शाहीन बाग आंदोलन प्रेरित फिल्म संभावना / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 24 जनवरी 2020
व्यवस्था के तेवर, कार्यप्रणाली और विरोधियों से बदला लेने की धमकी के कारण शाहीन बाग पर चल रहे ऐतिहासिक विरोध से प्रेरित फिल्म नहीं बनाई जा सकती है। सभी जानते हैं कि फिल्म सेंसर बोर्ड इस तरह की फिल्म को प्रमाण पत्र नहीं देगा। महेश भट्ट ने अपनी पुत्री का नाम शाहीन रखा था। अब उम्रदराज महेश भट्ट 'सारांश' या 'अर्थ' नहीं बना सकते। 'बेगमजान' से उन्होंने सबक सीख लिया है। उनकी निर्माण संस्था अब 'विशेष' नहीं रही। उन पर वृहद परिवार के पालन-पोषण का उत्तरदायित्व है।
संभव है कि मीरा नायर या दीपा मेहता की तरह विदेश में बसी कोई भारतीय मूल की महिला शाहीन बाग आंदोलन से प्रेरित फिल्म बनाए। हॉलीवुड स्टूडियो में शाहीन बाग का सेट लगाया जा सकता है और स्वरा भास्कर तथा तापसी पन्नू मेहमान कलाकार की तरह अभिनय कर सकती हैं। हॉलीवुड स्टूडियो में रोम व रूस के सेट्स लगाए गए हैं।
अनेक दशक पूर्व घटी घटना है कि अमेरिका का एक विश्वविद्यालय उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को आमंत्रित करना चाहता था। शहनाई वादन सीखने के लिए छात्र उत्सुक थे। खान साहब ने प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। उनका कहना था कि वह गंगा के घाट पर बैठकर ही शहनाई वादन करते हैं। आयोजकों ने कहा कि वह गंगा घाट का सेट विश्वविद्यालय परिसर में लगा देंगे। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने कहा कि गंगा घाट का सेट तो लगाया जा सकता है परंतु गंगा को तो अमेरिका में प्रवाहित नहीं किया जा सकता। उस प्रस्ताव को स्वीकार करने पर खान साहब को लाखों डॉलर मिल सकते थे, परंतु उन्हें माया मोह नहीं था। आज खान साहब होते तो शायद उन्हें अपनी नागरिकता का प्रमाण देना पड़ता। संभवत: वे अमेरिका का प्रस्ताव स्वीकार कर लेते।
फिल्मकार सेट का अपना आकलन फिल्म के कला निर्देशक को बताता है जिसके आधार पर कला निर्देशक एक रेखा चित्र बनाता है। रेखा चित्र पसंद आने पर सेट निर्माण का काम शुरू होता है। सेट की दीवार पर रंग लगाते समय पात्रों द्वारा पहने वस्त्र के रंग को भी ध्यान में रखा जाता है। दीवार और पोशाक का रंग समान नहीं होता। सफेद रंग से दीवारें रंगने पर रिफ्लेक्शन से शूटिंग में व्यवधान पहुंचता है। के आसिफ की 'मुगल-ए-आजम' में सेट पर कांच लगे थे। कैमरा सामने वाली दीवार पर जड़े कांच में नजर आ सकता था। कैमरा मैन आरडी माथुर ने सफेद रंग की चादर पर प्रकाश का फोकस रखा और उससे बाउंस हुए प्रकाश में शूटिंग की। कालांतर में सत्यजीत रॉय ने भी इसी का अनुसरण किया। मुंशी प्रेमचंद्र की कथा से प्रेरित 'शतरंज के खिलाड़ी' के लिए सत्यजीत रॉय ने अवध के दरबार का सेट लगाया था। ज्ञातव्य है कि अवध के नवाब कथक नृत्य में प्रवीण थे। कृष्ण उत्सव मनाते हुए नवाब साहब राधा की भूमिका अभिनीत करते थे। इतिहास के इन तथ्यों से अनभिज्ञ है मौजूदा व्यवस्था। आमीर खान ने भी आशुतोष गोवारिकर निर्देशित 'लगान' में गीत रखा था 'राधा कैसे न जले'। इस नृत्य गीत में विदेशी बाला स्वयं को राधा के रूप में कल्पित करती है। धर्मवीर भारती की 'कनुप्रिया' में कृष्ण से राधा पूछती हैं- 'तुमने मुझे अपनी बाहों में बांधा परंतु अपने इतिहास से मुझे क्यों वंचित किया।' पुरातन ग्रंथ में राधा का जिक्र नहीं है। दूसरी सदी में वैष्णव संप्रदाय के उदय के साथ राधा का जिक्र पहली बार हुआ है। संजय लीला भंसाली की 'पद्मावत' में राजा के दरबार में पानी की नहर बनाई गई थी। 'फैंटम ओपेरा' नामक फिल्म में भी ऐसा ही सेट था। यह महज इत्तेफाक हो सकता है। संजय लीला भंसाली की 'सांवरिया' के सेट पर वेनिस की तरह चलाई जाती है। ऊपर वाले भाग में 'आरके' लिखा हुआ नजर आता है। यह बताना कठिन था कि यह किस देश और काल खंड की कथा है। संभवतः यह रूरीटेनिया की कथा है। साहित्य में कल्पना के देश को रूरीटेनिया कहा जाता है। कॉलरिज की कविता की प्रथम पंक्ति है- 'इन ज़ानाडू डिड कुबला खान लिव'। एक शोधकर्ता ने परिश्रम करके खोज निकाला कि सदियों पूर्व यूरोप में एक स्थान को ज़ानाडू कहा जाता था। आज तो कुबला खान पर ही विवाद हो सकता है।
शाहीन बाग आंदोलन से प्रेरित फिल्म अमेरिका, चीन या यूरोप में बनाई जा सकती है। चीन इस तरह की फिल्म में पूंजी निवेश कर सकता है। अनुराग कश्यप के मुंह में लार आ सकती है परंतु उन्हें पहले धर्मनिरपेक्षता को हृदय से स्वीकार करना होगा। उनकी फिल्म 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में काल्पनिक शहर के सारे निवासी इस्लाम अनुयाई हैं और सारे ही अपराधी हैं। फिल्म माध्यम सामूहिक अवचेतन को प्रभावित कर सकता है। फिल्म से मोह रखने वाले भारत में फिल्म द्वारा विचार प्रक्रिया प्रभावित की जाने की क्षमता है। शाहीन बाग आंदोलन पूरी तरह धर्म निरपेक्ष आंदोलन है। इस स्वत: स्फूर्त आंदोलन के पीछे आईएसआई (पाकिस्तान), केजीबी (रूस) या एफबीआई (अमेरिका) का कोई हाथ नहीं है।