शुक्ल का पत्र श्री सुरेन्द्र नाथ त्रिपाठी के नाम
दुर्गाकुंड
बनारस सिटी
28.12.40
बुलबुल के हमारे आशिर्वाद पहुँचे। आगे सब इहाँ अच्छा है। तुहरे सब क कुशल मंगल दिन रात मनावल करीले। चोकरंत और मल्लू के चाची क का हालि ह? बुलबुल तू बड़े दिन के छुट्टिया में अइलऽ नाहीं। सरयूपारिन के जौन सभा होखै के रहल ओहि खातिर रहि गइलऽ का? सभा में गाँव जवार क अउर देश देश क लोग जुटल रहल होइ। तुहरे बाबुओ पगड़ी ओगड़ी बाँधि के गइल रहल होइहैं। माटी क पहुना गइलन कि बाड़ें, लिखहऽ।
तुम्हारा नाना
रामचन्द्र शुक्ल
[आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कृत्रिम वातावरण को पारिवारिकता से दूर मानते थे। वे घर और परिवार के सदस्यों से मिर्जापुरी बोली (भोजपुरी मिश्रित अवधी) में ही बातचीत करते थे। अपने दौहित्रा श्रीसुरेन्द्रनाथ त्रिपाठी को वे बुलबुल के नाम से पुकारते थे। शुक्लजी द्वारा रखे हुए ऐसे ही कुछ नामों की बानगी इस पत्र में मौजूद है। चोकरंत वे सुरेन्द्र के भाई धीरेन्द्र को कहते थे। सुरेन्द्र की बहन कृष्णा को वे मल्लू की चाची कहा करते थे।]