शर्लक / एम०टी० वासुदेवन नायर / सुमित पी०वी०
दीदी ने मुझे आराम से उठने को कहा था। वह साढ़े पांच बजे जाग जाती हैं। सात बजे घर से निकल जाती हैं। नौकरी की जगह पहुंच जाने के लिए सवा घंटा कार चलाकर जाना पड़ता है। किसी ने दरवाजा खोला तो बालु जाग गया। बिलाव का काम था। सात बज चुका था।
मैं नीचे उतर आया तो दीदी बाहर निकल चुकी थी।
‘अरे उठ गया? फ्रिज के डोर पर तुम्हारे लिए एक नोट चिपकाया है।’ दीदी रात में दो बातें कहना भूल गई थीं। सामने के दरवाजे की चाबी नटराज की मूर्ति के नीचे है। दरवाजा अपने आप बंद हो जाता है, इसलिए जब भी बाहर निकलो चाबी अपने साथ रखनी होगी।
‘नहीं, मैं बाहर नहीं जा रहा हूँ।’
‘अच्छा! कुछ पढ़ लो। टीवी में बहुत सारी चीजें आ रही होंगी। अगर देखना चाहो तो मेरे कमरे में बैठ जाओ। दूसरी बात जो याद रखनी है कि नीचे वाले बाथरूम का दरवाजा हमेशा खुला छोड़ देना चाहिए। क्योंकि बिलाव के भोजन का कटोरा और लिटर बॉक्स अंदर है।’
बहन ने साढ़े चार बजे वापस आने की बात कहकर दरवाजा बंद कर बाहर निकली। बिलाव उस खिड़की पर कूद गया जहां गमले में पौधे थे और शीशे से बाहर ताकने लगा। जैसे ही बहन गैरेज से कार लेकर बाहर निकली, बिलाव ने बालु को देखा और नीचे उतर गया।
मेरी ओर बढ़ी बिलाव की निगाहें मानो कह रही हों, ‘अब राज मेरा होगा।’
शुक्रवार शाम को फिलाडेल्फिया पहुंचने के हिसाब से दीदी ने बालु के लिए टिकट की व्यवस्था की थी। शनिवार और रविवार को जब दीदी घर पर रहती हैं तो वह घर की मशीनों से परिचित हो सकता है। अमेरिकी समय के अनुरूप भारतीय शरीर को ढलने में भी समय मिल जाता है। खाने की चीजें कहां पर हैं, कौन-कौन सी विटामिन की गोलियां हैं – सब कुछ ठीक तरह से पता चल गया। माइक्रोवेव ओवन के बटनों को सही ढंग से दबाना सीखा। दीदी अपनी छोटी उम्र से ही सारी बातों में बड़ी सख्त हैं।
दीदी ने कहा, ‘खूब आराम करो। बीच-बीच में पढ़ते भी रहो।’
दो महीने में मेरे शरीर और दिमाग को बेहतर बनाने का निश्चय दीदी ने किया है।
‘तुम चाहो तो अमेरिका के प्रभाव पर कुछ लिख सकते हो। छह महीने में कविता की दस पंक्तियां लिखकर जिंदा रह सकते हो?’
बालु ने कुछ नहीं कहा।
‘अंग्रेजी साहित्य में एम. ए., पत्रकारिता में डिप्लोमा। उच्च योग्यताएं हैं, बहुत कुछ कर सकते हो!’
दीदी ने आह भरी। हताश मूड के साथ आया बालु बहस के लिए तैयार नहीं था। उसने मन ही मन कहा- भगवान और मेरे बीच के लेन-देन में कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ हुआ।
दीदी किसी छात्रवृत्ति के लिए कोशिश कर रही हैं। कई जगह आवेदन करने के बारे में जयंत ने कहा था।
‘यहां, अमेरिका में, मेहनती लोग ही कुछ बन सकते हैं। जीत का शिखर तो हमेशा आसमान से भी ऊंचा रहता है।’
दीदी ने सांत्वना देने के लिए आगे मलयालम में कहा, ‘जरूर कुछ ठीक हो जाएगा। हम ठीक कर लेंगे।’
सत्ताईस की इस उम्र में शायद कुछ चमत्कार हो जाए। दीदी को अब भी अपने भाई पर भरोसा है। मुझे बाद में पता चला कि खून की उल्टियां कर जब मैं अस्पताल में भर्ती हुआ था, तब दीदी ने कई बार फोन किया था। किसी की प्रार्थनाओं के कारण ही मौत उलट गई थी। बड़ी दीदी हमेशा इस बात की याद दिलाती रहती हैं।
जैसे ही बिलाव बाथरूम में गया, बालु चाय बनाने के लिए रसोई में आया और बची हुई टूटी सिगरेट सुलगा ली। रसोई में म्यूजिक सिस्टम और पाककला पुस्तकें जहां रखी हुई थीं, उस मेज पर रखे गुलदस्ते में सिगरेट की आग बुझाकर डालने के विरोध में बिलाव के गुर्राने की आवाज तेज हो गई। यहां कोई सिगरेट नहीं पीता।
जिस दिन मैं इस घर पर पहली बार आ पहुंचा था उस दिन दीदी ने इसी बिलाव के बारे में ज्यादा बात की थी। बड़ी दीदी और बच्चों के बारे में पूछताछ भी की थी। साथ ही छोटे मामा की बेटी की शादी के लिए सौ डॉलर भेज देने के बारे में भी कहा। तदुपरांत दीदी की गोद में आ बैठे बिलाव का वर्णन शुरू हुआ था। जब वह घर पर अकेली होती हैं तो जिंदा कुछ इधर-उधर घूमता दिखाई देता है तो बड़ी तसल्ली महसूस होती है। जयंत कभी महीनों बाद लौट आता है।
‘महीने अब बता रहा है। किसको पता!’ दीदी की आवाज में ईर्ष्या थी।
हवाई अड्डे से आते हुए, दस या पंद्रह भागों में से एक डाउन पेमेंट के साथ घर और कार खरीदने के चमत्कार के बारे में बात कर रही थी। जब इस खूबसूरत जगह पर घर बनने पर बड़ी मुश्किल थी तो भी एक घर खरीद लिया। चारों ओर विशाल जगह है। उस पार गोल्फ कोर्स है। बिलकुल हिंसा मुक्त जगह। सवा घंटे कार चलाते हुए जाना कठिन है। खासकर सर्दियों के दौरान जब सात बजे तक अंधेरा ही होता है। लेकिन दीदी के सभी दोस्तों का यह कहना है कि वह भाग्यशाली है कि उन्हें यह घर मिला।
जयंत के पश्चिमी तट पर सैनहॉसे में जाने तक कोई परेशानी नहीं थी। सारी किश्त भरने के बाद भी थोड़ी बचत कर पाती थी। फिलहाल हमें दो घर की जरूरत है न। दीदी ने कहा। ‘अब जब अकेली घर पर रहती हूँ तो शर्लक से बात करना शुरू किया है।’
‘कभी-कभी मेरी आवाज भी सुननी चाहिए न!’
उसे बुरा लगा।
शर्लक का रंग-रूप कुछ अजीब था। हल्का नीला नहीं, बल्कि भूरे रंग के साथ हल्का नीला कहना उचित होगा। दुख से छूटने के लिए पूछा: ‘स्यामी बिलाव का क्या हाल है?’
‘स्यामी नहीं, कोई अलग किस्म का है। वेटिनरी डॉक्टर ने जयंत को बताया था। पर मुझे याद नहीं है।’
पिछली सर्दियों में इसे गैरेज के बाहर घूमते देखा। तब ध्यान नहीं दिया था। फिर रात को वह घर के दरवाजे पर आकर खरोंच कर आवाज करने लगा। दरवाजा खुलते ही ठंड से बचने की खुशी में वह अंदर आकर सोफे पर औंधकर लेटा। हमने उसे दूध पिलाया।
किसी घर का पालतू बिलाव होगा। उसे घर पर व्यवहार करने का प्रशिक्षण प्राप्त है। कॉलोनी के बाहर डाक बॉक्स के पास स्थित नोटिस बोर्ड पर इसके मिल जाने की सूचना चिपका दी तो भी कोई ढूंढ़ कर नहीं आया।
जयंत ने इसका शर्लक नाम रखा।
‘शर्लोक?’
‘बचपन में जयंत ने काफी जासूसी कहानियां पढ़ी हैं। असल में इसका पूरा नाम शर्लक होम्स है। वेटिनरी डॉक्टर के रजिस्टर में शर्लक होम्स शिंदे!’
दीदी हँस पड़ी। बालु को ख्याल आया कि कई साल बाद वह अपनी बहन की जोर की हँसी सुन रहा था।
अमेरिकी घरेलू बिल्लियां अद्भुत प्राणी होती हैं। घर पर खाने की चीजें खोल कर रख देने पर भी वे मुड़कर नहीं देखतीं। दुकान से खरीदा हुआ बिल्ली का विशेष खाना ही उनका भोजन होता है। चुरा कर न खाने वाली बिल्लियों वाला एकमात्र देश!
बालु ने बाथरूम में बिलाव के लिए उपलब्ध व्यवस्थाएं देखीं। एक अटारी में खाना, दूसरे में पानी। बड़े लिटर बॉक्स में जाकर पॉटी भी ठीक से कर लेगा। घरेलू बिल्लियां कभी घर को गंदा नहीं करतीं।
‘तुम नंदिनी से नहीं मिले? डॉ. जीके नायर की बेटी नंदिनी।’
बालु को याद है कि नंदिनी की छोटी बहन एम. ए. की कक्षा में थी।
नंदिनी न्यूजर्सी में है। नंदिनी के घर में दो बिल्लियां हैं। यदि आप बिल्ली को सुपरमार्केट से छूट पर खरीदा गया भोजन देंगे, तो वे दोनों बिल्लियां भी नहीं खाएंगी। सूंघ लेने पर ही बिल्ली समझ जाएगी कि यह पुराना स्टॉक है! दीदी फिर हँस पड़ी।
‘नंदिनी को कॉल करती हूँ। चलो, सप्ताहांत में वहां चल चलते हैं। जयंत को आने दो।’
जैसे ही बिलाव धीरे-धीरे बालु के करीब आकर गोद में पैर उठाकर रखने लगा, बहन ने कहा: ‘डरो मत। उसके पंजे नहीं हैं।’
जब वह फर्नीचर पर कूद कर चलने लगा, पंजों से खरोंच आने लगी। तो फिर जयंत ने वेटिनरी अस्पताल ले जाकर पंजे निकालने का ऑपरेशन करवाया। तब बालु ने सहानुभूति के साथ बिलाव को देखा।
‘हां थोड़ा कठिन है। लेकिन, महंगे फर्निचर पर– ऑपरेशन बिलकुल भी दर्दयुक्त नहीं होता। और फिर नाखून कभी नहीं बढ़ेगा। नंदिनी ने भी वैसा ही किया था। यहां हर कोई ऐसा ही करता है।’
जब दीदी एक सप्ताह की छुट्टी के लिए सैनहॉसे गई, तो पानी बदलने और खाना देने के लिए उन्होंने बगल वाले घर में चाबी दी थी।
बालु ने ध्यान दिया तो होशियार शर्लक हमेशा उसके पीछे ही है। मेहमान के आने के बाद से ही वह उसे जज कर रहा है।
नहाने के बाद ठंडे दूध में अनाज डाल कर खाने के बाद, बालु अपनी दीदी के कमरे में गया। अधिकांश जयंत की कंप्यूटर पुस्तकें हैं। छोटी-छोटी अलमारियों में कुछ उपन्यास हैं। लेकेरे, रॉबर्ट लुडलम, मार्टिन क्रूज स्मिथ और कई अन्य लोगों के उपन्यास जिनके बारे में भारत में कभी नहीं सुना है। वे सभी जासूसी साहसिक कहानियां हैं। दीदी को अच्छी-अच्छी पुस्तकें खोजकर पढ़ने का शौक था।
बिस्तर पर राजकुमारी डायना की कहानी पड़ी थी। अभी दीदी यही पुस्तक पढ़ रही होगी। दीवार पर दीदी और जयंत की तस्वीर। दोनों के हाथ में गुलदस्ते हैं। शादी के दिन की तस्वीर होगी। पश्चिमी दुल्हन की सफेद पोशाक।
बड़ी दीदी को भेजी गई एक अन्य तस्वीर में, जयंत इससे भी छोटा लगता था। छत्तीस साल की उम्र में भी दीदी छोटी लड़की ही दिखती हैं।
डायना की जीवन कहानी की तस्वीरें पलट रहा था, तो बिलाव दरवाजे पर आ गया। टीवी चालू किया। वाइल्ड वेस्ट फिल्म चल रही थी। बंद कर दिया। शर्लक दरवाजे पर खड़े होकर कुछ बड़बड़ा रहा है।
नाखूनों के नष्ट हो जाने पर बिल्लियां अपनी आवाज भी खो देती हैं? बिल्ली की भाषा में वह कभी म्याऊं करता नहीं सुना। एक और अद्भुत बात!
बालु ने एक किताब बाहर निकाली। ऊपर अपने लिए निर्धारित छोटे से कमरे में जाकर लेट गया। तब शर्लक दरवाजे के बाहर अपने पैर ऊपर करके लेट गया और कुछ देर तक हवाई प्रतिद्वंद्वी से मुकाबला करता रहा। फिर वह नींद के सागर में गोता लगाने लगा।
घर के मुख्य आकर्षण के रूप में दीदी ने पीछे की तरफ स्थित धूपदार डेक को कहा था। फिर नीचे एक बड़ा तहखाना भी है।
तहखाने के दरवाजे पर चाबी थी। कपड़े धोने की मशीन, जयंत की कसरत के उपकरण, साइकिल आदि सब कुछ तहखाने में है। बीच में कारपेट पर बोतलों का ढेर। लगभग पचास-साठ वाइन की बोतलें हैं। उन सबके लेबल पर निशान लगाकर हस्ताक्षर किया हुआ है। जे एस माने जयंत शिंदे।
कैलिफोर्निया की वाइन कंपनियों के नाम लगभग सारे लेबलों पर लिखा है। फ्रेंच भाषा के लेबल वाली एक बोतल को उठाकर देखने लगा तो पीछे किसी के आकर खड़े होने का आभास हुआ।
अरे, सोने वाला शर्लक उठकर ढूंढ आया है। जम्हाई लेकर अधखुली आंखों के साथ वह लंबे समय तक देखता रहा। उल्टा उसे घूर कर देखते हुए डराने का बालु ने प्रयास किया।
‘अबे, जा। बाहर जा!’
शर्लक बोतलों के पास लेटकर पूंछ से हवा में चित्र खींचने लगा।
‘गेट आउट!’
जयंत ने सिखाया होगा तो बिलाव थोड़ी-सी हिंदी भी जानता होगा। इसलिए कहा:
‘बाहर जा!’
बालु ने सोचा। तहखाने की जांच करने के सबूत के रूप में शाम को दीदी के आने तक यहां लेटने का बिलाव का इरादा है? भूख लगने पर बाहर आ ही जाएगा सोचकर आश्वस्त होता हुआ मैं सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर आ गया।
छोटी गॉल्फ गाड़ियां मैदान की तरफ जाती हुई दिखीं। खेल खिड़की से दिखाई नहीं देता।
दोपहर का भोजन गरम करते समय बिलाव तहखाने से ऊपर चला आया। जल्दबाजी में सीढ़ियां उतर कर तहखाने का दरवाजा बंद किया।
ठीक समय पर ही दीदी वापस पहुंच गई।
‘दिन भर क्या किया?’
‘खाली बैठा।’
‘खूब आराम करो। तबीयत पूरी अपने आप ठीक हो जाएगी। तुम्हें जबरदस्ती इसलिए यहां लाया गया।’
नहाने के बाद कपड़ा बदल कर दो प्यालों में कॉफी के साथ दीदी स्वागत कक्ष में आ गई।
‘बेसमेंट की वाइन बोतलें जयंत ने इकट्ठी की थी। जयंत का वह शौक है। रजिस्टर भी रखा है।’
तहखाने की बोतलों के बारे में दीदी ने यों कहा तो – दिन में मेरा उसे जरूर खोलकर देखने का उन्होंने अनुमान लगाया है।
‘जब मेहमान आएंगे तभी शराब खरीद कर लाया जाएगा। जयंत कभी-कभार वाइन पीता है। मैंने जानबूझ कर यहां कुछ भी नहीं रखा है। तुम्हें कोई प्रलोभन नहीं होगा।’
‘अरे दीदी! मैंने आपको लिखा था न पीना छोड़ने के बारे में?’
‘हां… पीना छोड़ने वाले फिर से शुरू भी कर सकते हैं।’ अखबार कार्यालय में नौकरी स्थायी न करने के पीछे का कारण बड़ी दीदी ने लिखा था। ‘बेहोश लोगों को कोई काम पर रखता है?’
बालु ने कुछ नहीं कहा।
‘यहां रहते समय मेहनत करना होगा। किसी भी क्षेत्र में यहां कड़ी मेहनत के साथ ही टिक पाएगा। अमेरिका कोई स्वर्ग तो नहीं है।’
बालु ने कहा, ‘मुझे पता है।’
‘तुम्हारे कुमारन भैया के लिए मैंने ग्रीन कार्ड तैयार करने की बात कही थी! जानते हो?’
‘जी हां, सुना था।’ आठ साल पुराने ब्रेकअप को दीदी अभी क्यों याद कर रही है?
‘एक महीना यहां रहा तो जेल में रहने जैसा अहसास हुआ है! पहुंचते ही पहले दिन शिकायत यह थी कि सड़क पर कोई नहीं हैं। सिर्फ गाड़ियाँ हैं।’
बालु ने हँसने की कोशिश की।
उससे बड़ा मजाक, तुम्हें भी सुनना चाहिए! बड़ी दीदी और माला दीदी को मिला कर सभी कहते हैं कि मैंने कोई भयानक अपराध किया। यदि आप गाड़ी चलाना सीखे बिना किसी जगह पर नहीं रह सकते, तो आप वहां रहना ही नहीं चाहेंगे! अंतिम चेतावनी यह थी!’
बालु ने कुछ नहीं कहा। कुमारन भैया को पदोन्नत्ति मिली और वह प्रोफेसर बन गए। कॉलेज के पास घर बनाया। उनके दो बच्चे भी हुए। दीदी को पता होगा। दीदी को इंजीनियर जयंत शिंदे मिला। किसी को शिकायत नहीं होनी चाहिए।
रात में सुपरमार्केट के पास के चीनी होटल में ले गया। रात्रिभोज के अंत में लाई गई मिठाई के साथ भाग्य की भविष्यवाणी थी।
ग्रेट थिंग्स हैपेनिंग….
दीदी ने पेपर रॉल को देखा और ऐशट्रे में लपेट कर डाल दिया। मुझे उम्मीद थी कि वह मुझसे पूछेंगी कि तुम्हें क्या मिला था? भाग्य की भविष्यवाणी कुछ ऐसी थी कि बहुत बढ़िया काम हो रहा है।
‘बच्चों के लिए यह मजाक है।’
पिछले साल की खाली डायरी में भाग्य की भविष्यवाणी का पर्चा रख दिया। कुछ नोट्स लिखने के लिए पुरानी डायरी को हैंड बैग में रखा था।
शायद, कई बड़े कार्य घटित होंगे। जनसंचार में फैलोशिप। चीन के अपने महान संतों की विरासत को हल्के में नहीं लेना चाहिए। केरल के किसी सुदूर गांव के बालाकृष्णन का अमेरिका पहुंच जाना ही कोई बड़ी घटना नहीं तो क्या है!
पिता का मानना था कि तीन लड़कियों के बाद का बेटा नवग्रहों के शुभाशीष के साथ पैदा हुआ है। जब बच्चा था तो अपनी मां या बहनों के साथ बाहर जाते समय बहुत सारी चीजें पड़ी मिल जाती थीं। मिट्टी में धंसे सिक्के, पायल का टुकड़ा, सोने की नथुनी का भाग आदि। ‘एक बार बालु को खजाना जरूर मिल जाएगा।’ मजाक स्वरूप कहने पर भी मां को इस बात की रहस्यमयी उम्मीद थी।
किस्मत हमेशा बेटे को ढूंढ़ कर आएगी ही।
रात में, बालु ने अपनी पुरानी डायरी में लिखा: ‘14 जुलाई 92 शनिवार की रात को मैंने एक सपना देखा। जब मैं हीथ्रो हवाई अड्डे पर अचानक नींद से जगा, तो साइनबोर्ड पर देखा कि लोगों का फिलाडेल्फिया की उड़ान में प्रवेश शुरू हो चुका है। सत्ताईस नंबर वाला द्वार कहां है? मैं अंतहीन रास्ते पर दौड़ता गया तो छब्बीसवें द्वार पर पहुंच गया। अब वहां कोई द्वार नहीं है। मैं घबराकर दूसरी तरफ भागा और वहां अट्ठाईसवां द्वार शुरू होता है। मैं दौड़ता रहा। मेरे बाहर निकलने का सत्ताईसवां द्वार कहां है? सत्ताईस मेरी उम्र भी है।’
गेट नंबर और उम्र का एक समान होना किसी सपने का हिस्सा नहीं था। पढ़ने के बाद उसे काट दिया। फिर पन्ने को फाड़कर टोकरी में डाला। यात्रा वृत्तांत तैयार करना है तो खूबसूरत एयरहोस्टेस से शुरुआत करनी होगी।
रात को बगल के कमरे से काफी देर तक दीदी के किसी से फोन पर बात करने की आवाज आती रही। बिलकुल अस्पष्ट। जयंत हो सकता है। उस रात अचानक तेज गड़गड़ाहट के साथ बिजली चमकी। हल्की बूंदाबांदी भी हुई। बिलाव दरवाजे पर आकर झांका। दरवाजा बंद कर कुंडी लगा कर लेट गया।
अगले दिन जब दीदी जा रही थी तो जाग कर लेटा हुआ था। उनके जाने के बाद नीचे उतर आया।
कॉफी बनाकर पीने के बाद, गांव की बड़ी दीदी को चिट्ठी लिखने का सोचा। भास्करन मास्टर को भी पत्र लिखने का वादा किया था। ‘अमेरिका और मेरे बीच एक समझौते की कोशिश जारी है’ से शुरू करता हूँ।
रसोई में ऊंचे स्टूल पर बैठकर, अर्धवृत्ताकार काउंटर पर दीदी का लेटर पैड लेकर लिखना शुरू किया। तभी बिलाव उछल कर कागज के पास अपनी जगह बनाकर बैठ गया और यह जानने के लिए उत्सुकता से देखता रहा है कि क्या लिखा जा रहा है।
वह स्टूल से उतरकर सोफे के कोने पर बैठ गया। जैसे ही तिपाई पर रखकर लिखना शुरू किया, बिलाव करीब आया और कागज को घूरने लगा।
बालु को गुस्सा आया। बेहूदा! क्या घूर रहा है?
बिलाव हपहास के रूप में धीरे से गुर्राया।
लिविंग रूम की ओर जाते समय एक निर्णय ले चुका था। सामने का दरवाजा खुला रखा। जिस रास्ते से आया उसी रास्ते से वापस जाना चाहते हो तो रास्ता यहां है। सामने आंगन। फिर कार पार्किंग। उसके बाद मैदान। मैदान के परे कई घर। आजादी! तुम जा सकते हो।
‘शर्लक! यू कैन गो!’
कुछ पल तक दरवाजे से बाहर देखने के बाद, बिलाव वापस आया और कालीन पर लोटने लगा। फिर अपनी अधखुली आंखों से मजाक की मुद्रा में मुझे देखा।
उसने स्नान किया, कपड़े बदले और धूल झाड़ कर जूते पहना। सामने के दरवाजे की चाबी ली और बाहर निकलते हुए देखा तो बिलाव ऐसे लेटा है जैसे आधी नींद में हो।
गोल्फ कोर्स की सीमा पर बाएं मुड़ा और बाजार के पास तक चला और फिर वापस चला आया। धूप बहुत तेज थी।
जब वह अंदर गया तो भी बिलाव उसी जगह सो रहा था। दीदी रात के लिए चिकन करी तैयार करने लगी थी। उसने प्याज काटने में मदद की।
‘कहां-कहां टहल कर आए हो?’
‘बस। थोड़ी दूर तक।’
तभी बालु को चौंक कर याद आया, शर्लक!
यह कोई मामूली बिलाव नहीं है। दीदी के अकेली होने पर जासूसी करने के लिए इसे प्रशिक्षित किया गया होगा। शर्लक को लग रहा होगा कि दीदी के लिए जासूसी करना अपनी जिम्मेदारी है। बाहर जाने के बारे में दीदी को कैसे पता चला?
दीदी के देखे बिना बड़ी ईर्ष्या के साथ उसने बिलाव को देखा। उदासीनता को साधे अपना सिर उल्टा करके वह लेटा रहा, जैसे उसने यह सब देखा ही न हो।
बिलाव की आंखें हमेशा पीछा कर रही हैं। दरवाजा बंद कर सोने पर भी वह बाहर रहता है। इसका तब पता चला जब किसी दिन नींद से अचानक चौंक कर जागा और बाथरूम जाने के लिए दरवाजा खोला।
दीदी ने बताया कि शुक्रवार रात को जयंत आ रहा है। वह ऑफिस से जल्दी वापस आ गई।
‘चलो, मछली खरीदते हैं। जयंत को हमारी मालाबार शैली की मछली करी बहुत पसंद है। तुम सुपरमार्केट भी देख लो। यहां का सुपरमार्केट भारतीयों के लिए एक आश्चर्य है। इसे अवश्य देखना चाहिए।’
बैंक के बाहर कार रोकी और कार्ड से पैसे निकालने का अद्भुत दृश्य देखा। फिर सुपरमार्केट। सब्जियां, शर्लक का भोजन पैकेट और मछली सब कुछ खरीदने का काम पूरा करने पर दीदी ने कहा- ‘एक बोतल वाइन खरीद लेते हैं। जयंत आ रहा है न!’
जयंत की फ्लाइट नौ बजे है। साढ़े सात बजे से पहले खाना पकाने का सारा काम निपटाने में लगी हुई थी कि फोन आया।
‘हेलो!’
फिर कुछ देर तक दीदी की आवाज ही नहीं निकली। सिर्फ ‘हूँ’ की आवाज कई बार सुनाई पड़ी। जब बालु रसोई में आया, तो दीदी ने फोन रख दिया और धीरे-धीरे पिछले दरवाजे की ओर चली गई। फिर वह वापस आकर सोफे पर बैठ गई और बोली, ‘जयंत नहीं आ रहा है।’
वाइन की बोतल खोलकर गिलास में डालते हुए दीदी बोली, ‘ही इज बिजी।’
बालु को खाना परोस कर देती हुई दीदी ने कहा, ‘मैं बाद में खाऊंगी। भयंकर सिर दर्द है। तुम नहीं पीयोगे। पीना छोड़ दिया तो वाइन नहीं दे रही हूँ।’
वाइन की बोतल का करीब आधा भाग पीने के बाद बोतल हाथ में लेकर दीदी ऊपरी मंजिल पर चली गई। शर्लक पीछे नहीं गया। वह रसोई के दरवाजे के पास लेट गया। वह भी इस समय परेशान है।
दीदी ने शनिवार और रविवार का ज्यादातर समय अपने कमरे में ही बिताया।
रविवार को सोने से पहले यह निश्चय किया कि वापस लौटने के बारे में बताना ही है। लगता है छात्रवृत्ति नामक अद्भुत जल्दी संभव नहीं होगा। जयंत ने उस बारे में पता करने का वादा किया था। अभी तक उस अदृश्य साले से मिल नहीं पाया वह दूर सानहॉसे नामक नगर में है। पता नहीं शर्लक के साथ यहां कितने दिन रहना पड़ रहा है। कुमारन भैया ने इसे जेल की जिंदगी ऐसे ही नहीं कहा था। शर्लक कभी साथी तो नहीं बन सकता न!
उसके चेहरे पर यह समझने का भाव था कि मैं तब उसके बारे में सोच रहा था। धक्का देकर बाहर निकाला और दरवाजा बंद कर दिया।
सुबह जाने से पहले दीदी ने कहा, ‘ठीक हो जाएगा। धैर्य रखो। मैं भी कई लोगों से संपर्क कर रही हूँ।’
यह शर्लक होम्स मेरे विचारों को जान लेता है। अभी भी पता नहीं कैसे! वह सब कुछ दीदी को बताता भी है।
कार और घर के कर्ज की किश्तों और घरेलू खर्चों के बाद बचता बिलकुल कम है।
‘तुम्हारी भलाई सोचकर प्रीपेड टिकट करवाया था। दो हजार डॉलर कोई छोटी रकम नहीं है।’
बालु ने कुछ नहीं कहा।
‘तुम्हें कुछ डॉलर चाहिए?’
‘किसलिए?’
‘अरे, कहीं बाहर जाने का मन किया तो’
‘नहीं।’
‘गर्मी खत्म होते ही चेरी के पेड़ फूलने लगेंगे। तब यह इलाका बिलकुल खूबसूरत दिखेगा। इस देश को पर्ल बक कंट्री कहा जाता है। किसी दिन पर्ल बक की जगहें देखने हम चल चलेंगे। जयंत को आने दो।’
बहुत सारी योजनाएं बनाई हैं। दीदी को जयंत के आने का इंतजार है। हर सप्ताहांत में करने योग्य यात्राएं और देखने योग्य जगहें, सब कुछ दीदी ने विस्तार से बताया।
बालु को अकेले रहने की बोरियत परेशान नहीं करती, बल्कि उसके पीछे हमेशा मंडराने वाले बिलाव की आंखें उसे डराती हैं। लेकिन बालु ने कभी कुछ नहीं कहा।
उसने बिलाव को नजरअंदाज करने का निश्चय किया। राजकुमारी डायना की बदनामी की कहानी के बाद ग्रेटा गार्बोव की जीवनी पढ़नी शुरू की। और फिर जयंत की जासूसी कहानियों में से एक।
बिलाव दूर खड़े होकर मेरी ओर देख रहा है। हार मानकर बिल में घुसे किसी रेंगने वाले जीव को देखने जैसी घृणा उसके चेहरे पर झलक रही है।
दिन बीतने के बाद ऐसा लगा कि शाम के समय दीदी भी ज्यादा बात नहीं करना चाह रही है। पूछने के लिए भी कुछ नया नहीं है। दीदी ने एक बार मुझसे कहा था कि ऑफिस में काम बहुत ज्यादा होता जा रहा है। शर्लक से लाड़-प्यार भी वह विरले ही दिखाती। जब भी उसने सटकर खड़े होने की कोशिश की, दीदी ने उसे डांटा : ‘आउट शर्लक, आउट!’
सप्ताहों तक यही लगता रहा कि शनिवार और रविवार ऐसे ही दिन होते हैं जब दीदी घर पर रहती है। पूरे शनिवार पोछा लगाने, धोने और कालीन साफ करने का काम दीदी करती है। तिथियों की गणना भी कर लेनी होगी।
एक और शुक्रवार पास आ रहा है। बालू ने पूछा, ‘कॉल किया था?’
किसने
‘सैनहॉसे से, जयंत ने!’
जयंत शिंदे को क्या बुलाऊं? जयंत भैया, जयंत दादा। उत्तर भारत के लोग साले को जीजा जी जैसा कुछ बुलाते हैं। मराठी लोग कुछ अलग नाम से बुलाते होंगे।
‘नहीं। कहा था कि यहां आना है तो ही फोन करेगा।’
दीदी फिर बुदबुदाई, ‘व्यस्तता खत्म होने दो।’
दिन में भी सोना शुरू कर दिया तो बालु को पूरा दिन काटना थोड़ा अधिक आसान लगने लगा।
चार दिन बाद उस दिन मैंने दाढ़ी बनाई। आते समय जो जींस और जैकेट पहना था उसे दीदी ने साफ और इस्त्री करके हैंगर पर टांगा था। एक बार फिर उसे पहनकर बाहर चला जाए। हीथ्रो में नाश्ते के खर्चे के बाद बटुए में बारह डॉलर बचे थे।
बाहर निकल कर चलता रहा। कुमारन भैया का निष्कर्ष सही है। इंसान नजर नहीं आएंगे। सड़क पर सिर्फ गाड़ियां चलती रहेंगी। सड़क की मरम्मत कर रहे लाल शर्ट वाले लोगों का समूह देखा। फिर शॉपिंग सेंटर पहुंचा। कार पार्किंग के पास से दुकानों का नाम पढ़ा। वहां पर ही सात रेस्तरां हैं। टीवी के किसी भी चैनल पर सबसे ज्यादा विज्ञापन खाद्य उत्पादों के होते हैं। डायरी में यह लिखने का निर्णय किया कि अमेरिका एक बहुत बड़ा पेट है।
एक पैकेट सिगरेट खरीदा। अगली दुकान वाइन की है। आधी बोतल वोदका की कीमत नौ डॉलर पच्चीस सेंट है। नहीं। तब कुछ ऐसा सूझा कि अतिरिक्त दस डॉलर खर्च करने पर तो जेब खाली हो जाएगी। लालच के लिए कोई जगह नहीं है। इन सब लोगों से परे हूँ। हमेशा के लिए परे। पोपोव या स्मरनॉफ कौन-सी चाहिए? पोपोव की जय हो!
वापस आते ही शर्लक गुर्राया। उसके सामने ही वोदका रख दी गई। गिलास का एक तिहाई भाग छोड़ कर संतरे का रस और ठंडा पानी भरा। बर्फ के टुकड़े भी डाल लिए। सब कुछ शराफत से ही हो। शर्लक आश्चर्य से देखता रहा। गाल भरकर एक बार पिया और थोड़ा पानी भरा। पोपोव के साथ नृत्य और संगीत का भी होना तय है।
‘शर्लक, तुम्हें थोड़ी-सी चाहिए?’
शर्लक अपना सिर झुका कर खड़ा रहा। खाना गर्म करने का समय अभी नहीं हुआ। वॉशबेसिन के ऊपर बनी अलमारी से दो टिन निकाले गए। एक में मूंगफली और दूसरे में बादाम।
शर्लक को चना और मूंगफली नहीं चाहिए। सूंघने के बाद मना कर दिया। कानून का पालन बिलाव बखूबी कर रहा है।
‘एक बूंद पियोगे?’
गिलास से थोड़ी-सी तश्तरी में डाल दी। संदेह से सूंघा और अंत में एक बार चाटा। फिर शर्लक ने कृतज्ञतापूर्वक मुस्कुराते हुए बची हुई पूरी चाट ली। बालु खुशी से हँसा : ‘देखो, तुमने भी कानून तोड़ा है। तो तुम शाम को अपनी मालकिन को यह रहस्य कैसे बता सकते हो?’
जब बालु ने दूसरा गिलास खत्म कर लिया, शर्लक अधीरता से बड़बड़ाने लगा।
‘ठीक है, तुम्हें एक बूंद और। अब और मत पूछो।’
गर्मी की एक सुखद लहर अंदर बहने लगी तो बालु ने शर्लक के सिर को सहलाया और बोलना शुरू किया।
‘यार, शर्लक! तुम्हें मलयालम सीखनी चाहिए। म-ल-या-लम। तुम मेरी इस छोटी दीदी के बारे में क्या जानते हो। नाक से अंग्रेजी बोलने वाली इस छोटी दीदी ने परवरिश की थी।
‘समझ रहे हो? दूसरों की सोच को भी जानने वाले तुम्हें यह भी समझना होगा।
‘हमारे घर बार में पहले शौचालय नहीं होता था। मेरे बचपन में सर्प वाले जंगल के पीछे पहाड़ी ढलान पर जब हम शौच करने जाते थे तो इस छोटी दीदी के लिए पहरा देने का कार्य मैं करता था।
‘बम्बई का वह आदमी है न…जिसने तुम्हें जासूसी सिखाई…जयंत शिंदे, शिं…दे, उससे कह दो… इस छोटी दीदी की शादी में जब दूल्हा पूरी बाजू की सफेद पोशाक, विशेष प्रकार की धोती, चंदन का टीका लगाकर साथ में अपनी पूरी टीम को लेकर आया तो मैं ही था जिसने कुमारन भैया का पैर धोकर स्वागत किया था। यही मैं!
‘मुझे पता है कि तुम मेरी भाषा जानते हो। न जानने का नाटक कर रहे हो। तुम्हारा जयंत हमारे कुमारन भैया से बढ़िया आदमी है?’
बालु ने शर्लक को वोदका की बोतल दिखाई और पूछा, ‘श्रीमान शर्लक इसे हम कहां छुपाएंगे?’
शाम को साढ़े चार से पहले बस्ती के बाहर के कूड़ेदान में पहुंचाना काफी है न। बालु ने रेफ्रिजरेटर से थोड़ा-सा भात लेकर पानी डालकर माइक्रोवेव में रखा और दूसरे कटोरे में पहले किसी दिन की बनाई चिकन करी को भी रखा।
फिर तश्तरी में थोड़ी-सी डाली और गिलास में बची करी को उसने धीरे-धीरे पिया, खत्म नहीं किया।
गरम भात और करी एक प्लेट में परोसे गए। फिर कहा, ‘शर्लक, आज हम साथ में लंच कर रहे हैं! हमें आज सारा हिसाब-किताब चुकता करना है।’
एक कटोरी में भात डाल कर शर्लक के सामने रख दिया।
‘इसे खाओ। भारत, चीन, जापान, थाईलैंड, बर्मा, अमेरिका के बाहर कई देश हैं। वहां के लोग इसे खाते हैं। बिल्लियां भी। इसलिए भारतीयों की पालतू बिल्लियां भी इसे खा सकती हैं। चावल… चावल के लिए ही तो भारतीय भगवान से प्रार्थना करते हैं। जानते हो?’
शर्लक की नजर शीशे पर थी।
बालु हँसा। ‘अंतिम बूंदों को हम शेयर कर लेंगे। हम शराब की दुकानों में इन्हें भाग्य की बूंदें कहते हैं। भात खाने की शर्त पर यह दे रहा हूँ, शर्लक!
शर्लक धीरे से मुस्कुराया। बालु भी।
‘तुम्हें भी रिश्वतखोरी का शौक होने लगा है। यही हम भारतीयों की चतुराई है!’
तब अमेरिका में एक चमत्कार हुआ। शर्लक एक तरह की शरारती मुस्कुराहट के साथ स्वाद का आनंद लेते हुए भात खाने लगा।
कटोरा धोकर साफ करने के बाद, बालु ने सिगरेट जलाई और महसूस किया कि शर्लक को दी गई वोदका का हिस्सा बहुत अधिक था। अमेरिका की आधी बोतल भारतीय आकार से छोटी होनी चाहिए। कितनी जल्दी खत्म हो गई?
दोस्ती बढ़ने के कारण पोपोव से उसे शेयर करना पड़ा, यह सोचने पर अचानक शर्लक पर गुस्सा आया।
‘चलो चलो, जरा बाहरी दुनिया देख कर वापस आते हैं।
सामने का दरवाज़ा खोला और आवाज़ दी। लेकिन शर्लक नहीं आया। उससे प्यार करने का नाटक करते हुए सहलाया। फिर जब उसे उठाकर दरवाजे पर ले जाने वाला था तो वह चौंककर पकड़ से हट गया। वहाँ गुर्राता हुआ नाराज़ बिलाव खड़ा था ।
‘शर्लक… मैं हूँ, यार !’ जैसे ही वह फिर पास आया, शर्लक अपने अगले पैर ऊपर उठाकर लड़ाई के लिए तैयार हुआ और फुफकार रहा था। तब उसने चौंककर देखा कि शर्लक के चारों पैरों में लम्बे नुकीले नाख़ून हैं !
स्तब्ध बालु का पूरा शरीर ढीला पड़ने लगा। घृणा के साथ एक बार देख कर नुकीले नाखूनों को पीछे खींच कर वह सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर गया।
जब वह अपने कमरे में आकर लेट गया, तब बिलाव फिर कमरे में आया। ऐसे मुस्कुराया मानो उन दोनों के बीच समझौता हो गया है। जब शर्लक गद्दे पर चढ़कर बगल में लेट गया तो बालु हँसा। नाखून को छिपाने वाले उसके पंजों को सहलाया। कमरे में एक हँसी गूँज उठी।
‘कौन हँसा? शर्लक, तुम या मैं?’
उसने उठने का प्रयास किया। बिलाव ने उसे रोका और अपना पैर उसकी छाती पर रख कर, गद्दे में उसे दबाते हुए बुदबुदाने लगा।
‘सो जाओ, अच्छी नींद लो।’
शर्लक उसकी छाती को सहलाकर सान्त्वना दे रहा है। किसी गुप्त रहस्य की तरह कान में फुसफुसाता है: ‘मैं यहाँ हूँ, निडर होकर सो जाओ।’
तब उसे जोर-जोर से रोने का मन हुआ। जब वह ऐसा नहीं कर पाया, तो सिसकते हुए अपनी आँखें बन्द कर लीं।