शाहरुख खान को बौने पात्र का अवसर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :04 मई 2016
इम्तियाज अली शाहरुख खान के साथ फिल्म बना रहे हैं और शाहरुख ने आनंद राय की फिल्म उसके बाद करने का निश्चय किया है। 'तनु वेड्स मनु' बनाने वाले आनंद राय ने शाहरुख के लिए तीन फीट के बौने का पात्र रचा है। लार्जर देन लाइफ पात्रों को अभिनीत करने वाले शाहरुख को बौने का पात्र चुनौती लग रहा है। ज्ञातव्य है कि कमल हासन एक फिल्म में बौने का पात्र अभिनीत कर चुके हैं। उपन्यासकार शंकर ने 'चौरंगी' नामक रचना में एक बौने का पात्र प्रस्तुत किया था और उसके तमाशे के एक आइटम में वह सामान्य कद वाली कैबरे डांसर की जांघों पर चढ़ जाता है, कभी उसके पैरों के बीच से निकल जाता है। कैबरे डांसर उसकी सगी बहन होती है और ये सब वह अपने बौने भाई के लालन-पालन के लिए करती है। शंकर के इस उपन्यास में पांच सितारा होटल में काम करने वालों की कथा थी। आज के भारत के रूपक के रूप में पांच सितारा होटल को देखा जा सकता है। श्रेष्ठि वर्ग मेहमान है, मध्यम वर्ग होटल की व्यवस्था संभालता है और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग साफ-सफाई के काम करता है। तुनक मिजाज मेहमान बरातियों-सा नाज-नखरा दिखाते हैं। कुछ टुच्चे बराती अपने घर के ढेर से कपड़े धुलवाते हैं।
आनंद राय के बौने की प्रेमकथा क्या होगी या नहीं होगी, यह अनुमान लगाना कठिन है। शारीरिक कमतरियों के कारण ऐसा नहीं होता कि हृदय में प्रेम न जागे, वरन यह प्रेम ही है, जो कमतरी के दंश को कम करता है। इस तरह ईश्वर की कमतरी के शिकार लोग अपने सपनों में संपूर्ण आकार में होते हैं। सपने लंगड़े, गूंगे-बहरे या टुंडे नहीं होते। कुदरत ने कोई भेदभाव नहीं रचा, वे सब इंसानी खुराफात हैं। ईश्वरीय कमतरी के पात्रों के अभिनय के लिए कलाकार का विनम्र होना आवश्यक है, लेकिन सितारे के लिए हेकड़ी मुक्त होना आसान नहीं होता। संजीव कुमार और जया बच्चन ने गुलजार की 'कोशिश' में मर्मस्पर्शी अभिनय किया था। संजीव कुमार तो 'खिलौना' में विक्षिप्त पात्र का अभिनय भी कर चुके हैं। रमेश सिप्पी की 'शोले' में संजीव कुमार ने जया के श्वसुर की भूमिका का निर्वाह किया है। जया बच्चन भी संजीव कुमार के साथ अभिनय करने वाली फिल्मों में अपना श्रेष्ठ अभिनय प्रस्तुत करती थीं, क्योंकि अभिनय में आप प्रतिक्रिया देते हैं। सामने से चुनौती न आए तो बात नहीं बनती। एच.एस. रवैल की बहुसितारा फिल्म में संजीव की भूमिका छोटी थी, परंतु साथी कलाकार दिलीप कुमार की बाहों में दम तोड़ने का अभिनय उन्होंने इतना अच्छा किया कि दिलीप कुमार ने उनके उज्जवल भविष्य का अनुमान लगा लिया था। गौरतलब यह है कि शाहरुख खान इस चुनौतीपूर्ण भूमिका की तैयारी किस तरह करेंगे। दिलीप कुमार मैथड स्कूल के कलाकार थे और शूटिंग शुरू होने के बहुत पहले ही अपने आपको भूमिका में ढालकर लंबा समय बिताते थे। खिलंदड़ राजकपूर सेट पर मौज-मस्ती करते थे और कैमरे के सामने जाते ही पात्र में बदल जाते थे। राजकपूर और दिलीप कुमार की शैली के इस अंतर को स्वयं दिलीप कुमार ने जावेद अख्तर को दिए एक लंबे साक्षात्कार में बताया था, जो इंडिया टुडे की वार्षिकी में प्रकाशित हुआ था। दिलीप कुमार ने 'गंगा जमुना' में पुलिस से भागते रहने वाले डाकू की भूमिका के एक शॉट के लिए मेहबूब स्टूडियो के आसपास के क्षेत्र में बड़ी देर तक दौड़ लगाई थी। 'कोहिनूर' के वीणा वादन के दृश्य के लिए वीणा बजाना सीखा था परंतु राजकपूर ने 'दिल ही तो है' में एक वाद्य बजाने का दृश्य बिना किसी पूर्व तैयारी के बड़ी विश्वसनीयता के साथ दिया था। वे अभिनय के आशु कवि थे।
फणीश्वरनाथ रेणु ने 'तीसरी कसम' की शूटिंग के पहले शैलेन्द्र से कहा कि यूरोपियन-सा दिखने वाला राजकपूर गंवई गांव के भुस्स हीरामन की भूमिका कैसे करेगा? शैलेन्द्र ने उन्हें शूटिंग के रश प्रिंट दिखाए, जिन्हें देखकर रेणुजी के मुंह से बरबस निकला 'उइ मां ये तो साक्षात हीरामन है।' यह गौरतलब है कि कलाकार अपने जीवन में विविध भूमिकाएं करता है, जिनकी भावना का तलछट उसके अवचेतन में परत दर परत जमा तो होता होगा और मृत्यु शैया पर इन भूमिकाओं का कोलाज उसके जहन में आता होगा। क्या मृत्यु के पश्चात यम से मुलाकात में वह अपना जन्म नाम बता पता होगा? या यम ही उसे उसका असली नाम याद दिलाते हों?