शादी / हेमन्त शेष

Gadya Kosh से
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उस के धुआंधार प्रेम में पड़ कर वह बहुत बोल्ड हो गई थी, जब उनका जी चाहता वे मिल लेते! इस बार भी वैसा ही था.

कमरे में कई दिनों से बंद थे- वह और वह! न वह कहीं जाता था, न वह कहीं चलने को कहती! बस एक दूजे में डूबे रहने के सिवा बाहर की दुनिया निरर्थक लगती. एक हिन्दुस्तानी मध्यवर्ग-परिवार की उस से कम से कम पच्चीस साल छोटी लड़की, उस के साथ उसके होटल के सबसे ऊपर की मंजिल पर बने कमरे में रह रही थी- एक ही बिस्तर में, जब तक ‘उसका’ जी चाहे! उसने उस से कई बार कहा उस से मिलने के बाद अब वह कभी भी शादी नहीं करेगी. घर वाले समझा-समझा कर हार गए. नतीजा ढाक के तीन पात.

होटल वालों की तरफ से कोई झंझट नहीं था. उन्हें तो बस अपने किराए से मतलब था, और उसे चुकाने में वह हमेशा तत्पर. काम से काम रखता, बाहर से खा-पी कर दबे पाँव आता, बिना धमाल किये वे सो जाते....उस पर गाहे-बगाहे वेटरों को तगड़ी ट्रिप! चुप रहने को भला किसे और क्या चाहिए! दिन बड़े सुहाने गुजरते थे.

उस एक दिन होटल के ऐन पास वाले मेरिज-हौल में सुबह से बड़ी चहल-पहल थी. वह सुबह से खिड़की पर जमी थी. अच्छा लगता हंगामा. लोगों का बराबर आना-जाना. शोर-शराबा. आकर्षक मांडने. मालाओं से लदा मिनी ट्रक. बड़ी-बड़ी गाडियां. एक ट्रक भर कर सामान. झालरदार सुनहरा शामियाना. महंगी कुर्सियां. लाइट लगाने वाले इलेक्ट्रीशियन. कलफ़ लगे वर्दीधारी वेटर- बैरे. लंबी मेजें. फूलों भरे गुलदस्ते. शानदार सूट. हंसमुख मेहमान. साफ़ा पहने प्रसन्नचित्त मेज़बान.. कर्णप्रिय संगीत. लजीज केटरिंग. नयी नई पोशाकों में सजी-धजी में औरतें. और फिर एक बेहद प्रभावशाली बेंड. आतिशबाजी. धमाल. नाच. ‘बहारो फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है...’ उसने कई बार सुना ज़रूर था पर आज उसे वही पिटा-पिटाया गाना और ज्यादा मादक और सुरीले स्वरों में बजते हुए लगा. और जब सजी-धजी सफ़ेद घोड़ी पर शान से बैठा, इधर-उधर बिलकुल न देखता एक बेहद हेंडसम दूल्हा उसे नज़र आया तो उसकी तो बस धड़कन ही थम गयी.

अगले ही दिन उसके बाहर जाते ही उसने होटल छोड़ दिया और निश्चय कर लिया कि जहाँ माँ-बाप कहेंगे, वह जितना जल्दी हो, शादी कर लेगी. अंजाम चाहे जो हो सो हो!

जब वह ए टी एम से वापस लौटा तो लाख सिर पटकने पर भी ये नहीं समझ पाया कि उसकी गलती आखिर थी क्या?