शाहरुख खान : विनर्स, लूजर्स के परे संसार / जयप्रकाश चौकसे

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शाहरुख खान : विनर्स, लूजर्स के परे संसार
प्रकाशन तिथि : 21 अक्टूबर 2014


शाहरुख खान की 'हैप्पी न्यू ईयर' का एक संवाद है कि दुनिया में दो किस्म के लोग होते हैं- विनर्स (जीतने वाले) और लूजर्स (हारने वाले)। उनकी पहली सफल फिल्म 'बाजीगर' का भी एक संवाद था कि 'हारी बाजी को पलट कर जीतने वाले को बाजीगर कहते है'। संभवत: यह संवाद लेखक की कमतरी थी क्योंकि इस तरह के व्यक्ति को साहसी कहते हैं और बाजीगर तो मात्र ट्रिक्स दिखाता है, आंख का भ्रम पैदा करता है। उनकी अनेक फिल्मों में इस तरह के संवाद होते हैं और संभवत: यह उनका व्यक्तिगत विश्वास भी है क्योंकि स्वयं उसका जीवन परी-कथा की तरह सफलता की कहानी है। अभिनय का कोई प्रशिक्षण नहीं और व्यक्तित्व भी एक साधारण व्यक्ति का परंतु फिल्म उद्योग में वे अत्यंत सफल और धनाढ्य व्यक्ति माने जाते हैं। सफलता के आभा मंडल ने उन्हें सुंदर भी बना दिया है। जिस युग में उनका बोल-बोला रहा है उस युग की आम फिल्मों में अच्छा अभिनय अनावश्यक भी कर दिया है। वे प्रतीक है आर्थिक उदारवाद द्वारा गढ़े गए देश के। मल्टीप्लेक्स का आगमन, कॉरपोरेट जगत का फिल्मों में पूंजी निवेश और विदेशों में बसे एशियावासियों का छद्म सिनेमा प्रेम- इन सब बातों ने उन्हें 'किंग खान' बना दिया है। अगर केवल विशुद्ध अभिनय ही मानदण्ड हो तो वे दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन और संजीव कुमार के आस-पास भी नहीं हैं। इसी तरह फिल्मी सुंदरता के मानदंड पर वे देवआनंद के निकट नहीं हैं। इस सबके बावजूद उन्होंने परिश्रम से जो विराट सफल छवि का निर्माण किया है, उसकी प्रशंसा करनी होगी। आज जब वे चंद घंटे बमुश्किल सोते हैं तब भी उनके द्वारा स्थापित स्टूडियो और अन्य व्यवसाय उनके लिए विपुल धन कमा रहे होते हैं। ये बातें साधारण नहीं हैं।

उन्हें यह जानकर शायद आश्चर्य कि अधिकतम लोग विनर्स हैं और ना ही लूजर्स हैं परंतु फिर भी खुश है। खुशी मस्तिष्क और सोच की एक दशा का नाम है जिसके जीतने हारने से कोई संबंध नहीं है। जब स्वतंत्र भारत में पहला एशियन गेम प्रस्तुत हुआ तब तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने उद् घाटन समारोह में कहा था कि 'प्ले गेम इन स्पिरिट ऑफ गेम' अर्थात खेल को खेल भावना 'विनर्स' एवं 'लूजर्स' के परे है। नेहरू एक दार्शनिक प्रधानमंत्री थे और उनका कालखंड सफलता की ग्रंथि से पीड़ित नहीं था। आज का समाज है। अपने अवचेतन में नेहरू को समाए अटल बिहारी वाजपेयी ने भी पाकिस्तान के दौरे पर जाने वाली भारतीय क्रिकेट टीम को कहा था 'कप जीतो या ना जीतो, दिल जीत कर आना'।

एक दोषपूर्ण विचार यह हो सकता है कि जो जीत नहीं पाते, वे ही इस तरह की बात करते हैं। आज के युग में विनर्स और लूजर्स के परे कुछ नहीं रहा और यही इस टेक्नोलॉजी तथा बाजार शासित युग की कमजोरी है। बहरहाल सिनेमा की तरह अन्य क्षेत्रों में भी 'बॉक्स ऑफिस' के परे एक संसार है। शतरंज मात्र राजा-रानी का खेल नहीं वरन् उसमें भी एक घर चल पाने वाले प्यादे होते हैं और प्यादों के बिना शतरंज नहीं खेली जा सकती। आप चाहें तो प्यादों को भी छोड़ दें, बिसात के बिना शतरंज नहीं खेली जा सकती। अब बिसात की क्या औकात है- ऐसा भी कोई सोचे तो क्या कर सकते हैं।

शाहरुख खान एक पढ़े-लिखे समझदार व्यक्ति हैं और संभवत: वे जानते है कि 'विनर्स' और 'लूजर्स' की बात को दोहराते रहने पर सिनेमाघर में तालियां पड़ती है। क्या कभी उन्होंने विचार किया है कि खाली सिनेमाघर क्या बोलता है। "खाली खाली कुर्सियां है, खाली खाली तम्बू है, यह घर मेरा है, तेरा है, ये चिड़िया रैन बसेरा है"। यह असफल फिल्म जोकर का गीत है जो चार दशक बाद भी गूंजता है।