शीश दान / धनन्जय मिश्र
महाभारत युद्ध रोॅ कुछ पहिने रोॅ समय। है युद्ध के रोकै लेली पाण्डव रोॅ साथ-साथ भगवान वासुदेव कृष्ण रोॅ हर प्रयास व्यर्थ सिद्ध होलो रहै। आवे कौरब आरोॅ पाण्डव दोनों पक्ष आपनोॅ-आपनोॅ सैन्य ताकत बढ़ाय लेली प्रयासरत रहै। यहा समय में माद्र राज शैल्य आपनो दू अक्क्षोणी सेना रोॅ साथ आपनोॅ भाँजा पाण्डव रोॅ पक्ष में युद्ध में भाग लै लेली आवी रहलो रहै। है सूचना गुप्तचर रोॅ द्वारा कौरब दल रोॅ युद्ध संचालक दुर्योधन आरोॅ मामा शकुनी के मालूम होलो रहै। हुनी हौ दू अक्क्षोणी सेना के आपनोॅ पक्ष में मिलाय लेली एक गुप्त मान्त्राणा करै लागलै। मामा शकुनी माद्र राज शैल्य रोॅ है कमजोरी जानै छेलै कि वीर शैल्य एक रंगीन मिजाज रोॅ आशिक एक बोलिया वीर छेकै। हुनका जों यात्र रोॅ बीचै में मदिरा आरोॅ नर्तकी रोॅ सेवा साथै नीको रुपो से खातिरदारी करी के आपनोॅ पक्षों में युद्ध करै लेली वचनबद्ध करी देलो जाय ते बात बनी जाबे पारे। अक्षरशः यहा होलै भी। है षड्यंत्र रोॅ भनक तक हौ पांडव के नै लागै ले पारलै, जे दलों में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण रहै या है षड्यंत्र घटना रोॅ प्रारब्ध यहा रहै।
बीच रास्ता में थकलो-चुरलो राजा शैल्य रोॅ हौ नीको ढंग से खातिरदारी होलै कि राजा शैल्य मदिरा से चूर गद्गद् होय के कौरब रोॅ पक्ष में युद्ध लड़ै लेली वचनबद्ध होलै। है खातिरदारी में कौरब दल रोॅ पक्ष में बहुरूपिया पौड्रंक कृष्ण रोॅ भी भरपूर सहयोग रहै। हेकरोॅ नतीजा है होलै कि अपना के भगवान समझा वाला पौन्ड्रक कृष्ण के सुदर्शन चक्र धारण करै रोॅ इक्छा लैके आरोॅ भगवान वासुदेव कृष्ण के अनर्गल कटु वचन सें घायल करी के भगवान कृष्ण द्वारा देलो सुदर्शन चक्र के धारण करै में असमर्थ हौ चक्र रोॅ बढ़ते भारोॅ से पृथ्वी में धसी के मारे गेलै।
मामा शैल्य के आपनोॅ पक्ष में नै आबै रोॅ दुखो से दुखित आरोॅ व्यथित महाबली भीम बड़े भाय धर्मराज युधिष्ठिर सें आपनोॅ पुत्र वीर घटोत्कच के युद्ध में भाग लै लेली लानै रोॅ आदेश लैके वहाँ से प्रस्थान करलकै। रस्ता में कोनोॅ बातोॅ सें क्षुब्ध एक वीर धनुषधारी जंगली युवक सें भीम रोॅ टकराहट होलै। हौ जंगली युवक के रस्ता रोकै रोॅ अपराध लेली भीम दहाड़ी उठलै-"युवक तोहें के छेकौ आरोॅ हमरोॅ रस्ता रोकै रोॅ अपराध कैन्हे करी रहलो छौ?" युवक शांत भाव से बोललो रहै-"भद्रे! पहिने तोहें है बतावो कि तोहे के छेकौ, आरोॅ हमरा है जंगली सीमा में प्रवेश करी के कैन्हे घुमी रहलो छौ।" महाबली भीम हौ युवक रोॅ उदंडता समझी के बोली उठलै-"युवक, तोहे एखनी हमरा आगू बच्चा नाँकी छौ, तोहे आपनो शिष्टता भूली के हमरा संे है रं बात करी रहलो छौ। हम्मे जों तोरा आपनोॅ परिचय बताय देभौ ते तोरोॅ एखनी सिट्टी-पिट्टी गुम होय जेतौ।" है सुनी के युवक हाँसी के बोललो रहै-"भन्ते! आदमी रोॅ पहचान हुनको माथा में नै लिखलो रहै छै। हुनको कर्म ही असली पहचान छेकै। तोहें कृपा करी के आपनो पहचान बतैयै दियै, तवे नि हम्में बुझवै कि हमरा आगू खाड़ो हुनी कत्ते वीर छै आरोॅ हम्मू कत्ते वी छियै।" है सुनथै महाबली भीम अत्यंत क्रोधित होय के हौ युवक के द्वन्द्व लेली ललकारी देलकै। युवक भी कहाँ मानै वाला छेलै। दोनों में द्वन्द्व युद्ध शुरू होलै। दोनों एक-दूसरा पर हावी होय ले चाहै लागलै। आघात आरोॅ प्रत्याघात रोॅ दांव-पेंच चलै लागलै। द्वन्द्व रोॅ बीचो में महाबली भीम है महसूस करलकै कि है युवक कुच्छु अलौकिक छै। है सोची के महाबली भीम बोली उठलै-"युवक, हम्मे खुश छियै कि तोहे बड्डी बलशाली छौ। आभियो तोहे हमरा है बताय दहौ कि तोहे के छेकौ, आरोॅ तोरोॅ रगो में कौन वंश रोॅ खून एखनी बही रहलो छौ।" यै पर युवक आरु क्रोधित होय के एन्हो दांव मारलकै कि भीम चित्त होय के अचेत भै गेलै।
हुनको अचेत होबो देखी के हौ युवक घबड़ाय उठलै। "अतिथि देवो भवः" रोॅ भाव मनों में ऐतै हौ युवक अपराध भाव से ग्रसित होय के इलाज रोॅ मंसा से हुनको अचेत देहो के कंधा पर उठाय के आपनोॅ घोॅर लानलकै। हौ युवक रोॅ कंधा पर अचेत आपनो पिता श्री महाबली भीम के पहचानी के वीर घटोत्कच गम आरोॅ क्रोध से चिल्लाय उठलै, "पुत्र बरबरीक! है कि अनर्थ होलै जे तोरो दादाश्री महाबली भीम अचेत होयके पड़लो छै। हिनका साथे तोरोॅ कौन रं रोॅ घटना-दुर्घटना घटलो छै, हमरा बताबो। हिनी कि साधारण मानुख छेकै।" है सुनतै वीर बरबरीक आश्चर्य में पड़ी के दोनों हाथ जोड़ी के विनीत स्वर में बोललो रहै-"पिताश्री! हमरा से अनजानो में एक बड़का अपराध भै गेलौ छै। दादा जी रोॅ द्वन्द्व के ललकार से भ्रमित होय के हमरे आघात से हुनी अचेत होलो छै। हमरा पिताजी है अपराध लेली माफ करी दियै।"
तब तक चेतना में आवी के महाबली भीम पुत्र वीर घटोत्कच रोॅ आवाच पहचानी के उठी के बैठले। यही समय में वीर बरबरीक महाबली भीम रोॅ गोढ़ो पर गिरी के विलाप करै लागलै-"दादा जी, हमरा सें बड़का भूल होय गेलौ छै। हम्मे आपने के नै पहचानैला पारलिये। हमरा के माफ करी दियै। नै ते हम्मे अपराध बोध से ग्रसित ही रहवो।" है सुनतै महाबली भीम उठी के वीर बरबरीक के आपनो छाती से लगाय के बोललो रहै-"पौत्र बरबरीक, तोरो युद्ध कला के देखी के हम्मे निहाल भै गेलाँ। तोहे आपनो पिता श्री वीर घटोत्कच सें भी बेसी वीर छौ। आवे पांडव के कोय भी नै हराबे पारतै आरोॅ युद्ध में। है पक्ष रोॅ विजयश्री निश्चित छै। पुत्र यै में माफी रोॅ कोनोॅ ज़रूरत ही नै छै, कैन्हें कि अनजानो में करलो गेलै भूल कोनो भूल ही नै होय छै, आरोॅ तोहंे ते आपनोॅ युद्ध धर्म ही निभैने छौ।" है सुनी के वीर घटोत्कच आपनोॅ वीर पुत्र बरबरीक के गर्व से देखी के पिताश्री के यहाँ आवै रोॅ प्रयोजन पूछलकै।
महाबली भीम बोललो रहै-"पुत्र घटोत्कच! तोरा ते है मालूम ही होतौ कि कौरब रोॅ अहंकार आरोॅ अधर्म रोॅ धरातल पर सौसे संसार महाभारत युद्ध से महाविनाश रोॅ मुहाना पर खाड़ो छै। हम्मे तोरा सिनी के है युद्ध में सरीक भै लेली अइलो छियै।" तब तक महाबली भीम रोॅ वन देवी पत्नी हिडिम्बा आवी के नतमस्तक होलै, आरोॅ पुत्र घटोत्कच रोॅ साथे पौत्र वीर बरबरीक सें सवाल करलकै-"पुत्र तोरा दोनों ते वर्षों से है धर्म युद्ध लेली अभ्यासरत छेलौ। आय कि है धर्म युद्ध रोॅ कमजोर पक्ष साथे युद्ध नै करभौ?" आरो यहीं ठियां वीर वरवरीक केरोॅ माता 'मौरवी' रोॅ भी यहा आदेश होलै। है सुनतै पुत्र घटोत्कच करुणा से बोली उठलै-- "माता है कि आपनो बोली रहली छियै। हमरोॅ जनम ही पुत्र ऋण के चुकावै लेली होलो छै, आरोॅ पुत्र वीर धर्नुधारी बरबरीक रोॅ भी है कर्त्तव्य छेकै हौ कमजोर पक्ष रोॅ तरफो से युद्ध में भाग लियेै।" है सुनतै ही वीर बरबरीक आपनो धनुष पर वाण संधान करी के गंगा जोल के पाताल से लानी के जोॅल के हाथ में लैके बोललै-"हम्मे है धर्म युद्ध में कमजोर पक्ष रोॅ तरफ से ही युद्ध करबै।" वचनबद्ध होलै। है वचनबद्धता सुनी के परिवार ते हर्षित होलै। मतुर हेकरा में छिपलो गूढ़ रहस्य भाव के जानै ले पारे सिवाय भगवान कृष्ण के.
आवे कुरुक्षेत्र रोॅ मैदान में दोनों पक्षो रोॅ युद्ध शिविर लागी रहलो रहै। पांडव रोॅ एक शिविर में पाँचों भाय रोॅ साथे वीर घटोत्कच, धर्नुधारी वीर बरबरीक, आरोॅ भगवान कृष्ण रोॅ उपस्थिति माहौल के खुशनुमा बनाय रहलो रहै। वीर घटोत्कच आरोॅ वीर बरबरीक के देखी के महाबली भीम आपने आप के गौरवान्वित महसूस करी रहलो रहै। यही वक्ती में युद्ध रोॅ दिशा आरोॅ दशा प्रसंगों पर चर्चा छिड़लो रहै। युद्ध में वीर बरबरीक रोॅ उपस्थिति मात्र से ही युद्ध रोॅ समापन काल पर सभ्भे आपनोॅ-आपनोॅ नजरिया रोॅ बखान कृष्ण रोॅ पूछलो प्रश्न पर पेश करी रहलो छेलै। कोय युद्ध के बीस दिनों, में कोय युद्ध के दस दिनों में, कोय युद्ध के पाँच दिनों में, आरोॅ कोय युद्ध के दू दिनों में समाप्त रोॅ भविष्यवाणी करी रहलो रहै। यहा प्रश्न श्री कृष्ण ने वीर बरबरीक से भी करलकै-"पुत्र बरबरीक, तोरा नजरोॅ में है महाभारत रोॅ युद्ध कै दिनों में समाप्त होयले पारै?"
है प्रश्न सुनी के वीर बरबरीक रोॅ आँखी में चमक आवी गेलै आरोॅ हाथ जोड़ी के बोललो रहै-"माधव! हमरा माफ करीहो। हमरोॅ नजरोॅ में है युद्ध हमरोॅ है तीन वाणों में समैलो छै, जेकरा सें है युद्ध सिरिफ एक क्षण मेंही समाप्त होयले पारै छै।" है सुनी के सब अवाक् आरोॅ आश्चर्यचकित छेलै। सब रोॅ प्रश्नवाचक भाव भगवान श्रीकृष्ण पर ही गड़लो रहै। है गंभीर परिस्थिति के महसूस करी के श्रीकृष्ण बोललो रहै-"पुत्र बरबरीक, तोरो है दृढ़ विश्वास कौन प्रमाण पर आधारित छौ, आरोॅ हौ तब-तब सार्थक नै होतै, जब-तक तोहे हौ प्रमाण के साबित नै करभौ।" "सच माधव! हम्में है प्रमाण के साबित करै लेली तैयार छियै। हमरा आपने कार्य योजना रोॅ निर्धारण करीयै।" वीर बरबरीक हाथ जोड़ी के बोललो रहै। हौ कार्य स्थल पर सभ्भे योद्धा अवाक् आरोॅ भावी आशंका से ग्रसित रहै। माधव रोॅ कार्य योजना रोॅ प्रश्न गूंजलोॅ रहै-"पुत्र बरबरीक, तोरो सामने रोॅ है पेड़ जे दिखाय रहलो छौ। हौ पेड़ रोॅ हर पत्ता तोरोॅ एक बाण सें बिंधलो जाय। याद राखियो कि हौ पेड़ रोॅ एक भी पत्ता डाल से टूटी के धरती पर गिरैले नै पारै।" वही वक्ती हौ पेड़ रोॅ एक सुखलो पत्ता टूटी के गिरलै, आरोॅ माधव रोॅ पैर के नीचे आवी के समाय गेलै, जेकरा कोय गमैले नै पारलकै। है माधव रोॅ छल परीक्षा छेलै या माधव रोॅ मृत्यु रोॅ पूर्व सूचना। है ते खुद हुनिये बताय ले पारै।
आवे वीर बरबरीक माधव रोॅ प्रश्न सुनी के परीक्षा लेली तैयार होलै। हुनी आपनो तुरीन से हौ तीन में से एक वाण निकाली के हौकरा विधि-विधान से मंत्र पूरित करी के लक्ष्य भेद लेली संधान करलकै। हौ वाण दनदनैते हुए सहस्त्रा वाणों में बदली के वृक्ष से लागलो हर पत्ता के बेधी के एक वाण माधव रोॅ पैर के आंशिक क्षति पहुंचाय के हौ पैर रोॅ नीचे दबलो पत्ता के बेधै लेली आवी के घुमै लागलै। है देखी के माधव हाँसी के आपनो पैर हटैलके, पैर हटते ही हौ वाण हौ दबलो सुक्खा पत्ता के लक्ष्य भेद करी के वापस वीर बरबरीक रोॅ तुरीन में समाय गेलै। है दृश्य देखी के सभ्भे अचंभित छेलै। तखनी श्री कृष्ण रोॅ नजरोॅ में वीर बरबरीक लेली प्रशंसा रोॅ भाव जागलो छेलै। हुनी बरबरीक के सौसें भूमंडल रोॅ श्रेष्ठ धर्नुधारी वीर घोषित करने छेलै। मतुर दोसरो तरफे वही बरबरीक के सौंसे विश्व रोॅ मानव जाति लेली खतरा भी बतैने छेलै।
है सुनी के धर्मराज युधिष्ठिर बोललो रहै-"माधव एक तरफ ते तोहे वीर से हाथ जोड़ी केॅ विनती रोॅ साथ क्रोध से बोललो रहै-" माधव! वीर बरबरीक रोॅ शर छेदन से पहिने हमरोॅ शर छेदन करैले पड़तौ। अगर हम्में पहिनै से है जानतियै कि हेकरा युद्ध में भाग लेतै होकरो मृत्यु आवश्यक छै, ते हेकरा कथी ले हम्मे बोलाय के लानतियै। माधव हेकरा माफ करी दियै। "पुत्र घटोत्कच रोॅ विनती छेलै," माधव! हम्मे पुत्र वीर बरबरीक के एखनी है आदेश दै छियै कि तोरा है युद्ध में भाग नै लेना छौ आरो घुरी के आपनोॅ घोॅर जाना छौ। हेकरो प्राण बकसी दियै। " है रं सबरोॅ नम्र विनती रोॅ है असर ज़रूर होलै कि सुदर्शन चक्र घुमी के आलोपित होय गेलै। सुदर्शन चक्र के वापस देखी के सभ्भै रोॅ प्राण लागलै कि घुरलो रहै। मतुर वीर बरबरीक स्थिर छेलै। वहाँ मृत्यु रोॅ कोनो एहसास ही नै छेलै।
भगवान श्री कृष्ण वीर बरबरीक के देखी के बोललो रहै-"पुत्र हमरा सिनी सभ्भे नियति हाथो रोॅ एक कठपुतली छेकियै। हेकरो आगू केकरोॅ कुच्छु वश नै चलै छै। हमरा सिनी खाली मूकदर्शक छेकियै। तोरो नियति तोरे हाथों में छौ, आरोॅ यै में तोरोॅ कोनो दोष भी नै छौ। ठहरो, तोरो नियति के हम्मे तोरा दिखाय रहलो छियौ। तोहे हेकरा देखो, परखो आरोॅ सोचो कि तोरा एखनी कि करना छै।" आवे भगवान श्रीकृष्ण ने वीर बरबरीक के आपनो प्रभा मंडल मेंप्रवेश कराय के है देखलाय देलकै कि तोहे के छेकौ आरो तोरो युद्ध में भाग लेला सें सौसे मानव जाति रोॅ कि हश्र होतै। प्रभा मंडल रोॅ प्रभाव हटतै ही वीर बरबरीक ने आपनोॅ पराया सभ्भे के हाथ जोड़ी के प्रणाम करी के श्रीकृष्ण रोॅ आगू दंडवत होय के आपनो शीश दान करै लेली तैयार होलै। आपनोॅ तुरीन से वहा एक वाण लैके होकरा मंत्र पूरित करी के आपनोॅ दिव्य धनुष पर आपने शीश दान लेली आकाश दिस संधान करलकै। हौ वाण आकाश से टकराय के लौटी आवी के होकरो शीश के काटनै माधव रोॅ पैर पर आवी के स्थिर होय गेलै। मानो वीर बरबरीक माधव से है कही रहलो रहै कि है काम लेली सुदर्शन चक्र रोॅ की दरकार छै। है काज लेली हमरोॅ वाण ही हमरोॅ शीश दान लेली काफी छै।
वीर बरबरीक रोॅ कटलो शीश देखी के पांडव दल में हाहाकार मची गेलै। वीर घटोत्कच कानते हुए माधव से बोललै-"माधव, पुत्र बरबरीक रोॅ हार्दिक इच्छा रहै, है धर्म युद्ध में सरीक होय के, हेकरोॅ क्रिया कलाप में भागीदार बनैला। मतुर है इच्छा होकरो पूरा नै होय पारलै।" महाबली भीम भी बोललो रहै-"माधव, पुत्र वीर बरबरीक रोॅ यहा इच्छा रहै कि धर्मयुद्ध के घटना क्रम रोॅ साक्षी बनै के, जे यहौ भी अधूरा रही गेलै। माधव, पुत्र रोॅ अतृप्त इच्छा के पूरा करी के शांति प्रदान करीयै।" है सुनी के भगवान श्री कृष्ण बोललो रहै-"पाँडु पुत्र तोरा सिनी व्याकुल नै हुओ. वीर बरबरीक रोॅ शीश दान कैय्हो निष्फल नै होतै। है सौसे मानवजाति रोॅ बचाय लेली है दान उत्तम दान छेकै। हेकरा सामने सब दान फीका छै। हम्मे एखनी वरदान दै छियै कि वीर बरबरीक रोॅ शीश जीवित होय के हौ पहाड़ के सबसें ऊँच्चोॅ चोटी पर रही के है युद्ध रोॅ हर गतिविधि के गवाह रोॅ साक्षी बनतै। आरो वीर बरबरीक अमर होय के धरती पर खाटू-श्याम बनी के पूजित होतै।"