शुभचिंतक / पवित्रा अग्रवाल

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आफिस से लौट कर पूरे घर में चक्कर लगा आयी किन्तु रीना टीना कहीं नज़र नहीं आयीं तो मम्मी जी से पूछा—" मम्मी जी रीना टीना कहाँ है? '

" अपने ताऊ जी के साथ बाज़ार गयी हैं। घर में दोनों गुमसुम-सी बैठी थीं...थोड़ा घूम फिर आयेंगी तो मन बहल जायेगा। '

" राकेश भाई साहब आये हैं? ...कब आये? '

" दोपहर को आया था। '

" कुछ काम था? '

" काम तो कुछ नहीं है, कह रहा था रवि के न रहने से यहाँ की चिन्ता लगी रहती है। '

तभी जेठ जी के साथ रीना टीना ने खिलखिलाते हुये घर में प्रवेश किया। बहुत दिनो बाद उन्हें इतना खुश देखा था। रवि के जाने के बाद शायद पहली बार वह खुल कर हँस रही थीं। मन को कुछ अच्छा भी लगा।

" मम्मी आज तो बहुत मज़ा आया। ताऊ जी ने ख़ूब घुमाया...मेरी पसंद की बटर स्काच आइसक्रीम भी खिलायी'-रीना ने चहकते हुये कहा

" मम्मी मैं ने कोल्ड काफ़ी पी और रवा दोसा भी खाया'-टीना ने गले में बाँह डालते हुये कहा

" ठीक है अब जाकर अपना होम वर्क पूरा करो वरना कल क्लास में सजा मिलेगी। '

" भाइ साहब आप अचानक कैसे आ गये? ...सोनू मोनू कैसे हैं? '

" ठीक हैं बस, माँ की कमी तो मैं पूरी कर नहीं सकता। ...रवि के जाने के बाद से अब यहाँ की चिन्ता भी लगी रहती है। समय बड़ा खराब है, घर में दो बड़ी होती लड़कियाँ हैं, बूढ़ी माँ हैं ...तुम हो पर मेल मेम्बर कोइ नहीं है। ...बड़ा सम्हल कर रहने की ज़रूरत है। तुम कहो तो मैं अपना ट्रान्सवर करा कर सोनू मोनू के साथ इस शहर में आ जाऊँ? '

" अरे नहीं भाइ साहब आप हमारे लिये परेशान न हों। एक जगह से उखड़ कर कहीं नई जगह जमना आसान नहीं होता। ...सोनू मोनू को आप की हम से ज़्यादा ज़रूरत है...उन्हे वहाँ बार-बार अकेला छोड़ कर आप यहाँ मत आया करिये। ...समय बड़ा बलवान होता है, हमने भी अब रवि के बिना जीना सीख लिया है। '

रात को खाने पर जेठ जी ने पूछा-" रवि के बीमे के एक लाख रुपये मिल गये होंगे, क्या किया उनका? '

" पचास-पचास हज़ार रीना, टीना के नाम बैक में फिक्स करा दिये है...घर का ख़र्चा अपनी तन्खा से चलाने का प्रयास करूँगी। '

" अरे बैंक में कुछ नहीं मिलता...अब तो इन्टरेस्ट और भी कम कर दिया है। यदि उस पैसे को कहीं सही जगह ब्याज पर चढ़ा दिया जाये तो तीन प्रतिशत ब्याज तो आराम से मिल जायेगा। तुम चाहो तो मुझे दे दो, मेरा एक दोस्त व्यापार बढ़ाने के लिये बाज़ार से ब्याज पर पैसा लेने की सोच रहा है। विश्वास का आदमी है, पैसा मारे जाने का डर भी नहीं है। वह हर महिने जो तीन प्रतिशत ब्याज देगा वह मैं तुम्हे भेज दिया करूँगा। '

" अब तो मैं फिक्स करा चुकी हूँ। '

" तो मैं एक दिन और रुक जाता हूँ, केंसिल करा कर मुझे दे दो ...बच्चियों के काम आयेगा। वैसे भी रीना पन्द्रह वर्ष की तो हो ही गयी है, इस वर्ष टेंन्थ पास कर लेगी, दो-तीन वर्ष में अच्छा लड़का देख कर इसकी शादी कर देंगे...तो एक बोझ कम होगा फिर बस टीना रह जायेगी। '

" भाइ साहब मैं रीना टीना को बोझ नहीं समझती और न जल्दी शादी करने के पक्ष में हूँ। दोनो ही पढ़ने में बहुत अच्छी हैं। रीना को टीचिंग में बहुत रुचि है, उसे कम से कम एम.ए.तो कराना ही है। आज के समय में लड़कियों में भी आत्मनिर्भर होने की क्षमता होना बहुत ज़रूरी है। '

" तुम्हारी बात बिलकुल सही है फिर भी समय पर सही मैच मिल जाये तो पढ़ायी पूरी करने के चक्कर में शादी को टालना नहीं चाहिये। पढ़ाइ तो शादी के बाद भी हो सकती है। '

" शादी के बाद कोइ नहीं पढ़ाता। बी.ए.सेकिन्डियर के बाद मेरी भी शादी कर दी गइ थी। सब ने कहा था शादी के बाद थर्ड इयर कर लेना लेकिन किसी ने नहीं करने दिया। यदि आज मैं ग्रेजुएट होती तो इन के आफिस में मुझे यह छोटी-सी नौकरी नहीं करनी पड़ती फिर भी इस नौकरी से बड़ा सहारा मिला है। रहने को अपना यह छोटा-सा पलैट भी है वरना मैं क्या करती? '

" तभी तो मैं कह रहा हूँ कि आजकल बैक में रुपये जमा कराना बेवकूफी है। मुझे दे दो, मैं ब्याज पर उठवा दूँगा। '

" अधिक ब्याज के लालच में पड़ कर कही मूल भी न डूब जाये, मैं कोइ भी ख़तरा मोल लेना नहीं चाहती। बैक में भले ही ब्याज कम मिलेगा किन्तु धन तो सुरक्षित रहेगा। '

" बैंकों में भी धन कहाँ सुरक्षित है? ...समाचार पत्रो में बैक घोटालो के समाचार नहीं पढ़े क्या? '

" पढ़े हैं तभी तो ब्याज दर अच्छी होने के उपरान्त भी मैं ने इन कोपरेटिव बैंको में धन नहीं डाला... राष्ट्रीय कृत बैको में धन डाला है। '

" जहाँ धन देने को कह रहा हूँ, वहाँ भी सुरक्षित रहेगे मैं गारन्टी लेता हूँ, तुम्हे मुझ पर तो विश्वास है न? '

पूछने को दिल करता है कि आप की गारन्टी कौन लेगा? आप पर ही तो विश्वास नहीं है किन्तु यह कह नहीं पायी—" आप पर तो विश्वास है पर अपनी क़िस्मत पर विश्वास नहीं है...मुझे माफ़ करें भाई साहब, मैं अभी एफ.डी. केन्सिल नहीं कराना चाहती। '

" माँ, किरन को आप क्यों नहीं समझातीं, मैं इस परिवार का शुभचिंतक हूँ, इन के भले की बात ही कह रहा हूँ। '

" देख बेटा यह इसका व्यक्तिगत मामला और अपना भला बुरा वह समझती है। मैं इस चक्कर में नहीं पड़ना चाहती। '

मैं भी अब और बहस के मूड में नहीं थी इस लिये वहाँ से उठ आयी किन्तु मन खिन्न हो गया था। बच्चो की वज़ह से मन की पीड़ा छिपा कर मुस्काने का अथक प्रयास करती रहती हूँ किन्तु लोगों को यह भी मंजूर नहीं है। अनाहूत से ये भाइ साहब शुभचिन्तक होंने का ढोंग करते, सुझावों का टोकरा उठाये न जाने क्यों बार-बार आकर यादो की झील में कंकड़ी फेंक जाते हैं। उनकी असलियत मुझ से छिपी नहीं है। उन्हें न जाने कब रेस कोर्स में पैसे लगाने का चस्का लग गया था और इसी शौक ने उन्हे बरबाद कर डाला...उन्होने जगह-जगह से दस प्रतिशत ब्याज का लालच दे कर हजारो रुपये का कर्जा ले रखा था। जिसे न लौटाने पर लोग उनकी जान के पीछे पड़ गये थे...नौकरी भी जाते-जाते बची थी। उसी समय में अपना दुखड़ा रो कर दस हज़ार रुपये रवि से भी उधार ले गये थे जो आज तक वापस नहीं किये।

कर्जदाताओ से परेशान हो कर वह अपनी पत्नी को पीहर से एक लाख रुपये लाने के लिये यातनाए देने लगे थे। उन्हो ने साफ़ मना कर दिया था कि मैं रिटायर्ड पिता से उनके जीने का सहारा नहीं छीन सकती। पति द्वारा प्रदत्त परेशानियो के जंगल में फँसी जिठानी जी ने आत्महत्या के रूप में मुक्ति का मार्ग तलाश लिया था। बच्चो का मोह भी उन्हे नहीं रोक पाया था।

इन भूली बिसरी बातों के याद आने से मेरे मन में नफरतो के कैक्टस फिर उगने लगे हैं। मैं समझ गयी हूँ कि उनका यों बार-बार आना भाई के परिवार से मोह नहीं है। इस संकट के समय में भी विश्वासो की आड़ ले कर वह छलने ही आये हैं। मुझे किसी साज़िश की बू आने लगी है। किसी तरह उनके आने पर रोक लगानी होगी। ...पर कैसे?

मैं मम्मी जी के पास जाने को अपने कमरे से बाहर निकली थी कि भाई साहब की आवाज़ सुन कर वही ठिठक कर खड़ी हो गयी। वह धीमी आवाज़ में कह रहे थे-" माँ मैं देख रहा हूँ कि इधर किरन में बहुत बदलाव आया है...बहुत चालाक हो गयी है...काम पर तो जाती ही है, कभी कोइ भा गया तो हो सकता है आगे पीछे शादी भी करले फिर तुम्हारा क्या होगा। रवि के रुपयो पर कुछ हक़ तो तुम्हारा भी है माँ, कुछ रुपये तुम्हे अपने नाम भी करा लेने चाहिए थे। '

" क्यों, क्या मेरे प्रति सारा फ़र्ज़ रवि का ही था, तेरा कुछ भी नहीं है? क्या मैं तेरी माँ नहीं हूँ? यदि उसने दूसरी शादी कर भी ली तो मैं तेरे पास आ कर रह लूँगी...मुझे रखेगा न? '

" यह भी काइ पूछने की बात है? ...पर मैं तो कुछ और कहना चाह रहा था लेकिन आप समझ नहीं पा रहीं। माँ, मैं सोच रहा था कि आगे पीछे दूसरी शादी तो मुझ को भी करनी ही है यदि किरन तैयार हो जाये तो उस से भी तो हो सकती है। मेरे बच्चो को माँ मिल जायेगी, रीना-टीना को बाप मिल जायेगा और घर की इज़्ज़त घर में रहेगी और आप तो जैसे रह रही है वैसे ही रहती रहेगी। '

" आज तो तूने अपने मन की बात मुझ से कह ली पर आगे से मत कहना। किरन के बारे में कभी एसा सोचना भी नही। एसा कभी नहीं होगा। ...अपना पत्नी को तो चैन से जीने नहीं दिया...मैं किरन की ज़िन्दगी बरबाद नहीं होने दूँगी। '

" तुम मेरी माँ हो कि दुश्मन...तुम्हे मेरी ज़रा भी चिन्ता नहीं है, पराये घर से आइ बहू की इतनी चिन्ता है। मेरी पत्नी को मरे तीन साल हो गये लेकिन तुम ने कभी एक बार भी मेरी शादी के बारे में नहीं सोचा। क्या मैं तुम्हारा सौतेला बेटा हूँ '

" तेरी शादी कर के मैं किसी की ज़िन्दगी खराब नहीं करना चाहती। भले ही तू कार्ट से छूट गया पर मैं अब भी तुझे बहू का हत्यारा मानती हूँ। भले ही तूने हत्या नहीं की किन्तु तेरे जुल्मो ने उसे आत्महत्या कि राह पर खड़ा अवश्य कर दिया था। '

" माँ बस चुप करो, किरन सुनेगी तो मेरे बारे में क्या सोचेगी। ...मुझे नहीं मालुम था कि तुम्हारे मन में मेरे लिये इतना ज़हर भरा है। मैं ही पागल हूँ जो अपना काम धन्धा और बच्चो को छोड़ कर बार-बार यहाँ तुम सब के हालचाल जानने के लिये भाग कर आता हूँ। '

" आगे से मत आना। हालचाल जानने की इच्छा हो तो फ़ोन कर लेना। '

भाई साहब की बातें सुन कर मैं अवाक रह गयी थी। उनके मन में पक रही इस खिचड़ी का अंदाजा तो मुझे सपने में भी नहीं था। मै तो बस यही अंदाजा लगा पायी थी कि उनकी नीयत धन हड़पने की है पर वह तो बहुत दूर की सोच रहे हैं...अच्छा है उनकी असलियत मैं जान गयी हूँ। मम्मी जी के प्रति दिल श्रद्धा से भर उठा। कभी वह भी एक जिम्मेदारी लगती थी पर अब उनकी उपस्थिति जेठ की तपती दोपहर में बरगद की छाँव-सी है। भगवान उन्हे लम्बी उमर दे।

भाई साहब को उनकी औकात तो मम्मी जी बता ही चुकी थीं। मैं ने भाई साहब या मम्मी जी को इसका आभास भी नहीं होने दिया कि मैं उनकी बातें सुन चुकी हूँ। मैं चुपचाप उल्टे पाँव अपने कमरे में लौट आयी।