शाइस्ताखां का खत - 1 / बालमुकुंद गुप्त
फुलर साहब के नाम
भाई फुलरजंग! दो सौ सवादो सौ साल के बाद तुमने फिर एक बार नवाबी जमाने को ताजा किया है, इसके लिये मैं तुम्हारा शुक्रिया किस जुबान से अदा करूं। मैंने तो समझा था कि हमलोगों की बदनाम नवाबी हुकूमतकी दुनियामें फिर कभी इज्जत न होगी। उसपर अमलदरामद तो क्या उसका नाम भी अगर कोई लेगा तो गाली देनेके लिये। मेरा ही नहीं, मेरे बाद भी जो नवाब हुए उन सबका यही खयाल है। मगर अब देखता हूं कि जमाने का इनकलाब एक बार फिरसे हम लोगों के कारनामों को ताजा करना चाहता है।
अपनी हुकूमत के जमाने में मैंने कितने ही काम अपनी मर्जीसे किये और कितनेही लाचारीसे। उनमेंसे कितनोंहीके लिये मैं निहायत शरमिन्दा हूं, अपने ऊपर मुझे आप नफरत आती है। मैंने देखा कि उन कामोंका नतीजा बहुत खराब हुआ। हुकूमतके नशेमें उस वक्त बुरा भला कुछ न सोचा। मगर अंजाम जो कुछ हुआ, वह सारे जमानेने देख लिया। यानी हमारी कौमको बहुत जल्द हुकूमतसे छुट्टी मिल गई और जिस बादशाहका मैं नायब बनकर बंगालका नाजिम हुआ था, उसने मरनेसे पहले अपनी हुकूमतका जवाल अपनी आंखोंसे देखा। बंगालमें मेरे बाद फिर किसीको नाजिम नहीं होना पड़ा।
गर्जे के मैंने खूब गौर करके देखा बंगालेमें या हिन्दुस्तानमें नवाबी जमाना फिर होनेकी कुछ जरूरत नहीं है। इन दो सौ सालमें कितनी ही बातें मैंने जान ली हैं, जमानेके कितने ही उलट-पलट देखे और समझे उसकी चालपर खूब निगाह जमाकर देखा, मगर कहीं नवाबीके खड़ा होनेकी गुंजाइश न पाई। लेकिन देखा जाता है कि तुम्हारे जीमें नवाबीकी खाहिश है। तुम बंगालके हिन्दुओंको धमकाते हो कि उनके लिये फिर शाइस्ताखांका जमाना ला दिया जायगा। भई वल्लह। मैंने जबसे यह खबर अपने दोस्त नवाब अब्दुल्लतीफखांसे सुनी है तबसे हंसते हंसते मेरे पेटमें बल पड़ जाते हैं। अकेला मैंही नहीं हंसा, बल्कि जितने मुझसे पहले और पीछेके नवाब यहां बहिश्तमें मौजूद हैं सब एकबार हंसे। यहां तक कि हमारे सिका सूरत बादशाह औरंगजेब भी जो उस दुनियामें कभी न हंसे थे इस वक्त अपनी हंसीको रोक न सके। हंसी इस बातकी थी कि बेसमझे ही तुमने मेरे जमानेका नाम लिया है। मालूम होता है कि तुम्हें इल्म तवारीखसे बहुत कम मस है। अगर तुम्हें मालूम होता कि मेरा जमाना बंगालियोंके बनिस्बत तुम फिरंगियोंके लिये ज्यादा मुसीबतका था, तो शायद उसका नाम भी न लेते। तुमको मालूम होना चाहिये कि यहां बहिश्तमें भी अंग्रेजी अखबार पढ़े जाते हैं। मेरे जमानेमें तो तुम लोगोंकी गिटपिट बोलीको खयालहीमें कौन लाता था, पर मैंने मालूम किया है कि मेरे बाद भी उसकी कुछ कदर न थी। यहांतक कि गदरके जमानेमें दिल्लीके मुसलमान तुम्हारी बोलीको गुड डामियर बोली कहा करते थे। मगर इस वक्त यहां भी तुम्हारी बोलीकी जरूरत पड़ती है क्योंकि अब वह कुल हिन्दुस्तानमें छाई हुई है और हिन्दुस्तानकी खबरोंको जाननेका यहां वालोंको भी शौक रहता है। इसीसे अंग्रेजी अखबारोंकी जरूरी खबरें यहां वाले भी नवाब अब्दुल्लतीफखां वगैरहसे सुन लिया करते हैं।
भाई नवाब फुलर! मैं सच कहता हूं कि मेरा जमाना बुलाना तुम कभी पसन्द न करोगे। मुझे ताज्जुब है कि किसी अंग्रेजने तुम्हारे ऐसा कहनेपर तुम्हें गंवार नहीं कहा। उस वक्त तुम लोग क्या थे, जरा सुन डालो। तुम कई तरहके फरंगी इस मुल्कमें अपने जहाजोंमें बैठकर आने लगे थे। बंगालमें वलन्देज, पुर्तगीज, फरासीसी और तुमलोगोंने कई मुकामोंमें अपनी कोठियां बनाई थीं और तिजारतके बहाने कितनी ही तरहकी शरारतें सोचा और किया करते थे। वह फरंगी चोरियां करते थे, डाके डालते थे, गांव जलाते थे। जब हमलोगोंको यह मालूम हुआ कि तुम्हारी नीयत साफ नहीं है, तिजारतके बहानेसे तुम इस मुल्क पर दखल कर बैठनेकी फिक्रमें हो, तब तुमलोगोंको यहांसे मारके भगाना पड़ा और सिर्फ बंगालहीसे नहीं, सारे हिन्दुस्तानसे निकालनेका भी हमारे बादशाहने बन्दोबस्त किया था। जुल्मसे यह सुलूक तुम्हारे साथ नहीं किया गया, बल्कि तुम्हारी शरारतोंके सबबसे। इसके बाद 50 साल तक तुम अपने पांवसे खड़े न हो सके।
यह कायदा है कि दूसरी कौमकी हुकूमतहीको लोग जुल्मसे भी बढ़कर जुल्म समझते हैं। इससे हिन्दू हमारी हुकूमतको उस जमानेमें बुरा समझते हों तो एक मामूली बात है। तो भी मैं तुम्हारे जाननेको कहता हूं, कि हम मुसलमानोंने बहुत दफे हिन्दुओंके साथ इंसानियतका बर्ताव भी किया है। बहुत सी बदनामियोंके साथ मेरी हुकूमतके वक्तकी एक नेकनामी बंगालेकी तवारीखमें ऐसी मौजूद है, जिसकी नजीर तुम्हारी तवारीखमें कहीं भी न मिलेगी। मैंने बंगालेके दारुस्सलतनत ढाकेमें एक रुपयेके 8 मन चावल बिकवाये थे। क्या तुममें वह जमाना फिर लादेनेकी ताकत हैं? मैं समझता हूं कि अंग्रेजी हुकूमतमें यह बात नामुमकिन है। अंग्रेजीमें ऐसा न हुआ, न है और न हो सकता है। जहां तुम्हारी हुकूमत जाती हैं, वहीं खाने-पीनेकी चीजोंको एकदम आग लग जाती है। क्योंकि तुम तो हमलोगोंकी तरह खाली हाकिम ही नहीं हो, साथ-साथ बक्काल भी हो। उस अपने बक्कालपनकी हिमायतके लियेही हमारे जमानेको बंगालमें खेंचकर लाना चाहते हो। जो बादशाह भी है और बक्काल भी है, उसकी हुकूमतमें खाने पीनेकी चीजें सस्ती कैसे हों?
मेरी हुकूमतका एक सबसे बड़ा इलजाम मैं खुद बताता हूँ। अपने बादशाहके हुक्मसे मैंने बंगालके हिन्दुओंपर जिजिया लगाया था। पर वह तुम फरंगियोंपर भी लगाया था। तुम लोग चालाक थे, कुछ घोड़े और तोहफा तहायफ देकर बच गये। हिन्दुओंके साथ झगड़ा हुआ। उनके दो चार मन्दिर टूटे और एक इज्जतदार रईस कैद हुआ। इसीके लिये मैं शरमिन्दा हूं और इसका बदला भी हाथों पाया और इसीका खौफ तुम अपने इलाकेके हिन्दुओंको दिलाते हो। वरना यह हिम्मत तो तुममें कहां कि मेरे जमानेकी तरह हिन्दुओंको हरबार हथियार बांधने दो और आठ मनका गल्ला खाने दो।
तुम लोगोंने जो महसूल इस मुल्कपर लगाये हैं, वह क्या कभी इस मुल्ककी खाने पीनेकी चीजोंको सस्ता होने देंगे? तुम्हारा नमकका महसूल जिजियेसे किस बातमें कम हैं? भाई फुलरजंग। कितने ही इलजाम चाहे मुझपर हों, एक बार मैंने इस मुल्ककी रैयतको जरूर खुश किया था। मगर तुमने हुकूमतकी बाग हाथमें लेते ही गुरखोंको अपने वहदेपर मुकर्रर किया है। बच्चोंके मुंहसे "बन्दये मादरम्" सुन कर तुम जामेसे बाहर होते हो, इतनेपर भी तुम मेरी या किसी दूसरे नवाबकी हुकूमतसे अपनी हुकूमतको अच्छा समझते हो। तुम्हें आफरीं है!
तुमने बिगड़ कर कहा है कि तुम बंगालियोंको पांच सौ साल पीछे फेंक दोगे। अगर ऐसा हो, तो भी बंगाली बुरे न रहेंगे, उस वक्त बंगालमें एक ऐसे राजाका राज था, जिसने हिन्दुओंके लिये मन्दिर और मुसलमानोंके लिये मसजिदें बनवाई थीं और उस राजाके मर जानेपर हिन्दू उसकी लाशको जलाना और मुसलमान गाड़ना चाहते थे। वह जमाना तुम्हारे जैसा हाकिम क्यों आने देगा? तुम तो हिन्दू मुसलमानोंको लड़ा कर हुकूमत करनेकी बहादुरी समझते हो और इस वक्त मुसलमानोंके साथ बड़ी मुहब्बत जाहिर कर रहे हो। मगर तुम लोगोंकी मुहब्बत कलकत्तेमें उस लाठके बनानेसे ही समझदार मुसलमान समझ गये, जो तुम्हारा एक चलता अफसर सिराजुद्दौलाका मुंह काला करनेके लिये एक कयासी वकूएकी यादगारीके तौरपर बना गया है। मुसलमानोंसे तुम्हारी जैसी मुहब्बत है, उसे वह लाठ पुकार पुकार कर कह रही है।
अखीरमें मैं तुमको एक दोस्ताना सलाह देता हूं कि खबरदार कभी पुराने जमानेको फिर लानेकी कोशिश न करना। तुम लोगोंको मैं सदा कमीने, झगड़ालू लोग और बेईमान बक्काल कहा करता। मेरे बाद भी तुम्हारे कर्मोंसे इस मुल्कके लोगोंको कभी मुहब्बत नहीं हुई। यहांतक कि खुदाने तुम्हें इस मुल्कका मालिक कर दिया तो भी लोगोंका एतबार तुमपर न हुआ। हां, एक तुम्हारी जन्नतमकानी मलिका विक्टोरियाका जमाना ही ऐसा हुआ, जिसमें इस मुल्कके लोगोंने तुम लोगोंकी हुकूमतकी इज्जत की। क्योंकि उस मलिका मुअज्जमाने अदलसे इस मुल्कके लोगोंका दिल अपने हाथमें लिया। मैं नहीं चाहता कि तुम उस हासिल की हुई इज्जतको खोओ। रैयतके दिलमें इन्साफका सिक्का बैठता है, जुल्मका नहीं। जुल्मके लिये हम लोग बदनाम हो चुके, तुम क्यों बदनाम होते हो? जुल्मका नतीजा हम भोग चुके हैं, पर तुम्हें उससे खबरदार करते हैं। अपने कामोंसे साबित कर दो कि तुम इन्सान हो, खुदातर्स हो, यहांकी रैयतको पालने आये हो, लोगोंको गिरी हालतसे उठाने आये हो, लोग यह न समझे कि मतलबी हो, नाखुदातर्स हो, अपने मतलबके लिये इस मुल्कके लड़कोंको "बन्देय मादरम्" कहनेसे भी बन्द करते हो।
खयाल रखो कि दुनिया चन्दरोजा है। अखिर सबको उस दुनियासे काम है, जिसमें हम हैं। सदा कोई रहा न रहेगा। नेकनामी या बदनामी रह जावेगी। तुम जुल्मसे बंगालियोंको मत रुलाओ, बल्कि ऐसा करो जिससे तुम्हारे लिये तुम्हारे अलग होनेके वक्त बंगाली खुद रोवें। फकत।
शाइस्ताखां - अज जन्नत।
['भारतमित्र', 25 नवम्बर, 1905 ई.]