शिनाख्त / सुकेश साहनी
साम्प्रदायिक दंगों के बाद शहर के हालात तेजी से सामान्य हो रहे थे, पर उस दिन सुबह गोल चैराहे पर किसी युवती की नग्न सिर कटी लाश मिलने की खबर से शहर में फिर सनसनी फैल गई थी।
साइरन बजाती पुलिस की गाड़ियाँ मौके पर पहुँच गई थीं। खोजी कुत्ते घटनास्थल को सूंघते फिर रहे थे। वहाँ युवती का नग्न ' शरीर पड़ा था, सिर गायब था। पास ही पूर्व विश्व सुंदरी का मुखौटा पड़ा था। अटकलों का बाज़ार गर्म था-
"मुझे तो कोई जानी-मानी हस्ती लगती है। शिनाख्त न हो सके इसीलिए सिर गायब कर दिया गया है।"
"विश्व सुन्दरी का मुखौटा पहनाकर लड़की से बलात्कार किया गया है। हो न हो यह 'उन्हीं' सिरफिरों का काम है।"
जितने मुँह उतनी बातें।
पुलिसवालों ने भीड़ को खदेड़ दिया था, पूछताछ शुरू हो गई थी। प्रमुख समस्या लाश की शिनाख्त को लेकर थी। सिर न होने की वजह से यह काम काफी मुश्किल हो गया था। युवती के जिस्म पर का कोई स्थायी पहचान चिह्न शिनाख्त में मददगार हो सकता था।
"कुछ पता चला?" इस्पेक्टर ने महिला हैड कांस्टेबिल से पूछा।
"नहीं सर, बहुत मुश्किल से मोहल्ले की एक औरत को शिनाख्त के लिए बुलाया जा सका। लाश पर पड़े नील और दूसरे चोट के निशानों को देखते ही वह रोने लगी। हमें लगा वह बाडी को पहचान गई है। उसने माना कि लाश उसकी बेटी की है, पर बाद में पता चला उसकी बेटी को मरे दो साल हो गए हैं।"
"नॉनसेंस!" इस्पेक्टर ने झल्लाकर कहा, "किस पगली को पकड़ लाए थे!"
जिला प्रशासन के हाथ-पैर फूले हुए थे। युवती की लाश मिलने के बाद से अफवाहों का बाज़ार गर्म था। दोनों सम्प्रदायों में तनाव बढ़ता जा रहा था। लाश की शिनाख्त न हो पाने से थानेदार हत्या की इस गुत्थी को सुलझाने में खुद को असमर्थ पा रहा था। उसका दिमाग भन्नाया हुआ था। तभी उसकी नजर टी.वी स्क्रीन पर दौड़ती ब्रेकिंग न्यूज पर पड़ी-मुख्यमंत्री ने सम्प्रादायिक दंगों में मारे गए लोगों को पाँच-पाँच लाख रुपया मुआवजा देने की घोषणा की थी।
थाने के बाहर हो रहे शोर-शराबे से थानेदार का ध्यान भंग हुआ।
"सर! ताज्जुब है..." हड़बड़ाए से हैड कांस्टेबिल ने भीतर आकर थानेदार को बताया, "उस सिर कटी युवती की लाश पर अपना दावा करने वाले बहुत से लोग बाहर खड़े हैं, सर!"