शिकायत - 2 / हेमन्त शेष
Gadya Kosh से
बिजली का क्या, यों बिजली कहीं भी, कभी भी जा सकती है, पर हमारे शहर में तो कभी भी चली जाती. ठण्ड के दिन. नहाने को पानी गरम करने लगे ही थे कि गीज़र से हरा बटन गायब! पार्टी में जाने को टाई इस्तरी करने की ज़रूरत पेश आई कि प्रेस से लाल बटन गायब! शाम कोई ज़रूरी किताब खोल कर बैठे कि अक्षर गायब. मेहमान जब-जब खाने पर आते हमेशा केंडल लाइट डिनर खा कर जाते. गर्मियों के दिन. न कूलर चल पाते न पंखे. महंगा होने की वजह से इन्वर्टर नहीं खरीदा जा सकता था. झल्ला कर उकता चुकी बेटी ने कहा- आप सरकार को बिजली की व्यवस्था सुधारने को क्यों नहीं लिखते, पापा? ?
मैंने कहा- “मैं ज़रूर लिखता, अभी इसी वक्त, पर अब सबेरे लिखूंगा, नेहा- अभी तो बिजली गयी हुई है न!”