शिष्टाचार / गोवर्धन यादव
एक राजा था, वह बडा ही नेक, न्यायप्रिय, तथा प्रजापालक था, अपनी प्रजा कि भलाई के लिये वह नयी-नयी योजनायें बनाता रहता था, बडे अपराधों के लिये वह तत्काल तथा उचित सजा देता था, इतना सब कुछ होने के बावजूद उसे चिन्ता खाये जा रही थी, वह यह कि आय के समस्त स्त्रोतों के बावजूद राजकीय घाटा बढता ही जा रहा था,
उसने अपने प्रधानमंत्री को अपनी चिन्ता से अवगत कराते हुये तत्काल प्रभाव से कोई ठोस उपाय खोजने तथा अमल में लाने को कहा,
प्रधानमंत्री ने एक बडे अधिकारी की नियुक्ति कर सभी कर्मचारियों पर कडी नज़र रखने का आदेश दिया, इतना होने के बाद भी भ्रष्टाचार के मामलों में कमी नहीं आयी, उसने एक और बडे शक्तिसंपन्न अधिकारी को नियुक्त किया, फिर भी स्थिति जस की तस थी, इस तरह वह अन्य अधिकारियों की नियुक्ति करता रहा, लेकिन बात नहीं बनी,
राजा ने प्रधानमंत्री को तलब किया और कारण जानना चाहा, तो उसने जबाब दिया;-महाराज-भ्रष्टाचार अब इस समय का शिष्टाचार बन गया है, अतः व्यर्थ की चिन्ता करना बंद कर दें, जो कुछ हो रहा है, ठीक ही हो रहा है।