शिवलिंग/सिद्धार्थ सिंह 'मुक्त'
कुछ लोग शिवलिंग का अर्थ हिन्दू देवता 'शंकर' के जननांग से लगाकर इसके औचित्य पर प्रश्न उठाते हैं| इस विषय में ये जान लेना आवश्यक है कि शिवलिंग संस्कृत से उद्धृत शब्द है अतः किसी और भाषा में इसका अर्थ नहीं ढूँढा जाना चाहिए| इसका अर्थ संस्कृत ग्रंथों से ही मिल सकता है| प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में 'ब्रह्मांड के मूल तत्व' को 'शिव' नामक शब्द से उद्घोषित किया गया है और 'लिंग' नामक शब्द का संस्कृत में मूल अर्थ 'चिन्ह/प्रतीक' होता है| महर्षि कणाद ने अपनी पुस्तक वैशेषिक-सूत्रम में लिंग शब्द का 'प्रतीक' के अर्थ में बहुलता से उपयोग किया है| इस प्रकार शिवलिंग का अर्थ हुआ- ब्रह्मांड का प्रतीक| पुराणो में शिवलिंग को कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे- प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग| अतः कई शताब्दियों पूर्व प्रयोग किये गए शब्दों का वर्तमान भाषा के अनुसार अर्थ निकालना अनुचित है| प्राचीन भारतीय दर्शन के संस्कृत ग्रन्थ ब्रह्मांड के केवल दो रूप मानते हैं- ऊर्जा और पदार्थ। इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ( जनसाधारण में शिवलिंग के निचले भाग को पार्वती की योनी माना जाता है परन्तु वास्तव में वो उर्जा का प्रतीक है) ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है | ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा को शिवलिंग से प्रदर्शित किया गया है| कुछ विद्वान् शिवलिंग को हमारे ब्रह्मांड की आकृति भी मानते हैं| पुराणो में कहा गया है की प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है| प्राचीन भारतीय लेखकों और कलाकारों ने इस सबको मूर्त रूप से प्रदर्शित करने का प्रयास किया जो शिवलिंग के रूप में सामने आया|