शुक्ल के पत्र श्री केदारनाथ पाठक के नाम
(1)
रमईपट्टी-मिर्जापुर
ता. 13-10-1905
प्रियवर
कृपाकार्ड मिला। मेरे ऊपर जो यहाँ आक्रमण हो रहे हैं उसका हाल तो आपने बाबू भगवानदास1 से जान ही लिया होगा। इस समय मेरे ऊपर केस लाने की तैयारियाँ हो रही हैं। बाबू काशीप्रसाद कहते हैं कि वह चिट्ठी जो 'बंगवासी' में देवीप्रसाद के नाम से छपी है उनकी लिखपढी नहीं है। इसका, वे कहते हैं कि उनके पास प्रमाण है। केस लाने में अभी दो-तीन दिन की देर है। इस बीच में मुझे एक दो काम करना है।
प्रथम तो मुझे सिध्द करना है कि वह चिट्ठी काशीप्रसाद की ही लिखी है। यह बात सिध्द हो जाने पर सब बखेड़ा मिट जाएगा और काशीप्रसाद मुआफी माँगेंगे परन्तु यदि सिध्द न हो सका तो वे कहते हैं कि मुझे मुआफी माँगना होगा।
बाबू काशीप्रसाद यह भी कहते हैं कि वे इस बात को प्रमाणित कर देंगे कि वह 'मोहिनी'2 वाली चिट्ठी मैंने लिखी है, पर मैं नहीं जानता कैसे। आगे जो कुछ होगा बराबर लिखता रहूँगा। इधर पत्र न देने का कारण यह था कि मैं चाहता था कि यह सब झगड़ा निपट जाए तब मैं आपके पास लिखूँ। वहाँ का हाल लिखिए।
आपका
रामचन्द्र शुक्ल
1. रमईपट्टी, मिर्जापुर निवासी, शुक्ल जी के बचपन के साथी।
2. कलकत्ता से निकलने वाली पत्रिका।
(2)
मिर्जापुर
25-11-05
प्रिय पाठकजी
कृपा कार्ड पाया। आपकी आशा के लिये धन्यवाद। प्रियवर, आजकल मेरे ऊपर ईश्वर की अथवा शनैश्चर की बुरी दृष्टि है। एक के उपरान्त दूसरी, दूसरी के उपरान्त तीसरी विपत्ति में आ फँसता हूँ। सुनिए, मैं काशी आने की पूरी तैयारी कर चुका था परन्तु बीच में मेरे घर ही में एक विलक्षण षडचक्र रचा गया। हरिश्चन्द्र का गौना छ: या सात दिन में आने वाला है। मेरे पिताजी इधार कई दिनों से दौरे पर हैं। इसी बीच में मेरी विमाताजी को भी भयंकर मूर्ति धारण करने को सूझी। 400) का जेवर गायब करके कह दिया कि मेरे पास ही से घर में से चोरी हो गया। वे जेवर प्राय: वही थे जो हरिश्चन्द्र के विवाह में मिले थे। आप जानते होंगे कि ऐसी कार्रवाइयाँ दो बार वह और भी कर चुकी हैं। मेरे पिताजी को खबर दी जा चुकी है, आज वह आने वाले हैं। जब तक वे न आ जायें मेरा यहाँ से टलना उचित नहीं। बाबू श्यामसुन्दरदास को भी मैंने टेलीग्राम दे दिया है।
आपने लिखा है कि मारे लज्जा के माथा ऊँचा नहीं होता। प्रियवर, थोड़े दिन माथा नीचा ही किए रहिए, यदि ईश्वर की इच्छा होगी तो वह ऊँचा हो ही जायगा। (मेरी कायरता का क्या परिणाम आपको उठाना पड़ा स्पष्ट लिखिए, मुझे बड़ा दु:ख है) आपने लिखा है कि बाबू श्यामसुन्दरदास को बुरा होना पड़ा। यह बात मेरी समझ में नहीं आती। किससे बुरा होना पड़ा? क्या सारे संसार से? क्या संसार ही मेरे विरुध्द है। महावीरप्रसाद द्विवेदी से वे बुरे हुए तो कोई नई बात नहीं हुई। रहे कोटाधीश1 वे द्विवेदी के उपासक ही ठहरे। उनसे बुरा होने में बाबू श्यामसुन्दरदास ऐसे धीर मनुष्य को दु:ख मानना न चाहिए। हाँ, उनके अनुरोध पालन में मैंने विलम्ब किया इसका अवश्य उन्हें दु:ख होगा। इस विषय में मैं और आपसे क्या कहूँ, मैं काशी आने के लिए तैयार बैठा हूँ। केवल पिताजी की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। आज वे आने वाले हैं। आप कहते हैं कि तुमने अपने आगे आने वालों के मार्ग में कंटक बिछा दिया। प्रियवर, मुझे स्वप्न में भी यह विश्वास नहीं हो सकता कि आप ऐसे सुहृद् और स्नेही मित्र मेरे निकट आने में उन कंटकों की परवाह करेंगे। वे उन कंटकों का मर्दन करेंगे, उन्हें पददलित करेंगे। आपको मेरे ऊपर रुष्ट न होना चाहिए, दया करनी चाहिए। मेरी दशा की ओर ध्यान देना चाहिए। चारों ओर बवंडर चल रहा है, हृदय डाँवाडोल है।
आपका
किकर्तव्यविमूढ़ रामचन्द्र शुक्ल
1. श्री काशीप्रसाद जायसवाल।
(3)
रमईपट्टी, मिर्जापुर
22 अगस्त, 06
प्रिय पाठकजी
प्रणाम
कृपाकार्ड मिला। चित्त प्रसन्न हुआ। मैं इधर कई आपत्तियों से बराबर घिरा रहा। मेरे घर में कालरा हो गया था। मैं स्वयं बराबर बीमार रहा। अच्छे होने की कम आशा थी। एक लड़का भी दो महीने का होकर मर गया। सारांश यह कि जो जो उपद्रव चाहिए सब इसी डेढ़ महीने के बीच हो गए। खैर अब से भी ईश्वर अनुग्रह करे। आप पत्र का उत्तर न पाने से अवश्य रुष्ट हुए होंगे। पर अब आपको दया करनी चाहिए। मेरे ऊपर वैसी ही कृपा बनाए रहिए, यही प्रार्थना है। आपका यहाँ से चला जाना मुझे बहुत अखर रहा है।
कोटाधीश विलायत में बैरिस्टरी भी पढ़ेंगे और व्यापार भी सँभालेंगे। बेंकटेश्वर समाचार में 'हिन्दी लेखक का विलायत गमन' देखा। यह गमन समय में आप लिखवाते गए हैं।
'पिंकाट' की जीवनी यदि 'बंगवासी' में मिल जाए तो बहुत अच्छी बात है। विलायत से चिट्ठी का जवाब जो आपके पास आया है, कृपा करके उसकी नकल मेरे पास भेज दीजिए। आपके यहाँ न रहने से मेरा कुछ भी हाथ पैर नहीं चलता है। किन्तु मुझे दृढ़ आशा है कि आप मुझे वहाँ से भी उकसाते रहेंगे।
यदि आप जीवनी वहाँ से भेज दें तो मैं हाथ लगा दूँ। देखिएगा, कृपा बनाए रहिएगा। पत्र बराबर देते रहिए। अब मैं भी स्वस्थ हो गया हूँ, मुझसे भी त्रुटि न होगी। आप अपने आने के विषय में अवश्य लिखिए। आपको ऐसी प्रतिज्ञा करनी चाहिए। न मिर्जापुर में इच्छा हो तो काशी ही में आकर रहिए। इस प्रकार अपने प्रति और मित्र वर्ग का परित्याग कर देना ठीक नहीं। आशा है आप उचित उत्तर देंगे।
आपका वही
रामचन्द्र शुक्ल
(4)
बस्ती
25-5-08
प्रियवर
प्रणाम
मुझे यहाँ आए आज पाँच दिन हुए। एक कार्ड मैं आपकी सेवा में यहाँ से भेज चुका हूँ। उससे सब समाचार विदित हुए होंगे। आपका स्वास्थ्य अब कैसा है? मेरी तबीयत तो यहाँ आने से ठीक हो गई है। बाबू राधाकृष्ण की जीवनी मैं यहीं से समाप्त करके बहुत शीघ्र भेजूँगा। सब लिख गई है केवल पत्र आदि स्थान-स्थान पर सन्निविष्ट करना है। आपको मैं थोड़ा कष्ट देता हूँ, नीचे लिखी पुस्तकें मेरे पास यहाँ पर नहीं है। मैं मिर्जापुर छोड़ आया-
(1) श्री गंगाप्रसाद गुप्त लिखित बाबू राधाकृष्णदास का जीवन चरित्र।
(2) सभा के गृह प्रवेशोत्सव के समय की कविता और विवरण।
कृपा करके ये दोनों चीजें शीघ्र भेज दीजिएगा। रिपोर्ट आदि भी जो मैंने माँगा था यदि भेज दीजिए तो अच्छा है। विशेषकर वे जिनमें उनका कुछ उल्लेख हो।
बाबू श्यामसुन्दरदास के विषय में भी लिखिएगा। कोश विभाग का कार्य किस प्रकार चल रहा है? बाबू श्यामसुन्दरदास बाहर गए? और जो नए समाचार हों लिखिए, पत्र बराबर भेजते रहिएगा।
आपका
रामचन्द्र शुक्ल
गाँव-अगौना
डाक-कलवारी
जिला-बस्ती
शीघ्रता के विचार से मैं एक टिकट रख देता हूँ। पता मेरा हिन्दी में ही लिखिएगा। पत्र इस पते से भेजिएगा-
रामचन्द्र शुक्ल
गाँव-अगौना पो. आ.-कलवारी जिला-बस्ती
(5)
रमईपट्टी, मिर्जापुर
2-8-08
प्रियवर
हरिश्चन्द्र1 कल बनारस से आए और कहा कि पाठकजी कहते हैं कि अब आते क्यों नहीं, देर हो रही है। इसका क्या अभिप्राय है मेरी समझ में नहीं आया; क्योंकि मुझे अबतक बाबू श्यामसुन्दरदास का कोई पत्र नहीं मिला और न आप ही ने कुछ लिखा। साफ-साफ लिखिए कि क्या बात है। यदि बाबू श्यामसुन्दरदास ने कोई पत्र बुलाने के लिये भेजा हो और वह मुझे न मिला हो तो कृपा करके एक पत्र या टेलीग्राम तुरन्त भेजिए। हरिश्चचन्द्र की बात मेरी समझ में न आई।
मैं आते समय आपके घर पर गया था, बाबू वृजचन्द्र2 जी के यहाँ भी गया था, पर आपका पता न लगा। बाबू श्यामसुन्दरदास के यहाँ मुझे देर हो गई थी
1. आ. शुक्ल के अनुज।
2. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के भतीजे।
इसी से लाइब्रेरी में नहीं गया। आते समय मैं आपसे नहीं मिला, इसका मुझे भी खेद है। पर इसमें मेरा दोष न जानकर क्षमा कीजिएगा।
आपका
रामचन्द्र शुक्ल
(6)
मिर्जापुर, शनिवार
प्रियमित्र
पत्रा भेजने में देर हुई, क्षमा कीजिएगा। मैं आपके घर पर गया था वहाँ सब कुशल हैं।
मेम्बर होने के लिए पत्र मैं आप ही के पास भेज देता हूँ। आप उस पर दो आदमियों के हस्ताक्षर बनवा कर सभा में दे दीजियेगा। 3) वार्षिक चन्दा मैं दूँगा। वर्तमान वर्ष का आधा चन्दा 1ड्ड) मैं सेक्रेटरी के नाम भेजता हूँ।
मेरे लेख पर क्या विचार हुआ यह भी लिखिएगा। आप मिर्जापुर कब तक आवेंगे? मेरे ऊपर कृपा बनाए रहिएगा।
भवदीय
रामचन्द्र शुक्ल
(7)
प्रिय पाठकजी
आप काशी जाते समय मुझसे नहीं मिले। कहिए, सभा के उत्सव का क्या रंग-ढंग है। यदि मैं आना चाहूँ तो क्या आप मेरे लिए एक कार्ड का प्रबन्ध कर सकते हैं? कृपा करके इसका उत्तर आप शीघ्र निश्चित रूप से दीजिए। मैं तो समझता था कि आप इसके विषय में मुझे अवश्य लिखेंगे पर आपने मौनावलम्बन ही उचित क्यों विचारा?
भवदीय
रामचन्द्र शुक्ल
अंतिम पत्र में तिथि और स्थान आदि का उल्लेख नहीं है।