शाहरुख खान के बंगले 'मन्नत' पर हंगामा / जयप्रकाश चौकसे

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शाहरुख खान के बंगले 'मन्नत' पर हंगामा
प्रकाशन तिथि :18 फरवरी 2015


शाहरुख खानका बैंड स्टैंड स्थित बंगला 'मन्नत' एक हेरीटेज बिल्डिंग थी, जो उन्होंने उस समय जितने महंगे में खरीदा था, उतनी उनकी आय नहीं थी। परंतु अपने आत्मविश्वास के कारण उन्होंने साहस जुटाया और आज उसके दाम इतने अधिक हो चुके हैं कि शायद वे भी उसे आज के दाम में खरीद पाएं। ज्ञातव्य है कि शाहरुख खान ने मुंबई में कई दिन फाकाकशी में बिताए और उनके सिर पर छत नहीं थी। उन्होंने भी गुनगुनाया हो,'आबुदाना ढूंढ़ते हैं, आशियाना ढूंढ़ते हैं।' दरअसल, अपने सपनों को सच करने मुंबई आने वाले सारे लोग इस मायानगरी में अपने घर का सपना साकार करना चाहते हैं। अनेक ऐसे सपने गंदी झोपड़पटि्टयों में सांस दर सांस घुटते रहते हैं और लगभग बीस लाख लोग सारी उम्र फुटपाथ पर गुजारते हैं। बकौल विशेषज्ञ 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती खाली स्कूल या स्कूल का अभाव है और यह दयनीय दशा धन के अभाव में नहीं है। संभवत: व्यवस्था ही नहीं चाहती कि सभी शिक्षा पाएं और पढ़-लिखकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मांगे। निज़ाम को यथास्थिति बनाए रखने के लिए धनाभाव का भ्रम रचना पड़ता है। यह ऐसा ही जैसे खाप पंचायतें प्रेम के खिलाफ इसलिए हैं कि प्रेम दिलोदिमाग को रोशन करता है जबकि अंधकार के साम्राज्य में ही खाप पंचायत या वैसी शक्तियां जीवित रहती हैं। बहरहाल, संघर्ष के दिनों में अजीज मिर्जा का बैड स्टैंड स्थित फ्लैट शाहरुख का वैकल्पिक संसार था और शायद उन्हीं दिनों उनके मन में इच्छा बलवती हुई हो कि सफल होकर इसी क्षेत्र में अपना घर बनाएंगे।

अपने'मन्नत' के बाहर उन्होंने सीमेंट का रैम्प बनवाया था, ताकि बारिश का पानी भीतर जाकर नींव को कमजोर नहीं करे और उनसे मिलने वालों की कारें खड़ी हो सकें। इस रैम्प के कारण आस-पास वालों के आने-जाने की सड़क कुछ संकरी हो गई थी। पहले की गई शिकायतों का प्रभाव नहीं हुआ, क्योंकि हमारे अधिकारी किसी भी बड़े आदमी पर हाथ डालने में संकोच करते हैं। बहरहाल, भाजपा सांसद पूनम महाजन की शिकायत पर चंद दिन पूर्व ही वह रैम्प तोड़ दिया गया। किसी भी अवैध निर्माण को तोड़े जाने का स्वागत है। श्रेष्ठि वर्ग के वर्ली में अनेक अवैध प्लैट तोड़े गए और इस प्रकरण का विवाद अभी भी अधमरे सांप की तरह रेंगता है। शाहरूख खान को 'मन्नत' लेने के बाद कई मामलों में कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी और अपने जुझारूपन के कारण वे जीते भी परंतु इस मामले में उन्होंने कोई विवाद नहीं किया और एक सच्चे नागरिक की तरह सारी तोड़-फोड़ होने दी। यहां तक यह प्रकरण स्वाभाविक न्याय का है, किंतु इस न्याय के परे एक मामला समाज के वर्तमान स्वरूप की भीतरी सतहों में छुपे कुछ राज भी खोलता है। जमीन के भीतर ये लहरें कम गति से हमेशा चलती रहती हैं परंतु कुछ हालात इन्हें सतह पर आने की इजाजत देते हैं।

अवैध निर्माण के तोड़े जाने के समय जाने कैसे वहां ढोल पीटने वाले गए, जाने किन लोगों ने मिठाइयां बांटी और वातावरण जश्न का हो गया। सारा मामला कुछ ऐसा बना दिया गया मानो कोई बड़ा अवैध निर्माण तोड़ा गया हो। मानो सुलगती सरहद पर कोई बड़ी फतह हासिल की गई है। मुंबई में तो आए दिन सड़कें तोड़ी और बनाई जाती हैं, कभी कोई भीड़ जमा नहीं होती। वातावरण ऐसा बनाया गया मानो किसी बादशाह को सिंहासन से उतारा गया हो और किसी न्यायप्रिय बादशाह की ताजपोशी की जा रही है।

क्या यह इसलिए हुआ कि मीडिया शाहरुख को बादशाह खान कहता रहा है जबकि उनकी अपनी ऐसी कोई जिद नहीं थी। अवैध निर्माण तोड़े जाने का स्वागत है परंतु क्या यह केवल किसी बड़े व्यक्ति को चोट पहुंचाना था या उनका मुसलमान होना इसका कारण था? इसी तरह दूसरा संकेत इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा क्रिकेट विजय का इतना अधिक विवरण, चटखारे लेकर चीखना किसी बड़े युद्ध में विजय की तरह था। दो पड़ोसी न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया सारा काल खेलते, हारते-जीतते हैं परंतु एक ओर ऐसा जश्न और दूसरी अोर ऐसा शोक नहीं मनाया जाता। सरहद की दोनों ओर जाने कौन-सी ताकतें आग बनाए रखती हैं जबकि अवाम झुलसता रहता है।