शादीशुदा / सुषमा गुप्ता

Gadya Kosh से
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वो ट्रेन में मेरे सामने की सीट पर बैठी थी। इतनी खूबसूरत थी कि सब उसे ही देख रहे थे। मेरी नजर भी बार-बार उसके मासूम चेहरे पर जा रुकती। अगले स्टेशन पर डिब्बा लगभग खाली हो गया। मैंने बड़े अपनत्व से उससे पूछा "बहन तुम बहुत सुंदर हो। कौन हो तुम कोई फ़िल्म वाली?"

वह खोखली हंसी के साथ बोली "मैं शरीर हूँ बिना आत्मा का जिसे कभी मिनटों कभी घंटों के हिसाब से खरीदा जाता है और इस्तेमाल कर वापिस दुकान में सजा दिया जाता है।"

मुझे कहीं दूर सोच में गुम देख वह फिर बोली

"क्यों मेरा गणित समझ नहीं आया न।"

"नहीं बहन समझ न आने जैसा इसमें क्या है। हमारे समाज की ज्यादातर औरतों का गणित यही है। बस बहन तुम्हारे ग्राहक रोज बदल जाते है और मैं शादीशुदा हूँ। मर्जी तो मेरी भी नहीं पूछी जाती।"