शिवेन्द्रसिंह डूंगरपुर का सम्मान समारोह / जयप्रकाश चौकसे

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शिवेन्द्रसिंह डूंगरपुर का सम्मान समारोह
प्रकाशन तिथि : 14 जुलाई 2018


आज अमेरिका का फिल्म निर्माता संघ एवं ऑस्कर चयन कमेटी के सदस्यों द्वारा आयोजित समारोह में फिल्म संस्कृति के संरक्षक एवं वृत चित्र निर्माता शिवेन्द्रसिंह डूंगरपुर को सम्मानित किया जा रहा है तथा उनके वृत चित्र 'द सेल्युलाइड मैन' का प्रदर्शन भी किया जाएगा। ज्ञातव्य है कि पूना फिल्म संस्थान में आर्काइव्ज़ की जिम्मेदारी पी.के. नायर ने संभाल रखी थी और वे छात्रों का मार्गदर्शन करते थे कि उन्हें कौन सी फिल्म देखनी चाहिए। कभी-कभी मध्य रात्रि के समय कोई छात्र उनसे मिलता तो वे उसी समय छात्र की मनचाही फिल्म उसे दिखाते थे। शिवेन्द्रसिंह डूंगरपुर की लघु फिल्म 'द सेल्युलाइड मैन' नायर को दी गई श्रद्धांजलि है। पूना फिल्म संस्थान के स्वर्ण दिनों में रित्विक घटक जैसे महान फिल्मकार शिक्षा दिया करते थे। कुछ समय पूर्व महाभारत सीरियल में युधिष्ठिर की भूमिका अभिनीत करने वाले व्यक्ति को संस्थान का शिखर पद दिया गया था और छात्रों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किया था परन्तु तत्कालीन सरकार पर इन चीजों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। संस्था अभी भी सक्रिय है परन्तु उसकी गुणवत्ता और सार्थकता समाप्त हो गई है। पढ़ाई की नौटंकी जारी है।

शिवेन्द्रसिंह डूंगरपुर के संग्रहालय में अनूठी चीजें संग्रहित हैं। मसलन मिशेल कैमरा जिसका निर्माण अब बंद हो गया है और संभवत: संसार में वही एक ही मिशेल कैमरा रह गया है। शिवेन्द्रसिंह ने देश विदेश में दौरे करके चीजें खरीदी हैं। उन्होंने सारे कार्य बिना सरकारी अनुदान पाए केवल अपने दम पर किए हैं। ज्ञातव्य है कि महान सत्यजीत रे ने कलकत्ता के एक कबाड़ी से चेतन आनंद की 'नीचा नगर' की कुछ रीलें खरीदी थीं। ज्ञातव्य है कि विगत वर्ष महान फिल्मकार क्रिस्टोफर नोलन मुंबई आए थे और उन्होंने शिवेन्द्रसिंह का संग्रहालय देखकर उनके प्रयास की सराहना की थी। उस अवसर पर नोलन ने फिल्म संरक्षण के महत्व और तरीके पर भाषण भी दिया था। एक दौर में विश्व संगठन ने चार फिल्मकारों से लघु फिल्में बनवाई थीं और सत्यजीत रे की फिल्म का एकमात्र प्रिंट आज भी अमेरिका में सुरक्षित है। इस लघु फिल्म में संदेश दिया गया था कि केवल महंगे कपड़े और खिलौने लाकर देने से माता पिता का दायित्व समाप्त नहीं होता। उन्हें बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए। आजकल स्टीवन स्पिलबर्ग जैसे फिल्मकार भी डिजिटल का त्याग करके सेल्युलाइड पर फिल्में रच रहे हैं। विशेषज्ञ का कथन है कि डिजिटल पर बनी फिल्म कालांतर में अदृश्य हो सकती है परन्तु सेल्युलाइड पर शूट की गई फिल्म लंबे समय तक सुरक्षित रखी जा सकती है। उसकी नियमित देखरेख उसे अमर कर सकती है। पश्चिम में अपने हेरिटेज के प्रति लोग सजग हैं। हम इस में उदासीन हो रहे हैं जिस कारण हमने अपने ग्रन्थ, इमारतें और ऐतिहासिक महत्व के किलों को नष्ट होने दिया। मूक फिल्मों के दौर में बनाई गई सारी 91 फिल्में नष्ट हो चुकी हैं।

कुछ व्यावहारिकता के हामी लोग यह प्रश्न कर सकते हैं कि फिल्मों के संरक्षण का क्या लाभ है। परन्तु ये ही लोग धार्मिक आख्यानों की नारेबाजी करते हैं। अपनी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति लापरवाह होने से हम एक भयावह भविष्य का निर्माण कर रहे हैं। भगवान दादा नामक कलाकार जिसने 'अल्बेला' जैसी यादगार फिल्म बनाई, की नृत्य शैली का प्रभाव राज कपूर और अमिताभ बच्चन पर भी रहा है। भगवान दादा के पास किसी विश्वविद्यालय की कोई डिग्री नहीं थी, अपनी सफलता के दिनों में उन्होंने पैसे को पानी की तरह बहाया। यह कितना दुखद है कि उन्हीं भगवान दादा को अपनी उम्र का आखरी भाग झोपड़ पट्टी में रहकर गुजारना पड़ा। मीना कुमारी के शव को अस्पताल में रोका गया था क्योंकि उनके इलाज के खर्च का भुगतान नहीं हुआ था। इतना ही नहीं, भारत में कथा फिल्म के जनक दादा फाल्के के अंतिम वर्ष आर्थिक अभाव में बीते।

हमारे फिल्मकार भी इस विषय में उदासीन रहे हैं। अनेक फिल्मों में गीतों को शूट किया गया परन्तु अंतिम संपादन के समय उन्हें हटाया गया क्योंकि वे फिल्म के समग्र प्रवाह में बाधा बन रहे थे। इन हटाए गए अंशों को भी सहेज कर नहीं रखा गया। आज इन्हें देखकर फिल्मकार के अवचेतन को समझने में हमें सहायता मिलती। विगत वर्ष ही राज कपूर की फिल्मों के निगेटिव पूना फिल्म संस्थान भेजे गए हैं परन्तु क्या उस परिवार के किसी सदस्य ने संस्थान जाकर यह देखने का प्रयास किया कि उन्हें वातानुकूलित कक्ष में सहेज कर रखा गया है या सरकारी दफ्तरों में धूल खाती फाइलों की तरह वे पड़ी हैं? बहरहाल हॉलीवुड में आयोजित समारोह में शिवेन्द्रसिंह डूंगरपुर मुख्य वक्ता के रूप में भाषण देंगे। क्या भारतीय दूतावास का कोई अधिकारी जलसे में शरीक होगा? वे तो डोनाल्ड ट्रम्प 15 अगस्त को दिल्ली जाएं, इसी जोड़-तोड़ में लगे होंगे। मौजूदा राजनीति किसी भी धरोहर के प्रति सजग और संवेदनशील नहीं है।