शिक्षा में घोटाले का शंखनाद / जयप्रकाश चौकसे

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शिक्षा में घोटाले का शंखनाद
प्रकाशन तिथि : 23 जनवरी 2019


शिक्षा की पृष्ठभूमि पर राजकुमार हिरानी की आमिर खान अभिनीत फिल्म 'थ्री इडियट्स' का नायक अपने पिता के मालिक के बेटे का नाम अपनाकर आईआईटी संस्थान में दाखिला लेता है, क्योंकि उसका मकसद केवल ज्ञान अर्जित करना था। उसे डिग्री का आभामंडल आकर्षित नहीं करता। हिंदुस्तान में शिक्षा की पृष्ठभूमि पर कम फिल्में बनी हैं। शांताराम की जितेंद्र अभिनीत 'बूंद जो बन गई मोती' और आईएस जौहर की लिखी 'जागृति' भी सराही गई थी। भालेराव पेंढारकर की फिल्म 'वंदेमातरम् आश्रम' का संदेश था कि व्यावहारिक जीवन में उपयोगी शिक्षा दी जानी चाहिए। गांधीजी द्वारा स्थापित एक संस्था गुजरात के सादरा नामक स्थान पर बनी है, जहां खाकसार वार्ता के लिए जा चुका है। उसी आयोजन की प्रेरणा से 'महात्मा गांधी और सिनेमा' नामक किताब लिखी थी।

आरक्षण के अतिरिक्त दस प्रतिशत कोटे की घोषणा कर दी गई है। प्रांतीय सरकारें घाटे में चल रही हैं। शिक्षण संस्थाओं में अधिक छात्र पढ़ सकें, इसलिए संस्थाओं को साधन जुटाने होंगे। इस प्रकरण में शिक्षा की जीवन उपयोगी गुणवत्ता का मामला भी जुड़ा हुआ है। अच्छे शिक्षकों का अभाव है। शिक्षकों को आदर देने की परम्परा ध्वस्त हो चुकी है।

कुछ दशक पूर्व एक आदर्शवादी शिक्षक पर निकटतम मित्र ने दबाव डालकर प्रश्न-पत्र परीक्षण में एक छात्र के अंक बढ़वाए और उस छात्र को मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल गया। कालांतर में वह एनेस्थेिसया विभाग का अध्यक्ष हो गया। एक बीमार को आवश्यकता से अधिक एनेस्थेसिया दिए जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। मरने वाला उसी शिक्षक का निकट रिश्तेदार था, जिसने मित्र के दबाव के कारण अंक बढ़ाए थे। इस तरह की घटनाएं बार-बार नहीं होतीं परंतु गलती कोई करता है और दंडित कोई और हो जाता है। लोकप्रिय लफ्फाजी है कि लम्हों की गलती का दंड सदियां झेलती हैं।

1922 में लेनिन ने 200 लेखकों और विचारकों को साइबेरिया भेज दिया था। लेनिन का दावा था कि वह एक आदर्श समाज की रचना कर रहा है और ये लेखक उसका विरोध करते हैं। वैचारिक विरोध को दंडित करना एक भारी भूल होती है। 1922 में ही जेम्स जॉयस की 'यूलिसिस' का प्रकाशन हुआ। टीएस एलियट की रचना 'वेस्टलैंड' भी उसी समय प्रकाशित हुई। गौरतलब है कि जिस कालखंड में लेनिन लेखकों को साइबेरिया भेज रहा था, उसी कालखंड में दो महान रचनाएं प्रकाशित हुईं।

शिक्षा में आरक्षण पर प्रकाश झा ने भी फिल्म बनाई थी परंतु वह फिल्म प्रभावोत्पादक नहीं बन पाई। आज प्राइवेट ट्यूशन का बाजार खूब विकसित हो चुका है। परीक्षा पास करने को एक विधा की तरह साधा गया है। इस तरह पढ़े-लिखे जाहिलों की जमात को जन्म दिया जा रहा है। अशिक्षित व्यक्ति भ्रष्टाचार नहीं कर पाता, क्योंकि फाइलों में हेरा फेरी करने के लिए शिक्षित होना आवश्यक है। दरअसल, शिक्षा के क्षेत्र का पुनरावलोकन परम आवश्यकता है। सच्चा पाठ्यक्रम रचना आसान नहीं है। हमने अपने विगत को आभामंडित किया है और इस प्रवृत्ति को खारिज करना आवश्यक है।