शादी नामक विस्फोट के विकिरण प्रभाव / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 28 फरवरी 2014
आज 'शादी के साइड इफेक्ट्स' का प्रदर्शन है। इसे बनाने के लिए जो साथ आए हैं वे जुदा स्वाभाव के हैं- 'प्रीतीश नंदी कॉम्युनिकेशन' एवं एकता कपूर। एक निर्माण संस्था प्रसिद्ध एवं विद्वान पत्रकार प्रीतिश नंदी द्वारा स्थापित की गई है तो दूसरी पूरी तरह व्यवसायिक ढंग से मात्र सफलता को साधने वाली कंपनी है। अर्थात एक कवि एवं व्यवसायी के सांठगांठ की रचना है यह फिल्म। दूसरे स्तर पर इसके नायक फरहान अख्तर विभिन्न किस्म के अभिनेता हैं और विगत वर्ष वे अपनी 'भाग मिल्खा भाग' के लिए प्रशंसित और चर्चित रहे हैं। इस फिल्म की नायिका विद्या बालन कपूर हैं जिन्हें विधू विनोद चोपड़ा ने 'परिणीता' द्वारा प्रस्तुत किया था परंतु दूसरी सफलता के लिए उन्हें इंतजार करना पड़ा जो उन्हें एकता कपूर की सिल्क स्मिता के जीवन से प्रेरित 'डर्टी पिक्चर' से मिली। परंतु बतौर कुशल अभिनेत्री उनकी पहचान बनी फिल्म 'कहानी' से। फरहान अख्तर और विद्या बालन ऐसे दो भिन्न व्यक्तित्व हैं कि यथार्थ जीवन में इन्हें पति-पत्नी के रूप में देखना कठिन है। मजे की बात यह है कि इतने सारे विभिन्न किस्म के लोगों की फिल्म शादी के प्रभाव प्रस्तुत करने का दावा करती है। शादियां प्राय: विभिन्न स्वाभाव वालों के बीच होती है। परिवारों द्वारा जाति, कुंडली और आर्थिक हैसियत की जांच-परख के बाद शादी का रिश्ता बनाया जाता है गोयाकि अरेंज्ड मैरेज एक रथ की तरह है जिसे अनेक घोड़े खींचते हैं।
इस रथ के सुचारु रूप से चलते रहने का बीमा समझदार लोगों ने लिया है और प्रेम विवाह के परिणाम की जवाबदारी केवल पति-पत्नी पर रहती है, क्योंकि यह उनका निर्णय है। अरेंज्ड मैरेज की असफलता का दोष कुंडली को भी दिया जा सकता है। परिवार के उन बुजुर्गों को भी दिया जा सकता है जिन्होंने यह 'खेल' जमाया है। अत: प्रेम विवाह का बीमा नहीं है परंतु सच तो यह है कि इस रिश्ते का बीमा होता ही नहीं और इसके सफलता से जमे रहने को सौभाग्य कहा जा सकता है। शादी नामक संस्था की कोई पटकथा नहीं है और न ही यह पटकथा पर आधारित फिल्म है और अगर यह फिल्म है तो इसकी कथा पहले नहीं लिखी गई है जैसे चेतन आनंद की 'हकीकत' और इम्तियाज़ अली की 'हाइवे' है।
इस अजीबोगरीब रिश्ते के ईश्वर द्वारा तय किए जाने की लोकप्रिय बात सदियों से की जा रही है परंतु इस संस्था की निर्माण के साथ जुड़ी कमतरियों को देखकर इसे ईश्वर का सृजन नहीं मानते हुए मनुष्य का अपना काम कहना चाहिए। शशि कपूर और जैनिफर के बीच यह तय हुआ था कि विवाद और मतभेद की स्थिति में दोनों एक दूसरे की ओर मुंह रखकर सोएंगे। न कि पीठ दिखाते हुए छत्तीस की तरह। स्पष्ट है कि चेहरे आमने-सामने होने पर आंख के भाव पढ़े जा सकते हैं और किसी स्पर्श के माध्यम से दोनों पुन: पहले की तरह हो सकते है।
स्पष्ट है कि इस संबंध से शारीरिकता को खारिज नहीं किया जा सकता परंतु यह शारीरिकता इस रिश्ते का एकमात्र सेतु भी नहीं है। अन्यथा बुढ़ापे में रिश्ते टूट जाते जबकि उम्र के उसी दौर में इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। अत: शरीर के माध्यम से ही यह आत्माओं का मिलन नहीं है वरन् सारी परिभाषाओं के परे कुछ अत्यंत रहस्यमय है और इसे टिकाए रखने में अहम भूमिकाएं बच्चों की है। क्या यह महज इत्तेफाक है कि बचपन में खेल-खेल में गुड्डे और गुडिय़ा का विवाह भी शामिल है।
बहरहाल 'शादी के साइड इफेक्ट्स' एक हास्य फिल्म है परंतु उसमें कुछ संजीदे संकेत अवश्य शामिल किए गए होंगे। मैं इसे प्रीतिश नंदी की वजह से देखूंगा, आप विद्या या फरहान के कारण देख सकते हैं। परंतु शादी के लिए हमेशा एक ही कारण होना चाहिए और वह है प्रेम।