शाहरुख खान बतौर स्तंभकार / जयप्रकाश चौकसे

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शाहरुख खान बतौर स्तंभकार
प्रकाशन तिथि : 16 अक्तूबर 2013


डीएनए अखबार के निवेदन पर शाहरुख खान ने मासिक कॉलम लिखना स्वीकार किया है और 'साइंस एंड सुपरस्टीशन' पर उनका पहला लंबा लेख प्रकाशित भी हो चुका है। उनका अपना हास्य व्यंग्य का एक ढंग है और वे कहते हैं कि अभिनेताओं को अभिनय के अतिरिक्त कुछ नहीं आता तथा कुछ अभिनेताओं को तो अभिनय भी नहीं आता।

ऐसा माना जाता है कि मूलत: शाहरुख खान एक विनम्र और धर्मभीरू व्यक्ति हैं परन्तु बड़बोलापन उनका मुखौटा है जिससे वे लोगों को चौंकाते हैं। मलसन उनका यह कहना कि अब वे अभिनय के साथ अपने लेखन से भी समाज को लाभ पहुंचाएंगे! उनके लेखों से समाज हित संभव है परन्तु अभिनय के द्वारा अभी तक उन्होंने सफल फिल्में ही की हैं और कोई 'जागते रहो', 'प्यासा', या 'दो आंखें 12 हाथ' या 'गंगा जमुना' उनके खाते में दर्ज नहीं हैं! बहरहाल लेखन के उनके पहले प्रयास का विषय विज्ञान और अंधविश्वास है परन्तु उनका प्रस्ताव है कि वे राशियों पर आधारित लेख लिखेंगे जो इस तरह के प्रकाशित कॉलमों से अलग है। गोया कि राशियों के द्वारा स्वभाव अध्ययन के अंधविश्वास को वे स्वीकार भी करते हैं और उसका मखौल भी उड़ाना चाहते हैं! यही उनकी शैली है कि ऊपरी सतह पर द्वंद्व खड़ा किया जाए फिर गहराई का प्रयास करें!

इस लेख में उन्होंने लिबरा राशि को लिया है जिस राशि में जन्म लेने वालों की ताकत उनका संतुलन है और खान साहेब विज्ञान और अंधविश्वास के बीच संतुलन की बात करते हैं जो संभव नहीं है। क्योंकि विज्ञान तर्कपरक और प्रयोग पर बार-बार खरा उतरने के पश्चात सिद्धांत पर पहुंचता है। जबकि अंधविश्वास व्यक्तिगत भी होते हैं और सामूहिक भी तथा अपने हर रूप में अतार्किक होते हैं और अज्ञान से जन्मते हैं! उन्होंने अपनी दुविधा से ही लेख का अंत भी किया है और अत्यंत सुरक्षात्मक रवैया अपनाया है, क्योंकि मुस्लिम होने के कारण वे जानते हैं कि अंधविश्वास का उनका खुला विरोध हिन्दु विरोध के रूप में प्रचारित किया जा सकता है और आज के वातावरण में उनके भय को हम निर्मूल नहीं कह सकते, क्योंकि आज सच्चे धर्म का स्थान अंधविश्वास ले चुका है। बहरहाल पूरे लेख में उन्होंने अपनी निजी हास्य एवं व्यंग्य की शैली में वर्णन किया है कि उनकी रीढ़ की हड्डी की अत्यंत गंभीर शल्य क्रिया को लगभग एक साल रोका गया जिस बीच उनके हितैषियों द्वारा बताए गए टोटके आजमाए गए! अपने शरीर के अनेक भागों पर सुइयां चुभाकर उन्हें दर्द से निजात दिलाने का वर्णन अत्यंत हास्यपूर्ण ढंग से लिखा गया है और सुइयों की चुभन के बड़े दर्द के सामने उनकी गर्दन का दर्द गौण हो गया था जैसे एक रेखा को छोटा साबित करने के लिए उससे बड़ी रेखा को खींचने से होता है!

शाहरुख को सलाह दी गई कि उनका बिस्तर वास्तु के हिसाब से गलत दिशा में लगा है और इस कारण कमरे में किए गए परिवर्तन से होने वाली असुविधाओं का वर्णन पाठक को खूब हंसाता है। इसी तरह एक प्रसिद्ध ज्योतिष द्वारा उन्हें तसल्ली दी गई कि उनकी गंभीर चिकित्सा सफल होगी परन्तु रीढ़ में टाइटेनियम के चक्र की जगह उनके लिए शुभ मून स्टोन का उपयोग आवश्यक है। बहरहाल लंदन में किया गया ऑपरेशन सफल रहा और टाइटेनियम चक्र ही लगाया गया। इसके विवरण में भी शाहरुख खान ने हास्य उत्पन्न किया है।

इस लेख में शाहरुख खान ने 20 अन्य शल्य चिकित्सा का संक्षिप्त विवरण भी दिया है। तथा अपने प्रसिद्ध संवाद को भी दोहराया है कि किसी चीज को शिद्दत से चाहने पर पूरी कायनात (दुनिया) आपका साथ देती है! उनका यह कहना कि धर्म और विज्ञान का गहरा सम्बन्ध है, इस मायने में सही है कि दोनों ही सत्य की साधना कर रहे हैं परन्तु एक का तरीका तर्कसम्मत और यथार्थपरक है।

उनकी यह भी धारणा है कि एक वृहत संसार है, पांचवें डायमेंशन का जो हमारे समझ के परे है, इसलिए हम विश्वास नहीं करते। वे अंधविश्वास को सुपरनेचरल दुर्घटना मानते हैं! उन्होंने स्पट किया है कि उनका विश्वास विज्ञान में है परन्तु वे यह भी कहते हैं हर व्यक्ति अपने विश्वास एवं अंधविश्वास को चुनने के लिए स्वतंत्र है! दरअसल ज्ञान का प्रकाश अभी जितने क्षेत्र को आलोकित करता है उससे कहींअधिक क्षेत्र आज भी अंधेरे से घिरा है! शाहरुख खान जहां चूके हैं, वह यह है कि आलोकित क्षेत्र में फैले अंधविश्वास का घोर विरोध वे नहीं कर पाए और कारण वही गलत समझे जाने का है।