शशि कपूर: मुद्रा राक्षस और मृच्छकटिकम् / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 18 मार्च 2020
आज शशि कपूर जीवित होते तो 82 वर्ष के होते और दक्षिण मुंबई के हार्कनेस रोड पर अटलेंटा बहुमंजिला में शूद्रक के नाटक मृच्छकटिकम, विशाखदत्त, मुद्राराक्षस और हेमलेट पढ़ रहे होते। उन्हें नाटक पढ़ना और अभिनीत करना अत्यंत पसंद था। यह भी संभव है कि अपना जन्मदिन वे जुहू में बनाए गए पृथ्वी थिएटर्स के आहाते में लगे बरगद की छांह में बैठकर मनपसंद वोदका पी रहे होते। सारे कपूर जॉनी वॉकर ब्लैक लेबल पीते रहे, परंतु शशि कपूर ने उस समय वोदका पीना प्रारंभ किया जब वे श्याम बेनेगल, अपर्णा सेन और गोविंद निहलानी निर्देशित फिल्में बनाने लगे। उनके ये सहयोगी महंगी ब्लैक लेबल पीने से अधिक वोदका पीना पसंद करते थे, क्योंकि उनकी आय सीमित थी। हमारी पसंद और नापसंद पर हमारी आय का गहरा प्रभाव होता है।
शशि कपूर के जन्म के समय तक पृथ्वीराज कपूर सबसे अधिक धन कमाने वाले सितारे बन चुके थे। वे इस जमाने में एक फिल्म में अभिनय के लिए एक लाख ग्यारह हजार एक रुपया लेते थे। मेहनताने की यही रकम वे ताउम्र लेते रहे। उन्होंने कभी जमीन-जायदाद नहीं खरीदी, बल्कि अपनी सारी कमाई नाटक मंचित करने में लगा दी। पृथ्वीराज जुहू गली में किराए के मकान में रहते थे। कैफी आजमी व विश्वम्भर आदिल उनके पड़ोसी थे। शशि कपूर ने इसी मकान के सामने वाली जमीन पर पृथ्वी थिएटर्स का निर्माण किया। उनकी पत्नी जैनिफर केंडल ने थिएटर का वास्तु शिल्प संस्कृत रंगमंच से प्रभावित होकर रचा। इस नाट्य घर के निर्माण के समय एकोस्टिक्स का ध्यान रखा गया जिससे हर जगह ध्वनि समान वेग से पहुंच जाती है।
पृथ्वी थिएटर्स और पृथ्वी हाउस के निर्माण में ‘शापुरजी पालनजी’ का सहयोग रहा। ज्ञातव्य है कि नाटक देखने के शौकीन शापुरजी पालनजी ने पृथ्वीराज की सिफारिश पर ‘मुगलेआजम’ में पूंजी निवेश किया था। शापुरजी पालनजी की एक कंपनी भवन निर्माण की भी है। उनकी बनाई इमारतें अपनी मजबूती के साथ ही इसलिए भी पसंद की जाती हैं कि हर कमरे में प्रकाश रहता है और हवा चलती है। शापुरजी पालनजी ने ही पृथ्वी थिएटर्स और पृथ्वी भवन का निर्माण किया। उद्देश्य साफ था कि शशि कपूर के वंशज एक माले पर रहें और शेष चार माले किराए पर दिए जाएं, ताकि मकान के साथ रोटी की भी व्यवस्था हो जाए।
ज्ञातव्य है कि जब केंडल परिवार भारत की शिक्षा संस्थाओं में शेक्सपियर मंचित करने आए तब उन्हें एक भारतीय को अपने दल में शामिल करना जारूरी लगा, क्योंकि वे अनेक शहरों में प्रदर्शन करना चाहते थे। पृथ्वीराज की सिफारिश पर शशि कपूर ने केंडल टीम का सदस्य बनना स्वीकार किया। इस लंबे दौरे के समय शशि कपूर और जैनिफर केंडल में प्रेम हो गया। ज्ञातव्य है कि इंग्लैंड में जन्मी और पली जैनिफर केंडल शाकाहारी थीं और शराब तथा सिगरेट पीने के सख्त खिलाफ थीं। शशि कपूर भी डिनर के बाद एक सिगरेट पीने के लिए अपनी बहुमंजिला इमारत के बगीचे में आया करते थे।
शशि कपूर की इस्माइल मर्चेंट से हुई मुलाकात के कारण शशि को अंग्रेजी भाषा में बनने वाली फिल्मों में अभिनय का अवसर मिला। ज्ञातव्य है कि इस्माइल मर्चेंट का जन्म मुंबई के सिनेमा ‘मराठा मंदिर’ से सटी एक गली में हुआ। लंदन जाकर इस्माइल ने बहुत पापड़ बेले। लंदन में उनकी मुलाकात जेम्स आइवरी से हुई और दोनों ने भागीदारी में फिल्म निर्माण प्रारंभ किया। शशि इस कंपनी के तीसरे भागीदार थे। उनकी सारी फिल्में साहित्य से प्रेरित कथाओं पर बनी हैं। आइवरी मर्चेंट निर्माण संस्था ने ‘प्रिटी पॉली’, ‘व्यू फ्रॉम द टॉप’ इत्यादि फिल्में बनाईं। इस्माइल मर्चेंट ने ‘मुहासिब’ नामक फिल्म की पूरी शूटिंग भोपाल में की थी। कथा फैज अहमद फैज के जीवन से प्रेरित थी, परंतुु उसे फैज साहब का बायोपिक नहीं कह सकते।
बतौर निर्माता शशि कपूर की श्याम बेनेगल निर्देशित फिल्म जुनून थी। इस फिल्म में शशि कपूर, शबाना आजमी, जैनिफर केंडल एवं संजना कपूर केंडल ने भी अभिनय किया है। ज्ञातव्य है कि शशि कपूर और जैनिफर की पुत्री संजना ने भी कुछ वर्ष पृथ्वी थिएटर्स का संचालन किया। बाद में संजना कपूर ने स्कूली छात्रों को रंगमंच पढ़ाया। शशि कपूर ने निर्देशिका अपर्णा सेन के साथ जैनिफर केंडल अभिनीत ‘36 चौरंगी लेन’ नामक फिल्म बनाई जो ऑस्कर प्राप्त करने से मात्र इसलिए चूक गई कि प्रवेश फॉर्म में यह भारत की फिल्म मानी गई, परंतु अग्रेजी भाषा में बनी इस फिल्म को सामान्य श्रेणी में प्रवेश लेना था। शशि कपूर ने महाभारत की कथा को आधुनिक कालखंड में रोपित करते हुए ‘कलियुग’ नाम से बनाया। व्यक्तिगत डर पर विजय पाने के लिए हवाई सेना में भारतीय युवा के सपनों और भय की फिल्म गोविंद निहलानी की ‘विजेता’ थी। शशि कपूर ने निर्देशक गिरीश कर्नाड के निर्देशन में ‘उत्सव’ फिल्म बनाई, जिसकी पटकथा की प्रेरणा ‘मृच्छकटिकम’ और ‘मुद्राराक्षस’ को मिलाकर की गई है। ज्ञातव्य है कि पृथ्वीराज कपूर भी इन दो नाटकों से प्रेरणा लेकर एक नाटक 1928 में ‘एंडरसन नाटक कंपनी’ के लिए कर चुके थे। पिता-पुत्र संबंध इस तरह भी उजागर होते हैं। उपनिषद के एक श्लोक का आशय यह है कि पिता-पुत्र का रिश्ता तीर और कमान की तरह है। प्रत्यंचा पर चढ़ाए तीर को शक्ति से खींचने पर ही पुत्र रूपी तीर निशाने पर लगता है।