शांति पुरस्कार आैर सुलगती सरहदें / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 13 अक्टूबर 2014
जीवन के जलसाघर में विचित्र घटनाएं घटित होती हैं। एशिया में 1979 में मदर टेरेसा, 1989 में दलाई लामा, 2006 में मोहम्मद यूनुस आैर 2014 में कैलाश सत्यार्थी एवं मलाला को शांति के लिए नोबल पुरस्कार मिला है आैर एशिया की सरहदें सुलगती रहती हैं। यह महाद्वीप बारूद के ढेर पर बैठा है आैर सबसे अधिक शांति पुरस्कार भी पाता है। इस वर्ष फिर एक बार नोबल चयन समिति ने स्वीकार किया कि महात्मा गांधी को शांति पुरस्कार से नहीं नवाजे जाने का दु:ख उन्हें है परंतु प्रसन्नता यह है कि गांधी के आदर्श पर चलने वालों को शांति पुरस्कार मिल रहा है। घटनाक्रम की नाटकीयता देखिए कि कैलाश सत्यार्थी आैर मलाला एक ही पुरस्कार के बराबरी के हकदार घोषित हुए हैं आैर सरहदों पर हिंसा का खेल चल रहा है।
ऐसी टाइमिंग कुशलतम पटकथा लेखक भी नहीं हासिल कर पाते। कैलाश सत्यार्थी साठ वर्ष के हैं आैर 80 हजार बच्चों को नारकीय जीवन से बचा चुके हैं जबकि मलाला सत्रह की हैं आैर अनेक गोलियों से आहत होकर अनेक शल्यक्रियाआें के बाद बचा ली गई हैं। प्रतीकात्मक बात यह है कि वहशी ताकत की एक गोली मलाला के मस्तिष्क पर मारी गई है। पुन: सिद्ध होता है कि गोलियों से विचार नहीं मरते परंतु सबसे भयावह यह है कि गोली विचार भी बन जाती है आैर महात्मा गांधी इसी गोली बने विचार से मारे गए आैर अच्छे या बुरे किसी भी प्रकार के विचार हों, वे कभी मरते नहीं। यह भी काबिले गौर है कि नोबल पुरस्कार के संस्थापक ने डायनामाइट का अविष्कार किया था। हिंसा को हथियार भी दिया आैर मानवता को पुरस्कार का कवच भी दिया। यह है जीवन के जलसाघर का जादू। सुलगती सरहदों को नफरत का ईंधन मिलता रहता है आैर वे मात्र प्रतीक है नफरतों के तंदूरों का जो पेट दर पेट घर दर घर दहकते रहते हैं। यह काम जिन्होंने किया है यह उनका व्यवसाय है आैर व्यवसायिक कुशलता से ही किया गया है। नफरत आैर हिंसा का कारोबार एक ग्लोबल कारोबार है, वह किसी जगह सीमित नहीं है। दुनिया के स्वयंभू ठेकेदार दो महायुद्ध यूरोप में आयोजित कर चुके हैं आैर वे तन्हाइयों तथा परछाइयों को भी झुलसते देख चुके हैं। अत: हिंसा निर्यात करने के व्यवसायी प्रयास कर रहे हैं कि अगला खेल एशिया में रचा जाए या भारत की भूमि पर तांडव हो। भारत एक विशाल मंडी है जिसके लिए मल्टी-नेशनल कम्पनियों में होड़ लगी है आैर इस व्यवसायिकता के निर्णय के लिए संभवत: यह भयावह खेल खेला जाए। सारा इतिहास ही अर्थशास्त्र की दृष्टि से लिखा गया है आैर शायद इसी कारण वह दोहराता है आैर कोई उससे कभी सीखता भी नहीं है। कैलाश सत्यार्थी आैर मलाला लगभग एक ही काम कर रहे हैं- बच्चों को अमानवीय यंत्रण से बचाना आैर उन्हें शिक्षा देना।
इनके काम एक दूसरे के पूरक हैं। बचपन आैर उसकी मासूमियत की रक्षा पावन कार्य है। अब सत्रह वर्षीय मलाला भारत आैर पाकिस्तान के सत्ता शिखर पुरुषों को पुरस्कार समारोह में आने का आग्रह कर रही हैं। यह उनकी मासूमियत ही है कि इनके मिलने से धधकती सरहदें प्रेम के इंद्रधनुष में बदल जाएंगी। सरहद के दोनों आेर नफरत की खेती घर-घर की जाती है आैर इस फसल की कटाई आैर संग्रह बोरों में तब्दील की जाती है। बहरहाल इस शांति पुरस्कार की घोषणा आैर सुलगती सरहदों के समय ही अल्प बजट की 'इक्कीस तोपों की सलामी' नामक फिल्म का प्रदर्शन हुआ है जिसका नायक कारपोरेशन में ताउम्र मामूली कर्मचारी रहा है- अनुशासनबद्ध, ईमानदार आैर निष्ठावान परंतु उसकी मामूली तनख्वाह पर पलने वाले पुत्र रंगीन बाजार की फसल है आैर पिता के आदर्श तथा मामूली कमाई से असंतुष्ट हैं परंतु जीवन की एक घटना उन्हें पिता के आदर्श का मूल्य समझाता है आैर एक आम आदमी, एक निष्ठावान आम आदमी को 21 तोपों की सलामी नहीं दी जाती। वीआइपी संस्कृति के शोषकों ने आम आदमी के साधारण जीवन का अवमूलन कर दिया है। इन 'तोपों' का सुलगती सरहदों से क्या संबंध है?। अनगिनत तंदूरी पेटों आैर धरती की सूनी होती अंतड़ियों का क्या संबंध है? शिखर मुलाकातों आैर शांति का क्या संबंध है। गांधीवाद आैर करंसी नोट पर गांधी की तस्वीर का क्या संबंध है।