शापित / राजा सिंह
रात के गहन अंधेरे में वह दिखी। फासला आधे हाथ से भी कम था। उसका हलक सूखने लगा था। बीच में आती गरम हवा जिस्म से टकराकर रूह तक उतरने लगी थी। 'खत्म करने है ये फासले। बड़ा दुख है, तेरी दूरी का, यह दर्द तुझे भोगने ना दूँ। तुझे टिकने ना दूँ। तुझे सोने ना दूँ। मेरे सपने गवाह बने।' वह चिपक गई. घबराहट के आलिंगन में नींद खुल गई. इरिना नदारत थी। वह वेदिका थी।
दुःस्वप्न में, वह गहरी नींद में था कि-"इरिना का फोन आया। मेरा रंग उड़ गया। वेदिका चेहरा पढ़ने लगी...'किसका फोन था? ... कौन थी...?' उसके अंदर चोर था। परंतु वेदिका की भेदती आँखों ने पकड़ लिया। 'वह इरिना थी।' यह इरिना कौन है? 'आपसे क्या सम्बंध है?' ... कुछ नहीं...'एक बार ऑफिस जाते समय लिफ्ट दी थी... वही पास में विज्ञापन कंपनी में काम करती है। उसे देर हो रही थी। इसलिए.।' ... 'हो गया था उस दिन न? फिर अब क्यों? ... अब क्या? ... फोन काल्स क्यों? ... इससे आगे...! आपका उससे क्या सम्बंध है...?' ... किन्तु इरिना से सम्बंध स्पष्ट नहीं कर पाया।'" ...वह जग गया।
वह पसीने-पसीने हो आया। वेदिका ने उसे जगाया। "क्या हुआ?" ... कुछ नहीं। सिर्फ स्वप्न की सिवाय कुछ नहीं... उसने उसे आश्वस्त किया... ' आपके स्वप्नों में इरी ... इरिना नाम क्यों आता है? ... ऐसे ही... सुबह बात करेंगे..."
वह सो गई. वह फिर ना सो पाया।
इरी में एक खिचाव था। जब वह दिखती मिलती बोलती। उसका मन उसके साथ घूमने लगता। वह कान से मोबाइल सटाये उसकी कोयल जैसी आवाज सुन रहा है, ' हैलो! मैं इरिना बोल राही हूँ। वह उसके बोल से ही उसके आगोश की गर्माहट महसूस करता हिल जाता।
उन्मुक्त अंदाज से बहती हुई निरंतर गतिमान ऊर्जा और उठती खुशबू उसके भीतर उतर कर पोर-पोर महका अहसास उसे मदहोश किए जा रही थी। ...
खैरीयत तो है? क्या तबीयत ठीक नहीं है? इरिना ने पूछा।
वह विचलित हो उठा। निःसंकोच माँगता है। उसकी लापरवाह आदतें और आवारा-सी तबीयत दोनों यकायक संजीदा हो उठे।
उसका चेहरा नरम हो उठा था और अंदर केशर महकने लगा। उसके भीतर लहलहाती कलुषित लालसा ने, सब कुछ सोख लिया... उसके आत्मतिक्रमी अन्त: रूपांतरित पतनशील लिप्सा ने उसके आगोश की गर्माहट को झुलस दिया।
उसकी अंतर्वस्तु खुदबखुद दुरस्त हो गई और तमन्ना उसमें समा गई. उसके अंदर बहुत कुछ टूट गया। केशर का महकना और कोयल स्वर खो गए.
इरी उसे ऐसा नहीं समझती थी। वह छिटक कर अलग हो गई. उसने अविश्वनीय नज़रों से उसे देखा। फिर उसकी बड़ी-बड़ी आँखों से छोटे-छोटे आँसू निकलने लगे।
"आप ऐसे है?" उसने बेहद दुखी होकर कहा।
"मैं आप को प्यार करती हूँ, विवाह करना चाहती थी। आपकी चाहना सिर्फ वासना तक सीमित थी।"
"तुम जिस नौकरी, व्यवसाय में हो उसमें यह सब तो सामान्य बात है।" उसने अपने कृत्य को सही ठहराने की कोशिश की।
"गलत एकदम गलत! सब ऐसे नहीं होते। मैं तो बिल्कुल भी नहीं।" उसने कुछ तेजी से कहा।
वह उसे छोड़ गई. वह गुपचुप और शांत हो गया। उसे हर समय इरी इरिना का खयाल आता। उस दिन के बाद वह दिखी नहीं। न कोई कॉल न संदेश। वह कहाँ है, कैसी है? सब कुछ समाप्त।
उसने काम, नौकरी ही नहीं छोड़ी बल्कि शायद यह दुनिया ही छोड़ दी। अज्ञात। खो गई. या शायद आत्मा बन गई होगी। मगर है वह, किसी ना किसी रूप में दिखती थी जरूर। कुछ पता न चला। वह उसके विषय में न पहले जानता था ना अब...!
वह भयाक्रांत था। बिष घुल रहा था। सांस लेना मुश्किल है। पीड़ा है, पश्चाताप है, छटपटाहट है, अँधेरा है। क्या करें? कुछ सूझ नहीं रहा है, इस स्थिति से उबरने के लिए. अपने कमरे बैठा है उदास, हताश और निराश। बुखार है। हरारत है। फिर द्वन्द्व चल रहा है, तर्क वितर्क से परे। निर्मम और निष्ठुर।
नैराश्य का साम्राज्य हो गया था, निराशा और हताशा में डूब गया था।
किन्तु नैराश्य के साम्राज्य में उसकी परफ़ोर्मेंस-कंपनी कार्य में बेहद अच्छी होती गई. उसके कारण कंपनी को आशा के विपरीत काफी फायदा हुआ था। कंपनी के डायरेक्टर ने उसकी पदोन्नति मैनेजर के रूप में कर दी। जनरल मैनेजर श्रीकान्त, उसका दोस्त बन गया। विरल पर उसका अटूट विश्वास हो गया।
लेकिन यह सब उसकी उदासी ना दूर कर सके. यह चर्चा आम हो गई की शायद उसका प्रेम मर गया है । ... ।कोई कहता प्रेमिका मर गई है...प्रेमिका भाग गई है...कोई कहता वह शीघ्र पागल हो जाएगा...!
वह नितांत अकेला था... माँ-बाप भाई बहिन कोई भी नहीं... एक प्रेमिका थी वह भी चली गई.
परंतु श्रीकान्त उसके लिए चिंतित था और उसने उसका अकेलापन दूर करने के लिए उसकी शादी अपनी बहिन वेदिका से कर दी। निश्चय ही वे एकांत में कई बार पहले मिले, दिखे और सहमति दी। वह उदास जरूर दिखा था किन्तु उसके सामने एकदम जीवंत व्यक्तित्व। वेदिका से मिलने से पहले वह बेजार था शादी नाम से। किन्तु वेदिका के शुभ्र, शांत, शालीन, सुंदर और उच्च शिक्षित व्यक्तित्व का आकर्षण उसमें एक नई ऊर्जा का संचार किया था... जिंदगी के प्रति। वह बेहद समझदार थी, क्योंकि उसके भाई ने विरल के प्रसंगों के विषय में एक हिंट दी थी जिसे उसने कोई अहमियत नहीं दी थी... उसे अपने पर विश्वास था।
कभी-कभी पुराने रिश्ते की खरोंच नए रिश्ते को भी जख्मी कर देती है। कुछ ही दिन ठीक से गुजरे थे कि इरी फिर दिखने लगी...विशेष रूप से रातों और दिनों के स्वप्नों में और सुंदर लड़कियों के रूप में। 'वह कोयल स्वर में कहती दिखती...' जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी। मैं धड़कती रहूँगी...मैं बेचैन आत्मा हूँ...! '
अकसर वह रात में सोने न पाता, जब वह वेदिका से स्पर्श रहित होता। उसके विभिन्न प्रकार के अधूरे सपने उसे सोने ना देते। वह बीच रात में जग जाता। उठ जाता। उलझन में सिगरेट जलाता। पीते हुए देखता कि पत्नी इरिना में तब्दील हो गई है... रात का समय-सिगरेट की रोशनी और धुएँ से वेदिका जग जाती। उसे अपने आगोश में लेती... पुचकारती, दुलारती, थपथपाती और उसे अपने आगोश में लेकर अपने में समाहित कर लेती-वह फिर सो जाती। वह फिर भी जागता रहता। उनींदी आँखों से देखती कहती, 'अब तो सो जा...!'
वह लेट जाता किन्तु नींद नहीं आती। सोचता... एक जली हुई सिगरेट जैसे थे वे दोनों-इरी उड़ गई धुऐ जैसी और वह पड़ा है, राख, ठूंठ जैसा।
इरी दिवास्वप्नों में और रात के दुःस्वप्नों दिखती और उसकी कोयल जैसी आवाजें सुनता-फिर हसीन सुंदरी अदृश्य हो जाती, खो जाती अस्तित्वहीन रूह की तरह। वह उसकी फिर तलाश करने लगता किसी प्राणी की तरह।
उसकी आवाजें सुनकर वेदिका अक्सर जग जाती हमदर्द की तरह। कभी-कभी वह पहले से ही जग रही होती है। उसकी चिंता में घुलती हुई... चिता-सी जलती हुई. नींद में कहती, ' सपने में वह ख्यालों में वह। मैं कहाँ? ।हमें तुम्हारे साथ नहीं रहना है... तुम्हें वही मुबारक...!
वह सुबकने लगी। एक अजीब-सा तनाव फैलने लगा था। वह प्रतीक्षा करता है, कुछ समय तक... कभी उसे लगता था कि वह उसका भूत जान गई है, इसलिए अलग होना चाहती है। वह झूँठ बोलती है। उसने अपने हाथों से उसका हाथ पकड़ रखा था। वह सचमुच डर गई थी। उसे लगता कि उसकी प्रेमिका इस तरह उससे अलग कर देगी। रात में वे एक दूसरे को देख नहीं पा रहे थे सिर्फ स्पर्श से महसूस कर रहे थे।
वह डर जाता। उससे अलग होना सोचना ही एक अजीब तरह की दहशत से भर देता था। वह उसकी हर बात मानता। उसने उसकी यह बात भी स्वीकार कर ली थी कि उसे मनोचिकित्सक को दिखाना चाहिए. उसे डॉ नसरीन पर काफी भरोसा था। उसे यकीन था कि उसकी अदृश्य प्रेमिका का इलाज वही बेहतर कर पाएगी। उसके भीतर स्थापित शैतान को वही निकाल पाएगी।
कार से उतर कर वह क्लिनिक के सामने खड़ी है। विरल गाड़ी पार्क करने गया है। वह दूसरी बार वहाँ आई है, एक बार पहले वह डॉ नसरीन से विरल के विषय में बात करके गई थी और आज का दिन समय निर्धारित कर गई थी। तब उसने संक्षिप्त में उसके विषय में मंत्रणा की थी।
वह डरा रहता है। डर की वजह थी उसकी अपनी पत्नी वेदिका। यदि वह उसकी मन स्थिति के विषय में जान गई तो? कहीं वह भी उसे छोड़ न दें? वह उसके पूर्व के कार्यकलापों के विषय में नहीं जानती! वह उसे देवतुल्य मानती है। वह उसके भीतर छिपे शैतान को जान कर अवश्य ही निकल लेगी, उसे तनहा छोड़कर। क्योंकि कभी-कभी वह अचंभित रह जाती है, जब वह वाह्य व्यक्तित्व के विरुद्ध मानसिक रूपांतरण की संभावना का भार डालने के लिए विवश दिखाई देता है। तब उसे लगता है कि विरल नहीं है बल्कि कोई शैतान उस पर काबिज है।
डॉ, पहले उसकी पत्नी के सामने ही प्रश्नोत्तर कर रही थी। ऐसे प्रश्नों का बौछार करती, पूछती थी कि वह बहुत कुछ सही-गलत के चक्रव्यूह में उलझ गया। वह असहज था।
तब डॉ ने उसकी पत्नी की तरफ एक प्रश्न उछाल दिया। 'आपको कैसा लगता है?' डॉ ने पूछा।
वेदिका ने उसे बताया था कि " वैसे तो विरल मुझे बहुत प्यार करता है... किन्तु कभी-कभी लगता है कि वह किसी अन्य की गिरफ्त में है... प्रभाव में... विशेष रूप से रात में!
उसे अपने भीतर एक अजीब-सी बेचैनी महसूस होने लगी। उसे पत्नी के अस्तित्व का बिल्कुल आभास नहीं था, हालांकि वह इतने पास बैठी थी।
डॉ समझ गई कि मौजूद परिदृश्य में स्वेच्छा से लाए गए आत्म निरूपण, एवं मानवीय न्यायपूर्ण तरीके से स्वयं विश्लेषण युक्त संघर्षशील व्यक्तित्व की जरूरत है। जिसे उसकी पत्नी की उपस्थिति में होना संभव नहीं होगा।
डॉ उसे एक अलग गहन विचार विमर्श कक्ष में ले गई उसकी पत्नी से दूर।
' मुझसे कुछ भी छिपाना तुम्हारी मूर्खता ही होगी क्योंकि तब मैं तुम्हारी समस्या का निराकरण करने में असमर्थ रहूँगी।" डॉ ने कहा।
मूर्खता शब्द उसे बिंध गया। वह लौटना चाहता था। किन्तु वेदिका नाराज हो जाएगी यह सोचकर वह रुक गया।
वह पत्नी के सामने जिरह युक्त प्रश्नोत्तर से यह तो जान गया था कि उससे कुछ भी छिपाना मुश्किल है बल्कि ऐसा करने से और भी भ्रम बना रहता कि वह किसी और निष्कर्ष पर तो नहीं पहुँचेगी।
इसलिए उसने बिना लाग लपेट के आदि से लेकर अंत तक सब कुछ रहस्यमय अंदाज में चेतनायुक्त सत्य अंतरस्थ विभिन्न अवस्थाओं में अपनी स्थितियों, इरी... इरिना... प्यार, चाहना, मोह, सुंदरता...! ... संलग्नता और विभाजनों का समावेश वर्णन कर दिया।
पर डॉ की आँखें उस पर थी और उसमें एक दिलासा थी। कुछ देर तक सोचती रही, उसका चेहरा पढ़ती फिर बोली, "हमें तुम्हारे भीतर डेरा जमाए सुंदरता के पुजारी-शैतान को बाहर निकालना है... सुंदरता और इरिना से परे। तुम्हारी पतनशील लिप्सा को तोड़ना है। जब कोई आकर्षित करती सुंदरता दिखे तब अपना ध्यान उससे हटाकर उसे कही और केंद्रित करना है... निःसंदेह।! पत्नी वेदिका पर...वह काफी सभ्य, सुसंस्कृत, शालीन और बेहद सुंदर भी है।"
परंतु उसकी नजरें डॉ नसरीन पर थीं। वह खुद इतनी सुंदर थी कि वह डॉ से हटकर सिर्फ नसरीन को देख पा रहा था... वह कह नहीं पाया। उसी से उससे ध्यान हटाने का तरीका कैसे पूछता? उसके लिए उसकी डॉक्टरी अनुपस्थिति थी सिर्फ खूबसूरती उपस्थिति थी।
डॉक्टर ने समझ लिया। वह मुस्कराने लगी। उसने सिर हिलाया और जल्दी से कागज समेट लिए जैसे उन्हें उसकी आँखों से वह बचा रही हो। दवाइयाँ लिखी और रात में सोने से पहले खाने का कहा जिससे उसे रात में स्वप्न न आए जो बीते थे ... या भविष्य में होने वाले थे।
अचानक उसमें अंतर्निहित शैतान बोला, " क्या तुमसे नजरें हटाई जा सकती हैं, नसरीन? वह उसे इरिना-सी दिखी।
डॉ चिहुँक उठी। वह बेहद गुस्से में दिखी, परंतु उसने अपने को संयमित किया डॉक्टर-पेसेन्ट के रिश्ते पर गौर किया और मुस्कराकर बोली, " अवश्य यदि आप वेदिका पर ध्यान शिफ्ट करोगे?
उसने वेदिका को आवाज दी और कहा, " इन्हें आपके प्यार से ज्यादा, देखभाल की जरूरत है। फिर वह अपने चैम्बर में तुरंत चली गई.
वह निश्चल खड़ा रहा ... जैसे गलत रास्ते पर आ गया हो अब मुड़ना चाहता हो।
वेदिका आवाक डॉ का मुंह देखती रह गई. उसे डॉक्टर की हिदायत सन्न कर गई.
"अब चलें?" उसने कहा।
"हाँ, अवश्य!"
कार चलाते हुए उसे डॉ नसरीन का खूबसूरत चेहरा और फिर उसकी बात ध्यान में आई. वेदिका में ध्यान केंद्रित करना चाहिए. वह बगल में बैठी अपने सुंदर चेहरे से कुछ सोच रही थी। किन्तु वह उसकी उपस्थिति से अनुपस्थिति था। डॉ की नसीहतों / हिदायतों से ज्यादा वह चिंतित-सी लगी।
ट्रैफिक की ललबत्ती पर उसे रुकना पड़ा तो वह दिखी 'इरिना' । नहीं यह कैसे हो सकता है? उसे तो खोए हुए या मरे हुए करीब तीन वर्ष बीत गए है। सुंदर लड़की। चेहरा वही इरिना जैसा। नहीं... नहीं...वही है स्कूटी पर। वह स्कूटी पर बैठी मुस्करा रही है। उसे देख रही है एकटक... हूँबहू... 'इरिना' जब वह उसे मिली थी-वैसी ही। काली जींस, काली जैकिट और भीतर से झाँकता गुलाबी टी-शर्ट, चेहरा-झक-सफेद, कटे हुए बाल। वह उसे कोई फिल्मी हिरोइन लग रही थी। ट्रैफिक के नज़ारे में उसी पर आँख टिक गई. । उसका ऑटो खराब हो गया था जब उसने उसे अपनी कार में लिफ्ट दी थी। उसकी विज्ञापन कंपनी उसके ऑफिस के पास ही थी।
ट्रैफिक लाइट हरी हो चुकी थी। खूबसूरत लड़की सर्र से निकल् गई. वह खड़ा रह गया। कई विभिन्न किस्म की हार्न बजने लगे, पीछा करने लगे। बगल की अगली सीट पर बैठी वेदिका हंसने लगी, उसने उसके चेहरे की तरह देखा। उसके चेहरे पर उलझन के सिवा कुछ ना मिला। वह डॉ नसरीन की हिदायतों से सन्तुष्ट थी। वह उसकी संतुष्टि को कायम रखने की कोशिश कर रहा था।
"अब चलो, भी!" उसने आजिज आकर कहा।
आस-पास और पीछे के वहाँ, उसे क्रॉस करके निकल रहे थे। उसके झिड़कने से वह सचेत हुआ। एक धचके से कार चल पड़ी। *
कुछ ही दूरी तक वह चला था कि इरी दिख गई. वह ईसाई बधू की पोशाक में थी। उसे बुला रही है। कार के एकदम सामने। उसने एकदम से ब्रेक लगाए. दोनों के सर डैश बोर्ड से टकराए. वेदिका ने अविश्वनीय नज़रों से उसे देखा। " क्या करते हो ...? वह चीखी। वह दिल थामकर बैठ गया। कार के समाने कोई नहीं था। इरी गायब थी।
सॉरी...! कहते हुए उसने फिर कार चला दी।
बहुत देर तक इरी का चेहरा पीछे-आगे भागता रहा। वह फिर दिखी, अब की बार चर्च जाते हुए. सड़क से दूर एक मैदान में स्थिति लाल लखौरी ईटों निर्मित इमारत चमक रही थी। वह इरी के साथ कई बार चर्च गया था। प्रभु ईसू के प्रवचन सुनने।
उसने चर्च की तरफ गाड़ी मोड़ दी। "अरे...! अरे...! कहाँ जा रहे हो... कुछ होश में हो?" वेदिका चीखती रही।
कुछ देर तक इरी का चेहरा दिखता रहा फिर अचानक गायब हो गया। उसे ढूँढ़ने के चक्कर में उसने गाड़ी ठोक दी, एक पुलिया की दीवाल से।
"क्या हो गया है आज आपको? यह कैसी ड्राइविंग है? चलो हटो। मैं ड्राइव करूंगी।"
विरल के चेहरे पर खिसियाहट की हंसी थी किन्तु वेदिका बुझी थी। उसे उसके सपने, हरकतें पूर्व-घटित सम्बंधों की पुनरावृति लगी।
उसने कुछ नहीं कहा। उन्होंने चुपचाप आपस में सीट बदल ली। वेदिका लगातार उसका चेहरा देख रही थी। आज इसे क्या हो गया है? ... आज तो डॉ नसरीन से मिलकर आ रहे है आज तो बेटर फ़ील करना चाहिए था।
उसे यह सोच कर विस्मय होता कि एक साल से ज्यादा वह उसके साथ है लेकिन विरल उसके चंगुल से आजाद नहीं हो पाया है। संदेह अब भी था कि क्या वह कभी उसका हो पाएगा?
लेकिन सुख या दुख उसे इतनी जल्दी नहीं सताते थे। वह उनके बारे में ज्यादा सोचती भी न थी। वह सिर्फ जानना चाहती थी कि हकीकत क्या है?
वेदिका को कभी-कभी अजीब-सा गुस्सा आता, किन्तु वह अलग नहीं होती है। उसे लगता कि विरल बीमार है उसे प्यार और सहानुभूति की जरूरत है और उचित देखभाल की...
कार रुक गई थी। लिफ्ट से होते हुए वे अपने फ्लैट में आ गए. नीची नजर किए वह भी उतर गया। वह अपने चेहरे पर उग आई इबारत को साफ करने में जुट गया। वह सोच रहा था कि डॉ ने उसके सोये पड़े जख्मों को जगा दिया और समय की पट्टी पुनः उधेड़ दी थी। जख्मों पर फिर पट्टी बाँधना आवश्यक नहीं समझ होगा? हर जख्म में वह दिख रही है...!
उसके ध्यान में अभी तक इरिना की छवि ओझल नहीं हुई थी। वेदिका इरिना में बदल गई थी। दोनों के दरमियान फासला कम से कमतर होता जा रहा था। वे इतने पास थे की एक दूसरे की सांस की खुशबू और संगीत सुनाई दे रहा था। उसने उसे आलिंगन में लिया और फुसफुसाया... 'इरी' ...!
वेदिका को 'इरी' शब्द सांप के डंक जैसा लगा। वह फुफकार उठी। उसने उसे अपने से अलग किया और एक तरह से उसे धक्का दिया। उसकी आँखों में हिकारत थी। जिसकी छाप विरल के चेहरे पर अंकित हो गई. उस आवाज के साथ ही वह बेड पर धाराशाही हो गया।
"तेरे अंदर इरी...! तेरे सपनों में इरी...! तेरी छुअन में इरी...! आखिर मैं कहाँ हूँ...? ... यह तेरी पत्नी विदी-वेदिका कभी... कहीं है...? ... मैं जा रही हूँ... सम्हालो, पालों-पोसो, अपनी इरी, इरिना की दुनिया को... मरी हुई के साथ तू भी मर जा...!"
अकल्पनीय, अविश्वसनीय, वह हतप्रभ आवाक देखता रह गया। वह डर, भय से काँपने लगा।
वह उसकी तरफ पीठ करके चल दी। निःसंदेह अब विदी-वेदिका, वह उसकी कमजोरी बन चुकी थी। उसका जाना उसकी मौत थी, आत्मिक एवं शारीरिक। यकीनन आज तक उसने इरी के बगैर आत्महत्या करने के विषय में नहीं सोचा था किन्तु यदि विदी नहीं रही तो अवश्य वह इसके विषय में सोचने लगेगा।
वह भयाक्रांत हो उठा। उसने वेदिका का हाथ पकड़ लिया। जाने ना दिया।
उसने उसकी आँखों में याचना पढ़ ली। वह रुक गई. वह बेहद आहत थी। किन्तु उसने, उसकी आँखों में एक अजीब-सी तसल्ली देखी। वह चुपचाप बिस्तर के पास चली आई और सिमट गई.