शिक्षा का मर्म / एस. मनोज
ज्ञानू बा चापाकल पर पानी लेने के लिए गए, लेकिन उनसे चापाकल नहीं चला और वे पानी लेने के लिए किसी दूसरे की आस में वही बैठ गए. कुछ देर में दूसरे टोले का एक लड़का बंटी चापाकल पर आया और अपने लिए पानी चलाने लगा। ज्ञानू बा पानी लेना चाह रहे थे, किन्तु अपने लिए चापाकल चला देने की बात न कह, उन्होंने भूमिका बांधते हुए एक प्रश्न किया-क्या तू राम जीवन का बेटा है? तुम तो कहीं बाहर गए हुए थे?
बंटी बोला-हाँ बाबा।
ज्ञानू बा ने फिर प्रश्न किया-कहाँ गए थे?
बंटी बोला-पढ़ने के लिए काशी गया था बाबा।
ज्ञानू बा ने पूछा-वहाँ क्या-क्या पढ़े?
बंटी बोला-शास्त्री की परीक्षा देकर आया हूँ।
ज्ञानू बा ने फिर प्रश्न किया-तब तो संस्कृत वगैरह बहुत पढ़े होगे?
बंटी बोला-हाँ बाबा।
संस्कृत पढ़े होने की बात जानकर ज्ञानू बा ने फिर प्रश्न किया-इस श्लोक का अर्थ जानते हो-
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः
चत्वारि तस्य बर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम।
बंटी एक मिनट कुछ सोचता रहा, फिर श्लोक का अर्थ बोलने लगा-वृद्धों की सेवा करने व आदर-सम्मान करने वालों की आयु, विद्या, यश और बल, इन चारों में वृद्धि होती रहती है।
श्लोक का अर्थ कह बंटी बाबा का मुंह देखने लगा और जब बाबा फिर कुछ नहीं बोले तो उसे लगा कि उसने बाबा के प्रश्न का जवाब दे दिया है और अब वह पानी लेकर जा सकता है। फिर वह अपने लिए पानी चलाया और चल दिया। बाबा बंटी को जाते देखते रहे और मन ही मन गुन-धुन करने लगे की शिक्षा का मर्म कैसा हो गया है कि शिक्षार्थी केवल शब्दार्थ समझते हैं, उसके भावार्थ नहीं।