शहर का डॉक्टर / मनोज चौहान
निशांत की प्रमोशन हुई तो उसे मैनेजमेंट ट्रेनिंग के लिए कंपनी की ओर से शहर भेज दिया गयाl वह पेशे से एक इलेक्ट्रिकल इंजिनियर थाl पहाड़ी प्रदेश में ही पले–बढे निशांत को शहर का गर्म और प्रदूषित बातावरण रास नहीं आया और उसे सांस से सम्बंधित कुछ समस्या हो गई l ट्रेनिंग इंस्टीटूट से एक दिन की छुट्टी लेकर वह एक डॉक्टर की क्लिनिक पर चेक-अप करवाने गयाl उसके दो सहकर्मी साथी भी उसके साथ थेl
अभी वह क्लिनिक में प्रविष्ट हुए ही थे की इतने में एक देहाती-सी दिखने वाली घरेलु महिला अपने खून से लथपथ बच्चे को उठाकर अन्दर आई l वह एकदम डरी और सहमी हुई-सी थीl उसका करीब 2 साल का बच्चा अचेत अवस्था में थाl निशांत, उसके दोस्त और क्लिनिक का स्टाफ सभी उस औरत और बच्चे की तरफ देखने लगेl उस महिला के साथ एक व्यक्ति भी आया था जिसने बताया की ये महिला सड़क के किनारे अपने बच्चे को उठाये रो रही थीl सड़क क्रॉस करने की कोशिश में किसी मोटरसाइकिल वाले ने टक्कर मार दी और वह भाग खड़ा हुआl महिला बच्चे समेत नीचे गिर गई थी और बच्चे के सिर पर गंभीर चोट आ गई थीl
डॉक्टर ने बच्चे को हिलाया–डुलाया और उसके दिल की धड़कन चैक कीl एक क्षण के लिए तो लग रहा था कि जैसे उसमें जान ही नहीं हैl महिला का रुदन जैसे निशांत के हृदय को चीरता-सा जा रहा थाl डॉक्टर ने बच्चे का घाव देखा और उसे साफ़ कियाl इतने में बच्चा होश में आकर रोने लगा तो महिला की जान में जान आईl डॉक्टर ने उसके सिर पर तीन टांके लगायेl
बच्चे की मरहम पट्टी कर डॉक्टर ने बिल उस महिला के हाथ में थमा दियाl जिसे देखकर वह देहाती महिला अवाक रह गईl महिला के साथ आया हुआ व्यक्ति कुछ पैसे देने लग गयाl निशांत और उसके दोस्त पहले ही डॉक्टर का बिल चुकाने का मन बना चुके थेl सबने मिलकर बिल चुका दियाl मगर उस शहर के डॉक्टर में इतनी भी करुणा नहीं थी कि वह कम से कम अपनी फीस ही छोड़ देता, मरहम–पट्टी और दवा की बात तो और थीl निशांत सोच रहा था, क्या इसी को शहर कहते है? उसके भीतर विचारों का एक असीम सागर हिलोरे ले रहा थाl विचारों की इसी उहा–पोह में कब उसकी टर्न आ गई, उसे पता ही नहीं चलाl डॉक्टर से बैठने का संकेत पाकर वह रोगी कुर्सी पर बैठ गयाl डॉक्टर ने चैक–अप शुरू कर दिया थाl