शर्म नहीं आती? / गोवर्धन यादव

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"" क्यों भाई, अच्छॆ खासे हट्ट-कट्टे नौजवान हो, कोई काम-धंधा क्यों नहीं करते, भीख माँगते हुये तुम्हें शर्म आनी चाहिये"

"शर्म तो बहुत आती है साहब, मगर कोई काम देता ही नहीं, चलिये आप ही मुझे कोई छोटा-मोटा काम दिला दीजिये, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं उसे पूरी इमानदारी और पूरी निष्ठा के साथ पूरा करुँगा,"

"अच्छा ये तो बतलाओ कि घर और कौन-कौन हैं?"

"" एक बूढी अपाहिज माँ है, जो काफ़ी लंबे समय से बीमार पडी है, अभी वह तवे-सी तप रही है, "

"तो उसका इलाज़ क्यों नहीं कराते, उसे अस्पताल-वस्पताल ले जाओ, मुफ़्त में इलाज़ हो जायेगा, और उसे दवा भी मिल जायेगी,"

" साहबजी, ठीक कहा आपने कि उसे अस्पताल ले जाऊँ तो वह ठीक हो जायेगी, लेकिन उसका इलाज़ कराने से भी कोई फ़ायदा नहीं है, अगर वह ठीक हो भी गई तो भूख में नाहक ही तडपेगी, जब मैं स्वयं का पेट नहीं भर पाता तो उसे क्या खिलाउँगा, उसका मर जाना ही ठीक रहेगा,

बडी ही बेबाकी एवं निष्ठुरता के साथ उसने अपने मन की बात कह दी थी, ऎसा कहते हुए न तो उसे कोई ग्लानि हो रही थी और न ही कोई शिकन उसके चेहरे पर दिख रही थी