शिक्षा की सड़ांध से बीमार गणतंत्र / जयप्रकाश चौकसे

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शिक्षा की सड़ांध से बीमार गणतंत्र
प्रकाशन तिथि :18 जनवरी 2019


शिक्षा एवं परीक्षा प्रणाली के दोष पर सर्वश्रेष्ठ फिल्म राजकुमार हिरानी की आमिर खान अभिनीत 'थ्री इडियट्स' मानी जाती है। इरफान अभिनीत 'हिंदी मीडियम' भी सार्थक फिल्म थी। भालजी पेंढारकर लोकमान्य तिलक के प्रकाशन 'केसरी' के सह-संपादक पद पर काम करते हुए फिल्म से भी जुड़े और शिक्षा पर उन्होंने 'वंदेमातरम् आश्रम' नामक फिल्म बनाई थी। उसका संदेश था कि जीवन के आदर्श मूल्यों के साथ व्यावहारिक जीवन के यथार्थ को समझने की योग्यता उत्पन्न करना शिक्षा का उद्‌देश्य होना चाहिए। अमेरिका के विचारवान राजनयिक रहे सार्जेंट श्रिवर ने कहा था कि शिक्षा का उद्‌देश्य यह है कि छात्र के मन में गुणवत्ता के लिए ललक पैदा करें ताकि वह हर तरह के घटियापन का तिरस्कार करे। उनका कहना था कि गुणवत्ता की ललक से ही गणतंत्र व्यवस्था में जहर की तरह फैले हुए जातिवाद एवं संकीर्णता से मुक्ति मिलने की संभावना बढ़ सकती है। गुणवत्ता के प्रति उदासीनता ही हमें संकीर्णता की सुरंग में धकेल देती है, जिसके दूसरे सिरे पर अंधकार ही अंधकार है। एक आम गृहणी सब्जी के ठेले पर एक-एक भिंडी का निरीक्षण करती है। वह छांटकर ही सब्जियां खरीदती है। कुछ इसी तरह हमें भी छांटकर शिक्षा को स्वीकार करना चाहिए। शिक्षा संस्था की संगमरमरी इमारत या खूबसूरत टाइल्स पर मोहित नहीं होते हुए, संस्था के शिक्षकों की योग्यता एवं पाठ्यक्रम को परखना चाहिए। हमारे यहां तो शिक्षा संस्थाओं की इतनी कमी है कि प्रवेश के लिए जुगाड़ करना पड़ती है। अनावश्यक कतारों में तिल-तिल मरते हुए नागरिकों का देश बना दिया गया है।

शांतारामजी ने शिक्षा पर जितेन्द्र अभिनीत फिल्म बनाई थी 'बूंद जो बन गई मोती।' 'जागृति' नामक फिल्म भी शिक्षा से जुड़ी थी। यह कितना त्रासदायक है कि दुनिया में सबसे अधिक फिल्में बनाने वाले भारत महान में शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर एक दर्जन फिल्में भी नहीं बनाई गई हैं। अगर नायक-नायिका वृक्ष के गिर्द घूम रहे हैं तो छात्र यह भी नहीं बता पाता कि वे कितनी बार वृक्ष के गिर्द घूमे। एक सर्वे में यह तथ्य सामने आया कि कक्षा आठवीं का छात्र तीन का गुणा भी सही नहीं कर पाया। सातवीं का छात्र पाठ्यक्रम का पहला पृष्ठ भी ठीक से पढ़ नहीं पाया। इंजीनियर बिजली का फ्यूज ठीक नहीं कर पा रहा है।

वर्ष 2011 में इलाहाबाद के एक जज ने यह फैसला सुनाया था कि जो शिक्षण संस्था सरकार द्वारा दिया गया अनुदान नहीं लेती, उस संस्था को यह अधिकार है कि वह संस्था प्रवेश के समय आरक्षण को अस्वीकार करे परंतु सरकार ने अनुदान नहीं लेने वाली संस्थाओं को भी आरक्षण मानने पर मजबूर करना प्रारंभ कर दिया। कुछ लोगों का मत है कि नोटबंदी और बिना किसी तैयारी के लगाए गए जीएसटी से भी अधिक घातक है शिक्षा में आरक्षण की नीति। व्यवस्था की सारी नीतियों का लागू कर पाना उस इश्क की तरह है, जो लगाए न लगे, बनाए न बने। राजनीति ने अपनी संकीर्णता को देश की देह में रक्त की तरह प्रवाहित कर दिया है। आज दुनिया के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों की सूची में भारत के किसी भी विश्वविद्यालय को शुमार नहीं किया गया है। भारत के अनगिनत छात्र विदेशी संस्थाओं में शिक्षा लेने पहुंच गए हैं और यह सिलसिला दशकों से जारी है। वर्तमान समय में चीन के सात विश्वविद्यालय गुणवत्ता प्रदान करने वाले विश्वविद्यालयों की सूची में प्रवेश कर चुके हैं। भारत के छात्र अमेरिका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की संस्थाओं में प्रवेश ले रहे हैं। हमारे छात्रों को फ्रांस और चीन की संस्थाओं में प्रवेश लेना चाहिए। चीन की संस्थाओं में हिंदी भी सिखाई जा रही है। चीन में भारत पर विजय प्राप्त करने का सीक्रेट एजेंडा है, इसलिए वहां के छात्र हिंदी सीख रहे हैं।

इस समय किसान और छात्र वर्ग में गहरा असंतोष व्याप्त है। यह दुखद है कि भारत महान में कृषि क्षेत्र आवश्यकता से कम है और सिंचाई सुविधा वाला क्षेत्र तो और भी कम है। सरकारें कृषि क्षेत्र को बढ़ाने का काम नहीं कर पा रही है और शिक्षा क्षेत्र में भी भांति-भांति के आरक्षण लागू कर दिए गए हैं।

ज्ञातव्य है कि दूसरे विश्वयुद्ध के समय वॉशिंगटन से मियामी समुद्र तट तक 800 किलोमीटर की सड़क न्यूनतम समय में बन गई थी। सरकार ने उसे अस्सी क्षेत्रों में बांटा और अस्सी कंपनियों को सड़क बनाने का कार्य सौंपा और उनके द्वारा बनाई गई सड़क के दोनों ओर की जमीन का मालिकाना हक बतौर इमाम देने की घोषणा की। क्या हम कृषि योग्य जमीन की संरचना इसी तरह नहीं कर सकते? पूंजी निवेश और परिश्रम को खूब प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसी तरह परीक्षा प्रणाली को निरस्त करने वाली पाठशालाओं की आवश्यकता है। परीक्षा के दबाव के कारण छात्र आत्महत्या करते हैं और स्वयं का खेत नहीं होने के कारण किसान आंदोलन कर रहे हैं।