शर्म कैसी? / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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मोतीवन में आग लग गई। मलकू लोमड़ और सोलू गधा जान बचाकर चंपकवन में आ गए। शेर सिंह ने सारा किस्सा सुनते हुए कहा-”तुम दोनों चंपकवन में रह सकते हो। तुम्हारे चालचलन को देखते हुए ही तुम्हारे यहां रहने की अवधि बढ़ाई जाएगी। अन्यथा तुम्हें चंपकवन छोड़ना होगा।” मलकू लोमड़ और सोलू गधा ने हाथ जोड़े और दरबार से बाहर चले गए।

“यार मलकू। हमें चंपकवन में रहने की इजाजत तो मिल गई। लेकिन हम यहां करेंगे क्या? खाएंगे क्या?” सोलू गधा बोला। मलकू लोमड़ ने गरदन झटकते हुए जवाब दिया-”अरे बेवकूफ! जब रहने का बंदोबस्त हो गया है तो खाने का भी हो जाएगा। मैं तो चला नदी में नहाने के लिए। पहले नहाधोकर आराम करुंगा। फिर खाने-पीने की सोचूंगा।” यह कहकर मलकू लोमड़ नदी की ओर चला गया।

सोलू गधा चंपकवन की बस्ती में जा पहंुचा। जंबो हाथी सब्जी काट रहा था। सोलू गधा बोला-”मैं आपकी मदद करूं? मैं भी सब्जी काट सकता हूं।” यह कहकर वह जंबो हाथी की मदद करने लगा। दोनों ने मिलकर ढेर सारी सब्जी काट दी। जंबो हाथी ने कहा-”लगता है परदेशी हो? अब खाना खाकर ही जाना।” दोनों ने मिलकर खाना बनाया और मिलबांटकर खाया। सोलू ने कुछ देर आराम किया फिर वह आगे बढ़ गया।

सोलू ने देखा कि हैरी घोड़ा पीठ पर ईंट लादकर ले जा रहा है। वह हैरी से बोला-”मैं भी ईंट ले जा सकता हूं।” सोलू गधा भी अपनी पीठ पर ईंट लादकर ले जाने लगा। डैरी भालू का मकान बन रहा था। दोनों शाम तक पीठ पर ईंट लादकर डैरी भालू के मकान की ओर पहुंचाते रहे। डैरी भालू ने दोनों को कुछ रुपए देते हुए कहा-”ये लो तुम्हारी मजदूरी। आज का काम खत्म। हाथ-मुंह धो लो। फिर खाना खाकर चले जाना। कल जरूर आना। और हां, कल तुम दोनों सुबह, दोपहर और रात का भोजन मेरे साथ ही करोगे।” हैरी और सोलू ने डैरी भालू के घर पर स्वादिष्ट भोजन किया। हैरी घोड़ा सोलू को अपने घर ले गया। हैरी ने सोलू से कहा-”तुम मुझे अच्छे लगे। जब तक चाहो मेरे घर रह सकते हो। मैं भी अकेला हूं। एक से भले दो।”

वहीं मलकू लोमड़ नदी में नहाने घुसा तो सैकी मगरमच्छ ने उसकी टांग पकड़ते हुए कहा-”मुझसे पूछे बिना नदी में कैसे घुस आया। फिर कभी यहां दिखाई दिया तो, समझ लेना।” जख्मी मलकू लगड़ाता हुआ नदी से बाहर निकला। रास्ते में उसे एक नारियल दिखाई दिया। उसने नारियल हवा में उछाल दिया। नारियल मधुमक्खी के छत्ते से जा टकराया। गुस्साई मधुमक्खियों ने मलकू लोमड़ को काट खाया। रोता-बिलखता मलकू किसी तरह जान बचाकर एक गुफा में जा छिपा। गुफा में लैपी तेंदुआ आराम कर रहा था। उसने मलकू लोमड़ को जमीन पर पटक दिया। बचता-बचाता मलकू इधर-ऊधर चक्कर काटता रहा।

मलकू लोमड़ बचा-खुचा और सड़ा-गला मांस खाकर किसी तरह अपने दिन काट रहा था। वह किसी से न तो बात करता न ही किसी से मेलजोल बढ़ाने की कोशिश करता।

एक दिन मलकू लोमड़ चंपकवन के चौराहे पर टहल रहा था। उसने सोलू गधा को एक ढाबे में खाना पकाते हुए देखा। वह हैरानी से बोला-”अरे। सोलू। तुम यहां खाना पका रहे हो? तुम्हें शर्म नहीं आती?”

सोलू ने मलकू लोमड़ का स्वागत करते हुए कहा-”मुझे खाना खाने में शर्म नहीं आती तो खाना पकाने में कैसी शर्म। क्या तुम्हें खाना अच्छा नहीं लगता? खाना ही तो पका रहा हूं। चोरी तो नहीं कर रहा! मैं इस ढाबे में काम करता हूं। मेरा मालिक मुझे रोटी और कपड़ा देता है।” फिर सोलू ने मलकू लोमड़ को ढाबे में भोजन करवाया। छुट्टी लेकर मलकू लोमड़ को हैरी घोड़े से भी मिलवाया। लेकिन मलकू लोमड़ फिर भी अपनी आदत से बाज नहीं आया। वह यहां-वहां खाली भटकता रहा।

दिन गुजरते गए। फिर एक दिन उसे शहर कोतवाल चीता सिंह मिला। चीता सिंह ने मलकू लोमड़ से कहा-”मलकू। तुम्हारे मोतीवन की आग अब बुझ चुकी है। 24 घंटे के अंदर तुम्हें चंपकवन छोड़ देना है। नहीं तो जेल में सड़ने के लिए तैयार रहना। समझे तुम।” मलकू हाथ जोड़ते हुए बोला-”जी ठीक है। मैं अपने दोस्त सोलू को अभी खबर कर देता हूं।”

“उसकी कोई जरूरत नहीं है। सोलू गधा जब तक चाहेगा, चंपकवन में रह सकता है। वह मेहनती है। ईमानदार है। उसे देख-देख कर चंपकवन के कई निठल्ले काम-काज करने लगे हैं। अब तुम यहां से फूटोगे या मैं तुम्हें बाहर तक खदेड़ने का इंतजाम करूं?” कोतवाल चीतासिंह ने मलकू लोमड़ से कहा।

आलसी मलकू दुम दबाता हुआ चंपकवन छोड़कर चला गया।