शुक्ल का पत्र रामबहोरी शुक्ल के नाम

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जिंदगी है या कोई तूफान है,

हम तो इस जीने के हाथों मर चले

प्रिय रामबहोरी जी,

साहित्य-परिषद के स्वागताधयक्ष का भाषण मैं लिख रहा हूँ, जो कुछ हो जाए। मुझे इस बीच पटने भी जाना पड़ा था। वहाँ के लिए भी कुछ लिखना पड़ा था। सोमवार को लौटकर आया हूँ। तब से जो कुछ अवकाश मिल रहा है लिखने में लगा रहा हूँ। कल तक भाषण तैयार हो जाएगा। किसी को दोपहर तक भेज दीजिएगा।

मालवीयजी की ओर से कुछ लिखने के लिए मुझे कोई आदेश नहीं मिला। ऐसा जान पड़ता है कि उनका भाषण केवल मौखिक होगा।

भवदीय

रामचन्द्र शुक्ल