शुभ, मंगल, सावधान और विविध व्यवसाय / जयप्रकाश चौकसे

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शुभ, मंगल, सावधान और विविध व्यवसाय
प्रकाशन तिथि : 28 अप्रैल 2020


प्रेम और विवाह की यथार्थ घटनाएं बड़जात्या परिवार की विवाह फिल्मों से अधिक रोचक होती हैं। उज्जैन के युवा का विवाह इंदौर में रहने वाली कन्या के साथ तय हुआ था। कोरोना महामारी के कारण अनगिनत विवाह स्थगित हो गए हैं। बहरहाल, साहसी युवा इंदौर आया। पंडित ने मोबाइल पर मंत्र पढ़े और शुभ मंगल सावधान संपन्न झाला। बाद में ज्ञात हुआ कि वह पंडित फिल्मों में पंडित की भूमिका करता था। ज्ञातव्य है कि देव आनंद और कल्पना कार्तिक अभिनीत फिल्म की शूटिंग चल रही थी। देव आनंद ने शादी का प्रस्ताव रखा जिसे कल्पना कार्तिक ने स्वीकार किया। देव आनंद के स्वभाव में त्वरित कार्य करने की प्रवृत्ति रही है। वे एक विचार कागज पर लिखते और स्याही सूखने से पहले उस विचार से प्रेरित फिल्म की शूटिंग कर लेते। बॉक्स ऑफिस परिणाम से वे कभी विचलित नहीं हुए। वे प्रतिदिन सुबह की सैर करते हुए इतनी तेजी से चलते कि तन्हा रह जाते थे।

देव आनंद भविष्य में विचरण करते, उनके समकालीन राज कपूर को वर्तमान से लगाव रहा तो दिलीप कुमार विगत में विचरण करते थे। प्रतिस्पर्धा के बावजूद वे तीनों गहरे मित्र भी रहे हैं। देव आनंद ने ताउम्र महानगर के बेरोजगार युवा की भूमिकाएं अभिनीत की थीं। उन्होंने अपने जीवन में एक गांव भी नहीं देखा था। एक फिल्म में फूस की झोपड़ी पर गीत फिल्माया तो उसमें भी देव आनंद थर्मस (आधुनिकता का प्रतीक) लेकर फूस की अटारी पर चढ़ते हैं।

आदित्य चोपड़ा ने अनुष्का शर्मा और रणवीर सिंह को पहला अवसर देकर फिल्म ‘बैंड बाजा बारात’ बनाई थी। विवाह के आयोजन ने कुछ नए व्यवसाय विकसित किए हैं। ‘वेडिंग प्लानिंग’ भी उन्हीं में से एक है। मैरिज ब्रोकर विवाह योग्य व्यक्तियों के चित्र, कुंडली, परिवार की बैंक बैलेंसशीट इत्यादि साथ रखकर जोड़े बनाते हुए इस कहावत को गलत साबित करते हैं कि विवाह के जोड़े आसमान में बनते हैं। मदन मोहन मालवीय के अथक प्रयास से विवाह सादगी से होने लगे थे, परंतुु सूरज बड़जात्या की फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ की अपार सफलता के बाद विवाह समारोह खर्चीले और पांच दिवसीय उत्सव में बदल गए।

अमेरिकी नोए सिनेमा अर्थात मनुष्य अवचेतन के अंधकार के सिनेमा में फिल्म ‘बियॉन्ड अ रीजनेबल डाउट’ में एक स्मार्ट व्यक्ति अमीरजादियों को प्रेमजाल में फंसाकर विवाह करता है। कुछ समय बाद उनकी हत्या इस ढंग से करता है कि वो दुर्घटना लगे। विवाह दर विवाह वह धनवान बनता जाता है। ऐसे ही एक प्रकरण में वह आरोपी बना और उसकी महिला वकील ने उसे निर्दोष सिद्ध कर दिया। कालांतर में उनकी मित्रता विवाह की मंजिल तक पहुंची। वकील महिला का एक मित्र जासूस है और मन ही मन वकील मोहतरमा से इश्क भी करता था। उसने जोड़े पर निगाह रखी और अपने गुप्तचर साथियों की सहायता ली। जासूस ने वकील मोहतरमा को बताया कि शीघ्र ही उसकी भी हत्या होने वाली है, परंतु वह विचलित न हो। इस तरह वह अपराधी रंगे हाथों पकड़ा जाता है। बाद में जासूस और महिला वकील की शादी होती है।

एक अन्य अमेरिकन फिल्म ‘वाट ए वे टू गो’ में नायिका उम्रदराज लोगों से शादी करती है और बार-बार विधवा होकर अधिक धनवान होती जाती है। शर्ले मैकलीन, रॉबर्ट मिचेल और पॉल न्यूमैन अभिनीत इस फिल्म को जे.ली.थॉमसन ने 1964 में प्रदर्शित किया था। इसी तरह की फिल्म ‘डॉली की डोली’ अरबाज खान ने बनाई थी, परंतु भारी घाटा हुआ। इसी विषय पर पंजाब में बनी फिल्म सफल रही थी। ख्वाजा अहमद अब्बास की बहु सितारा फिल्म ‘चार दिल चार राहें’ में एक पात्र तथाकथित छोटी जाति की कन्या से विवाह करना चाहता है। कोई साथ नहीं देता। दूल्हा स्वयं एक बाजा बजाता हुआ कन्या पक्ष के घर जाता है और चांवरी से विवाह करता है। शादी उत्सव प्रेरित फिल्मों में विविधता रही है। ‘तनु वेड्स मनु’ में दुल्हन के द्वार पर दो दूल्हे पहुंचते हैं।