई काम है ? बॉस ने पूछा। सर हमारा पासपोर्ट आपने माँगा था न उन्होंने अपना पासपोर्ट बॉस की ओर ऐसे बढाया मानो कोई ख़िताब जीत कर लाए हों। “अरे शर्मा जी पासपोर्ट क्या करू आपको नहीं पता क्या ?अरे!........ आपको कैसे पता होगा आप तो छुट्टी पर थे ना। वो विदेश वाला प्रोजेक्ट केंसिल हो गया है, कुछ डिपार्टमेंटल गडबडी हो गयी थी। अब से कोई विदेश नहीं जा पायेगा” कहकर जैसे ही बॉस ने गर्दन घुमाई… शर्मा जी नदारद... धडाम... अरे ! कोई है ?
पानी लाओ.....शर्मा जी बेहोश हो गए...