शाहरुख खान के डिम्पल और अवाम के आंसू / जयप्रकाश चौकसे

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शाहरुख खान के डिम्पल और अवाम के आंसू
प्रकाशन तिथि : 10 जून 2014


एक हास्य कार्यक्रम में दर्शकों के बीच से एक युवती मंच पर आकर अपने जीवन के सबसे बड़े सपने अर्थात शाहरुख खान के गालों पर बने डिम्पल को छूना चाहती है और सकुचाए से शाहरुख खान यह करने देते हैं और कहते हैं कि कभी कहीं किसी ने डिम्पल में जमा दूध पीने की इच्छा भी जताई थी।। प्राय: इस तरह प्रायोजित तमाशे में दर्शकों के बीच संयोजक द्वारा बैठाए गए सवैतनिक जूनियर कलाकार भी होते हैं और पहले से रिहर्सल की गई इच्छाओं, स्वप्नों की बात करते हैं और तमाशा जम जाता है। अगर ऐसा ही कुछ दशकों पूर्व चार्ली चैपलिन या राजकपूर के साथ होता तो वे कहते कि इन डिम्पल में ठहरे उनके आंसू की बात करें। हर काल खंड की संवेदनाएं और प्राथमिकता अलग-अलग होती है और दर्शक का अवचेतन भी बदलता रहता है। चार्ली चैपलिन ने कहा था कि उनका मनपसंद मौसम बरसात है क्योंकि सड़क पर भीगते हुए चलते समय आपके आंसू कोई देख नहीं पाता गोयाकि बरसात अभावों का नकाब भी होती है जैसे कई बार कोट केवल फटी कमीज को छुपाने के लिए पहनी जाती है और ढीली पतलून का पांयचा जूतों के सुराख छुपाता है।

आजकल शल्य चिकित्सा द्वारा भी डिम्पल रचे जा सकते हैं और फैशन परस्त अमीर जादियां यह करती भी हैं। इस प्रक्रिया में हुए खर्च और दर्द को वो सहन कर लेती है जैसे ओंठों को आकर्षक बनाने के लिए दर्द देने वाले इंजेक्शन लगाते हैं तो ओंठ मादक हो जाते हैं परंतु उनको छूने मात्र से दर्द होता है गोयाकि मादकता रची है परंतु उसका इस्तेमाल वर्जित है। स्वाभाविक डिम्पल और सौंदर्य शल्य चिकित्सा द्वारा बनाए गए डिम्पल में अंतर नजर नहीं आता अलबता यह संभव है कि शल्य चिकित्सा द्वारा निर्मित डिम्पल में स्वाभाविक आंसू नहीं थमता परंतु पावडर मिल्क थम सकता है। नकली नकली में मिल जाता है, असली घी डालडा में नहीं मिलता।

किसी दौर में चिंताओं एवं व्यग्रता अतिरेक से बचने के लिए और उनसे जन्मे नैराश्य को हराने के लिए प्री फ्रंटल लोबक्टामी सर्जरी करके दिमाग से चिंता के सेल मिटाए जाते थे परंतु इस तरह की शल्य चिकित्सा के बाद व्यक्ति मशीनवत साधारण काम कर लेता था परंतु सोचने-समझने की शक्ति क्षीण हो जाती थी और ऐसी ही एक शल्य चिकित्सा के खिलाफ अमेरिका में मुकदमा दायर किया गया कि यह शल्य चिकित्सा ईश्वर की रचना से छेड़छाड़ है और इसे कानूनी तौर पर प्रतिबंधित कर दिया गया है।

इस प्रकरण में गौरतलब यह है कि चिंता और चिंतन का कोई भीतरी सेतु है और एक के मिटने पर दूसरा अदृश्य हो जाता है जैसे एक खराब आंख की समय रहते चिकित्सा नहीं करने पर दूसरी आंख बीमार आंख की सहानुभूति में काम करना बंद कर देती है जिसे सिम्पेथेटिक ऑरथेलमिया कहते है।

शल्य चिकित्सा के नाम बड़े काव्यमय होते हैं। शायद इसीलिए वैदिक काल में वैद्य को कविराज कहकर संबोधित करते थे। मुद्दा तो है कि ईश्वर की बनावट में चिंता और चिंतन जुड़े हुए हैं। आज की राजनीति की भाषा में कहे तो सुन्न पड़ी कांग्रेस, चिंताओं से लदी कांग्रेस चिंतन नहीं कर पा रही है और हार पर नकाब डाल रही है। खुली शल्य चिकित्सा में वह असमर्थ हो गई है और सशक्त विरोध के अभाव में गणतंत्र इकतरफा और असंतुलित हो जाता है। शल्य चिकित्सा से बनाए गए डिम्पल में आंसू नहीं ठहरता और ये जाने कैसे अंजुरी भर रहे हैं, कैसे आचमन कर रहे हैं? क्या पराजय का हव्वा और विजय का दर्प एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और उस तमाशबीन जनता को क्या कहें जो चाहती है कि 'चित भी मेरी, पट्ट भी मेरी'।