शूटिंग से जुड़े लोगों का फिल्म नामावली में शुमार होना / जयप्रकाश चौकसे

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शूटिंग से जुड़े लोगों का फिल्म नामावली में शुमार होना
प्रकाशन तिथि :10 अगस्त 2017


प्राय: फिल्म के आरंभ में महत्वपूर्ण लोगों के नाम परदे पर प्रस्तुत होते हैं और अंत में रोलर टाइटल्स में हर विभाग के सहायकों के नाम आते हैं, जिनमें उन स्पॉट बॉय के नाम भी आते हैं जो कलाकारों और तकनीशियनों को चाय-पानी देते हैं। फिल्म के बैंकर और ऑउटडोर की व्यवस्था करने वालों के नाम आते हैं। आजकल हर कलाकार का व्यक्तिगत सेवा दल होता है। सितारों के ड्राइवरों के नाम भी दिए जाते हैं। कितने ही सहायक व सेवाकर्मी रोलर टाइटल में नाम देखकर खुश होते हैं। लोलर टाइटल पलक झपकते ही खसक जाता है। इस एक क्षणांश में अपना नाम देखने के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ता है और पूरे यूनिट के सामने डांट भी खानी पड़ती है परन्तु इसके लतियड़ लोग सभी कुछ सहते हैं और सम्मानजनक नौकरियां भी स्वीकार नहीं करते।

फिल्म उद्योग में जूनियर कलाकारों, वादकों, डान्सर इत्यादि के संगठन हैं और कमाई का कुछ प्रतिशत अपने संगठन को देना होता है। अनेक लोग संगठन चलाने के काम से रोजी रोटी कमाते हैं। मीडिया में फिल्मों की करोड़ों की कमाई के आंकड़ों से यह भ्रम पैदा होता है कि इस उद्योग में सभी लोग ऐश कर रहे हैं परन्तु चंद सितारों और नामी तकनीशियनों के अतिरिक्त सभी के हाल वैसे ही बदतर हैं जैसे देश के अन्य लोगों के। फिल्म के साथ एक आभामंडल जुड़ा है जबकि उद्योग की मलाई कुछ ही लोग खा रहे हैं और शेष छांछ पर ही गुजारा कर रहे हैं। याद आती है 'फिर सुबह होगी' के लिए साहिर लुधियानवी की पंक्तियां 'जेबें हैं अपनी खाली, वरना क्यों देता गाली, ये पासवां हमारा, ये संतरी हमारा, बिल्डिंगें जितनी भी थीं, सेठों ने बांट ली हैं, फुटपाथ हैं आशियां हमारा'।

डांस के फिल्मांकन में नायक व नायिका के साथ कुछ और लोग भी ठुमका लगाते हैं। आजकल डांस मास्टर पूरे समूह का भुगतान निर्माता से लेता है और समूह के लोगों को संगठन द्वार तय राशि से भी कम पैसा देता है। सफल व्यक्ति को अनेक सुविधाएं प्राप्त हैं। हर क्षेत्र में शोषण होता है और 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' का नियम आज भी जारी है। किसी भी मेहनतकश को अपने पसीने के वाजिब दाम नहीं मिलते। यह बिचौलियां का स्वर्ण-युग है।

कुछ घटनाएं हैं, जिनमें इन्हीं गुमनाम लोगों की भीड़ से निकलकर किसी ने नाम कमाया है। बाबूराम ईशारा स्टूडियो केन्टीन में वेटर थे और उस दौर के हास्य कलाकार असित सेन उनकी सहायता करते थे। उसे रेहाना सुल्तान के साथ 'चेतना' बनाने का अवसर मिला और रीना रॉय को भी उसने 'जरूरत' नामक फिल्म में प्रस्तुत कितया। प्रारंभिक कामयाबियों के बाद बाबूराम ईशारा अपने ही फॉर्मूले में ऐसे उलझे कि उन्हें काम मिलना बंद हो गतया। संभवत: असफलताएं उतने लोगों को नष्ट नहीं करती जितनी सफलताएं कर देती हैं। जुगल किशोर नामक फिल्मकार ने अनेक असफल फिल्में बनाई परन्तु अमजद खान अभिनीत 'दादा' की सफलता ने उन्हें बहुत नाम और दाम दिया परन्तु इसके बाद वे अधिक दिन जी नहीं पाए। फाकों ने जिसे प्यार से पाला था, अधिक खाने से वह मर गया। भूख कुछ हद तक सहन कर ली जाती है परन्तु आवश्यकता से अधिक भोजन करने पर बीमारियां घेर लेती हैं। संतुलन बनाए रखना आसान नहीं होता।

फिल्म की नामावली में अपना नाम देखने की ललक की तरह ही 'छपास' नामक व्याधि भी है। व्यक्ति अपना नाम सुर्खियों में देखना चाहता है। फेसबुक इत्यादि पर स्वयं को देखे जाने के मोह में लोग चौंकाने के लिए कुछ बातें बोल देते हैं। यह 'छपास' भी ऐसी खुजली है जिसका कोई इलाज नहीं है। तन्हाई को साधना आसान नहीं होता। आम आदमी साधनहीन योद्धा है। विगत दशकों में हमने ऐसी जीवनशैली ईजाद कर ली है, जिसमें सामान्य बने रहना कठिन हो जाता है। आज की आपाधापी और अंधड़ में व्यक्ति मन ही मन प्रार्थना करता है कि वह किसी तरह सामान्य बना रहे।

यूरोप के एक असाधारण प्रतिभाशाली व्यक्ति से अपने अमेरिका प्रवास में कोई अपराध हो गया और उसे जेल भेज दिया गया। उसके प्रशंसकों ने उसे छुड़ाने के प्रयास किए और नामी वकीलों के मशविरे पर उसे पागल करार दिया गया। उसे स्वदेश लौटने की इजाजत मिल गई। स्वदेश लौटते ही पत्रकारों ने उससे उसके पागल हो जाने का कारण पूछा तो उसने कहा कि अमेरका एक पागलखाना ही है, वहां अपना संतुलन बनाए रखना कठिन है। उस कवि का नाम एजरा पाउंड था। टी.एस. इलियट और एजरा पाउंड ने काव्य क्षेत्र में महान कार्य किया है। इन कवियों पर पूर्व के प्रभाव का गहन अध्ययन भी किया गया है। टी.एस. इलियट ने कहीं भी गंगा को गेन्जीस और हिमवत को हिमालय नहीं लिखा है परन्तु इन पर पूर्व के प्रभाव को उस तथाकथित देशप्रेम से नहीं जोड़ा जाता जिसका आजकल ढोल पीटकर कट्टरता और संकीर्णता की हिमायत की जा रही है। काव्य का क्षेत्र किसी भी सरहद को नहीं मानता।

आज अवाम, फिल्मों में दी गई नामावली में रोलर टाइटल पर क्षणांश में अदृश्य हो जाने वाले व्यक्ति की तरह हो गया है।