शीतल पेय का शान्ति दूत बनना? / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
शीतल पेय का शान्ति दूत बनना?
प्रकाशन तिथि : 31 मई 2018


अमेरिका की दो शीतल पेय बनाने वाली कम्पनियों के बीच सवा सौ वर्ष से प्रतिद्वन्दता जारी है। एक बार एक कम्पनी ने अपने आधार मिश्रण में हल्का सा परिवर्तन किया तो दूसरी कम्पनी ने पूरे पेज का इश्तेहार दिया जिसमें दो लोग एक दूसरे को पलक झपकाए बिना देख रहे हैं। नीचे लिखा था कि हम एक दूसरे को देखते रहे परन्तु आज हमारे प्रतिद्वन्दी ने पलक झपकाई है। संकेत था कि वे कायम रहे हैं। ताजा खबर यह है कि उसी कम्पनी ने जापान में बेचे जाने वाले अपने शीतल पेय में सात प्रतिशत मात्रा अल्कोहल की मिलाई है। इस तरह सवा सौ वर्ष में यह दूसरा परिवर्तन है। प्रारंभ से ही ये शीतल पेय ऐसे रहे हैं कि सेवन करने वाले को इनकी आदत पड़ जाती है, फिर लतियड़ उसे कभी छोड़ नहीं पाता। फिल्मकार जे.पी. दत्ता इस शीतल पेय को पसंद करते थे। इस तरह नशे में एक और नए नशे को शामिल किया गया है। जापान के बाजार पर कब्जा जमाने के बाद, इसका अश्वरोही घोड़ा सभी देशों में भेजा जाएगा। जर्मनी में पी जाने वाली बियर में मात्र तीन प्रतिशत अल्कोहल होता है परन्तु भारतीय कम्पनियां सात प्रतिशत तक डालती हैं। भारत में बनने वाले एक च्यवनप्राश में भी पांच प्रतिशत अल्कोहल है। नशा किसी न किसी स्वरूप में बेचा जा रहा है। सबसे घातक है सत्ता का नशा।

अगर हम दूसरे विश्वयुद्ध को एक फिल्म मान लें तो उसके अंतिम दृश्य के समय जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में अमेरिका ने परमाणु बम गिराए थे। यह अनावश्यक था क्योंकि जापान अपनी हार स्वीकार कर चुका था। परमाणु विकिरण के कुप्रभाव जापान की पीढ़ियां आज तक भुगत रही हैं। क्या अमेरिका प्रायश्चित रूप वहां अपना शीतल पेय बेच रहा है? वह प्रायश्चित करने वाला देश नहीं है, वहां न प्रायश्चित किया जाता है और न ही प्रेम पत्र लिखा जाता है। वे केवल मुनाफा कमाने में ही यकीन करते हैं।

हॉलीवुड में बनी फिल्में सभी देशों में दिखाई जाती हैं। वे नशे का ही एक और स्वरूप हैं। हॉलीवुड अमेरिकन अवाम की जो छवि प्रस्तुत करता है, उससे अलग है वहां का यथार्थ। इसी तर्ज पर भारतीय फिल्मों से भारत के बारे में कोई राय बनाना उचित नहीं है। ईरान और कोरिया की फिल्में ही अपने देश के अवाम का अवचेतन प्रस्तुत करती हैं। कोरिया की तरह हमारे केरला में भी प्रयोगात्मक फिल्में बनती हैं परन्तु उनके साथ ही वे 'हर नाइट्स, हिज ड्रीम्स' जैसी छद्‌म अश्लीलता भी रचते हैं।

यह शीतल पेय बनाने वाले कॉर्पोरेट्स का ही प्रभाव है कि क्रिकेट का आई.पी.एल. तमाशा ग्रीष्म ऋतु में खेला जाता है। एक तरफ हजारों गांव अंधेरे में डूबे हैं तो दूसरी तरफ क्रिकेट तमाशे में बिजली खर्च की जा रही है। दर्जनों क्रिकेट मैदानों में हरियाली बनाए रखने के लिए लाखों लीटर पानी खर्च किया जाता है। दूसरी ओर मीलों पैदल चलकर औरतें मटकों में पानी भरकर लाती हैं। जमीन के भीतर पानी का स्तर गिरता जा रहा है और धरती के गर्भ में आखरी सतह पर अग्नि लगी रहती है जो कभी कभी ज्वालामुखी के रूप में प्रगट होती है। आई.पी.एल. तमाशे से ही जुड़ा है क्रिकेट बेटिंग का अरबों का व्यवसाय। सट्‌टा जमकर खेला जा रहा है। पांच दिवसीय टेस्ट कम खेले जाते हैं और ताबड़तोड़ क्रिकेट बहार पर है। इन खेलों के कारण टेस्ट क्रिकेट खेलने का माद्दा कम होता जा रहा है। प्रतिभा की फुलझड़ियों के कारण शास्त्रीय ढंग से क्रिकेट खेलना कठिन होता जा रहा है।

शीतल पेय बनाने वाली कम्पनियों के पास विज्ञापन के लिए बहुत धन होता है। आजकल पूरा जीवन ही विज्ञापन से प्रभावित है। राजनैतिक दल विज्ञापन के दम पर ही सत्तासीन हो रहे हैं और खयाली विकास के विज्ञापन देने की प्रतिस्पर्धा चल रही है। प्रांतीय सरकार भी चार पृष्ठ के विज्ञापन अनेक बार जारी करती है। अमेरिका के शीतल पेय ने हमारे पारम्परिक पेय जैसे नींबू पानी, जलजीरा, छाछ, लस्सी को हशिये पर ढ़केल दिया है। कैरी का रस ग्रीष्म ऋतु में अत्यंत लाभप्रद होता है। समय के साथ परिवर्तन हमेशा ही होते आए हैं परन्तु शीतल पेय में अल्कोहल का इस्तेमाल हानिकारक है। बच्चों और कमसिन वय के लोगों को हर प्रकार के नशे से बचना चाहिए।

पांचवें और छठे दशक की फिल्म नायिकाएं दावतों में शीतल पेय के गिलास में शराब डालकर पीती थीं ताकि उनकी छवि खराब नहीं हो। आज यह खुल्लम खुल्ला हो रहा है। कुछ विशेषज्ञों का विचार है कि आज केवल बाजार पर कब्जा जमाने के लिए सारे देश उतावले हो रहे हैं और सशस्त्र लड़ाई की संभावनाएं घटती जा रही हैं। इस तरह गैरइरादतन ही सही परन्तु युद्ध से भयावह कुछ भी नहीं है। अमेरिकन शीतल पेय बनाने वाली कम्पनी राजनैतिक फैसलों को प्रभावित कर रही है। इस तरह उन्होंने अल्कोहल मिलाए हुए शीतल पेय को शांति का प्रतीक बना दिया।