शेक्सपीयर सीरीज और शखर कपूर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :03 अक्तूबर 2015
सत्तर वर्ष की अायु के करीब पहुंचे शेखर कपूर को क्रेग पीयर्स की लिखी पटकथा पर 'शेक्सपीयर सीरीज' टेलीविजन के लिए सीरियल बनाने का अवसर मिला है और इसमें उनके सहयोगी वे ही लोग हैं, जिन्होंने उन्हें 'क्वीन एलिजाबेथ' फिल्म बनाने में सहयोग किया था। यह उस समय भी आश्चर्य की बात थी कि एक 'भारतीय फिल्मकार', जिसके खाते में केवल 'मासूम' और विज्ञान फंतासी 'मि. इंडिया' मात्र है, उसे 'एलिजाबेथ' बनाने के लिए आमंत्रित किया गया और आज भी आश्चर्य कि बात है कि उनका खाता अभी भी जस का तस है, तो भी उन्हें शेक्सपीयर कथाओं की शृंखला निर्देशित करने के लिए आमंत्रित किया गया है।
यह बात जरूर है कि इस अंतराल में उन्हें कुछ अधूरी फिल्मों से हट जाने का 'संदिग्ध सम्मान' और विगत दो दशकों से 'पानी' नामक फिल्म बनाने की घोषणाओं का इज़ाफा हो गया है। यहां तक कि प्रस्तावित 'पानी' के निर्माता बदलते रहे और इस शृंखला में आखिरी नाम अत्यंत साधन संपन्न व प्रतिभावान आदित्य चोपड़ा का भी है। इतना ही नहीं 'पानी' की प्रथम घोषणा के समय पानी धरती के भीतर मात्र डेड़ सौ फीट पर मिल जाता था और अब चार सौ फीट तक बोरिंग करना पड़ता है। ज्ञातव्य है कि धरती की अत्यंत भीतरी सतह पर धधकती ज्वाला और जहरीले रसायन हैं। यह नुकसान पहुंचाने वाली चीजें उस सतह पर बढ़ती जा रही है। कुछ असर तो जहरीली रासायनिक खाद का है और कुछ संभवत: मानव हृदय के कपट का भी है। बिना किसी दिखाई देने वाले माध्यम के बावजूद नफरतें जाने किस सतह तक पहुंच जाती है। यह संभव है कि सामूहिक अवचेतन की नकल मात्र हो सारी सृष्टि।
शेखर कपूर, चेतन, देव और विजय आनंद की बहन के पुत्र हैं और चार्टर्ड अकाउंटेंट की शिक्षा ने उन्हें लंदन में सम्मानित नौकरी दिलाई थी और कई वर्ष वहां कार्यरत रहने के बाद उनके रक्त में प्रवाहित सिनेमा उन्हें भारत खींच लाया, जहां अंग्रेजी भाषा के उपन्यास 'मैन एंड वीमेन' से प्रेरित 'मासूम' उन्होंने बनाई। अब आदित्य चोपड़ा 'पानी' के निर्माण के लिए तत्पर हैं। 'पानी' ऐसा विषय है, जिस पर कभी भी फिल्म बनाना महान कार्य होगा, क्योंकि विशेषज्ञों का मत है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए हो सकता है गोयाकि आज जो पेट्रोल की कीमत है, उससे कहीं अधिक भविष्य में पानी की हो सकती है। आजकल तो दाल ही 150 रुपए किलो तक पहुंच गई है और प्याज की बढ़ती कीमत कभी सरकार गिरा चुकी है परंतु आज जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं के प्रतिदिन बढ़ते दाम, अब किसी आंदोलन को जन्म नहीं देते। क्या इसका यह अर्थ है कि जैसे हमने भ्रष्टाचार को अनिवार्य शर्त मान लिया है, उसी तरह हमारे सदियों तक धीमी आंच में पके धीरज ने हमें महंगाई को भी स्वीकार करना सिखा दिया है? आम आदमी के शॉक एब्जार्बर मजबूत हैं और क्यों न हों 'भूख व अकाल ने हमें बड़े प्यार से पाला है।' मानव इतिहास में बार-बार पड़े अकाल ने हमारे डीएनए में भूखे रहकर भी जीने की शक्ति दे दी है।
भारतीय फिल्मकार शेखर कपूर को 'एलिजाबेथ' और 'शेक्सपीयर' बनाने के लिए आमंत्रित किया जाता है, क्योंकि उनके साहित्य व कला बोध काफी हद तक पश्चिम की तरह है। जैसे घनघोर भारतीय परंपराओं में ढले कपूर घराने के सदस्य शशि कपूर को अंग्रेज कपूर माना जाता है, वैसे ही आनंद घराने के शेखर कपूर भी मिजाज से अंग्रेज ही हैं। उनकी 'मासूम' व 'मि. इंडिया' से अति प्रसन्न राज कपूर ने बोनी कपूर से कहा कि इस फिल्म की नायिका भूख से बिलबिलाते अनाथ बच्चों के लिए केक, पैस्ट्री लाती है और अगर उस दृश्य में वह रोटी लाती तो भारतीय दर्शक को ज्यादा पसंद आता। इसी तरह राज कपूर ने सलीम से भी कहा था कि यदि उनकी सफल और महान फिल्म 'दीवार' का नायक तस्करी में सफल होने के बाद भी अपनी मजदूरी वाली पोशाक व रूखे-सूखे बालों के गेट अप में ही अमीरों की मजलिस में आता तो ज्यादा भावनात्मक प्रभाव होता। भारतीय सामूहिक अवचेतन पश्चिम के सामूहिक अवचेतन से थोड़ा भिन्न है और भिन्नता वह कारण हो सकती है कि शेखर कपूर को पश्चिम से बार-बार निमंत्रण आते हैं। आज भूखे को रोटी दो तो बच्चा पिज्जा मांगता है। भूख का स्वरूप ही बदल गया है।