शैतान / गी द मोपास्साँ / श्रीविलास सिंह

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मर रही, वृद्ध महिला के पास, किसान और डॉक्टर बिस्तर के विपरीत किनारों पर खड़े थे। वह एकदम शांत और निस्पृह थी, और उसका मस्तिष्क साफ था, जब उसने उन दोनों की ओर देखा और उनका वार्तालाप सुना। वह मरने जा रही थी, और उसने थोड़ा सा भी प्रतिरोध नहीं किया, क्योंकि उसका समय आ गया था, क्योंकि वह बानबे वर्ष की हो चुकी थी।

जुलाई का सूरज खिड़की और खुले हुए दरवाज़े पर चमक रहा था और अपनी गर्म लपटें मिट्टी के भूरे फर्श पर फेक रहा था, जो भारी जूते पहनने वाले देहातियों की चार पीढ़ियों द्वारा रौंदा जाता रहा था। तेज़ हवा के साथ, दोपहर की धूप में चटखती, खेतों की महक भी भीतर आ रही थी। टिड्डे कर्कश आवाज में शोर कर रहे थे, और पूरे इलाके को अपनी तीखी आवाज से भरे हुए थे, जो मेले में मिलने वाले बच्चों के खिलौनों की आवाज की भाँति थी।

डॉक्टर ने ऊँची आवाज में कहा, “ओनोए, तुम अपनी मां को इस हालत में नहीं छोड़ सकते; वे किसी भी क्षण मर सकती हैं।” और किसान ने घोर निराशा से उत्तर दिया, “किन्तु मुझे अपना गेहूँ भीतर रखना है, जो लंबे समय से बाहर ज़मीन पर पड़ा हुआ है, और मौसम इस बात के लिए अनुकूल है; तुम इस बारे में क्या कहती हो माँ?” और अभी भी अपने नॉरमन लालचीपन से पीड़ित, मर रही वृद्ध महिला ने अपनी आँखों और अपने माथे से हाँ कहा, और इस प्रकार अपने बेटे से गेहूँ भीतर रखने का आग्रह किया तथा उसे अकेले मरने के लिए छोड़ देने को कहा ।

किंतु डॉक्टर क्रोधित हो गया और अपने पाँव पटकते हुए उसने कहा : “तुम किसी गंवार से बिलकुल कम नहीं हो, सुना तुमने, और मैं तुम्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं दूँगा, समझे तुम? और यदि तुम आज ही गेहूँ भीतर रखना चाहते हो तो जाकर रपेट की पत्नी को अपनी माँ की देखभाल करने हेतु बुला लाओ। मैं ऐसा ही चाहूँगा, तुम समझे मेरी बात ? और यदि तुम मेरी बात नहीं मानते, तो तुम्हारे बीमार होने पर मैं तुम्हें किसी कुत्ते की भाँति मरने को छोड़ दूँगा, सुना तुमने।”

किसान, एक लंबा, दुबला-पतला सुस्त सा व्यक्ति था, जो डॉक्टर के भय और गेहूँ बचाने के बीच अपने तीव्र अनिर्णय की स्थिति के कारण दुखी था, हिचकिचा रहा था, हकलाता हुआ बोला “रपेट की पत्नी बीमारों की देखभाल करने हेतु कितना मेहनताना लेती है?”

“मुझे कैसे पता होगा?” डॉक्टर चिल्लाया। “यह तो इस बात पर निर्भर करेगा कि उसकी सेवाओं की तुम्हें कितने समय के लिए आवश्यकता होगी। इस संबंध में, ईश्वर के लिए, उसी से बात करो। लेकिन मैं उसे एक घंटे के भीतर यहाँ देखना चाहता हूँ, तुमने सुना?”

फिर उसने निर्णय ले लिया। “ मैं उसे लेने जाता हूँ,” उसने कहा, “आप नाराज न हों डॉक्टर।” डॉक्टर जाते जाते यह कहता हुआ गया, “सावधान रहो, बहुत सावधान रहो, तुम जानते हो कि मैं जब गुस्से में होता हूँ, मजाक नही करता।” जैसे ही वे दोनों अकेले हुए, किसान ने अपनी मां की ओर मुड़ते हुए थकी सी आवाज में कहा, “मैं जा कर रपेट को बुला लाता हूँ।” रपेट, कपड़े धोने वाली एक वृद्ध महिला, जो पड़ोस के बीमार और मृत व्यक्तियों के शवों की देखभाल किया करती थी, और फिर, जैसे ही वह अपने ग्राहकों को उस सूती कपड़े में सिल देती जिस में से वे फिर कभी बाहर नहीं आ सकते थे। वह अपनी इस्त्री ले कर जीवित लोगों के कपड़ों को प्रेस करने चल देती। पिछले साल के सेव की भांति, घृणित, ईर्ष्यालु, अत्यधिक लालची, कमर पर से झुकी हुई मानों वह इस्त्री चलाने की निरंतर क्रिया के कारण कूल्हों के पास से दो बराबर टुकड़ों में टूट गई थी, कोई कह सकता था कि उसे मर रहे लोगों की मौत के पहले का संघर्ष देखने के प्रति एक तरह का असामान्य और शंकालु प्रेम था। उसने किसी से कभी कुछ कहा नहीं लेकिन लोग, जिन्हें उसने मरते हुए देखा था, उनकी भिन्न भिन्न प्रकार की मौतें जिनके दौरान वह उपस्थित रही थी, उसे छोटे से छोटे विवरण सहित, जो कि हर बार लगभग एक समान होते थे, उसी भांति स्मरण थे जैसे कोई खिलाड़ी अपने भाग्य को फिर फिर स्मरण करता है।

जब ओनोए बोंटेंप ने उसकी झोपड़ी में प्रवेश किया तो उसने देखा कि वह गांव की स्त्रियों के लिए कालर पर लगाने हेतु स्टार्च तैयार कर रही थी। उसने कहा : “शुभ संध्या ; आशा है आप अच्छी होंगी, रपेट अम्मा?”

महिला ने उसकी ओर देखने हेतु सिर घुमाया और पूछा : “सब ठीक है, सब ठीक है, और तुम?”

“ओह, जहाँ तक मेरी बात है तो मैं उतना ठीक हूँ, जितने की मैं अपेक्षा कर सकता हूँ, लेकिन मेरी मां ठीक नहीं हैं।”

“तुम्हारी मां ?”

“हां, मेरी मां !”

“उन्हे क्या हुआ है ?”

“वे अब जाने की तैयारी कर रही हैं, यही बात है।”

वृद्ध महिला ने पानी में से अपना हाथ निकाला और अचानक सहानुभूतिपूर्वक पूछा : “क्या उनकी हालत बहुत अधिक खराब है।”

“डॉक्टर, कहता है कि वह कल सुबह तक नहीं चल पाएंगी।”

“तब तो सचमुच उनकी हालत बहुत खराब है !” ओनोए हिचकिचाया, क्योंकि वह मुख्य बात पर आने से पहले इधर उधर की कुछ बातें करना चाहता था; किंतु अब चूंकि और कुछ कहने को समझ में नहीं आ रहा था, उसने अचानक असली बात कहने के लिए स्वयं को तैयार कर लिया।

“उस के साथ अंतिम समय तक रहने का आप क्या लेंगी? आप जानती हैं कि मैं बहुत समृद्ध नहीं हूँ, और एक नौकरानी रख पाना भी मेरी सामर्थ्य में नहीं है। यही वह कारण है जिससे मेरी बेचारी मां इस अवस्था को पहुंची हैं … बहुत अधिक चिंता और थकान ! वे दस आदमियों का काम करती थी, उनकी उम्र बानवे साल की हो जाने के बावजूद। आप को जानती है उस जैसी मिट्टी की बनी नौकरानी भी आज नहीं मिलेगी।”

ला रपेट ने गंभीरता से जवाब दिया: “दो तरह के मेहनताने हैं : दो फ्रैंक दिन के और तीन फ्रैंक रात के अमीरों से और दो फ्रैंक दिन के तथा दो फ़्रैंक रात के औरों के लिए। तुम मुझे एक और दो दे देना।” किसान सोच में पड़ गया क्योंकि वह अपनी मां को जानता था। वह जानता था कि वे कितनी जिजीविषा वाली, और कितनी जुझारू और मेहनती रही हैं, और वे डॉक्टर के विचार के विपरीत अगले एक हफ्ते तक जीवित रह सकती हैं। अतः उसने दृढ़ता से कहा, “नहीं, मैं चाहूँगा कि आप उस पूरी अवधि के लिए एक कीमत तय कर लो जब तक कि अंत नहीं आता। मैं इतना चांस तो लूंगा ही, चाहे इधर, चाहे उधर। डॉक्टर कहता है कि वे जल्दी मर जायेंगी। यदि ऐसा होता है तो तुम्हारे लिए उतना ही अच्छा होगा, और मेरे लिए बुरा, किंतु यदि वे कल परसों या और लंबे समय तक चलती हैं तो यह उनके लिए उतना ही अच्छा होगा और तुम्हारे लिए बुरा।”

परिचारिका ने उसे अचंभे से देखा, क्योंकि उसने मृत्यु को कभी कयास का विषय नहीं बनाया था। वह हिचकिचाई और संभावित लाभ के विचार ने उसे ललचाया, किंतु उसे संदेह हुआ कि वह उसके साथ कोई चाल चल रहा है। “मैं तब तक कुछ नहीं कह सकती जब तक तुम्हारी मां को देख न लूं,” उसने उत्तर दिया। “फिर मेरे साथ चलो और उसे देख लो।”

उसने अपने हाथ धोए, और तत्काल उसके साथ चल दी।

उन्होंने सड़क पर कोई बात नहीं की; वह छोटे और तेज कदमों से चल रही थी, जबकि वह अपने लंबे पैरों से धीरे धीरे चल रहा था मानों हर कदम के साथ वह किसी झरने को पार कर रहा हो। गायें खेतों में गर्मी से थक कर बैठी हुई थी और उन्होंने अपना सिर उन दोनों राहगीरों के लिए बहुत भारीपन से उठाया फिर चुपचाप झुका लिया जैसे उनसे हरी घास मांगना चाह रही हों।

जब वे मकान के पास पंहुचे, ओनोए बोंटेंपस बुदबुदाया: “मान लो सब कुछ खत्म हो गया है तब ?” और यह उसके अवचेतन में स्थित इच्छा थी जो उसकी आवाज में दिख रही थी।

किंतु वृद्ध महिला नहीं मरी थीं। वह अपनी पीठ के बल अपनी टूटी हुई चारपाई पर लेटी हुई थी, उसके हाथ एक बैगनी चादर से ढके, बहुत ही पतले और गांठों भरे हाथ थे, जैसे किसी विचित्र जानवर के पंजे हों, केकड़े जैसे, गठिया, थकान और लगभग एक शताब्दी तक उसके द्वारा किए गए काम से थक से चुके हाथ।

ला रपेट बिस्तर के क़रीब गई और मर रही महिला की ओर देखा, उसकी नब्ज़ देखी, उसकी छाती पर थपकी दी, उसकी साँस लेने की आवा्ज़ को सुनती रही और उससे सवाल पूछे, ताकि उसे बोलते हुए सुन सके : फिर उसे अपेक्षाकृत थोड़ा अधिक समय तक देखने के बाद वह कमरे से बाहर चली गई। ओनोए ने भी उसका अनुगमन किया।

उसका सुचिंतित विचार था कि वृद्ध महिला रात की अवधि पार नहीं कर पाएगी। उसने पूछा, “क्या हुआ?”

“वह दो दिन जीवित रह सकती है, शायद तीन दिन। तुम्हें मुझे छः फ़्रैंक देने होंगे, जिसमें सब कुछ सम्मिलित होगा।”

“छःफ्रैंक ! छः फ़्रैंक ! वह चिल्लाया, “क्या तुम्हारा दिमाग़ ख़राब है? मैं बता रहा हूँ कि वह पाँच या छः घंटे से अधिक नहीं चलेगी !” वे कुछ देर ग़ुस्से से बहस करते रहे किन्तु जैसे ही नर्स ने कहा कि समय बीता का रहा है अब उसे घर जाना होगा।

चूँकि उसका गेहूँ बिना उसके ख़ाली पड़े खलिहान से नहीं आ पाएगा, अंततः वह उसकी शर्तों पर तैयार हो गया : “ठीक है, फिर, यही तय रहा; हर चीज मिला कर छः फ़्रैंक, जब तक शव बाहर नहीं चला जाता।

फिर वह लंबे लंबे डग भरता हुआ दूर अपने गेंहू की ओर चला गया, जो ज़मीन पर तेज धूप में पड़ा सूख रहा था, जबकि नर्स पुनः घर के भीतर चली गई।

वह अपने साथ कुछ काम लेकर आई थी, क्योंकि वह मृतकों और मर रहे लोगों की चारपाई की बगल में बैठे बिना रुके काम करती थी, कई बार अपने लिए, कई बार उस परिवार के लिए जिसने उसे सिलाई वाली के रूप में काम पर रखा होता था और उस भूमिका में उसे अपेक्षाकृत अधिक भुगतान करते थे। अकस्मात उसने पूछा :

“क्या तुम ने अंतिम पूजा कर दी है, बोन्टेम्पस अम्मा?”

वृद्ध किसान महिला ने अपना सिर हिलाया, और ला रपेट जो बहुत श्रद्धालु थी, तेजी से उठ गई।

“हे भगवान, क्या ऐसा संभव है? मैं जाऊंगी और निदान ले आऊंगी,” और वह इतनी तेजी से पादरी की ओर गई कि जब गली के खिलंदड़े लड़कों ने उसे दौड़ते हुए देखा तो सोचा कि कोई दुर्घटना घटित हो गई थी।

पादरी अपने झक सफेद वस्त्रों में तत्काल चला आया। उसके आगे आगे भजन गाने वाला एक लड़का चल रहा था जो सूखे शांत देहाती इलाके में मेजबान के घर का रास्ता बताने हेतु घंटी बजाता हुआ चल रहा था। कुछ आदमियों ने, जो कुछ दूरी पर काम कर रहे थे, अपने बड़े बड़े हैट उतार लिए और स्थिर खड़े रहे जब तक श्वेत परिधान किसी इमारत के पीछे अदृश्य नहीं हो गया, महिलाएं जो फसलों के गट्ठर बना रही थी क्रॉस का निशान बनाने हेतु खड़ी हो गईं; डरी हुई काली मुर्गियां एक खाई से होते हुए भागीं जब तक कि वे एक अच्छी तरह से ज्ञात छिद्र तक न पहुंच गई, और उसमें से होते हुए एकाएक अदृश्य न हो गईं। जबकि एक बछेड़ा जो घास के मैदान में बंधा हुआ था, सफेद वस्त्रों को देख कर डर गया और रह रह कर लात मारता हुआ गोल गोल छलांगे लगाने लगा।

गिरजाघर का सहायक, अपने कसे हुए परिधान में, तेजी से चल रहा था और पादरी, अपना सिर अपने एक कंधे की ओर झुकाए हुए और अपने सिर पर वर्गाकार बिरेटा (रोमन कैथोलिक पादरियों की टोपी) पहने हुए, कुछ प्रार्थनाएं बुदाबुदाते हुए,उसके पीछे चल रहा था; जबकि सब से अंत में ला रपेट थी झुक कर दोहरी होती हुई मानों दंडवत करना चाहती हो, वह हाथ जोड़े हुए चल रही थी जैसे कि लोग चर्च में करते हैं।

ओनोए ने उन्हें गुजरते हुए कुछ दूरी से देखा, और उसने पूछा : “तुम्हारे पादरी कहाँ जा रहे हैं?” उसके आदमी, जो अधिक बुद्धिमान था, ने कहा, “वह निश्चय ही पवित्र चिन्ह तुम्हारी माँ के पास ले जा रहे है।”

किसान को अचंभा नहीं हुआ। उसने कहा, “हो सकता है,” और वह फिर से अपना काम करने लगा।

अम्मा बोंटेम्पस में गुनाहों को स्वीकार किया, मुक्ति और समन्वय पाया, और उस दमघोंटू कक्ष में दोनों महिलाओं को अकेला छोड़ कर पादरी ने प्रस्थान किया। ला रपेट ने मरणासन्न महिला की ओर देखना शुरू किया, अपने से यह पूछने हेतु कि क्या वह अधिक लंबे समय तक चल सकती थी।

दिन अपनी ढलान पर था, ठंडी हवा के झोंके आने लगे थे, दो कीलों द्वारा दीवार पर लटके एपीनाल के दृश्य को ऊपर नीचे हिलाते हुए; खिड़की को बमुश्किल ढांकते परदे, जो पूर्व में सफेद रहे होंगे, किंतु अब पीले पड़ गए थे और मक्खियों की बीट के धब्बों से भरे हुए थे और ऐसे दिख रहे थे मानों वे उड़ने जा रहे हों, मानों वे दूर जाने हेतु संघर्ष कर रहे हों, वृद्ध महिला के प्राणों की भांति।

स्थिर पड़ी, अपनी आंखें खोले हुए, वह उदासीनता से प्रतीक्षा करती हुई सी लग रही थी उस मृत्यु की जो बहुत पास थी फिर भी जो आने में देर लगा रही थी। उसकी छोटी छोटी सांसें उसके रूंधे हुए गले से निकलते हुए सीटी की सी ध्वनि कर रही थी। ये शीघ्र ही पूर्णतः रुक जाने वाली थी और इस दुनिया में एक स्त्री कम हो जायेगी; कोई उसके लिए शोक नहीं करेगा।

रात होने पर ओनोए घर वापस लौट आया और जब वह बिस्तर पर जाने लगा, उसने देखा कि उसकी मां अभी भी जीवित थी। उसने पूछा, “वह कैसी है?” जैसा कि उसने पहले भी किया था जब वह बीमार थी। फिर उसने ला रपेट को यह कहते हुए वापस भेज दिया, “कल सुबह, पांच बजे, बिना देर हुए।”

और उसने उत्तर दिया: “ कल, पांच बजे।”

वह भोर में ही आ गयी, और ओनोए को उसका सूप पीते हुए पाया, जिसे उसने काम पर जाने से पूर्व बनाया था।

“अच्छा, क्या तुम्हारी मां मर गईं?” नर्स ने पूछा।

“नहीं, बल्कि इसके विपरीत वह पहले से बेहतर हो गयी है,” उसने अपनी आंखों के कोने में एक धूर्त मुस्कान के साथ जवाब दिया, और फिर वह बाहर चला।

ला रपेट, दुश्चिंता से ग्रस्त, मरणासन्न महिला के निकट गई, जो उसी अवस्था में पड़ी थी, थकी हुई और भावहीन, खुली आंखों संग, और उसके हाथ कस कर पलंग की चादर को पकड़े हुए थे। नर्स ने अनुमान लगाया कि ऐसा दो दिन तक चल सकता था, चार दिन तक, आठ दिन तक, और उसका लालची दिमाग भय से भर गया, जबकि वह उस धूर्त व्यक्ति पर क्रोधित थी जिसने उसे धोखा, और उस महिला पर भी जो जल्दी नहीं मरेगी।

जो भी हो, उसने काम करना शुरू कर दिया, और अम्मा बोंटेम्पस के झुर्रियों युक्त चेहरे को गहनता से देखती हुई प्रतीक्षा करने लगी। जब ओनोए नाश्ते के लिए वापस आया, वह काफ़ी संतुष्ट लग रहा था बल्कि मजाकिया मूड में था। निश्चय ही उसकी गेहूँ की फसल अच्छी हुई थी।

ला रपेट अधीर हो रही थी; हर क्षण उसे बहुत लंबा प्रतीत हो रहा था जैसे उसका धन उससे चुराया जा रहा हो। उसमें इस वृद्ध महिला, इस ढीठ और ज़िद्दी बुढ़िया की, उसके गले को थोड़ा सा दबा कर जान ले लेने की एक पागल इच्छा सी महसूस हुई, और उन छोटी और तेज चलती साँसों को रोक देने की जो उससे उसका समय और धन दोनों छीन रही थी। किंतु फिर उसने ऐसा करने के ख़तरे के बारे में सोचा और उसके मस्तिष्क में अन्य विचार आने लगे; इसलिए वह बिस्तर तक गई और बोली : “क्या तुमने कभी शैतान देखा है?”

अम्मा बोंटेम्पस बुदबुदाई : “नहीं।”

फिर नर्स ने बात करना और ऐसी कहानियाँ सुनाना शुरू किया जो मरणासन्न महिला के कमजोर मस्तिष्क को भयाक्रांत कर सकती थी। “किसी की मृत्यु के कुछ मिनट पूर्व शैतान प्रगट होता है,” उसने कहा, “उन सभी के समक्ष जो मृत्यु शैया पर होते हैं। उसके हाथ में एक झाड़ू होती है, एक सॉसपैन उसके सिर पर, और वह ज़ोर से चीखता है। जब कोई व्यक्ति उसे देख लेता है, सब कुछ समाप्त हो जाता है, और उस व्यक्ति के पास जीने को बस कुछ क्षण बचे होते हैं।” फिर उसने उन सब का विवरण दिया जिन्हें उस वर्ष शैतान दिखाई दिया था: जोसेफिन लुईसेल, यूली रेटर, सोफ़ी पदकनू, सेराफ़िन ग्रोस्पीड।

अम्मा बोंटेम्पस, जो अंततः मन से बेचैन हो गई थी, मुड़ी, अपने हाथ घुमाए और अपना सिर कमरे के आख़िरी सिरे की ओर देखने हेतु घुमाने का प्रयत्न किया। अचानक बिस्तर के किनारे से ला रपेट ग़ायब हो गई। उसने अलमारी में से एक चादर ली और उसे अपने चारो ओर लपेट लिया; उसने लोहे का सॉसपैन अपने सिर पर रखा, ताकि इसके तीन छोटे, मुड़े हुए पैर सींगों की तरह निकले हुए हों, उसने अपने दायें हाथ में झाड़ू ली और बायें हाथ में टिन की बाल्टी, जिसे उसने अचानक ज़ोर से ऊपर उछल दिया ताकि वह ज़मीन पर शोर करते हुए गिरे।

जब बाल्टी नीचे आई, उससे बहुत तीव्र शोर हुआ। फिर एक कुर्सी पर चढ़ कर नर्स ने पलंग के किनारे लटकते पर्दे को उठाया और अपने आप को दिखाया, लोहे के सॉसपैन जो उसके चेहरे को ढँके हुए था, में से इशारे करती हुई, तीखी चीखें निकालती हुई। फिर उसने वृद्ध कृषक महिला को, जो लगभग मृताप्राय थी, अपने झाड़ू से धमकाया। भयाक्रांत, अपने चेहरे पर पागलों जैसे भाव लिए, मरणासन्न महिला ने उठने और भाग जाने हेतु एक अतिमनवीय प्रयत्न किया; उसने अपना कंधा और वक्ष बिस्तर से लगभग बाहर भी निकाल लिया; फिर वह एक गहरी साँस के साथ वापस बिस्तर पर गिर गयी। सब कुछ समाप्त हो गया, ला रपेट ने शांति से हर चीज को यथास्थान रख दिया; झाड़ू को आलमारी के पास कोने में और चादर को आलमारी के भीतर, सॉसपैन को चूल्हे पर, बाल्टी को फ़र्श पर और कुर्सी को दीवार के सहारे। फिर व्यावसायिक तरीक़े से उसने मृत महिला की बड़ी बड़ी आँखें बंद की, एक तश्तरी को बिस्तर पर रखा और उसमें थोड़ा पवित्र जल उड़ेला, फिर बॉक्सवुड की एक टहनी जो आलमारी की दराजों पर जड़ी हुई थी को उसमें डाला, फिर घुटनों के बल बैठ, वह अपने व्यावसायिक कारणों से तेज़ी से मृतकों वाली प्रार्थना दुहराने लगी।

और जब ओनोए शाम को वापस आया उसने उसे प्रार्थना करते हुए पाया और उसने तत्काल हिसाब लगाया कि उस महिला ने उससे एक फ़्रैंक अतिरिक्त बना लिया है क्योंकि उसने मात्र तीन दिन और एक रात वहाँ बिताई है, जिसका सब मिला कर पाँच फ़्रैंक होता है, उस छः फ़्रैंक की जगह जो उसे उसको देने हैं।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह