शीशमहल / राजकमल चौधरी
तुम जिस अदा में अपनी ठंडी उंगलियां गिनने लगी थीं। तुम जिस अंदाज में खिड़कियों के शीशे उतार देती थीं। कमरे में फैला हुआ कोहरा तुम नहीं चाहती थीं। तुमने जिस ख्याल में डूबकर कह दिया था, हम अपने-आप में डूबे हुए बैठे रहें!
मुझे महसूस हुआ था तुम नाटक चाहती हो। तुम चाहती हो कि नेपथ्य से किसी की आवाज। स्वरों के चढ़ाव-उतार में नीले शीशों के टुकड़े। नीले टुकड़ों को नीलम कह लेना। कागज के नकाब। शीशमहल की दीवारों पर पुराने सामंतों के तैलचित्र। उर्वशी की यह आदमकद मूर्ति सर माइकल डेवी ने बनाई थी।
रोशनी के बनते-बिगड़ते हुए जाबिये। त्रिकोश। त्रिभुज। पत्थर के गोल टुकड़ों पर श्री चक्र। तुम्हें वह सारा कुछ चाहिए, जिनसे नाटक बनता है। शेक्सपियर का ओथेलो और डेसडिमोना। तुमने नाटक में डूबकर कह दिया था-ओथेलो नामर्द था, इसलिए उसने अपनी बीवी के गले पर तलवार रख दी।
ज्यादातर रंगमंच पर तुम अकेली तुम! दूसरा कोई होना नहीं चाहेगा। फिर भी, नाटक चलता रहता है। अपने लिए तुम्हारा नाटक। कालिदास। कण्व। दुष्यन्त और शकुन्तला। अकेली तुम। ख्वाहिश हो जाए, तो तुम भरत बन जाती हो। नाटकों में जो कुछ किया जाता है। रंगमंच पर लोग जिसे जी लेते हैं। प्यार। घृणा। संभोग। करुणा। हीनता। मृत्यु। तुम्हारे बिस्तरे में मृत्यु छिपी पड़ी थी, जैसे परीक्षित के मधुपात्र में तक्षक। जैसे नशे में आंखें डुबोकर तुमने कह दिया-ओथेलो नामर्द था। यह शब्द मुझे बुरा लगा। तुमसे हल्का। तुमसे कमजोर। तुम नामर्द के बदले कोई अस्पष्ट शब्द प्रयोग कर सकती थीं। तुमने साफ-साफ कह दिया। नहीं कहना चाहिए। नाटक में तो और भी नहीं। ओथेलो मर चुका है। किंतु, मुझे बुरा लगता है।
बिस्तरे में छिपी हुई मृत्यु। तुम बिस्तरे में नंगी थीं। धूप में नहाती हुई फ्रांसीसी रिवेरा की अमीर विधवाओं और तलाकशुदा औरतों की तरह। नहाने के नए ‘कास्ट्यूम’ में तुम अपनी उम्र से ज्यादा दिख रही थीं। गिलास में बियर नहीं था। गिलास खाली था। आया खाली बोतल उठा ले गई होगी। गिलास पड़ा था। पेट के इर्दगिर्द चर्बी की पर्तें फैल गई थीं। भारी और मोटी कमर। जांघ पर भूरे बालों की धारियां। पाउडर की पर्तें। अनुभव। कई मर्दों और नामर्दों के साथ के अनुभव।
घीरे-घीरे औरत तटस्थ हो जाती है। खाली गिलास में बियर नहीं है। झाग भी नहीं। और नाटक करती है। अनुभवों के लगातार नाटक। विक्रमोर्वशीय का विदूषक वह खुद बन लेती है। कहती है-उर्वशी की यह मूर्ति इटली के माइकल डेवी ने बनाई थी। कीमत साठ हजार रूपए। इम्पाला गाड़ी। मूर-एवेन्यू में फ्लैट। कीमत साठ हजार रूपए। यह गलत है कि औरत तटस्थ हो जाती है। तटस्थता असंभव है। विदूषक तक तटस्थ नहीं होते। देखते हैं। देखना तटस्थता नहीं है। अंधा घृतराष्ट्र। दिव्यचक्षु संजय। नपंुसक शिखंडी। इस महाभारत में तटस्थ कोई नहीं है। तुम भी नहीं।
अपने बिस्तरे में नंगी या अधनंगी या ढकी हुई पड़ी रहकर भी तुम तटस्थ नहीं थीं। अपनी देह पर होना, गुजरना, चढ़ाव और उतार देख रही थीं। जैसे हिल स्टेशन की ओर जाने वाली पहाड़ी सड़कें बूढ़े मर्दों और बूढ़ी औरतों के यौनकार्य देखती हैं। पहाड़ी सड़कें तटस्थ नहीं होतीं। देखती रहती हैं। अपने ऊपर होना, गुजरना और बुझ जाना। सड़कें पसीना और गंध पी जाती हैं। तुम भी। परीक्षित के मधुपात्र में तैरते हुए तक्षक की तरह तकिये से सिर उठाकर तुम सिरहाने के आइने में उंगलियों की कंधी से बाल सहेजती हो। कनपट्टियों के पीछे दो-चार बाल सफेद हो गए हैं। मैं तुम्हारी उम्र पूछना चाहता हूं। पैंतीस साल? पैंतीस हजार साल? राइडर हैगार्ड की ‘शी‘ तुमने मेरे कहने से खरीदी थी। पढ़ नहीं पाई। किताबें तुम्हें परीशान कर देती हैं। किताबें और कम उम्र के लड़के। लड़के टेनिस में अव्वल आते हैं। सन्ड्रा डी जैसी अनछुई मुस्कान के मालिक। बाल बिखरे हुए, पसीने से तर-ब-तर। जी चाहता है, उन्हें सीने में लगाकर आंखें मूंद ली जाएं। मक्खन और शुद्ध बोरोडक्स की व्हिस्की के सपने देखे जाएं। तय कर लें कि अब कभी किसी देश में युद्ध नहीं होगा। मिलिटरी फौजें खेती करेंगी और एटम के कारखानों में मेडेन फॉर्म और शापेल की चोलियां और ‘कप‘ बनाए जाएंगे। किताबें और लड़के सहलाने के लिए। पढ़ने के लिए नहीं। तुम अपना बाल सहेजती हो। पसीने की कुल तीन-चार बूंदें तुम्हारे थके-जैसे दिखने लगे सलोने मुखड़े पर हैं। तुम थकी नहीं हो, तुम मुझसे कहना चाहती हो।
तुम्हारी ही तरह एक औरत है सितारा बाई। जो नाच में थकती नहीं। मण्टो ने उसके बारे में बहुत-कुछ सच और ईमानदार लिखा है। सितारा उसे कभी थकी दिखाई नहीं दी। वह एक नारी नहीं थी, एक साथ कई नारियां थी। मण्टो ने लिखा है-वह मुझे बंबई की ऐसी पंचमंजिली बिल्डिंग-सी प्रतीत होती है, जिसमें कई कमरे हों और यह तथ्य है कि वह एक ही समय में कई-कई मर्द अपने दिल और अपनी देह में बसाए रहती है। वह बड़ी कद्दावर औरत है और मर्द को पहचानती है। उसको वे तमाम दांव आते हैं जो किसी भी मर्द को दूसरी औरतों के लिए बिल्कुल नक्कार और नामर्द बना देते हैं। मण्टो ने सितारा के बारे में जो-कुछ लिखा है मैं तुम्हारे लिए दुहराना नहीं चाहता। क्योंकि, तुम सितारा होकर भी सितारा नहीं हो।
सिर्फ इतना है कि तुम्हें नाटक, किताबों, लड़कों, मूर्तियों और खाली किए गए गिलासों के पास बने रहना अच्छा लगता है। तटस्थता का बहाना करके तुम मुसकुराती हो। संजय महाभारत की लड़ाई का आंखोंदेखा हाल कहकर मुसकुराता था। अंधा धृतराष्ट्र सुनता था। देख नहीं पाता था। मैं देख पाता हूं, तुम तटस्थ नहीं हो। तुम्हारे चेहरे पर पसीने की बूंदें। शांति। आया से कहना कि वह बर्फ और व्हिस्की ले आए। सर्दियों में भी तुम बर्फ डालती हो। पसीने होती हो। मुझसे बेहद लापरवाह होकर कह सकती हो-जरा टावेल उठा लो। ओथेलो नामर्द था। अपने-आप में डूब जाना चाहिए। तुमने आज तक कितनी औरतों को लिया है? तुम्हारा यह सवाल अश्लील नहीं है, ग्राम्य है। नामर्द शब्द की तरह। टावेल से अपनी जांघ पोंछना ग्राम्य है। अंडर-वियर में हाथ डालकर खुजलाना ग्राम्य है। अश्लील नहीं है। मूर एवेन्यू के इस साठ हजार रुपयों के फ्लैट में बनी रहकर भी तुम ग्राम्य हो। अश्लील नहीं। क्योंकि अश्लीलता नहीं होती है।
अश्लीलता होती थी। अब नहीं होती। क्योंकि आदमी का सौंदर्य-बोध बदल गया है। बदल नहीं जाता, तो ‘डेमोक्रेसी‘ से बड़ी अश्लील बात और नहीं थी। तुममें सौंदर्य-बोध है, इसीलिए तुम ग्राम्य हो, अश्लील नहीं हो। तुम अंडरवियर के नीचे कुरेदती हुई, मुझे या किसी भी मर्द को नजदीक बुलाकर बता सकती हो कि तुम हर सुबह हजामत बनाती हो। ड्रेसिंग-टेबुल के सामने तिपाई पर बैठकर ‘शेव‘ करना। चाय पीते रहना। नेपाली नौकर बाथरूम में गरम तेल से तुम्हारी मालिश करता है। तुम गरम नहीं होतीं। गरम होना और गरम नहीं होना तुम्हारे वश की बात है।
तुम जानती हो। तुम एक साथ कई औरतें और कई तस्वीरें हो। औरत कब तस्वीर बन जाती है? तस्वीर कब इतिहास बन जाती है? डेसडिमोना कितने हजार साल की उम्र में मरी? शकुन्तला ने कब राजा दुष्यन्त की भरी सभा में जाकर कहा, वह गर्भवती है? आस्कर वाइल्ड ने लंदन की सबसे खूबसूरत अभिनेत्री को वापस कर दिया और एक ड्यूक के सलोने छोकरे की कमर में हाथ डालकर सपने बनाने लगा। तुम जानती हो।
चाइनीज कस्साबों की गली, जो नानकिंग होटल के पास आकर खत्म हो जाती है। नानकिंग होटल का छोटा-सा स्टेज जिस पर तुम कस्साबों की गली से आकर खड़ी होती थीं। गाने लगती थीं। होटल का दरवाजा अंदर से बंद करके खास जलसा मनाया जाए, तो नाचती थीं। नानकिंग होटल से मूर एवेन्यू चले आने का किस्सा तेरह मील लंबा और सतरह साल चौड़ा है। इस लंबाई-चौड़ाई में तुम्हारी भारी-भरकम लाश बिछी हुई है। चीनी मिट्टी के बेडौल लोंदे की तरह गीले स्तन सूर्ख हो गए हैं। स्तनों पर नीली नसों की मोटी धारियां हैं। धारियां हर जगह हैं। तुम्हारे अंग विशेष के ऊपर की तिकोनी जगह काली पड़ गई है, जैसे सांप से डसे गए नन्हें बच्चे नीले पड़ जाते हैं। तुम मर गईं। पैंतीस साल की व्यवस्थित अवस्था तक पहुंचकर तुम हमेशा के लिए मर गईं।
तटस्थता को मृत्यु क्यों नहीं मान लें? तुमने नई पीढ़ी के लेखकों की तरह मुझसे पूछा। आया व्हिस्की, बर्फ, एक जोड़ा गिलास, सिगरेट की टीन, माचिस, काजू के प्लेट, भुनी हुई छोटी मछलियों के टुकड़े और तस्वीरों का बड़ा अलबम बिस्तरे के पास गोल टेबुल पर डाल गई थी। जब भी तुम अपनी तटस्थता दूर करना चाहती थीं, यह अलबम देखने लगती थीं। इसमें सिर्फ तुम्हारी तस्वीरें हैं। बारह साल की कच्ची उम्र में, तुम्हारी मां को रखने वाले एक पोर्चुगीज जहाजी ने, तुम्हें अपनी टांगों के बीच पकड़ लिया था। तुम्हारी मां रोने लगी और जहाजी की पीठ पर चढ़कर उसे पीटने लगी। असर नहीं हुआ! तुम्हें तेज बुखार चढ़ आया। कई दिनों तक तुम स्कूल नहीं गईं। दूसरी बड़ी लड़ाई चल रही थी। रूस और जर्मनी की मिली-जुली ताकत ने सारा यूरोप जीत लिया था। तुम्हारी मां बर्मी थी।
तुम्हारी मां इम्फाल के रास्ते से भागकर कलकत्ते आई थी। तुम अभी अपनी मां के साथ मिलकर, कभी अकेली रहकर, नाटक करने लगीं। दो तरह के लोगों ने तुम्हारे घरेलू नाटक में भाग लिया। कुछ लोगों ने तुम्हारे लिए, कुछ लोगों ने तुम्हारी मां के लिए। तुम अपना अलबम देखती हुई ये सारी बातें मुझे बताती थीं। शायद खुद को बताती थीं। बताना अच्छा लगता है। धीरे-धीरे तटस्थता का कोहरा छंटने लगता है। अंडरवियर में डूबी हुई उंगलियां सख्त हो जाती है।
तनी हुई सख्त, खुरदरी उंगलियां व्हिस्की के गिलास चूर-चूर कर देना चाहती हैं। नीली नसें उभरती हैं। याद आता है, कि जमदग्नि के कहने पर परशुराम ने अपनी मां के अपने फरसे से दो टुकड़े कर दिए थे। कमर से ऊपर अलग हिस्सा। कमर से नीचे एकदम अलग। तुम इन दो टुकड़ों में बिलकुल अलग-अलग औरत हो। मोराविया के ‘दाम्पत्य प्रेम‘ की वह औरत मुझे याद आती है, जिसके स्तन संतरे-जैसे इतने-से थे और जिसकी जांघें बाघिन की तरह गोश्त-चर्बी से भरी हुई थीं। मुखड़ा बारह साल का। टांगों की मजबूत गिरफ्त पैंतीस साल की। नीली नसें उभरती हैं।
तटस्थता को मृत्यु मान लेते हैं और आलबेयर कामू की कब्र पर मादाम नू के सीने का गोश्त चढ़ा आते हैं, तुमने मछली का एक टुकड़ा अपने मुंह में डालकर कहा था। ये दो नाम तुम्हारी जज्बाती रौ के दो किनारे हैं। कामू की सारी किताबें तुम्हारे सिरहाने की रैक पर मौजूद हैं। मादाम नू की बड़ी तस्वीर तुमने कई साल पहले वियतनाम से मंगवाई थी। कामू की कोई किताब तुमने पढ़ी नहीं। तुमने सिर्फ इतना सुना है कि सिमन-दि-बोवुआ नाम की एक औरत के लिए उसने सार्त्र से लड़ाई की थी और वह सारा कुछ किया था, जो मध्ययुग की फ्रान्सीसी महारानियों के लिए सामंत और मस्केतियर किया करते थे।
लेकिन मादाम नू? फौजी वर्दी में सजी हुई इस कद्दावर औरत की तस्वीर से तुम्हें क्या लगाव था? वियतनाम को अमरीकी पूंजीपतियों और चीनी कम्यूनिस्टों ने दो टुकड़ों में बांट लिया था। जमदग्नि की पत्नी की तरह। भारत और पाकिस्तान की तरह। कोरिया की तरह। औरत एक ही थी, लेकिन उसके टुकड़े दो थे। कमर से ऊपर हिंदू। कमर से नीचे मुसलमान। कमर से ऊपर केलिफोर्निया के सफेद-सफेद मकान। कमर से नीचे अफ्रीका के काले जंगल। एक ही थीं तुम। तुम्हारे नाटक ने तुम्हें टुकड़ों में बांट दिया था। बंट जाने के बाद तुम तटस्थ थीं। आया पर तुम नाराज नहीं होतीं कि वह तुम्हारा और तुम्हारे मर्द का नंगापन देखकर शरमाती नहीं, न ही पागल होकर किचेन में जाती है बावर्ची से लिपटने के लिए। मालिश करने वाला नेपाली नौकर तुम्हारी पीठ, कनपटियां, तलुवे, रान, पिंडलियां, गोश्त, हड्डियां, नसें अपने हाथों और कुहनियों से रगड़कर भी परेशान नहीं होता। स्तन तुम उससे नहीं, अपनी ब्यूटी-एक्सपर्ट से मालिश करवाती हो, ताकि वे शक्ल में रहें, साबित रहें, पककर चूर-चूर नहीं हो जाएं।
मैं देखने लगता हूं। संजय की तरह मैं तुम्हारे अलबम में नहीं, तुम्हारी आंखों में तुम्हारे शरीर में तुम्हारे तीनों काल देखने लगता हूं। तुम कहती थीं-काल सिर्फ एक होता है, अतीत। वर्तमान नहीं होता। भविष्य अतीत के गर्भ में मृत भ्रूण की तरह पड़ा रहता है।
किंतु, मैं तीनों काल देखता हूं। तुम्हारी आंखों में अलग। तुम्हारे शरीर में अलग। तुम्हारी आंखों और तुम्हारे शरीर में कहीं कोई एकता नहीं है। समानता नहीं। तुम आंखों में बारह साल की एक नन्हीं-सी लड़की हो, जो नहीं समझती कि प्रौढ़ पोर्चुगीज जहाजी उसका अंडरवियर उतारकर क्या करना चाहता है। अज्ञान कायम है। अबोधत्व कायम है। आंखों में। शरीर पर नहीं। शरीर पर मालिश के तेल की चिपचिपाहट! आलबेयर कामू के खून के छींटे। मादाम नू, जो अपने देश के राजा और अपने देश की प्रजा के ऊपर जटायु की तरह पंख तानकर सोई रहती थीं। वह राजकन्या, जिसने एक महर्षि की आंखों में बांस की खपच्चियां घुसेड़ दी थीं। अंडरवियर में अपनी ठंठी उंगलियां। खिड़कियों पर नीले शीशे। कमरे में घना कोहरा। कागज के नकाब। ब्रोंज की उर्वशी, जिसका सीना और जिसके नितंब तुमसे किसी कदर भारी-भरकम नहीं हैं। तुम्हारे शरीर पर बनते-बिगड़ते हुए रोशनी के जाबिये। त्रिकोण। त्रिभुज।
लेकिन, मैंने तुम्हें बताया था कि तटस्थता मृत्यु ही नहीं, जीवन भी हो सकती है, क्योंकि उग्रतारा मंदिर के तांत्रिक क्वांरी लड़की के अंग-विशेष में तर्जनी डालकर श्रीमंत्र का जाप करते हैं। तटस्थ रहते हैं। पांच प्रकार की मदिराएं। पांच प्रकार के मांस। पांच प्रकार के मैथुन-आसनों पर क्वांरी लड़की (ऐसी लड़की, जो रजस्वला हो चुकी हो) को बिठाकर तटस्थ रह लेना। इसके बाद जीवन शुरू होता है। तुम आश्चर्य में भर उठी थीं। तुम्हारी आंखों में पहली बार सोनपुर-मेला जाने वाली गांव-गंवई के बच्चे की उल्लासित उत्सुकता।
काश, मैं एक बार फिर से क्वांरी होकर उग्रतारा मंदिर जा सकती-तुम अपनी एक जांघ पर अपनी दूसरी जांघ दबाकर कहती हो और ताली बजाकर किसी बैरे को बुलाती हो। बैरा तुम्हें बता देता है कि साहब अभी घंटे-भर पहले आ गए हैं, और स्टेनो लड़की को चिट्ठियां बता रहे हैं। तुम जरा ऊपर खिसककर फोन उठाती हो। कहती हो, मैं सो रही हूं, तुम क्लब चले जाओ। नहीं, मैं नहीं जाती। सुबह चाय पर मिलेंगे।
इच्छाएं, अस्तित्व, घृणा, अपराध, सभी कुछ जीवन में इस तरह ‘मिक्स-अप‘ हो गए हैं कि इन्हें अलग-अलग करके देखा-समझा नहीं जा सकता। खासकर जब जिंदगी नाटक बन गई हो। केवल तुम्हारे लिए नहीं। मेरे लिए भी।