शाहनामा / फिरदौसी
शहंशाह अकबर के जमाने में लिखी मुगलिया सल्तनत का असली दस्तावेज है - शाहनामा। इसे फिरदौसी, पूरा नाम अबुल कावीमे मंसूर, ने लिखा। फिरदौसी का जन्म खुरासान के शादाब गाँव में सन् 932 ई० में हुआ था।
कन्नौज के राजा कैद ने लगातार दस रातों तक दस सपने देखे। दसों सपने देखकर वह बहुत पसोपेश में पड़ा, जब कुछ भी समझ में न आया तो उसने अपने दरबार में विद्वान तपस्वी मेहराम को बुलवाया और दसों सपने सुनाये-
पहला सपना: एक बड़ी इमारत थी, महल की तरह। पर उसका दरवाजा बहुत छोटा था। उस पतले दरवाजे में एक बहुत बड़ा और मरखना हाथी फँसा हुआ था। पर वह विशाल हाथी उस दरवाजे से बड़े आराम से निकल आया। सिर्फ उसकी सूँड भीतर टूटकर रह गयी। बस, फिर सुबह हो गयी।
दूसरा सपना: वही महल था और मैं उसमें रह गया था, कि मेरी मौत हो गयी। मुझे हटाकर एक तरफ कर दिया गया। और एक नया राजा सिंहासन पर बैठ गया। उसका मुकुट हीरों-सा चमक रहा था। बस, फिर सुबह हो गयी।
तीसरा सपना: कपड़े की एक बहुत बड़ी सफेद चादर थी, उसे चार कोनों पर चार आदमी पकड़े हुए अपनी-अपनी तरफ खींच रहे थे। खींचते-खींचते उनके चेहरे नीले पड़ गये पर कपड़े की वह चादर नहीं फटी। बस, फिर सुबह हो गयी।
चौथा सपना: एक पतली-सी नदी के पास एक बहुत प्यासा आदमी खड़ा था। उसे प्यासा देखकर नदी की एक मछली निकली, ऊपर उछली और उस पर उसने पानी डाल दिया। आदमी ने यह देखा तो उछलकर सूखी जगह में खड़ा हो गया। पानी बहकर उसके पास पहुँचा, पर वह प्यासा आदमी भागने लगा। पानी उसके पीछे-पीछे बहता रहा। बस, फिर आँख खुल गयी।
पाँचवाँ सपना: एक शहर था जिसके रहने वाले सबके सब अन्धे थे। पर कोई परेशान नजर नहीं आता था। शहर में खूब तिजारत और कामधाम चल रहा था। बस, फिर आँख खुल गयी।
छठा सपना: एक शहर देखा, जिसमें सब बीमार थे। एक तन्दुरुस्त आदमी वहाँ कहीं से आया और वह बीमारों से तन्दुरुस्त रहने की दवा पूछता फिरता रहा। बस, फिर आँख खुल गयी।
सातवाँ सपना: एक घोड़ा था, जिसके चार पाँव पर दो सिर थे। वह मैदान में खूब घास चर रहा था। पर उसके पीछे फारिग होने का रास्ता नहीं था। बस, फिर आँख खुल गयी।
आठवाँ सपना : तीन घड़े रखे थे। दो लबालब पानी से भरे थे। एक खाली था। दो आदमी उनमें भर-भरकर पानी डाल रहे थे, पर न तो भरे घड़ों का पानी फैलता था न खाली घड़े में नमी आती थी। बस फिर आँख खुल गयी।
नौवाँ सपना: एक तन्दुरुस्त गाय आराम से घास पर लेटी थी। उसके पास एक मरी हुई बछिया पड़ी थी। वह तन्दुरुस्त गाय उस मरी बछिया का दूध पी रही थी। बस, फिर आँख खुल गयी।
दसवाँ सपना: एक महल देखा - उसके मैदान में चश्मा था। पूरा मैदान पानी से भरता जा रहा था। पर चश्मा बिलकुल सूखा था। बस, फिर आँख खुल गयी।
दसों सपने सुनकर विद्वान तपस्वी मेहराम ने कन्नौज के राजा कैद से कहा कि सिकन्दर नाम का एक राजा हमला करने वाला है, उससे तुम लड़ना मत। तुम अपनी सुन्दरी पुत्री; और वह दार्शनिक जिसने तुम्हें दुनिया के रहस्य बताये हैं, और वह वैद्य जो तुम्हारे राज्य में सबसे विख्यात है, और वह अद्भुत प्याला, जिसमें पानी पीने से कभी समाप्त नहीं होता - चारों चीजें सिकन्दर को देकर दोस्ती कर लेना। इसी में तुम्हारी भलाई है।
और इतना कहकर मेहराम ने सपनों के अर्थ बताने शुरू किये - “राजन् पहले सपने का वह महल यह धरती है, और वह मरखना हाथी है - एक दुष्ट राजा। जिसके पास सिर्फ नाम ही नाम है और कुछ नहीं।
दूसरा सपना यह बताता है कि दुनिया की यही रीति है। एक राजा जाता है दूसरा आता है।
तीसरा सपना जिसमें सफेद कपड़ा नहीं फटता - वह सफेद कपड़ा है आदमी की आस्था और चारों कोनों से उसे खींचने वाले हैं धर्मों के वे पुरोहित जो अपने को ही सही मानते हैं। एक अग्निपूजक है, दूसरा देहकान, तीसरा यहूदी और चौथा है अरब - ये सब एक-दूसरे के पूरक हैं पर विरोधी बने हुए हैं।
चौथा सपना बताता है कि एक वक्त आएगा जब बुद्धिमान आदमी, जिसने ज्ञान का पानी पिया है, तुच्छ समझा जाएगा। बदमाश लोग उसे और प्यासा जानकर पानी के पास बुलाएँगे पर उसके साथ ठीक से व्यवहार नहीं करेंगे। वे उसे लांछित और अपमानित करेंगे और पानी ऐसे देंगे कि वह पी न सके।
पाँचवाँ सपना बताता है कि अन्धों का जो खुशहाल शहर है, एक दिन दुनिया ऐसी ही हो जाएगी। तब विद्वान सेवक होंगे और मूर्ख मालिक। ज्ञानवृक्ष भी तब फल नहीं देंगे। विद्वान मूर्खों की सेवा करेंगे ताकि दुनिया खुशहाल रहे पर वे सेवा करते हुए भी यह जानते रहेंगे कि वे एक झूठा नाटक खेल रहे हैं।
छठा सपना कहता है कि एक वक्त ऐसा आएगा जब अमीर गरीबों को हिकारत से देखेंगे यानि तन्दुरुस्त आदमी व्यंग्य से मरीज से तन्दुरुस्त रहने की दवा पूछेगा पर जब गरीब उनसे सेवा करने का मौका चाहेगा तो वे नहीं देंगे।
सातवें सपने का मतलब है कि दो सिर वाला घोड़ा वक्त का प्रतीक है - वह वक्त ऐसा होगा जब गरीब आदमी को उसके लायक खाना नहीं मिलेगा और कुछ आदमी इतने स्वार्थी हो जाएँगे कि वे अपने अलावा किसी और के बारे में नहीं सोचेंगे। न गरीब को खाना मिलेगा न ज्ञान।
आठवें सपने के अर्थ हैं कि एक वक्त ऐसा आएगा जब पानी से भरे हुए बादल सूरज को ढँक लेंगे और गरीब उसे नहीं देख पाएगा। अमीर-अमीर दोस्त होंगे - दोनों भरे घड़ों की तरह। पर गरीब खाली घड़े की तरह नमी भी नहीं पाएगा।
नौवें सपने में जहाँ तन्दुरुस्त गाय मरी बछिया का दूध पी रही है, वहाँ यह अर्थ है कि जब शनि तुला राशि में प्रवेश करेगा तो दुनिया शक्तिवान के पैरों तले कुचल दी जाएगी। गरीब और बीमार दुखी ही रहेंगे। लोग बातें करेंगे पर उनके दुखों को दूर करने की न कोशिश करेंगे न अपना धन देंगे।
दसवें सपने में जहाँ सोता सूखा है और मैदान पानी से भरा है, उसका अर्थ यह है कि एक जमाने में एक मूर्ख राजा होगा। उसकी आत्मा काले पश्चात्तापों से भरी रहेगी। वह बहुत धन जमा करेगा पर जो कष्ट उसके कारण प्रजा पर पड़ेंगे, उनसे धरती का चेहरा काला पड़ जाएगा। वह अपने सिंहासन को बचाने के लिए सेनाएँ बनाता जाएगा पर अन्त में न सेनाएँ रहेंगी न सिंहासन!”
और इतना बताकर विद्वान तपस्वी मेहराम उठ खड़ा होता है और चलते-चलते फिर राजा कैद को आगाह करता है कि सिकन्दर नाम का विश्वविजेता आने वाला है... राजा कैद को उसका स्वागत करके अपनी बहुमूल्य चारों चीजें उसकी नज़र कर देनी चाहिए।