शॉर्ट फिल्म महरूनी और विशाल भारद्वाज की द ब्लू एम्ब्रेला / नवल किशोर व्यास

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शॉर्ट फिल्म महरूनी और विशाल भारद्वाज की द ब्लू एम्ब्रेला


"लोग कहते है कि मुम्बई जितनी फैलती जा रही है, प्यार उतना ही सिमटता जा रहा है। सब अपनी नौकरी से इतनी मोहब्बत कर बैठे है कि प्यार-व्यार किताबो में या सिनेमा के ढाई घंटो में ही रह गया है। कभी भूले से कॉफी शॉप में हो गया तो हो गया वरना कोई चांस ही नही लेकिन एक सुबह मुझे दिखा वो किताबो वाला प्यार, किताबो के पन्नो से बाहर।"

2011 में फराज अली की बनाई नौ मिनिट की शॉर्ट फिल्म महरूनी का नरेशन है जो इस बेहद खूबसूरत फिल्म के मिजाज को बताता है। अपने बिजी शेड्यूल से नौ मिनिट इस फिल्म को जरूर दे। यूट्यूब पर आप महरूनी नाम से आप इसे ढूंढ सकते है। महरूनी स्वेटर के बहाने भागती-दौड़ती दुनिया के बीच बिल्कुल साधारण और मासूम से प्यार की कहानी है। इसमें सिनेमा वाली हीरोज्म घुसपैठ नही है क्योंकि महरूनी जैसा प्यार सिर्फ कहानियो और फिल्मो में ही नही होता, ऐसी कहानिया और फिल्में रची जाती है क्योंकि महरूनी जैसा प्यार अक्सर हमारे आस-पास होता है। अच्छी कहानी है और कहानी को बयां करने का अंदाज तो और भी उम्दा। इसी शार्ट फिल्म में अरिजीत दत्ता का कंपोज़ किया हुआ और रेखा भारद्वाज का गाया बेहतरीन महरूनी गीत दर्ज है। चूँकि फिल्म या एल्बम का गीत ना होकर शार्ट फिल्म का गीत था इसलिए ज्यादा लोकप्रिय नही हुआ और होना भी नही चाहिए। कुछ गीतों को अपने लिए, सिर्फ अपने लिए कैद कर लेना चाहिए। इतना अधिकार कर लेना चाहिए कि कोई दूसरा जिक्र भी करे तो जलन सी हो जाए। बहरहाल, महरूनी विशुद्ध रेखा भारद्वाज के तेवर वाला गाना है। जिसने नही सुना है और अगर मेरी बिन मांगी सलाह पर ये फिल्म देखेगा या गाना सुन लेगा, वो एक बड़ा थेंक यू तो जरूर कहेगा। शॉर्ट स्टोरिज का अपना संसार है। टेक्नोलॉजी ने हर दूरदराज तक बैठे आदमी के रचना संसार को विस्तार दिया है। इंटरनेट आज अदभुत अवसर है अपनी प्रतिभा को बड़े जनसमूह तक पहुचाने का। यूट्यूब ऐसी प्रतिभाओं के वीडियो से भरा पड़ा है। कितने गीतकार, संगीतकार, गायक, अभिनेता, कॉमेडियन, सिनेमेटोग्राफर यूट्यूब पर है। इरान इस तरह की फिल्मों में सिद्धहस्त है। एक कमाल फिल्म का  विचार ये था कि एक लड़की साइकिल चलाना सीखना चाहता है ताकि लड़को को बता सके कि लड़कियां उनसे कम है ही नही। विशाल भारद्वाज, इम्तियाज अली, फरहान अख्तर की निर्माण संस्था की बहुत सी अच्छी फिल्में भी बहुत सराही गई है। बड़े फिल्म अवार्ड्स और फेस्टिवल आजकल ऐसी फिल्मों के लिए अलग से स्क्रीनिग कराते है। शॉर्ट फिल्मों का दायरा बड़ा होता जा रहा है। दरअसल शॉर्ट फिल्म एक विचार होता है। उस विचार का प्रस्तुतिकरण ही उसकी खासियत बनती है। कम समय में भावना की उस पूरे वेग से बात को ऑडियन्स तक पहुचाना बहुत रचनात्मक खपत का काम होता है। इन शॉर्ट फिल्म में कैमरा एंगल, एडिटिंग में काफी नवाचार की गुंजाइश होती है और इसमें प्रयोग होते रहते है। आजकल मोबाइल से भी फिल्म बनती है और यूट्यूब पर प्रशंसित होती है। विशाल भारद्वाज की एड्स पर बनी पर शॉर्ट मूवी में पंकज कपूर का यादगार अभिनय दर्ज है। इससे बढ़िया अभिनय पंकज ने विशाल की ही फिल्म ब्लू एम्ब्रेला और मकबूल में किया है। विशाल ने पंकज कपूर की प्रतिभा का सर्वाधिक दोहन किया है। ब्लू अम्ब्रेला में पंकज कपूर जिस तरह से रोल में घुसे है वो कभी ना भूलने वाला अनुभव है। विशाल के डाइलॉग, संगीत और निर्देशन चरम पर है। लोग मकबूल और ओमकारा को उसका बेस्ट मानते है पर ब्लू अम्ब्रेला और मकड़ी को बाल फ़िल्म कहने वालो फिल्म का बारीक और महीन काम देखना चाहिए। एक संवाद साझा करता हूँ जो लेखक रस्किन बांड, विशाल भारद्वाज और पंकज कपूर की जादूगरी का बेजोड़ नमूना है-

-चाचा, छाता लेकर कोई फायदा होगा क्या?

-इंद्रधनुष को देखकर कोई फायदा होता है क्या.... पानी में ये छोटी सी कागज़ की नाव चलाकर कोई फायदा होता है क्या.... वो पहाड़ी के पीछे सूरज को डूबते देखने से कोई फायदा होता है क्या.....ओ तेरे जैसे निखट्टू को काम पे रख के कोई फायदा होता है क्या......आत्मा की शान्ति में नफा नुकसान नही देखा जाता... कोई पिछले ही जन्म का सम्बन्ध है इस छतरी और खत्री में....

जय जय रस्किन बॉन्ड, विशाल और पंकज। आपका रचित सदा चकित करता है। शॉर्ट मूवी में विशाल पंकज कपूर की प्रतिभा का समा जाना भी कम चमत्कार नही।