शिकायत - 1 / हेमन्त शेष
मामला ही कुछ ऐसा था कि हमें शिकायत दर्ज करवानी थी- वहाँ, जहाँ रेल के फाटक पर लिखा हुआ था-
“शिकायत की किताब फाटक वाले के पास है!” वहाँ एक आदमी ने हमारी बात ध्यान से सुन कर कहा कि ‘शिकायत की किताब’ जिसके पास है, वह तो हरी और लाल, नई झंडियां लेने स्टेशन के स्टोर कीपर के यहाँ गया है क्यों कि पुरानी झंडियां फट गयीं थीं! बेहतर हो आप इंतज़ार कर लें..”.पर थोड़ी देर में उसने ये भी कहा कि “क्या पता स्टोर कीपर छुट्टी पर हो, या क्या पता स्टॉक में झंडियां हों भी या नहीं, या क्या पता फाटक वाला आदमी झंडी इश्यू करवा कर घर खाना खाने चला जाय, या दोस्त के भतीजे की शादी में सीधे मंदसौर, या क्या पता वह किस ज़रूरी काम में फँस गया हो, या ट्रेफिक जाम में, क्या पता उसे स्टेशन मास्टर साहब ने कोई दूसरा काम बात दिया हो, या क्या पता आज उसके घर उसकी लड़की को देखने लड़के वाले आ रहे हों, या क्या पता उसका बेटा पतंग लूटते वक्त छत से गिर गया हो और वह उसे अस्पताल ले जा रहा हो...पर हो आप इंतज़ार कर लें...”
हमने सोच लिया मामला कुछ भी रहा हो- अब हम न इंतज़ार करेंगे, न शिकायत दर्ज करवाएंगे.
तो बंधुओ! इस तरह हमारे पास हमारी शिकायत रही आई... और फाटक वाले के पास उसका रजिस्टर!
हम तो ये भी नहीं जानते कि क्या वही आदमी ‘फाटक वाला आदमी’ तो नहीं था? ....और ये बात किसी की शक्ल पर थोड़े लिखी होती है!