शहीद की मां का विराट हृदय / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :18 जनवरी 2017
फिल्म उद्योग की दावतों में अक्षय कुमार शिरकत नहीं करते और स्वयं भी दावतें नहीं देते परंतु अपने सीमित मित्रों के साथ खाना-पीना चलता है। वह एकमात्र सितारा है, जो प्रात: चार बजे ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाता है और रात दस बजे ही सो जाता है। सितारे का जिस्म उसकी दुकान होता है और उसे चुस्त-दुरुस्त, साफ-सुथरा रखना आवश्यक है। वे अपने जिस्म और बैंक अकाउंट के प्रति यकसा सजग रहते हैं और उन्होंने अचल संपत्ति में पूंजी निवेश भी किया है। अभी अक्षय के निकट सूत्रों से जानकारी मिली है कि वे अपने सलाहकारों के साथ योजना बना रहे हैं कि सरहद पर शहीद हुए जवानों के परिवार के लिए कुछ ठोस सहायता की जा सके और यह उस समय तक जारी रहे जब तक परिवार का युवा कमाने लायक नहीं होता। अक्षय कुमार जानते हैं कि सरकार भी शहीद के लिए बहुत कुछ करती है परंतु अक्षय कुमार को लगता है कि हम जो कुछ भी करें वह यथेष्ठ नहीं होता। अक्षय कुमार सरहदों की सुरक्षा के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं। कुछ ही दिन पूर्व सुरक्षा दल के सदस्य ने यथेष्ठ खाना नहीं मिलने की बात की तो सरकार ने उसका तबादला कर दिया है। सत्य की आवाज को घोट देने को ही समस्या का निदान समझने वाले नादानों की क्या बात करें।
कोई भी मनुष्य कभी भी अलग तरह से उजागर होकर आपको चौंका देता है। अक्षय कुमार के मन में कभी कोई महान भूमिका अभिनीत करने का खयाल नहीं आता। वे किसी 'प्यासा' या 'जागते रहो' या 'आनंद' की तरह की फिल्म के बारे में सोचते ही नहीं। ऐसा व्यावहारिक बनिएनुमा कलाकार शहीदों के परिवार को सहायता देने की योजना पर काम कर रहा है। अत: मनुष्य के आकलन का कोई फॉर्मूला नहीं है। हर मनुष्य आइसबर्ग की तरह केवल अपना थोड़ा-सा भाग ही दिखाता है और उसके भीतर का तीन-चौथाई हिस्सा हमें नज़र ही नहीं आता।
अक्षय कुमार फिल्म परिवार से नहीं आए हैं और उन्होंने अभिनय का कोई प्रशिक्षण भी नहीं लिया है। अपने प्रारंभिक दौर में कम मेहनताने में अनुबंधित फिल्मों के निर्माता शूटिंग का समय मांगने आते तो वे कह देते 'जय माता दी।' उनकी प्राथमिकता हमेशा धन ही रहा है परंतु अब उनके व्यक्तित्व का संवेदनशील, करुणामय पक्ष उजागर हो रहा है। किसी भी व्यक्ति को जानने का हमारा दावा कितना खोखला हो सकता है। सरहदों की रक्षा करने वाले जांबाजों का मेहनताना भी सुरक्षित शहरों में वातानुकूलित कक्ष में बैठे रिश्वतखोर अफसर से बहुत कम होता है। उनके लिए भोजन इत्यादि खरीदने में भ्रष्टाचार हो रहा है।
शून्य से 4 डिग्री कम तापमान में देश की सरहद की रक्षा करने वाला व्यक्ति छुटि्टयों में घर आता है तो वह देखता है कि उसका बेटा साइकिल पर स्कूल जा रहा है और अमीर व्यक्ति का बेटा मर्सीडीज कार में स्कूल जा रहा है। क्या यह असमानता उसके दिल में खंजर बनकर गहरे धंसती नहीं होगी। आर्थिक खाई दिनोंदिन गहरी होती जा रही है। इसी खाई से अपराध जन्म ले रहे हैं। हमने पूरे समाज को ही 'बारूद का गोदाम बना लिया है और पहरेदार माचिस है।' सत्तासीन वर्ग उदासीन है और उसके पास कोई ठोस कार्यक्रम भी नहीं है। विपक्ष तो इतना कमजोर है कि वह सरकार की भारी गलतियों की ठोस आलोचना तक नहीं कर पा रहा है। राजनीतिक मुखिया आला अफसरों से क्षमा मंगवाने को अपनी जीत मान रहे हैं। नेता और अफसर वर्ग के बीच की खाई कम घातक नहीं है।
सलमान खान के 'बीइंग ह्यूमन' द्वारा भलाई के कामों पर प्रतिवर्ष वे आठ-दस करोड़ खर्च कर रहे हैं। शाहरुख खान ने नानावटी अस्पताल में बच्चों का वार्ड बनवाया है और अब हम अक्षय कुमार की पहल देख रहे हैं। दक्षिण भारत में सुपर सितारा रजनीकांत अपनी कमाई का बड़ा अंश असहाय लोगों की मदद में दशकों से लगा रहे हैं। सारांश यह है कि मनोरंजन उद्योग के लोग मानवता के दर्द से विचलित हैं और अपनी सीमाओं में कुछ न कुछ कर रहे हैं। देश का मध्यम वर्ग भी किफायत के रास्ते पर चलकर पूरे समाज को सशक्त बनाने का प्रयास कर रहा है परंतु इन सब प्रयासों के बावजूद सामाजिक व्याधियां बढ़ रही हैं। भारत नामक पहेली का उत्तर कहां छिपा है? देश को बाहर और भीतर दोनों जगह कमजोर बनाया जा रहा है। राजनीतिक विचारधारा के कारण फौज में उच्चतम पद दिए जा रहे हैं। योग्यता अब ोई गुण नहीं रह गया है। देश की गृहनीति ही उसकी विदेश नीति को तय करती है। भीतर ही तोड़फोड़ जारी है, जिसे सरकार का मौन समर्थन प्राप्त है।
कम भोजन की शिकायत करने वाले पर भांति-भांति के दबाव बनाए जा रहे हैं। यह सब हरिकृष्ण 'प्रेमी' की एक रचना की याद ताजा करते हैं-
माना मेरा पुत्र न राजा जिसका यश इतिहास लिखेगा
सेनापति भी नहीं कि जिसकी यादगार में स्तंभ बनेगा
साधारण सैनिक था वह तो जिसका कोई नाम न लेगा
परंतु नींव के पत्थर पर ही आजादी का भवन टिकेगा
लोभ कीर्ति का दूर हृदय से रखो और कर्तव्य निभाओ
मैं शहीद की मां हूं मेरी आंखों, पानी मत बरसाओ।