शिव साई / अशोक भाटिया
आज लम्बे समय के बाद पुजारी का तिलक चमक उठा है...
पांच बरस से इस मंदिर की प्रबंध-समिति जद्दोजहद करती आ रही थी। तब इस इलाके का एकमात्र धर्मस्थल यही शिव मंदिर होता था। मंदिर-समिति के प्रधान धर्मपाल शर्मा नियमों के बड़े पक्के थे, वो चाहे मंदिर के हों या स्वयं के। प्रातः काल जब तक स्नान-ध्यान न कर लें, त्रिपुंडधारी धरमपाल के लिए जल ग्रहण करना भी पाप था। लेकिन पांच बरस पहले निकट के चौक पर सांई बाबा का मंदिर क्या बना, शिव मंदिर में लोगों की आमद कम होती गई। लोग कम तो चढ़ावा कम। इलाके की आबादी बढ़ रही हो लेकिन भक्तों का आना कम होता जाए तो चिंता होनी लाज़मी थी। चिंता का रहस्य यह था कि सांई-मंदिर में सांई-मूर्ति के साथ हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र भी लगे हुए थे। शिवजी ही नहीं, राधा-कृष्ण, सीता-राम और हनुमान भी वहाँ विराजे हुए थे। तो हिन्दुओं का उधर खिंचना स्वाभाविक ही था। और फिर बृहस्पतिवार को तो वहाँ मेला-सा लगा रहता। गांवों से भी स्त्री-पुरुष वहाँ धोक मारने आते ही रहते थे। हालाँकि कुछ ऐसे भी भक्त थे जो सांई मंदिर के बाद इधर भी आते थे। पर उनका चढ़ावा भी दोनों तरफ बंट जाता था। तो चिंताएँ कई थीं।
प्रबंध समिति ने सब पक्षों पर विचार के बाद मंदिर को भव्य बनाने का निर्णय लिया। संगमरमर का फर्श, बाहर तोरणद्वार की तरह भव्य गेट, भीतर घुसते ही बायीं तरफ एक बहुत ऊंचा पहाड़, जिस पर शिवजी की विशाल प्रतिमा, ताकि बाहर से आते-जाते लोग उसे देखकर आकर्षित हों। सब हुआ, पर कुछ अधिक दान-लाभ न हुआ। सांई-मंदिर में अब भी वैसी ही भीड़ जुटती। वहाँ की समिति के हर सदस्य ने इन पांच वर्षों में सांई मंदिर की आमदनी से ही कम-से-कम एक-एक शानदार गाड़ी जुटा ली थी। यानी सब मटियामेट होता जा रहा था।
मंदिर-समिति की आपात बैठक हुई। बैठक में हाहाकार मची रही। ...हिन्दू सांई मंदिर में जा रहे हैं। घोर अनर्थ। ...हिंदुत्व का क्या होगा! ...इन्होने तो मुख्य देवी-देवता भी बिठा लिए। ...पर हम किसीको रोक तो नहीं सकते। ...हिन्दुओं को इसमें रेवड़ की भांति मुंह उठाकर नहीं जाना चाहिए। ...कैसे रोकें इस रेवड़ को? खुलकर बोलो। ...हम ही क्यों न सांई बाबा की मूर्ति स्थापित कर डालें। ...यह हिन्दू धर्म के खिलाफ अनर्थ होगा। ...पर चढ़ावा नहीं आएगा तो धर्म का क्या करें! ...ठीक बात ...इससे चढ़ावे की धार मोटी हो जाएगी।
...तो आज बृहस्पतिवार की सुबह भक्तों की भारी भीड़ के बीच सांई बाबा की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा कर दी गई है। बरसों बाद दान-पात्र ने भरपूर डकार ली है। यह बड़ा दान-पात्र सांई-मूर्ति के लिए विशेष रूप से बनवाया गया है।
भीड़ छंट गई है। सांई-मूर्ति के आगे रुपयों का पहाड़ देख पुजारी का तिलक चमक उठा है। प्रधान धरमपाल अपने ढीले पेट पर परम संतुष्टि का हाथ फेरकर मूर्ति के आगे साष्टांग दंडवत हो गए हैं।
-0-