शिष्टाचार / महेश कुमार केशरी

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लखविंदर प्लेटफाॅर्म पर से बड़ी जल्दी बाजी में निकलने की फिराक में था l वह तेज - तेज कदमों से सींढ़िया उतरने लगा l प्लेटफाॅर्म की आखिरी दो सीढ़ियों से वह कुछ जल्दी में उतर जाना चाहता था l उसकी टैक्सी स्टेशन के बाहर खड़ी थी l पता नहीं ड्राईवर रूके - रूके ना- रूके l आजकल सबको जल्दी है l बेतरतीबी में अचानक से वह दो सीढ़ियाँ एक साथ उतर गया था l तभी वह गिरते - गिरते बचा था l प्लेट फाॅर्म की आखिरी सींढ़ी पर कोई युवक सोया हुआ था l

वो अचानक से उस पर बरस पड़ा -"तुमलोगों को सोने के लिए और कोई जगह नहीं मिलती है क्या l ये स्टेशन तुम्हारे बाप का है क्या ? आख़िर सीढ़ियों के पास कौन सोता है ? तुम लोग शुरू से ही जाहिल और गँवार क़िस्म के लोग रहे हो l इडियट नाॅन सेंस l जँगली , गँवार l तुम्हें पता नहीं है कि मेरी टैक्सी बाहर खड़ी है l और मैं तुम्हारी वजह से अभी गिरते गिरते बचा हूँ l"

युवक अब उठकर बैठ गया था l मैले कुचैले कपड़ों में वह कोई मज़दूर मालूम पड़ता था l सिरहाने रखे कँबल को तह करके वह एक ओर रखते हुए बोला -"बाबूजी दिन भर रिक्शा खींचता हूँ l प्लेट फाॅर्म के किनारे इसलिये नहीं सोता l कि लोग बाग़ दिन भर ट्रॉली बैग टाँगकर इस प्लेटफाॅर्म से उस प्लेटफाॅर्म पर भागते रहतें हैं l और वहाँ आपा-धापी मची रहती है l खैर ; हम गरीबों को नींद भी कहाँ आ पाती है l एक ट्रेन जाती नहीं कि दूसरी ट्रेन आ जाती है l वैसे कायदे से जब हम किसी से टकराते हैं l या किसी को ग़लती से हमारा पैर लग जाता है l तो हम सामने वाले को छूकर प्रणाम करतें हैं l इसको शायद मैनर्स कहा जाता है l हिन्दी में शिष्टाचार l लेकिन आपा-धापी मे़ हम शिष्टाचार भूलनें लगें हैं l"

युवक थोड़ा रूका l फिर , बोला - " साॅरी सर l मैं आपके रास्ते में आकर प्लेट फाॅर्म पर सो गया था l बाबूजी एक बात बोलूँ l आदमी को खाना कम बेसी मिले l चल जाता है l लेकिन, नींद पूरी मिलनी चाहिए l लेकिन , देखिये हमारी ज़िन्दगी में नींद भी ठीक से नहीं मिल पाती है l सब , अपना अपना नसीब है , बाबूजी l क्या कीजियेगा l

बाबूजी आपको कहीं लगी तो नहीं ना l पैर में कुछ मोच - वोच तो नहीं आ गई l लाईये , आपके टखने दबा देता हूँ l "

लड़का लखविंदर के पैर पकड़कर दबाने लगा l

सचमुच दो सीढ़ियों से एक साथ उतरने से उसकी ऐंड़ी में मोच आ गई थी l

"नहीं ठीक है , रहने दो l"

लखविंदर जल्दी में था l उसकी टैक्सी छूटने वाली थी l

टैक्सी में बैठा तो उसे उस युवक की बातें याद आने लगी l आदमी आख़िर है क्या ? वक़्त के हाथों की कठपुतली l बातचीत के लिहाज़ से वह लड़का बिहारी लग रहा था l यहाँ चड़ीगढ़ में वह रिक्शा खींचता होगा l उसने कयास लगाया l स्टेशन के बाहर ही तो जहाँ वह सोया हुआ था l उससे थोड़ी दूरी पर एक रिक्शा खड़ा था l वह याद करने लगा अपने पुराने दिन l वह भी तो चँड़ीगढ़ छोड़कर मद्रास चला गया था l अपने काम के सिलसिले में l वहीं स्टेशन के बाहर बस डिपो के पास उसकी भी तो कई रातें ऐसे ही तो बीतीं थीं l उसके पास तो उन दिनों खाने तक के पैसे नहीं होते थें l कई दिनों तक तो कई बस कँडक्टरों और ड्राॅइवरों ने उसे खाना खिलाया था l तब उन लोगोंं ने तो ऐसा व्यहवार उसके साथ नहीं किया था l उसने उस रिक्शेवाले को कितना सुनाया l आख़िर कौन परदेश में परदेशी नहीं है l अपनी जगह कोई जानबूझकर तो नहीं छोड़ता है l सब पेट के चलते ही तो देश-निकाला हो जाते हैं l ना जाने किसकी तक़दीर में कहाँ का दाना-पानी लिखा है l नहीं तो किसको अपना मुल्क

छोड़ने का जी करता है l सही तो कहा है किसी ने l ये पेट जो ना होता तो भेंट नहीं होता l आज सब जल्दी बाजी में है l एक दूसरे को कुचलकर आगे बढ़ने की फिराक में l सबको जल्दी है l भले ही वह दूसरों का हक़ छीन ले !

किसके पास मैनर्स की कमी है l कौन , इडियट, नाॅनसेंस ,कौन जँगली या गँवार है l बँद एसी. कार में भी लखविंदर को पसीना आने लगा l उसने खिड़की खोल दी l

ड्राईवर ने कार धीमी कर दी l

फिर मिरर से देखते हुए लखविंदर से बोला -"सर , आर यू ओके ?"

"सर , कार का शीशा बँद कर दीजिये l ए. सी. काम नहीं करेगा l"

"सर आर यू आॅलराइट ?"

"सुनो , कार को वापस स्टेशन की तरफ़ मोड़ लो l"

"सर , क्यों ?"

"बस , ऐसे ही l"

"सर , आपका घर अब बमुश्किल से आधा किलो मीटर ही आना शेष है l बहुत रात हो गई है , सर l मेरे बच्चे मेरा घर पर इंतज़ार कर रहें होंगे l"

"नहीं तुम स्टेशन तक फिर से वापस चलो l एक ज़रूरी सामान ,शायद अपना बैग मैं छह नंबर प्लेट फाॅर्म पर ही भूल गया हूँ l"

लखविंदर झूठ बोल गया l

"ओह ! , लेकिन वह मिलेगी नहीं l आप बेकार ही जा रहें हैं l स्टेशन पर छूटी हुई चीजें चोरी हो जातीं हैं l कभी नहीं मिलतीं l"

"कोई बात नहीं l फिर भी चलो l"

"ससुरा , ई सरदरवा सचमुच में पागल लगता है l गाड़ी लेकर नहीं पहुँचा था l तो फ़ोन पर फ़ोन कर रहा था l जल्दी आने को कह रहा था l जल्दी पहुँच गया तो ये हाल है कि फिर स्टेशन पहुँचाने को कह रहा है l"

"भाड़ा , डबल लगेगा l बोलो मँजूर है l"

"हूँ l"

रास्ते भर लखविंदर यही सोचता रहा कि किसी तरह वह लड़का उसे उसी जगह फिर से वापिस मिल जाये l

कार रात होने की वजह से और सड़क खाली होने की वजह से भी हवा से बातें कर रही थी l आधे पौन घँटे के बाद लखविंदर फिर से चँडीगढ़ के उसी स्टेशन पर था l लखविंदर की बैचैनी बहुत बढ़ गई थी l उसे पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा था l कि वह युवक जिसे उसने अपनी ग़लती की वजह से बहुत बुरा-भला कहा था l वह उस प्लेटफाॅर्म पर नहीं मिलेगा l रात के ग्यारह बज रहें थें l वह छह नंबर प्लेटफाॅर्म पर था l लेकिन सचमुच में लखविंदर ने जैसा सोचा था l ठीक वैसा ही हुआ l लड़का उस छह नंबर प्लेट फाॅर्म पर नहीं था l लेकिन लखविंदर भी बहुत ही आत्मविश्वासी आदमी था l वह बारी - बारी से एक ...दो ... तीन... चार ...पाँच ... छह ... सात सभी प्लेट फाॅर्म को इँच - इँच चेक कर आया था l लेकिन लड़का नदारद था l लखविंदर का दिल बैठ गया l

वो , वापस स्टेशन से बाहर निकलने को हुआ l तभी रास्ते में एक उसी शक्लो सूरत का एक शख्श उससे जा टकराया l

ये वही लड़का था l जो छह नंबर प्लेटफार्म के नीचे सबसे आख़िर वाली सींढ़ी पर सोया था l

लखविंदर को संकोच हुआ l पता नहीं ये शख्श वही है या कोई और है l इन कुलियों और रिक्शों वाले के शक्ल भी तो एक जैसे दिखते हैं l

अपनी झिझक को परे धकेलते हुए , लखविंदर बोला -"भाई तुम वही रिक्शेवाले हो ना जिसको कि मेरे टखने से चोट लगी थी l"

"हूँ , जी नहीं l मैं तो अभी - अभी आया हूँ l"

युवक साफ़ - साफ़ झूठ बोल गया l दर असल वह रिक्शेवाला लखविंदर की परीक्षा ले रहा था l

"ओह ! माफ़ करना भाई l आपकी तरह का ही एक नौजवान रिक्शेवाला था l जिसे पता नहीं मैं घँटे भर पहले बहुत भला बुरा कह आया था l बहुत अफ़सोस है, यार मुझे इस बात का l एक तो मैं उसके ऊपर चढ़ा l और उसको ही बहुत भला बुरा भी कह दिया l बेचारे उस लड़के की कोई ग़लती नहीं थी l मैं ही शिष्टाचार भूल गया था l आप भी तो रिक्शा चलाते हैं, ना l क्या आप जानते हैं उसे? जो छह नंबर प्लेटफाॅर्म पर सोता है l"

"कौन भीखू l जो छह नंबर पर रोज़ रात को सोता है , वही ना l l हाँ , मैं उसे जानता हूँ l"

"आपका कुछ चुराया है उसने क्या ?" भीखू बोला l

"अरे , नहीं भाई l वह तो बड़ा सज्जन आदमी है l अकडू तो मैं हूँ l पता नहीं गुस्से में उसको क्या- क्या कह गया l"

"ठीक है , मिलेगा तो उसको कुछ कहना है क्या ? उसका नाम भीखू है l"

"हाँ , वही , लड़का l भीखू l"

"भाई , इस पत्र में मैंने अपना सब हाल लिख दिया है l भीखू मिले तो उसको दे देना l"

लखविंदर के दिमाग़ में इस बात का इलहाम पहले से था l उसने कार में ही अपने आॅफिस के पैड पर एक ख़त उस युवक के नाम लिख दिया था l

" प्रिय भाई ...

पता नहीं ये कैसा संयोग है कि एक अनपढ़ आदमी ने मुझ जैसे पढ़े- लिखे आदमी का घमँड चकनाचूर कर दिया है l आप जहाँ सोये थें l वैसी जगह पर मैंने भी अपनी ग़रीबी भरे दिन ऐसे ही बिताये थें l बहुत फाँकाकशी और गुरबत के दिन मैंने भी देखे हैं l मेरे घर में भी कई - कई दिनों तक चूल्हा नहीं जला था l मैं भी फाँका कशी का शिकार एक लँबे वक़्त तक रहा l लेकिन मैं अपने पुराने दिन भूल गया l आज जब मैं आपके ऊपर गिरा तो कायदे से मुझे आपसे माफ़ी माँगनी चाहिए थी l लेकिन, ये पुनीत कार्य भी आप ही कर गये l आपके कहे अलफाज़ आज अभी मेरे दिल में काँच के किरचों की तरह चुभ रहे हैं l मैं , पानी में डूब मरने लायक भी नहीं हूँ l खैर , आज मैं अपनी ही नजरों में जितना जलील हुआ हूँ l कि आपको बता नहीं सकता l हालाँकि माफ़ी माँग लेने भर से मेरा काम ख़त्म नहीं हो जाता l फिर , भी मैं अपने व्यवहार पर बहुत लज्जित हूँ l

फिर भी मुझे अपना बड़ा भाई समझकर माफ़ कर देना l मैं अभी चँड़ीगढ़ में ही हूँ l अगर आपको ये ख़त मिलता है l तो इसमें मैं अपना पूरा नाम , पता , मोबाइल नंबर लिख दे रहा हूँ l आपको कभी भी किसी सहायता की ज़रूरत हो तो नि: संकोच होकर इस पते पर या अमुक दिये गये मोबाइल नंबर पर संपर्क करें l मैं , वैसे तो मद्रास में काम करता हूँ l लेकिन, मेरे घर पर मेरे अलावे मेरे माता -पिता , दो बड़े भाई , मेरी पत्नी और बच्चे सभी लोग रहते हैं l आपको कभी काम हो l या किसी चीज की ज़रूरत हो l तो नि: संदेह ही आकर मिलियेगा l या दिये गये मोबाइल नंबर पर संपर्क कीजियेगा l

आपक भाई

लखविंदर सिंह

पत्ता -56/ 81 , गुरूतेबहादुर गली

मकान नंबर -871

मोबाइल -887733... "

भीखू ने पत्र अपने हाथ में रख लिया l फिर बोला - "अगर वह लड़का ना मिला तो ?"

"भाई , उसके पते पर डाक में डाल देना l वरना मैं अपने आपको कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगा l या ऐसा करो उसका पता भी इस छोटी डायरी में लिख दो l"

लखविंदर ने जेब से एक छोटी डायरी निकालकर दी l और भीखू से कहा -"इसमें उसका पता लिख दो भाई l"

भीखू ने डायरी हाथ में लेते हुए कहा l पता तो मैं आपको लिख कर दे दे रहा हूँ l लेकिन जो आपको डायरी में पता लिखकर दे रहा हूँ l उसे आप घर जाकर ही पढ़ना l ठीक है l "

लखविंदर ने "हाँ" में सिर हिलाया l

लखविंदर स्टेशन से बाहर निकला तो देखा कि कार का ड्राईवर कार में ही ऊँघ रहा था l

लखविंदर ने ड्राईवर को चलने को कहा l

ड्राईवर -"आपका छूटा हुआ बैग प्लेटफाॅर्म पर मिला l"

"नहीं l"

"मैंने पहले ही कहा था l बैग नहीं मिलेगा l बेकार ही हम वापस आये l इतने समय में मैं घर पहुँच गया होता l"

लखविंदर को भी अफ़सोस सो रहा था l कि उसके चक्कर में बेचारा ड्राईवर भी रात को परेशान हुआ l

"भाई , साॅरी यार l तुझे इतनी रात को परेशान किया l"

"अरे , कोई गल्ल नहीं सरदार जी l"

रास्ते में लखविंदर सोचता जा रहा था l बेकार ही वह स्टेशन गया l उस लड़के से मुलाकात भी नहीं हो पाई l

लखविंदर को सिगरेट पीने की तलब हुई l उसने जेब टटोलकर सिगरेट का पैकेट ढूँढ़ना शुरू किया l सिगरेट का पैकेट तो नहीं मिला l लेकिन, वह डायरी मिली l जिसमें उसने भीखू का पता उस लड़के को नोट करने को दिया था l उसमें पता तो नहीं था l अलबत्ता एक ख़त था l

" बड़े भइया l

मैं आपको देखते ही पहचान गया था l आपकी मुखमुद्रा देखकर मुझे लगा कि आप मुझे ही ढूँढ़ रहें हैं lलेकिन मैं डर गया था l कि कहीं आप मुझे और भी भला- बुरा ना कहने लगे l लिहाज़ ा, मैं आपको अपना परिचय नहीं दे पाया l दर असल मैं वहीं लड़का हूँl जो छह नंबर प्लेट फाॅर्म पर सोता हूँ l मेरा ही नाम भीखू है l जो अभी-अभी आपसे मिला था l दूसरी बात ये भी थी l कि मैं आपको अपने सामने शर्मिंदा होते नहीं देख सकता था l इसी संकोच के कारण भी मैं आपसे कुछ ना कह सका l मैं, आपको छोटा नहीं दिखाना चाहता था l इसीलिए अपना परिचय छिपाया l खैर ; कभी इस लायक हुआ तो आपसे मिलने आपके घर या आपके दफ़्तर मद्रास ज़रूर आउँगा l

आपका छोटा भाई भीखू - "

पत्र पढ़कर लखविंदर के आँखों से आँसू बहने लगे l सचमुच भीखू के अँदर भरे शिष्टाचार के सामने लखविंदर बहुत छोटा था l