शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर 'द फिल्म हेरिटेज मैन' / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 30 अक्तूबर 2019
जीवन की मंथर बहती नदी में उत्सव की बाढ़ के गुजर जाने के बाद किनारों पर कचरा पड़ा मिलता है, जिसकी सफाई करते समय हम उत्सव की जुगाली करते हैं। जुगाली करते समय गुजिया के स्वाद के साथ-साथ कभी-कभी कुछ कंकर मुंह में आ जाते हैं। कोई ऐसा टूथपेस्ट या ब्रश नहीं जो पूरी तरह से सफाई कर सके। हमारे अवचेतन के तलघर में कुछ कूड़ा बचा ही रह जाता है। उत्सव के समय नई फिल्म का प्रदर्शन भी होता है। 'सांड की आंख' बॉक्स ऑफिस पर जमी हुई है।
कुछ फिल्मी पटाखे फुस्स भी हो जाते हैं। सिनेमाघर के अंधकार में परदे पर उजास होती है, शायद इसलिए इसे सिल्वर स्क्रीन कहा जाता है। फिल्म विरोसत को संजोए रखने का काम शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर कई वर्षों से कर रहे हैं। उनकी कोलकाता यात्रा में उन्हें कैमरामैन राजीव करमाकर का एक सहायक बीमार, बेरोजगार मिला और उन्होंने उसकी सहायता की।
यह भी फिल्म विरासत को बचाए रखने का ही हिस्सा है। उन्होंने देश-विदेश से कुछ पटकथाएं भी खरीदी हैं, जिन पर फिल्म नहीं बनाई जा सकी। केदार शर्मा की डायरी भी उन्होंने एक रद्दी वाले के यहां से प्राप्त की है। मुंबई तारदेव स्थित उनका फिल्म संग्रहालय भी पर्यटक को आकर्षित कर सकता है। मुंबई निगम को उसे पर्यटन स्थल घोषित करके उसे प्रसारित भी करना चाहिए। हमने अपने किले, ऐतिहासिक महत्व की इमारतें और महत्वपूर्ण दस्तावेज तथा प्रकाशित रचनाओं की पांडुलिपियां खो दी हैं। अत: फिल्म विरासत को बचाए रखना कठिन कार्य है। राज कपूर के पुत्रों ने एक केंद्रीय मंत्री के आग्रह पर फिल्मों के नेगेटिव और साउंडट्रैक पुणे फिल्म संस्थान को दे दिए हैं परंतु उन्होंने संस्थान जाकर कभी यह नहीं देखा कि उनका हाल क्या है। कहीं धूल तो नहीं खा रहे हैं। जब राज कपूर का स्टूडियो बेचा गया तब वहां स्थापित शिव प्रतिमा को शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर उनकी आज्ञा से अपने संग्रहालय ले गए। यह कितना दुखद है कि गुरुदत्त की 'साहब बीवी और गुलाम' की रील नंबर 13 उपलब्ध नहीं है। फिल्म में टूटती जर्जर होती सामंतवादी कोठी का मलबा हटाने का दृश्य है। खुदाई में एक गड़ा हुआ नर कंकाल मिलता है, जिसके एक गहने से ज्ञात होता है कि यह छोटी बहू का कंकाल है, जिसकी हत्या कर दी गई थी। उस कंकाल में शराब की गंध भी इस तथ्य की पुष्टि करती है। इसी तरह विमल रॉय की मधुमति के ध्वनि पट्ट का कुछ भाग गायब है। यह संभव है कि वह एक मुजरे की पंक्तियां हों- 'तुम्हारा दिल हमारे दिल के बराबर हो नहीं सकता, वह शीशा हो नहीं हो सकता, मैं पत्थर हो नहीं सकता। हम हाले दिल सुनाएंगे सुनिए कि न सुनिए....' बस कुछ इसी तरह शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर भी अपना आहत हाल सुनाते हैं। कोई सुने या न सुने। शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर अब स्वयं एक विरासत होते जा रहे हैं, जिसे बचाने वाला दूर-दूर तक नज़र नहीं आता। ज्ञातव्य है कि पुणे फिल्म संस्थान के स्वर्ण काल में शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर भी वहां अध्ययन कर रहे थे। उन्होंने संस्थान के क्यूरेटर नायर पर वृत्तचित्र बनाया है 'द सेल्यूलाइड मैन' जिसे अंतरराष्ट्रीय समारोह में पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
खुद उन पर भी वृत्तचित्र बनाया जा सकता है। 'द हेरिटेज मैन' शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने हैदराबाद के अन्नपूर्णा स्टूडियो में दिसंबर 8 से 15 तक एक कार्यशाला का आयोजन किया है। सुखद आश्चर्य की बात है कि अफगानिस्तान में तालिबानी ताकतों ने फिल्मों को जलाया था परंतु कुछ साहसी लोगों ने अपनी जान जोखिम में डालकर कुछ फिल्मों की रक्षा की थी। अफगानिस्तान और तिब्बत से प्रतिनिधि हैदराबाद में आयोजित वर्कशॉप में हिस्सा लेने आ रहे हैं। सितारे नागार्जुन और चिरंजीवी इस कार्यक्रम से जुड़े हैं। ज्ञातव्य है कि हैदराबाद में बनी फिल्म 'देवदासम' का कुछ हिस्सा काल कवलित हो चुका है। यह फिल्म शरत बाबू के बंगला उपन्यास 'देवदास' से प्रेरित फिल्म थी। बेचारे शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर का हाल ए दिल शैलेंद्र रचित मधुमति के गीत से जाना जा सकता है। 'लौट आई सदा मेरी टकराकर सितारों से, उजुड़ी हुई दुनिया के सुनसान किनारों से...' बेरोजगारी के दौर में फिल्म विरासत बचाने के क्षेत्र में लोगों को रोजगार मिल सकता है।