शेर और सिंहासन / प्रमोद यादव
एक बार जंगल के राजा शेर ने ( जो दो-एक साल एक सर्कस में रह चूका था ) सारे जानवरों और पक्छियों की एक मीटिंग बुलाई और कहा- ‘हम सब जानवर पूरे साल केवल लुका-छिपी, दौड़-धूप , मार-काट और शिकार में ही व्यस्त रहते हैं... कभी इंसानों की तरह मौज-मस्ती के लिए समय नहीं निकाल पाते...आपस में बैठ नहीं पाते...एक-दूजे का दुःख-दर्द शेयर नहीं कर पाते...अपनी समस्याओं को सुलझा नहीं पाते...इसलिए आज फैसला किया है कि इंसानों की तरह हम भी हर साल एक दिन ‘एनुअल डे’ मनाया करेंगे... कल से वसंत मौसम का आरम्भ है अतः कल का दिन मैं जंगल का ‘एनुअल डे’ घोषित करता हूँ...अब हर साल इसी दिन हम इसे मनाया करेंगे...’
तालियों की गडगडाहट से सारा जंगल गूंज गया.सब जानवर खुशी के आवेग में ही-ही-हो-हो कर चीखने चिल्लाने लगे. बन्दर ने पूछा- ‘महाराज... ‘एनुअल डे’ में क्या होता है ? किस तरह मनाएंगे इसे...? ‘
‘अरे...इंसानों की तरह नाच- गाना करेंगे...खेलेंगे-कूदेंगे...मस्ती करेंगे...फिर आखिर में सब के सब डिनर में लजीज भोजन का लुत्फ़ उठाएंगे...’
बन्दर ने कहा- ‘नाच- गाने का जिम्मा मेरा होगा महाराज...मैं बढ़िया एक से एक प्रोग्राम सेट कर दूँगा...मोर का डांस, हिरनियों का बेले, जासूसी कुत्तों का स्पेशल शो, ( जो पुलिस विभाग से रिटायर हो लौटे हैं ) कोयल का सुगम गायन... बंदरों का ब्रेक डांस... तोतों के आड़े-तिरछे करतब...आदि...आदि...आदि...’
‘ठीक है...शेर खुश हुआ...अब बताओ...खाने-पीने का इंतजाम किसे सौपें? यह महती जिम्मेदारी कौन लेगा? इतने सारे जानवर हैं...तो मेनू भी काफी बड़ा होगा... ‘
सियार हाथ उठा कर बोला- ‘सरकार...यह जिम्मेदारी मैं लेता हूँ...सबको मनपसंद खाना मिल सके इसलिए मैं आज ही सबसे पूछ-पूछ कर मेनू तैयार कर लेता हूँ...कल शाम तक सब इंतजाम हो जाएगा...’
‘शाबास...’ शेर ने”मोगेम्बो खुश हुआ” स्टाईल में सिर हिलाया.
सियार ने सबसे पूछ-पूछ कर मेनू लिखना शुरू किया. हाथियों ने एकदम ताजे हरे-भरे युवा पेड़ों की फरमाइश की...खरगोशों ने ईरानी गलीचों की तरह मुलायम घास की. तो.भालुओं ने एकदम ताजे शहद की मांग रखी...बंदरों ने पके केलों के डांग रखने कहा...शेर और लायन से पूछा गया तो वे बोले-’ हम अपना खाना खुद लेकर आयेंगे...हम शेर हैं...लायन हैं...प्रायोजित भोजन हमें पसंद नहीं....’
इस तरह सब जानवरों ने अपनी-अपनी पसंद के व्यंजन लिखवाये. सबसे आखिर में गधे पहुंचे... उनसे जब पूछा गया कि ‘एनुअल डे’ में क्या खायेंगे? तो सबने एक सुर में जवाब दिया-”खीर”
सियार चौंका- ‘खीर?’
वह दौड़ा-दौड़ा शेर के पास पहुंचा और हांफते-हांफते बोला- ‘राजाजी... राजाजी.... गजब हो गया...गधे कल खीर खाने की बात कर रहे हैं...भला यहाँ कौन खीर बनाएगा?...इन्हें कहिये...ताजे-ताजे हरे घास से काम चलायें...इंसानों का खाना खाकर ये बीमार पड़ जायेंगे...’
शेर ने गधों के सरदार को बुलाकर पूछा- ‘गदर्भराज....आप सबको ये अचानक खीर खाने की क्या सूझी भई...कब से खीर खा रहे हैं? ‘
‘महाराज...सच्ची बात तो ये है कि हमने कभी खीर चखा भी नहीं...सिर्फ बदनाम हैं....दरअसल हमारे पूर्वज इंसानों के बीच ज्यादा रहे...कई-कई गधे उनके अत्याचारों से निजात पाने वापस जंगल का रुख कर लिए...वो ही बताते हैं कि इंसानों के विचार कैसे विकृत है...वे अक्सर इंसानों के श्रीमुख से अपनी जमात के बारे में तरह-तरह की बातें सुनते आये......कभी कहते -” देखो...मेहनत की किसी ने और खीर खा गया गधा...” कभी कहते हैं- जहाँ देखो वहाँ गधे खीर खा रहे हैं...” गधों के खीर खा लेने से इंसानों को क्या तकलीफ, वे आज तक समझ नहीं पाए....ऐसी क्या संजीवनी है खीर में कि खाते ही गधे इंसानों से भी सुपर हो जाते हैं और वे कराहते रह जाते हैं कि गधा खीर खा गया ( और हम(इंसान) ताकते रह गए )... डायनोसार की कसम खा कहते हैं कि ये हमें मुफ्त ही बदनाम किये हैं...इन्होने हमें कभी ‘डंडों की मार’ के अलावा कुछ खिलाया ही नहीं है....बस इन्हीं सब बातों का रहस्य जानने हमें खीर खाने की सूझी है...’
‘ठीक है...’ शेर ने कहा- ‘तुम सबके लिए खीर की व्यवस्था की जायेगी...खाने के बाद अपने अनुभव जरूर बताना...’
दूसरे दिन शाम को बेहद ही धूमधाम से ‘एनुअल डे’ मनाया गया...सारे पशु-पक्छी जमकर नाचे-झूमें...खेले-कूदे...भाषणबाजी का भी दौर चला...फिर पुरस्कार वितरण भी हुआ. अंत में रात को डिनर में जंगल के सारे प्राणियों ने खूब छककर अपनी-अपनी पसंद के डिश का लुत्फ़ उठाया. डिनर समाप्त होने के पश्चात जंगल के राजा शेर ने सबका शुक्रिया अदा किया कि कम से कम समय में अच्छे से अच्छा आयोजन हुआ...फिर एक-एक कर सबसे डिनर के विषय में पूछा...परोसे गए व्यंजनों के बारे में पूछा...आखिर में जब गधों के राजा गदर्भराज से पूछा कि खीर खाकर कैसा फील किये तो उसने जवाब दिया- ‘महाराज...अभी भी ऐसा फील हो रहा है कि जैसे पेट के अन्दर कोई इंसानी कीड़ा कुलबुला रहा है...आपने इंसानों की तरह ‘एनुअल डे’ तो मना लिया...अब उन्ही की तरह एकाध अच्छा , सराहनीय काम और करें...जंगल के राजतंत्र को जानवरतंत्र ( लोकतंत्र ) में बदलने की शुरुआत करें....जंगल में चुनाव कराएं... सदियों से चले आ रहे सामंती-प्रथा का अंत करें...हिटलरशाही समाप्त करें...युगों-युगों से आप”राजा’ की कुर्सी पर काबिज हैं...अब इसका त्याग करें... यह गलत है......आज सब कुछ बदल गया है...आम जानवरों को भी सत्तानशीन होने का हक़ है... अब तो यह गधा भी इस कुर्सी का तलबगार है...आप तुरंत चुनाव की घोषणा करें...और अविलंब गद्दी छोड़ें...’
गधे की बातें सुन शेर बौखला गया...उसने जोरों का एक पंजा उसके पेट पे दे मारा...गधे के मुंह से सारा खीर बाहर आ गया...गधा हांफ गया...जब कुछ सामान्य हुआ तो शेर ने पूछा- ‘और कुछ अनुभव हुआ हो तो वह भी बक डालो...’
गधे ने कराहते हुए कहा – ‘महाराज...एक अनुभव और हुआ...’
शेर ने पूछा- ‘क्या? ‘
तो गधे ने जवाब दिया- ‘हमारे खीर खाने मात्र से इंसानों को तकलीफ होती थी...आज जाना कि जानवरों को भी काफी तकलीफ हो रही...आप डर गए कि खीर खाकर कहीं मैं”सुपरमेन” की तरह”सुपरगधा” न बन जाऊं... आप पर भारी न पड़ जाऊं...आप तो बड़े डरपोक निकले...’
गधे की बातें सुन शेर ने झेंपते हुए कहा- ‘ऐसी बात नहीं....इतिहास गवाह है...शेर किसी से नहीं डरता... जो डर गया , वो मर गया...हम तुम्हारी बातों का सम्मान करते हुए अगले महीने ही आम चुनाव की घोषणा करते हैं....अब हर पांच साल में चुनाव होगा...जो जीतेगा वह पांच साल के लिए जंगल का राजा बनेगा... सबसे पहले चुनाव आयोग गठित करते हैं जो पूरी ईमानदारी और सतर्कता से चुनाव को अंजाम दे...जिन-जिन पशु-पक्छियों को” जंगल का राजा” पद के लिए लड़ना है, वे sarvsarvpsarvprsarvprasarvpratsarvprathsarvprathasarvprathamसर्वप्रथम अपनी पार्टी का रजिस्ट्रेशन कराएँ, फिर अभ्यर्थियों का नाम घोषित कर अगले हफ्ते तक नामांकन भर दें...मतदान का दिन चौथा रविवार मुक़र्रर करते हैं...सुबह आठ से शाम चार बजे तक.और उसंके दूसरे दिन वोटों की गिनती...और फिर रिजल्ट...सबको अविलंब बुलाकर सूचित कर दी जाए, यह हमारी आज्ञा है...’
जंगल के राजा शेर के आदेशानुसार पूरे जंगल में मुनादी करा दी गयी और सारे जानवरों से शत-प्रतिशत मतदान की अपील की गई.
पूरा महीना चुनावी हलचल में कैसे निकला किसी को पता ही न चला...पूरे जंगल में चुनावी रंग छाया रहा...शेर के अलावा कुल चालीस प्राणी विभिन्न पार्टियों से इस पद के लिए खड़े हुए...उसमें ‘ए.जे.पी.’ यानी आम जानवर पार्टी (गधों की पार्टी) से एक गदर्भराज भी था...जमकर केन्वासिंग की गयी...सब पार्टी और प्रत्याशियों ने वोट पाने मतदाताओं को तरह-तरह से रिझाने की कोशिशें की...वादे किये...घोषणा-पत्र जारी किये... शेर ने सात दिनों तक जंगल के जानवरों को अभयदान देते...उपवास रख धुंआधार प्रचार किया... प्रचार के दौरान वोटरों को अपरोक्ष रूप से धमकाते भी रहे कि वोट नहीं दिया तो परिणाम भुगतने होंगे... अंततः रिजल्ट आया तो.नानवेज पार्टी ( शेर की पार्टी ) का आंकड़ा और ए.जे.पी पार्टी ( गधों की पार्टी ) का आंकड़ा एकदम बराबर का रहा...और तीसरे क्रम में motmotumotuumotuudmotuudamotuudalमोटूदल (हाथी पार्टी ) का रहा...
अब राजा की कुर्सी के दो ही हकदार थे- शेर और गर्दभराज... पहली बार चुनाव हुआ इसलिए जंगल के सब जानवरों ने ए.जे.पी पार्टी (गधों की पार्टी) पर दबाव बनाया कि वह राजा बने...इधर नानवेज पार्टी का शेर भी सत्ता पाने को उतावला... वह तो सोच-सोचकर पागल था कि आम जानवरों की तरह अधिकारविहीन कैसे रहेगा? आख़िरकार सिक्का उछाल कर”हेड” और”टेल” से निर्णय का फैसला लिया गया...जिराफ ने सिक्का उछाला और एक ही क्षण में पांच साल के लिए जंगल का राजा तय हो गया.... गदर्भराज जंगल का नया राजा बन गया...जीत के जश्न से पूरा जंगल सराबोर हो गया....गधों की विजय रैली निकली...खूब फूल बरसे... खूब स्वागत-सत्कार हुआ...
अब जंगल में मंगल है... गधों को छोड़ सारे जानवर खीर खा रहे... ए.जे.पी पार्टी की सरकार जंगल में व्याप्त भ्रष्टाचार समाप्त करने, शिकार के नियम बनाने, छोटे जानवरों को सब्सिडी देने,जानवरों में एकता-समरसता लाने, जंगल को स्वर्ग बनाने केवल मीटिंग पर मीटिंग कर रहे... जंगल का नया राजा गदर्भराज राजा की कुर्सी पर बैठे अपने भाग्य पर इठलाते”ढेंचू-ढेंचू”कर रहे...और शेर महोदय नेपथ्य में बैठे मुस्कुरा रहे क्योंकि उसे मालूम है हजार गधे मिलकर भी कभी शेर का पर्याय नहीं बन सकते... आज भी जंगल में शेर का ही कानून चलता है फिर भी उसे इन्तजार है – अगले चुनाव का...अपने सत्तारूढ़ होने का......क्योंकि शेर तो सिंहासन में ही फबता है...