शुभस्यशीघ्रम् / प्रतिभा सक्सेना

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जीवन में संतुलन का बड़ा महत्व है। बिना इसके के न सौंदर्य की सृष्टि हो सकती है। न पूर्णता का समावेश।लेकिन लोग हैं कि हमेशा संतुलन बिगाड़ने पर उतारू रहते हैं। जो अच्छा लगे स्वीकार, जो न भाए त्याग दो। मीठा-मीठा गप् और कड़वा-कड़वा थू - ये भी कोई बात हुई! मीठे के साथ कड़वा झेलने की भी क्षमता होनी चाहिये। पर लोगों को क्या कहें, ज़रा से में हाय-हाय, आह-आह चिल्लाते उछल-कूद शुरू। ज़रा सी कड़वाहट जो लोग नहीं झेल सकते, ज़िन्दगी में क्या करेंगे?

दुनिया में आए हैं तो तीखापन झेलने का अभ्यास करना पड़ेगा । इसलिए मिर्ची की झाल सहने की आदत डाल लेनी चाहिये। इससे दूर भागने वाले बड़े आदर्शवादी बनते हैं -मतलब अपने को ऐसा दिखाते हैं। और सच तो यह कि उनकी सहन-शक्ति बहुत कम होती है। ज़रा सी कड़ुआहट मिली -आँसू बहाने लगे। मुँह लाल किए सी-सी की धुन लगाए, पानी पर पानी माँगे चले जाते हैं। मुझे तो समझ में नहीं आता इन पर हँसूँ कि रोऊँ - ज़रा सहनशीलता नहीं। संयम का नाम नहीं।

हाँ, हमारे यहाँ यही। ज़रा सी मिर्ची तेज़ हो जाय किसी चीज़ में, फिर देखो तमाशा। जैसे बम फट पड़ा हो। सावधानी के संदेश, उपदेश पर उपदेश -’इससे ये नुक्सान होता है वो नुक्सान होता है'। अक्षम्य अपराधकर डाला हो जैसे। अरे, भगवान की बनाई चीज़ें हैं। हरेक में कुछ भलाई कुछ बुराई - दुनिया ही दुरंगी ठहरी। पर इन्हें कौन समझाये, पहले से प्रिज्यूडिस्ड हैं। और भी कुछ लोग हैं -हरी मिर्ची खा लेंगे पर लाल से जैसे दुश्मनी हो। गुड़ खायेंगे गुलगुले से परहेज़! चीज़ एक ही है। चाहे जैसे खाओ -क्या कच्ची क्या पक्की। वैसे भी कच्चे फल डाली से तोड़ना कोई अच्छी बात है!। ऊपर से निराले नखरे -हरी मिर्ची तोड़ लाओ और वह भी उतनी कड़वी न हो। जैसे पेड़ की फ़ितरत पर इनकी हुकूमत चलती हो। कोई पूछे - खा रहे हो मिर्ची और कड़वी न हो? डेढ़ टांग की मुर्गी चाहिये इन्हें। अरे, मत खाओ। क्यों शौक चर्राया है बहादुरी दिखाने का!

मैं तो कड़ुआहट से नहीं घबराती। झेलने में विश्वास करती हूँ। जिसने उज्जैन की रतलामी या, बलवट भेरू के सेव का स्वाद लिया है वह कडुआहट से नहीं डरेगा। न पलायन करेगा, डट कर मुकाबला करने को तैयार। दृष्टिकोण व्यापक - जीवन की झार झेलने को प्रस्तुत! खाने में चटपटापन न हो तो क्या स्वाद रहा! बस फीकापन ही फीकापन! हँसता बोलता उत्साहपूर्ण जीवन हो--थोड़ा तीखा-तुर्श, नमक-मिर्च- मसालेदार। मरीज़ोंवाला पथ्य-सेवन करने का कोई शौक नहीं अपने को। न साधु-संत बनने का चाव है।

मैंने देखा है मिर्ची खानेवाले अधिक प्रसन्नचित्त, चैतन्य और फ़ुर्तीले होते हैं। इसीलिये प्रवृत्तिमार्गी होते हैं। परहेज़ करने वाले उदासीन, आराम की मुद्रा धारे, निवृत्ति की ओर भागते हैं। गौतम बुद्ध, कबीर वगैरा मिर्च की कड़ुवाहट नहीं झेल पाते होंगे। तभी जीवन के संघर्षों से घबरा गए। जाग गई गृह-त्याग कर भाग चलो वाली भावना। सच्ची में गृहस्थ-धर्म निभाना बड़ा कठिन होता है। सारी जिम्मेदारी, पत्नी पर छोड़, अपना किया-धरा उसके मत्थे मढ़ महापुरुष बनने निकल गए। बुद्ध को कहाँ स्वयं कुछ झेलना पड़ा! औरों देख-देख कर ही घबरा गए। तभी न सब छोड़-छाड़ धीरे से निकल लिए। मुक्ति के उपाय खोजने लगे।निवृत्ति की ओर मुड़ गए - दुख- दाघ से बच निकलने के रास्ते ढूँढते।

लाख कोशिश करो दुनिया तो दुनिया रहेगी। थोड़े दिन बाद फिर जैसी की तैसी! अच्छा है ख़ुद को सम्हालो, जो आ पड़े झेलो! निवृत्ति कोई छुटकारा नहीं जीवन से पलायन है। घबरा कर भागो मत। श्री कृष्ण ने कहा है -ये संसार एक कर्म-क्षेत्र, जो सामने है उससे डट कर जूझो! प्रवृत्ति-मार्गी थे कृष्ण। जन्म से अवसान तक कभी चैन कहाँ मिला। सबका रोना -गाना चलता रहा। वे सारा-कुछ सुनते, झेलते रहे, शान्त भाव से। सारे सूत्र धारे रहे।

मुझे तो लगता है, इतना विषम जीवन किसी का नहीं रहा होगा। और लोग भ्रम पाले रहे - कैसे आनन्दी हैं कृष्ण! स्वयं उन्हें कैसा लगता होगा कभी किसी ने जानने की कोशिश की?

इतना वीतराग होकर कैसे जीता है कोई - दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगत स्पृहः - अपमान, कटु-वचन, उलाहने और शाप - सब शिरोधार्य! आरोप लगाते रहे लोग, शिकायतें करते रहे और उनका सहज भाव देखो, अपनी सफ़ाई तक नहीं दी। परिस्थितियों में सम बैठाते, सारी कटुताएँ फूँक में उड़ाते, पहाड़ सा बोझ खुद उठाये औरों का जीवन सह्य बनाने के यत्न करते रहे।सबको आश्वस्ति देते सारी कड़वाहट शान्त-भाव से पीते रहे - अकेले! जैसे वही उनका प्राप्य हो। यह है प्रवृत्ति-पथ! निवृत्ति से ठीक विपरीत- सब के हित में जूझो, अपना सुख, अपना दुख कुछ नहीं, जो आ पड़े शान्त भावेन स्वीकार!

तो भगवान ने मिर्च बनाई है खाने के लिए। उसकी रची वस्तु का अनादर मत करिये। ज़रा सोचिये, दुनिया से छुट्टी पाकर आप स्वर्ग पहुँचे और उसने प्रश्न उठाया, ’ मैंने जीवन के कितने स्वाद प्रदान किए थे, ग्रहण किये?’

आप जवाब देंगे, ’हें हें, मिर्च नहीं खाई।’

क्यों?’

'कड़वी थी।’

'अच्छा!’वह कहेगा’, जाओ भागो। बचे हुए भोग पूरे कर के आओ।’

और ठेल दिए जाएँगे फिर से यहीं।

जानते हैं तब क्या होगा? बाकी स्वादों का कोटा तो पहले ही पूरा कर चुके हैं। वही एक शेष बचा होगा। इसलिए सोचिए, समझिये! संतुलन रखिये जीवन में, ’कड़ुआ-कड़ुआ थू' मत करिये। स्वाद लेकर मिर्च खाना सीखिये।

और भी सुन लीजिये -

इधर केलिफ़ोर्निया वि.वि. में वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि मिर्ची खाने से फ़ैट कम होता है। तो मिर्च खानेवालों मोटापन भूल जाइये।

ऑस्ट्रेलिया की तस्मानिया यूनिवर्सिटी की डॉ. किरण आहूजा के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय शोध टीम की शोध के मुताबिक मिर्च में डायबिटीज और हृदयरोगों को रोकने की क्षमता होती है। मिर्ची में मौजूद कैप्साइसिन व डीहाइड्रोकैप्साइसिन नामक तत्वों में रक्त शर्करा (ब्लड शुगर या ग्लूकोज) को कम करने, इंसुलिन का स्तर सामान्य रखने, धमनियों की दीवारों पर जमने वाला वसा को घटाने व रक्त के थक्के (ब्लड क्लॉट्स) को रोकने की क्षमता होती है।

अगर मीठा-मीठावाले अपना कल्याण चाहते हैं तो जीवन में कड़ुआहटों का भी स्वाद लेना सीख लें।

मिर्ची-सेवन की आदत डाल लें - शुभस्यशीघ्रम्!