शेष विहार / निर्देश निधि
मैं समय हूँ। मौन रहकर युगों को आते-जाते देखना मेरे लिए एक सामान्य प्रक्रिया है। अपनी अनुभवी आँखों से मैं सिर्फ देख सकता हूँ। अच्छे बुरे किसी भी परिवर्तन को रोक पाना मेरे लिए कभी संभव नहीं था। मैं अक्सर किसी एक कहानी, जो सबसे अलग-सी होती है को उठाता हूँ और आप सबके समक्ष रखता हूँ। आज मैं इस युग की एक माँ और उसके आठ वर्षीय बेटे की कहानी सुनाने जा रहा हूँ। यह कहानी भारत नाम के देश से ली है। अभी जो मैं देख रहा हूँ, वह सुनाता हूँ जस का तस।
"वैन, सूरज डूबने वाला है, उठो और तैयार हो जाओ आज" शेष विहार"देखने जाना है न। जल्दी करो जिससे कि हम सूरज उगने से पहले-पहले ही सुरक्षित वापस आ सकें।"
वैन फ्रैश रूम में गया और अपनी पसंद की ड्रेस, परफ्यूम, जूते वगैहरा कम्प्यूटर में फीड किए। कम्प्यूटर ने उसे पाँच मिनिट के अंदर-अंदर ऐन्टी वायरल, ऐन्टी बैक्टीरियल एयर से ड्राइक्लीन करके फीड किए हुए कपड़े, जूते वगैहरा पहनाकर पूरी तरह तैयार कर दिया।
आठ वर्षीय वैन ही पूरे शहर में एक बच्चा है जिसने अपनी माँ की कोख से जन्म लिया है। पिता का तो उसे पता नहीं क्योंकि उसकी माँ ने गर्भधारण के लिए राजकीय स्पर्म लैब का ही सहारा लिया था। माँ की कोख से जन्म लेने और माँ के साथ एक ही सैल में रहने के लिए, अनुभव बाँटने के लिए आए दिन, मीडिया और अनेक संस्थाओं के लोग उन दोनों माँ-बेटे का इंटरव्यू लेने आते रहते हैं। उन पर अनेक रिसर्च हो रही हैं। क्योंकि इस युग की स्त्री अपनी कोख से शिशु को जन्म देने की योग्यता खो चुकी है। अगर कोई इक्का-दुक्का स्त्री योग्य हो भी, तो वह गर्भधारण कर शिशु को जन्म देने का कष्ट लेने को तैयार नहीं होती। पिछली कई सदियों से भ्रूण हत्याएँ इतनी अधिक होती आ रही हैं कि प्रकृति ने स्त्री से संतति निर्माण की असाधारण योग्यता लगभग छीन ही ली है। पुरुषों में भी कोई इक्का-दुक्का ही बचे हैं जो संतति निर्माण की प्रक्रिया सतत रख पाने में समर्थ हैं। सभी बच्चे वैज्ञानिकों की देख-रेख में लैब से ही जीवन का प्रारम्भिक रूप पाते हैं। सरकारी संस्थाएँ स्त्रियों की गर्भधारण क्षमता का टेस्ट कराती हैं। जिससे कि प्रकृति के नियम को फिर से जीवित किया जा सके। वैन की माँ को सरकार ने इस योग्य पाया था, अतः उसे तमाम सुविधाएँ और लाभ देने के नाम पर गर्भधारण के लिए राजी कर लिया गया था। वैन की माँ ने भी यह सोचा था कि जिस शिशु को वह कोख से जन्म देगी वह उससे पुराने समय के बच्चों की तरह थोड़ा-बहुत लगाव तो रखेगा ही और सरकारी लाभ मिलेंगे सो अलग, खैर ...
वैन खुद भी बड़ी हैरानी के साथ अपनी माँ से पूछता है, " माँ आपने सचमुच मुझे अपने पेट से पैदा किया है? अमेजिंग मोम, यू आर रिएलि अमेजिंग। मेरी क्लास के सभी लड़के-लड़कियाँ लैब में ही बढ़े और वहीं पैदा भी हुए। उनके माता या पिता को अगर इच्छा होती तो एक विशिष्ट जार में पल रहे अपने अजन्में बच्चों को देखकर आ जाते थे बस। काफ़ी सुरक्षित रहा होगा ना माँ, इस तरह उनके बच्चों का पलना।
"हाँ वैन लैब में काफ़ी सतर्कता बरती जाती है।"
"फिर वह लैब से सीधे शिशु पालन-गृह चले गए, वहीं से पढ़ने के लिए छात्रावास चले गए। कभी-कभार ही मिले होंगे अपने बायोलोजिकल माता पिता से"
"हाँ वैन अब तो यही होता है, पर तुम्हें मैंने वाकई अपने गर्भ में पाला है, पूरे नौ महीने।"-माँ ने उत्तर दिया।
"पर माँ आपने तो बहुत ही रिस्क लिया। मुझे सिर्फ इमेजिंग डिवाइस की आधुनिक तकनीक से ही देख पाई अपने पेट के अंदर, क्यों लिया आपने इतना रिस्क? आपने तो मेरे जीवन को भयानक खतरे में ही डाल दिया था माँ।"
"नहीं वैन, ऐसा नहीं है। आदमी की देखभाल आदमी से बेहतर ही कर पाती है माँ प्रकृति। परंतु हमारे पूर्वजों ने उस पर विश्वास करना ही छोड़ दिया था न। सो अपना तिरस्कार देख कर उसने भी अपने हाथ खींच लिये। उसकी हानि उठाई हमारी पीढ़ियों ने।"
"हानि, वह कैसे माँ?"
"देखो जैसे अब हमें दिन की जगह रात में ही सारे काम करने पड़ते हैं। दिन भर सूरज की ऊर्जा एकत्रित करके रात को दिन बनाने की मजबूरी है हमारी। परंतु पहले सारे काम दिन में यानी सूरज के प्रकाश में ही हुआ करते थे। हमारे पूर्वजों ने धरती पर लहराते सारे जंगल काट डाले और वहाँ आधुनिक बाज़ार-हाट, आधुनिक साज-सज्जा गृह, ट्रेन लाइनों और सड़कों के ताने-बाने, बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ, होटल, आधुनिक निवास, स्मार्ट शहर बना डाले। जिससे घने जंगल तो गए ही, खेती-बाड़ी की ज़मीन भी चली गई। हमारे पूर्वजों ने धरती के प्राकृतिक साधनों का हद से ज़्यादा दोहन कर डाला।"
"हाँ माँ, मैंने कहीं पढ़ा भी था कि प्रकृति मनुष्य की आवश्यकताएँ तो पूरी कर सकती थी पर उसका लालच वह पूरा नहीं कर सकी।"
" हाँ वैन, तुमने ठीक पढ़ा था। पुराने समय में आज की तरह सूर्य की ऊर्जा का प्रयोग नहीं किया जाता था वाहनों में।
"तो फिर क्या यूज होता था?"
"उन्हें चलाने के लिए पेट्रोल-डीज़ल नाम के तरल ईंधन होते थे जो जलने पर बहुत प्रदूषण फैलाते थे और भी रोज़मर्रा में प्रयोग किए जाने वाले तमाम रसायनों के प्रयोगों ने, वातावरण को बुरी तरह विषाक्त बना डाला। जीवन रक्षक प्राण वायु मरती चली गई। रही-सही कसर उस समय के शक्तिशाली कहे जाने वाले राष्ट्राध्यक्षों की महत्त्वाकांक्षाओं ने पूरी कर दी। यानी उन्होंने विश्व को तीन-तीन महायुद्धों की त्रासदी में धकेल दिया। रासायनिक, जैविक आदि अनेक प्रकार के घातक हथियारों ने चहकते जीवन को शमशान की वीरानी में धकेल दिया। धन-जन और वातावरण की अपूरणीय क्षति हुई। तमाम आयुधों के प्रयोग से उपजे धुएँ के जहरीले गुबारों ने धरती के रक्षात्मक कवच यानी, ओज़ोन लेयर को हमेशा के लिए नष्ट कर डाला। वही तो हमें सूरज की हानिकारक किरणों से बचाती थी।"
"और भी बताओ न माँ क्या-क्या हुआ।"
" और क्या बताऊँ, धरती पशु-पक्षियों से खाली हो गई। उसकी महत्त्वपूर्ण फूडचेन टूट गई। जिन जीवों को तुम अब सिर्फ व्यूइंग डिवाइस पर देखते हो न वह सबके सब इसी धरती पर विचरण करते थे वैन।
"क्या सचमुच माँ?"
"हाँ सचमुच। इंसानों की जनसंख्या भी बहुत अधिक थी। इतनी अधिक कि कई देशों की सरकारें अधिक बच्चे पैदा करने वाले लोगों की कई सुविधाएँ कम कर देती थीं। कम बच्चे वालों के लिए कई सुविधाओं से लैस स्कीम चलाती थीं। अब उसका उल्टा होता है वैन। अब बच्चे पैदा करने के बदले में सुविधाएँ देती हैं सरकारें; क्योंकि इतनी विशाल धरती पर मात्र दो चार ही देशों का अस्तित्व शेष रह गया है। जिनमें से एक हमारा भारत है।"
"वैन उस दिन तुमने अपनी क्लासमेट अरुणिमा का हाथ देखा था न, सूरज की किरणों ने किस तरह जला दिया था। अब उसे" डी एस डी "यानी" डिजीज ऑफ स्योर डैथ"होना लाज़मी है। वह मानती ही नहीं है, उसे हर रोज़ दिन में जागने की पड़ी रहती है। उसे उसकी वार्डेन ने कितनी बार मना किया था दिन में जागने से।"
"माँ, क्या जन्म के समय डॉक्टर ने उसे नैनोवाट्स नहीं दिये थे?"
"ज़रूर दिए होंगे वैन, पर वह छोटी-मोटी बीमारियाँ या किसी छोटी-मोटी चोट के घाव ही भर सकते हैं ना औटोमैटिकली। वह इंसान को सूरज की हानिकारक किरणों से तो नहीं ही बचा सकते न। वैन तुम्हें बताऊँ, सिर्फ नैनोवाट्स ही नहीं अब तो जन्म के समय एक चिप मस्तिष्क में मेमोरी के लिए, एक आई डी चिप, हियरिंग डिवाइस, कॉर्निया प्रोटेक्टिव लैंस, फेंफड़ों और दिल के लिए पंपिंग डिवाइस आदि भी बच्चे को जन्म के समय ही लगा दी जाती है।"
"हाँ, हाँ माँ। वह सब तो मुझे भी पता ही है। इसमें तुम क्या नया बता रही हो। यह मुझे पता है कि हर समय मोबाइल फ़ोन पर बातें करते रहने, लाउड म्यूजिक सुनते रहने से और तरह-तरह की मशीनों की तेज़ आवाज़ें सुनते रहने से इंसान के कान कुदरती तौर पर खराब होने लगे थे। आँखों पर टी वी और कम्प्यूटर स्क्रीन आदि के प्रभाव घातक पड़े। धरती के विषाक्त हो गए वातावरण ने फेफड़ों को नाकाम करना शुरू कर दिया था। रहन-सहन की दोषपूर्ण शैली ने मनुष्य के स्वास्थ्य को लगभग निगल ही लिया था। तीसरे विश्वयुद्ध के बाद तो देखना, सुनना, सोचना, समझना, यानी जीना लगभग असंभव हो गया था।"
"हाँ वैन तुम्हें ठीक ही पता है।"
"मुझे तो ये भी पता है माँ कि मानव के मस्तिष्क में भी चिप लगानी पड़ी। इस चिप में कुछ तो सामान्य ज्ञान की बातें होती हैं जो सभी नागरिकों को आवश्यक रूप से पता होनी ही चाहिए और कुछ विशेष ज्ञान होता है। वह ज्ञान जो उनके कार्यक्षेत्र निर्धारित करता है। इसी चिप के माध्यम से हम एक दूसरे को अपने संदेश पहुँचा सकते हैं बिना किसी अतिरिक्त प्रयास और बिना किसी अतिरिक्त डिवाइस के। इसी चिप के माध्यम से हम रास्ते खोजने में सक्षम होते हैं। जिनको यह चिप नहीं लगाई जाती वह लगभग विक्षिप्त बन कर ही जीते हैं। ये सब पता है मुझे।"
"हाँ बिलकुल सही कहा वैन और पता है अंतिम विश्वयुद्ध के बाद कौन बच पाए?"
"बताओ ना माँ कौन बचे?"
"बचे सिर्फ वह वैज्ञानिक जो अंडर ग्राउंड बंकरों के क्रत्रिम वातावरण में बरसों छिपे पड़े रहे। जिनकी बॉडी ने इस घातक जीवन शैली को आनशक रूप से अडोप्ट कर लिया था और जिन्होंने खुद को सूरज की जानलेवा किरणों से बचाकर रखा। उन्होंने ही धरती पर मानवी हृदय के स्पंदन का स्वर सतत रखा वैन। अब पृथ्वी पर जितनी भी जनसंख्या है सिर्फ उन चंद वैज्ञानिकों की ही सन्तानें हैं।"
"ओह! शायद इसीलिए सबका दिमाग़ बस वैज्ञानिक और तार्किक रूप में चलता है। भावनात्मक या संवेदनात्मक रूप से नहीं।"
"शायद हाँ वैन। विश्व युद्धों की वजह से फैले प्रदूषण ने धरती का वातावरण ही नहीं उसके गर्भ में छिपा पानी तक भयानक रूप से विषाक्त कर दिया।"
"माँ, तो क्या पहले युग में धरती के पानी से ही नहाया जा सकता था?"
"नहाया ही नहीं वैन धरती का पानी ही खाने और पीने में भी प्रयोग किया जाता था।"
"सच माँ!"
"हाँ-हाँ बिलकुल सच। अभी जब तुम बड़ी कक्षा में जाओगे न तो तुम्हें ये सब इतिहास और विज्ञान दोनों ही विषयों की कक्षाओं में पढ़ाया जाएगा। पानी तो तीसरे विश्वयुद्ध के बाद विषाक्त होकर पीने के अयोग्य हुआ। तब तक भी कुछ शुद्धिकरण संयन्त्रों से उसे शुद्ध किया जा सकता था परंतु अब तक आते-आते यह सम्भावना भी समाप्त हो गई। कुछ पानी और खाने की सामग्री को बंकरों में सुरक्षित रखा गया था आड़े वक्त के लिए। बस उसी ने जीवित रखा, बच रहे कुछ विशेष वैज्ञानिकों को। तभी तो अब हम प्लैनेट एक्वेरियम से पानी लाते हैं और बहुत कम ला पाने की वजह से उसी को बार-बार रिसाइकिल करके प्रयोग करते रहते हैं। यही कारण है कि अब मात्र कुछ एम एल पानी से ही स्पंज बाथ लेना होता है, या फिर इस आर्टिफ़िश्यली ऐन्टीबैक्टीरियल, ऐंटीवायरल की गई एयर से ही ड्राईक्लीन करना पड़ता है खुद को।"
"तो माँ क्या हमारे सारे पूर्वज मूर्ख थे? जो उन्होंने इतनी बड़ी-बड़ी भूलें कीं। आपस में लड़ना, पेड़ काटना, जंगलों का विनाश करना ज़रूरी था क्या? हमें उन्होंने क्या दिया? ये बंद घरों की जेल। जिनमें हमें दिनभर बंद रहना पड़ता है। अगर ये घर भी एयरकंडीशंड सनलाइट प्रूफ और आक्सीजनफिल्ड न होते या हम न बना पाए होते ऐसे घर तो हम भी तो जीवित नहीं रह पाते ना।"
"हाँ वैन, यह तो सच है। पर मनुष्य हारने के लिए नहीं बना; इसीलिए हम दूसरे गृह जिनमें पुरानी धरती जैसा ही प्राकृतिक और जीवन का सहयोगी वातवरण है, अपने निवास के लिए खोज पाने में लगभग सफल हो ही चुके हैं। पर हाँ, वहाँ जाकर बसने तक का समय मनुष्य जाति के लिए वास्तव में ही बेहद कठिन है।"
"माँ क्या हमारे जीवन में ही हम जा सकेंगे उस नए गृह पर?"
"मैं अपना तो नहीं कह सकती वैन पर हाँ तुम तो ज़रूर ही जा सकोगे और हाँ, वहाँ जाकर भी अकेले मत रहना। अपना परिवार जिसमें एक स्त्री जिसे पत्नी कहा जाता रहा है पुराने समय में, अपने कुछ बच्चे जो तुम्हारी उस पत्नी और तुम्हारे होंगे, उन्हें अपने साथ ही रखना। देखो हम कितनी ही पीरिओडिकल फिल्मों में देखते हैं किस तरह सारा परिवार हँसी-खुशी रहता था। खुले मैदानों में खेलते-कूदते हँसी मज़ाक करते कितने प्यारे लगते हैं उस परिवार के सदस्य।"
"अरे नहीं-नहीं माँ तुम ये हाइपोथेटिकल बातें मत करो, प्रैक्टिकल बातें करो जो संभव हो सकती हों। मैं तो रहूँगा बिलकुल अकेला, आज़ाद सबकी तरह। मैं क्यों फँसूँगा समस्या में।" वैन ने माँ की बात का प्रतिरोध किया।
"अब बहुत सारी बातें हो गईं वैन और सूरज भी लगभग डूब ही चुका है। अपना जीवन रक्षक सूट पहन लो। अपना फ्लाइंग कैपस्यूल चैक करो और उसकी फ्युल चिप, ऑक्सीज़न वगैहरा चैक करो। अपनी डायट टैबलेट और ऐच2 ओ वाली टैबलेट्स का जार रखना मत भूलना। मैंने अपने ये सभी काम कर लिए हैं, मैं पूरी तरह तैयार हूँ।"
"माँ मैंने भी ये सब काम कर लिए हैं वह भी तुमसे पहले। बस लाइफ सेवरसूट पहन लेता हूँ। पर माँ मैं बार-बार यही सोचता हूँ कि तुम सबसे अलग हो। मेरे लिए तुमने अपनी प्राइवेसी सैक्रिफ़ाइस की।"
पर वैन नहीं जानता कि माँ ने तो सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं और उसके बार-बार पड़ने वाले दबावों के कारण गर्भधारण किया था। पूरे शहर में एक उसी का टेस्ट आया था गर्भधारण के लिए पोज़िटिव। पर जन्म देने और साथ आ जाने पर उसे वैन का साथ बहुत अच्छा लगा था। हलाकि कभी-कभी उसे अपनी प्राइवेसी खत्म होती ज़रूर ही लगी थी और काम का कुछ अतिरिक्त अनचाहा भार भी। किसी भी सदी की सही, पर थी तो वह माँ ही न।
"हाँ वैन यह तो मैंने किया पर मुझे अच्छा लगा तुम्हें साथ रखना शायद, इसीलिए मैं यह कर पाई; पर जैसा कि मैंने तुम्हें पहले भी कभी बताया था कि पहले पूरा परिवार साथ-साथ ही रहता था।"
"माँ परिवार क्या? उसके सही मायने बताओ।"
"परिवार मतलब, माँ-पिता यानी जिस स्त्री और जिस पुरुष के संयोग से बच्चे का जन्म होता है, वह बच्चे के माँ-पिता होते हैं। बहन भाई जो उन्हीं माँ-पिता के दूसरे बच्चे होते हैं। माँ-पिता के माँ-पिता और उनके दूसरे बच्चे आदि इसी तरह करीबी लोगों से मिलकर बनता था परिवार।"
"माँ पहले बताओ मेरा पिता कौन है?"
" वैन मैं तुम्हारे पिता को नहीं जानती।
"पर क्यों?"
क्योंकि तुम्हें मैंने अपनी कोख से जन्म तो ज़रूर दिया; लेकिन उसके लिए मैंने राजकीय स्पर्म लैब का ही सहारा लिया, वहाँ पिता का नाम मैंने पूछने की ज़रूरत नहीं समझी। "
"ओह माँ! काश कि तुम्हें पता होता तो मैं भी फिल्मों वाले बच्चों की तरह अपने पिता के साथ घूमता और खेलता।"
"और हाँ वैन सुनो, एक मज़े की बात यह कि उस पुराने समय में डोमेस्टिक हेल्प भी घर में साथ ही रह जाती थी। यहाँ तक कि पशुओं के लिए भी घर के पास ही एक अलग से जगह होती थी और कई पक्षी भी अपने घोंसले इंसानों के घरों में बनाए रखते थे।"
"ओह माँ! कितनी अनहाइजीनिक होती होंगी उस समय घर की कंडीशंस।"
"वह समय आज के जैसा नहीं था वैन, इन्फैक्शन इतनी आसानी से नहीं लगता था, मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छी थी।"
"माँ विश्व युद्धों के बाद जब इंसान बच पाया तो पशु-पक्षी क्यों नहीं बच पाए?"
"देखो वैन, इंसान काफ़ी कुछ स्वार्थी तो था ही शुरू से। जितना सुरक्षित उसने खुद को रखा, उतना पशु-पक्षियों की नहीं। फिर विश्व युद्धों के बाद इतने स्थान सुरक्षित बचे ही नहीं थे कि उनमें पशु-पक्षियों को भी रखा जा सकता। अतः इंसान ने खुद को बचाना ज़रूरी समझा।"
" अब पशु-पक्षी तो क्या स्त्री-पुरुष भी साथ नहीं रहते। क्योंकि कोई भी, किसी को एक पल भी सहन नहीं कर पाता। कोई दूसरे की वजह से अपनी पल भर की स्वतन्त्रता भी नहीं गंवाना चाहता। पता है वैन, इस समय आदमी कम और मेंटल हास्पिटल ज़्यादा क्यों हैं?
"नहीं माँ, मुझे नहीं पता।"
"क्योंकि पुराने जमाने में लोग आपस में मिलकर, हँस-बोलकर खुद को तनाव रहित कर लेते थे।"
"माँ, तो क्या लोगों के पास हँसने-बोलने का फालतू समय था?"
"हाँ वैन बिलकुल था। विचित्र विरोधाभास हुआ है। आधुनिक मशीनों के माध्यम से घंटों के काम मिनटों में हो जाते हैं लेकिन समय कम पड़ गया है आदमी के पास।"
"और क्या अलग था बताओ ना माँ।"
"धरती पर अनगिनत अनाज पैदा होते थे। लोग दिन में कई-कई बार खाना खाते थे वैन। अब की तरह टैबलेट्स पर नहीं जीते थे। बाकायदा स्वादग्रन्थियाँ होती थीं। परंतु आदमी ने शरीर को ताकत देने के लिए गोलियों का प्रयोग आरंभ किया और धीरे-धीरे उसे इतना बढ़ाया कि स्वादग्रन्थियाँ मरती चली गईं। तुमने देखा न अपनी व्यूइंग डिवाइस पर तरह-तरह के अनाज, तरह-तरह के खाने और मिठाइयाँ।"
"माँ तो क्या धरती की उर्वरा शक्ति आउटडेटेड हो गई थी?"
"नहीं वैन वह तो अनंत काल तक वैसी ही बनी रह सकती थी जैसी थी, परंतु वह आदमी की जरूरतें तो पूरी कर सकती थी लालच नहीं, जैसा कि तुम जानते ही हो। इसकी संपदाओं का हमारे पूर्वजों ने इस कदर शोषण किया कि हमें इन ऐयरटाइट वाहनों और सैल नाम की जेलों जैसे घरों का बंदी बना दिया।"
"चलो वैन बाकी बातें बाद में करते हैं, सूरज को डूबे हुए लगभग पंद्रह मिनिट हो गए। तुम चैक कर लो कि तुमने अपने फ्लाइंग कैप्स्यूल में डैस्टिनेशन ठीक से फ़ीड किया है या नहीं, कभी कहीं भटक जाओ।"
"नहीं माँ, भटकूँगा नहीं। मैंने ठीक से फीड कर लिया है। इस तरह की गलती अब होने के चांसेस हैं ही कहाँ। बचपन में ही ब्रेन में फ़िट हो जाने वाली ब्रेनी चिप, ऐसी गलतियाँ करने ही कहाँ देती है।"
साँझ होते ही आसमान में लोगों के वाहन दिखाई देने आरंभ हो गए। वे दोनों निकलने ही वाले थे कि माँ का कोई परिचित उनके सैल, यानी घर के पास से गुज़रा तो उसने देखा कि उनके सेल की इंसुलेशन फिल्म कुछ हट-सी गई है। आगामी खतरा देख कर उसने वैन की माँ को आगाह किया। वैन की माँ ने सरकारी कार्यालय का कोड दिमाग में सोचा और कार्यालय को सूचना दी कि उनके सैल की फिल्म ठीक करा दी जाए। कार्यालय ने उसे आश्वस्त किया कि उनके लौटने तक कार्य हो जाएगा। इस आश्वस्ति के मिलते ही माँ-बेटा दोनों ने अपने-अपने लाइफ सेवर सूट ठीक से पहनकर, अपने-अपने ऑक्सीज़न मास्क चैक किए और दोनों ने अपने-अपने फ्लाइंग कैप्सूल में बैठकर फ्रीक्वेन्सी मॉड्युलेशन के माध्यम से आपस में बात करते हुए एक हज़ार किलोमीटर का सफर मात्र बारह मिनिट छह सेकेंड में तय कर लिया।
"शेष विहार" आ चुका था। सौभाग्यवश ऐसिड रेन नहीं हो रही थी। दोनों ने अपने-अपने ऑक्सीज़न मास्क पहने और कैप्सूल से बाहर आ गए। काँच के अंदर करीब दस किलोमीटर का प्राचीन धरती का छोटा मॉडल कृत्रिम रूप से तैयार किया गया था। पेड़-पौधे, घास, फूस, फूल, फल, पत्ती, झरने, पहाड़, नदी, हाँ नदी भी धरती के विषाक्त जल वाली नदी, चिड़िया, तितली, शेर, गाय, बैल, मैमथ, डायनासोर, हाथी, जिराफ, अनगिनत कीड़े-मकौड़े और दुनिया भर के मनुष्यों की जातियों प्रजातियों के बैटरियों और रिमोट के माध्यम से चलते-फिरते जीवंत लोग सब कुछ बिलकुल असली जैसे, नयनाभिराम दृश्य।
"इतनी सुंदर थी धरती! हमारे मूर्ख पूर्वजों ने क्यों कर दिया इसका सर्वनाश? क्या छोड़ा हमारे लिए?" वैन अपनी माँ से यही पूछ रहा था।
उन दोनों माँ-बेटे की तरह वहाँ और भी बहुत से लोग थे। परंतु अब पिछली सदियों की तरह कहीं भी भीड़ नहीं जुटती। बच्चे लैब्स में पैदा होते हैं। कुछ ही लोग हैं जो अपने लिए ऑर्डर करके बच्चे तैयार कराते हैं। क्योंकि कोई भी बच्चों को समय देना और उनकी जिम्मेदारी लेना नहीं चाहता। हाँ बच गए देशों की सरकारें ही बस ज़रूरत भर नागरिक पैदा करवाती हैं। जिनका वे ठीक से पालन-पोषण भी कर पाएँ। इसीलिए शहर के शहर खाली पड़े हैं। लोगों का पालन-पोषण सरकार का जिम्मा है। लोग मृत्यु के भय से स्वयं को दिन भर अपने घरों में कैद करके रखते हैं। रात को ही सब काम किए जा सकते हैं, घर से बाहर निकला जा सकता है। अधिकांश लोग अपने कार्य क्षेत्र और घरों तक ही सीमित हैं। जिन इमारतों को आदमी ने कभी भूकंपरोधी समझकर खड़ा किया था, धरती की सीज़्मिक प्लेट्स उनमें से हजारों लाखों का मान-मर्दन कर चुकी हैं। कौन जाने कब बाकियों के साथ भी यही हो जाए। हालाकि अब उन इमारतों को खाली ही रखा गया है, प्राचीन धरोहरों की तरह। अब सैल के नाम से पुकारे जाने वाले आधुनिक निवास तो पूरी तरह से सूरज की रौशनी से रहित हैं। दूर-दूर तक कंक्रीट पसरी हुई है। न घास बची न कोई हरियाली। ऐसिड रेन ने सब कुछ तबाह कर दिया है। बचे हैं तो जली हुई धरती और भुने हुए पत्थर।
देशों के नाम पर संसार भर में अब दो-चार ही देशों का ही अस्तित्व बचा है। यह कहानी भारत नाम के देश से ली है जैसा कि मैं पहले भी बता ही चुका हूँ। इस सदी में अगर कुछ सकारात्मक बचा है तो वह है युद्धों का न होना। क्योंकि अब अपने आप को धरती पर जीवित रखने के लिए जो लड़ाई मनुष्य को प्रकृति से लड़नी पड़ती है उसके बाद आपस में लड़ने की ऊर्जा बचती ही कहाँ है? धरती अपने ऊपर हुए अत्याचार का प्रतिशोध लेने पर उतर आई है। वैन और उसकी माँ दोनों ने जी भर कर शेष विहार देखा। हरियाली धरती का अप्रतिम रूप उनके मन पर सारी धरती के ऐसा न होने के गहरे दुख के साथ छप-सा गया। वे अपने-अपने कैप्सूल में वापस घर के लिए चल पड़े।
अभी थोड़ी ही दूर चले थे कि वैन की माँ को साँस लेने में दिक्कत होने लगी। शायद उसके कैप्सूल से ऑक्सीज़न लीक कर रही थी, सामान्यतः जिसकी आशंका न के बराबर थी। परंतु यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घट रही थी। उसने बेटे से कहा,
"वैन शायद मेरे फ्लाइंग कैप्सूल से ऑक्सीज़न लीक कर रही है।"
"क्या करूँ? अब क्या हो सकता है? यह तो चलते वक्त ही चैक करना था आपको। फिर भी मैं ऑक्सीज़न सप्लायर कंपनी को सूचित कर देता हूँ। वो स्वयं आपके कैप्स्यूल की लोकेशन देख कर आपकी मदद करेगी। तब तक आप अपना ऑक्सीज़न मास्क पहन लो।" बेटे ने उत्तर दिया।
"हाँ, पहन तो लिया पर शायद यह भी ठीक से भरा नहीं था।" माँ ने उखड़ती साँसों के साथ उत्तर दिया।
"आपने चलते वक्त यह सब चेक नहीं किया था क्या?" वैन थोड़ा झुँझलाकर बोला।
"वैन जल्दी कुछ करो मेरा दम घुट रहा है।" माँ ने बेचैन होकर बेटे को पुकारा।
"माँ मैं और क्या करूँ? मतलब कर ही क्या सकता हूँ मैं? ऑक्सीज़न सप्लायर कम्पनी को फ़ोन करने के सिवा और वह मैंने कर दिया है।"
"वैन हम दोनों एक ही कैप्सूल में जा सकते हैं। तुम मुझे भी अपने साथ ले लो।" माँ को मौत सामने खड़ी दिखाई दे रही है। इसलिए उसने बेचैन होकर बेटे से याचना की है।
"नहीं माँ। यह तो नहीं हो सकता। क्या आप नहीं जानतीं कि ये कैपस्यूल मेरे वजन के हिसाब से ही डिजाईंड है।"
"हाँ जानती हूँ पर ..."-अगले शब्द उसके साँसों की तेज़ धौंकनी में खो गए।
"जानती हैं तो यह भी जानती होंगी कि कैपेसिटी से अधिक वजन लेकर उड़ने पर इसमें भी कोई न कोई तकनीकी खराबी आ ही सकती है। इसकी भी ऑक्सीज़न ही लीक हो गई तो मास्क कितनी देर साथ दे पाएगा माँ? नहीं माँ मैं अपने जीवन का रिस्क नहीं ले सकता। मैंने कंपनी को सूचित कर दिया है वह कुछ न कुछ ज़रूर करेंगे। उनकी जिम्मेदारी है माँ।"
"क्या तुम्हारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है वैन?"-खाँसते, दम घुटे हुए स्वर में, माँ ने बेचैन होकर बेटे से शिकायत की।
"प्रैक्टिकल बनो माँ, मैं यहाँ खड़े रहकर भी क्या कर सकूँगा, अपना भी जीवन खो देने के सिवा।"
"वैन मत जाओ मैं मर रही हूँ।"
मैं पिछले दस मिनिट से यहीं खड़ा हूँ आपकी वजह से, अब और नहीं रुक सकता। सॉरी माँ। "
और वह चला गया। कैप्स्यूल कंपनी से अभी तक कोई मदद नहीं आ सकी है। माँ की साँसें धीरे-धीरे बंद होने को हैं। पीड़ा असह्य है। मृत्यु उसे अपने सामने मुँह बाए खड़ी दिखाई दे रही है। अगर वह कैप्स्यूल से बाहर आती है तो, धरती का वर्तमान विषाक्त वातावरण उसे रिसती हुई ऑक्सीज़न वाले कैप्स्यूल से भी जल्दी मार डालेगा। ऊपर से ऐसिड रेन और आरंभ हो गई है। उसका मरना अब तो तय है। जिस समाज और समय में कोई अपना एक पल भी किसी को देना नहीं चाहता, कोई स्त्री, किसी बच्चे को अपनी कोख से जन्म देने की कल्पना तक नहीं कर सकती उस समाज और समय में रहकर उसने एक बच्चे को, यानी वैन को अपनी कोख से जन्म दिया। यह सोचकर कि वह इस समाज के दूसरे अलग-थलग रहने वाले बच्चों से कुछ अलग बनेगा। उसमें कुछ संवेदना जीवित रहेगी और वह माँ जैसे रिश्ते की गंभीरता अधिक न सही थोड़ी-सी तो ज़रूर समझेगा। लेकिन नहीं, उसका यह अनुमान गलत निकला था। सच्चाई यही थी कि दूसरे लोगों की तरह ही उसमें भी कोई भावना, कोई संवेदना पैदा नहीं हो सकी थी। जन्मते समय दूसरी चीजों के साथ ही किसी एक चिप में प्रेम, करुणा, सहानुभूति या भावना की डोज़ को भी स्थान देना चाहिए था, जो कि संभव नहीं था। माँ ने सोचा था कि कोख से पैदा करेगी तो प्राकृतिक रूप से यह सब उसमें आयेगा ही। परंतु वह गलत साबित हुई थी। वैज्ञानिकों ने तो कहा ही था कि संभावना कम थी पर हाँ हो भी सकता था कि वह ये सब लेकर ही जन्मता। जिस तरह सूरज की विषाक्त किरणों ने धरती के पेड़-पौधे, पशु-पक्षी जानवरों और असंख्य मनुष्यों को मार डाला उसी तरह उसने मानव मस्तिष्क के प्रेम और करुणा वाले सभी रसायनो को भी सोख लिया है। यह सोचते-सोचते वह अपनी अंतिम साँस ले रही है...
मैं समय हाथ बाँधे खड़ा हूँ विवश, व्यथित ...
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