शाहिद-संतोषी की जोड़ी / जयप्रकाश चौकसे

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शाहिद-संतोषी की जोड़ी
प्रकाशन तिथि : 13 सितम्बर 2013


शाहिद कपूर अभिनीत एवं राजकुमार संतोषी निर्देशित 'फटा पोस्टर निकला हीरो' प्रदर्शित होने जा रही है। शाहिद कपूर की 'मौसम' और 'तेरी मेरी कहानी' की असफलता के बाद वे फिल्म उद्योग से लगभग गायब ही हो गए। इस निर्मम उद्योग में बॉक्स ऑफिस पर असफलता व्यक्ति को अस्पृश्य बना देती है। फिल्म उद्योग में एक अदृश्य परंतु मजबूत सरहद है, जिसके एक पार थोड़े-से सफल लोग खड़े हैं और दूसरी ओर ढेर सारे असफल लोग रेंग रहे हैं। शायद इस तरह की सरहदें सभी उद्योगों और क्षेत्रों में होती हैं। फिल्म उद्योग में असफल व्यक्ति किसी तरह जी लेता है, परंतु राजनीति में तो असफल आदमी का जीवन नर्क समान हो जाता है।

बहरहाल, राजकुमार संतोषी के पास भी कोई और नहीं था तथा शाहिद का भी कोई ठौर नहीं था, अब दोनों मिलकर असफलता की सरहद लांघकर उस पार जाना चाहते हैं, जहां दोनों ही कुछ समय रह चुके हैं। संतोषी अत्यंत प्रतिभाशाली हैं और वे ही यह बता सकते हैं कि आज बड़े सितारों के साथ वे फिल्म क्यों नहीं कर पा रहे हैं। रणबीर कपूर और कैटरीना कैफ के साथ संतोषी ने मनोरंजक फिल्म 'अजब प्रेम की गजब कहानी' बनाई थी और 'फटा पोस्टर निकला हीरो' भी वे रणबीर कपूर के साथ ही बनाना चाहते थे, परंतु संभव नहीं हुआ। जाने कैसे संतोषी आज उन लोगों के साथ ही काम नहीं कर पा रहे हैं, जिनके साथ पहले सफल फिल्में बना चुके हैं। अजय देवगन, सनी देओल, रणबीर कपूर, सलमान खान और आमिर खान के साथ संतोषी फिल्में बना चुके हैं। इस उद्योग में साथ, संगत और सफलता का रसायन कुछ विचित्र ढंग से काम करता है। यहां प्रतिभा के साथ मिलनसारिता होना आवश्यक है। केवल इतना ही सच नहीं है, क्योंकि इम्तियाज अली कोई बहुत मिलनसार व्यक्ति नहीं हैं, वरन वे निहायत ही खामोश और तन्हाई पसंद करने वाले शख्स हैं, परंतु रणबीर कपूर उनके साथ बिना कहानी सुने भी काम कर सकते हैं। संभव है कि यह मामला परस्पर विश्वास का है और भावनात्मक तादात्म्य का है। आज फिल्म उद्योग में गुजरे जमाने की चमचागिरी का दौर नहीं है। आज सारा कार्यकलाप व्यावहारिक है। जैसे आम जीवन में सभी लोग एक-दूसरे के मित्र नहीं होते, परंतु कुछ लोगों से भावनात्मक तादात्म्य होता है। यह परिभाषा के परे का रिश्ता है। एक दौर में संतोषी और सनी देओल का यही रिश्ता था। आपसी रिश्ते बहुत-कुछ नीयत पर निर्भर करते हैं।

बहरहाल, कोई तीन दशक पूर्व नसीरुद्दीन शाह और शशि कपूर की बेटी संजना कपूर ने 'हीरो हीरालाल' नामक फिल्म की थी, जिसमें पोस्टर फाड़कर नायक बाहर आता है। राहुल रवैल की 'अर्जुन' में भी नायक की गाड़ी खलनायक नेता के चुनाव प्रचार के बड़े बैनर को फाड़कर बाहर निकलती है। अनेक हॉलीवुड फिल्मों में भी सिनेमा पोस्टर का नाटकीय प्रयोग किया गया है। 'शायद' फिल्म में शराब पीने के खिलाफ बनाए गीत के छायांकन में नशे में डूबा एक व्यक्ति शराबबंदी का पोस्टर ओढ़कर सो जाता है।

हॉलीवुड पोस्टरों के संकलन की एक किताब भी प्रकाशित हुई है और हमारे अनेक फिल्मकारों ने इसे खरीदा था कि कहानी चुराने के बाद आगे पोस्टर के डिजाइन की भी चोरी की जा सके। बहरहाल, शाहिद कपूर के लिए यह फिल्म निर्णायक सिद्ध होगी और सृजनशील संतोषी को हमेशा काम मिलता रहेगा, भले ही पहले काम किया आदमी साथ काम करे या न करे। संतोषी एक अच्छे लेखक भी हैं। उन्होंने हाल ही में अनिल कपूर को अनुबंधित किया है और फिल्म प्रेरित है महान नाटक 'जिसने लाहौर नहीं देखा'।