शशि कपूर पर एक महत्वपूर्ण किताब / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :23 जून 2016
अंग्रेजी भाषा में शशि कपूर पर असीम छाबड़ा की लिखी लगभग 200 पृष्ठ की किताब को रूपा प्रकाशन ने जारी किया है। इसमें करण जौहर ने आमुख लिखा है। यह गौरव श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी या रणधीर कपूर को दिया जाना चाहिए था। करण जौहर घोर व्यावसायिक मसाला फिल्में बनाते हैं, जिनका आर्थिक आधार उसमें काम करने वाले सितारे हैं। करण जौहर में यह योग्यता जरूर है कि वे सितारों से मनभावन व्यवहार करके उन्हें अपनी फिल्म में काम करने के लिए राजी कर लेते हैं। उनके पास जनसंपर्क की कुशलता है। बहरहाल असीम छाबड़ा ने शशिकपूर की फिल्मों का ब्योरा प्रस्तुत किया है, परन्तु शशि कपूर के अपने पुत्रों और परिवार के साथ भीतरी युद्ध का विवरण संभवत: उन्हें उपलब्ध नहीं कराया और किसी भी व्यक्ति की विचार और आचरण शैली का विवरण स्वयं व्यक्ति द्वारा लिखा जाकर भी अधूरा और सतही रहता है। अत: असीम छाबड़ा रस्सी पर चलने वाला काम कर रहे हैं, परन्तु उन्होंने शशि कपूर अभिनीत एवं निर्मित फिल्मों का पूरा ब्योरा दिया है, परन्तु 179 फिल्मों की सूची में उन्होंने राजकपूर की पहली फिल्म 'आग' का उल्लेख नहीं किया है, जिसमें नायक के बचपन पर लगभग चार रीलें थीं और शशिकपूर ने उसमें अभिनय किया था। चौथे एवं पांचवें दशक की तमाम फिल्मों में पात्रों के बचपन का विवरण रहता था, क्योंकि बचपन की पटकथा पर ही जीवन की फिल्म बनती है। आज का दर्शक इतना सितारान्मुखी है कि वह बिना अपने मनपसंद सितारे की बनी प्रारंभिक चंद रीलों को सहन नहीं करता। यह प्रवृत्ति सिनेमा तक सीमित नहीं है। देश का मौजूदा नेतृत्व देश के इतिहास से अनभिज्ञ है और सदियों की गुलामी के अंधेरे से बाहर आने वाले देश की चौंधियाती आंखों के डर और सपने से भी अनजान है। दरअसल मौजूदा नेताओं की उम्र भले ही अधिक हो, परन्तु हरकतें बचकानी हैं। मुंबई के नाटकों को शशि कपूर द्वारा बनाया गया पृथ्वी थियेटर्स एक दिव्य भेंट की तरह है और इसका कोई उल्लेख किताब में नहीं है। शशिकपूर अपने पिता पृथ्वीराज से अत्यंत प्रभावित थे और उम्र के एक दौर में वे पृथ्वीराज की तरह दिखने भी लगे थे। शशि कपूर पर दूसरा बड़ा प्रभाव उनकी पत्नी जेनीफर केन्डल कपूर का था और यह प्रभाव हम उनके द्वारा बनाई गई फिल्मों में भी देख सकते हैं। जेनीफर ने अपर्णा सेन निर्देशत '36 चौरंगी लेन' में ऑस्कर जीतने वाला अभिनय किया था और एक तकनीकी चूक से फिल्म और जेनीफर दोनों ही ऑस्कर प्राप्त करने से चूक गए। उनके कर्मचारी ने अंग्रेजी भाषा में बनी फिल्म का विदेशी भाषा में बनी फिल्म की श्रेणी में प्रवेश फॉर्म भरा और इसी आधार के कारण जूरी सदस्यों को यह फिल्म दिखाई नहीं गई। इसका विवरण भी किताब में नहीं है। इन बातों को किताब के मूल्य को कम करने के उद्देश्य से नहीं लिखा जा रहा है, क्योंकि राजकपूर पर अनेक किताबें लिखी गई हैं, परन्तु शशिकपूर पर यह पहली किताब है और शम्मीकपूर पर भी कोई किताब नहीं है। दरअसल हमारे देश में अनेक फिल्मवालों पर किताबों का अभाव है, जिसके कारण पाठक गॉसिप पढ़ते हैं और उस पर यकीन भी करने लगते हैं।
यह जेनीफर का ही प्रभाव और प्रयास है कि शशि कपूर लंबे समय तक छरहरे बदन के व्यक्ति रहे। कपूर खानदान के लोग जितने समर्पित फिल्म और रंगमंच को रहे, उतने ही बड़े भोजन प्रेमी भी रहे हैं और भोजन के प्रति अतिरिक्त प्रेम उनके जीवन को भरपूर जीने की इच्छा का ही प्रतीक है। जेनीफर के असमय निधन के बाद शशिकपूर ने मनचाहा कपूरी भोजन प्रारंभ किया और वजन बढ़ता गया। इस बढ़े हुए वजन का एक लाभ उन्हें यह हुआ कि 'इन कस्टडी' जैसी फिल्मों में प्रस्तुत चरित्र के अनुरूप वे दिखने लगे। आज के ओम पुरी और इरफान खान के बहुत पहले शशिकपूर ने लगभग दो दर्जन अंग्रेजी भाषा में बनी फिल्मों में अभिनय किया। विदेशों में उसने भारतीय फिल्मों की पहचान पैदा की। इस्माइल मर्चेन्ट और जेम्स आइवरी की कुछ फिल्मों को निर्माण के अधबीच शशिकपूर ने ही आर्थिक संकट से मुक्त किया। उसने अनेक भारतीय निर्माताओं की भी मदद की और अपना अभिनय मुआवजा कम कर दिया। रमेश शर्मा की फिल्म 'न्यू दिल्ली टाइम्स' पहली फिल्म थी, जिसने भारतीय राजनीति और पत्रकारिता में पनपते भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया। उस समय यह राषट्रीय व्याधि अपने प्रथम चरण में थी, परन्तु बाद में जंगल घास की तरह इस कदर फैली है कि कोई आदमी एक भी कदम ऐसा नहीं चल सकता, जब उसके पैरों के नीचे यह घास नहीं हो। अब तो हरियाली जैसी स्वाभाविक वस्तु भी नजर नहीं आती। एक कवि का कहना है कि हरियाली धरती पर गिरा ईश्वर का रुमाल है, जिसके किसी कोने पर उसका नाम नहीं लिखा है।